इस लेख में आप हिंदी में सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचय (Subhadra Kumari Chauhan Biography in Hindi) पढ़ेंगे। इसमें सुभद्रा कुमारी चौहान का परिचय, प्रारम्भिक जीवन, शिक्षा, सहित्यिक जीवन, रचनाएं, निजी जीवन और मृत्यु के बारे में संक्षिप्त में जानकारी दी गई है।
सुभद्रा कुमारी चौहान का परिचय Introduction of Subhadra Kumari Chauhan in Hindi
असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी और हिंदी साहित्य की सुप्रसिद्ध लेखिका और कवित्री सुभद्रा कुमारी चौहान आज भी अपने अमूल्य योगदानों के लिए याद की जाती हैं। गुलामी के दौर में आजादी की चिंगारी जलाने वाली सुभद्रा कुमारी चौहान का भारतीय आंदोलनों में बहुत बड़ा सहयोग रहा है।
‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी’ रानी लक्ष्मीबाई पर लिखी गई, ऐसे कविता की पंक्ति है जो हर हिंदुस्तानी के मुख पर तोते की भांति रटी हुई है। ब्रिटिश भारत की प्रेसिडेंसी में इलाहाबाद में सुभद्रा कुमारी का जन्म हुआ था।
उनके द्वारा लिखी गई रचनाओं को आज भी दुनिया भर में पसंद किया जाता है। सुभद्रा कुमारी चौहान एक ऐसी लेखिका थी, जिन्होंने अपनी रचनाओं को केवल पन्नों पर ही नहीं अपने जीवन में भी महसूस किया है। महादेवी वर्मा जोकि भारत की सुप्रसिद्ध लेखिकाओं में से एक हैं, उनकी सहपाठी रह चुकी हैं।
सुभद्रा कुमारी चौहान अपनी रचनाओं से ब्रिटिश हुकूमत पर भी तीखा प्रहार करती थी। जाति प्रथा, भारतीय आंदोलन, स्वतंत्रता सेनानियों, स्त्री स्वाधीनता, राष्ट्रवाद इत्यादि जैसे कई विषयों पर सुभद्रा कुमारी ने रचनाएं की हैं।
बचपन से ही सुभद्रा कुमारी चौहान बहुत प्रतिभावान थी, जिन्हें शिक्षा के साथ-साथ कविताएं लिखने में भी बेहद रूचि थी। आज भी हिंदी साहित्य में उनकी रचनाएं अमर है।
सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म व प्रारम्भिक जीवन Birth and early life of Subhadra Kumari Chauhan in Hindi
16 अगस्त 1904 के दिन उत्तर प्रदेश, इलाहाबाद के पास निहालपुर नामक गांव में सुभद्रा कुमारी का जन्म नाग पंचमी के दिन हुआ था। उनके पिता का नाम ठाकुर रामनाथ सिंह था, जो कि एक जमींदार थे।
उन्होंने बचपन से ही समुद्रा को पढ़ाई लिखाई के लिए बेहद प्रोत्साहन दिया था। उनकी माता एक गृहणी थी। सुभद्रा कुमारी का बचपन बड़े ही स्वच्छ और उत्कृष्ट वातावरण में बीता।
सुभद्रा कुमारी चौहान ने बेहद कम उम्र में ही अपनी प्रतिभा को उजागर करना शुरू कर दिया था। जब वह सिर्फ 9 वर्ष की थी, तब उन्होंने अपना पहला कविता नीम के पेड़ पर रचा था, जिसे उनके पिता ने पब्लिश भी करवाया।
उनके पिता ने कम उम्र में अपनी बेटी से इतनी ज्यादा महत्वकांक्षा नहीं की थी, लेकिन बाल्यावस्था में सुभद्रा कुमारी की प्रतिभा को देखकर वे बहुत प्रसन्न होते थे।
उनके पिता भले ही एक जमींदार थे और उन्होंने अधिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी, लेकिन फिर भी शिक्षा के प्रति वे बेहद समर्पित थे। सुभद्रा कुमारी अपनी कुल चार बहने और दो भाई में से सबसे तेजस्वी और प्यारी थी। जिसकी वजह से उन्हें बहुत लाड़ प्यार मिलता था।
सुभद्रा कुमारी चौहान की शिक्षा Education of Subhadra Kumari Chauhan in Hindi
सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रारंभिक शिक्षा उनके पिता की देखरेख में ही संपन्न हुई। इलाहाबाद के एक क्रास्थवेट गर्ल्स स्कूल में उनका दाखिला करवाया गया। विद्यालय में उनकी मुलाकात महादेवी वर्मा से हुई, जो कि उनकी जूनियर थी।
सुभद्रा कुमारी चौहान महादेवी वर्मा दोनों ही अच्छे मित्र बन गए थे। 9 साल की उम्र में जब सुभद्रा कुमारी ने अपनी पहली कविता की रचना की, तो वह बहुत प्रख्यात हुआ।
उस समय ‘मर्यादा’ नामक पत्रिका में सुभद्रा कुमारी चौहान का ‘नीम’ के पेड़ पर लिखी गई कविता छापी गई इसके बाद वे एकाएक अपने पूरे विद्यालय में प्रख्यात हो गई। वह पढ़ाई लिखाई में सबसे आगे रहती थी, जिसके कारण अपने सभी शिक्षकों की भी वे सबसे प्रिय छात्रा थी।
कविताएं की रचना का शौक रखने वाली सुभद्रा कुमारी मजबूरी वश नवी कक्षा तक ही अपनी शिक्षा पूरी कर पाई थी। पढ़ाई लिखाई छुटने के बाद भी उन्होंने हमेशा कविताएं लिखने का दौर चालू रखा, जिसका सिलसिला ताउम्र चला।
सुभद्रा कुमारी चौहान का सहित्यिक जीवन Literary life of Subhadra Kumari Chauhan
हिंदी साहित्य में बेजोड़ पदवी रखने वाली सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएं उनके जीवन की तरह ही बेहद स्पष्ट है। कविताएं लिखने का दौर बहुत कम उम्र में ही प्रारंभ हो गया था।
जब सुभद्रा कुमारी छोटी बच्ची थी, तब वे कविताओं की नई पंक्तियां किसी खेल की तरह झट से लिख देती। सुभद्रा जी की प्रतिभा से हर कोई भलीभांति परिचित है।
वह तमाम पुरस्कार जो कि साहित्य जगत में प्रदान किए जाते हैं, सुभद्रा कुमारी चौहान को प्रदान किया जा चुका है। उन्हें सीधे-सीधे ईश्वर का वरदान प्राप्त था, यह कहना उचित होगा। एक शानदार साहित्यक जीवन के साथ साथ उन्होंने समाज के रूढ़िवादी लोगों को अपने विचारों पर आत्ममंथन करने पर विवश किया है।
सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएं Compositions of Subhadra Kumari Chauhan in Hindi
सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखी गई ‘नीम’ पर कविता उन्होंने मात्र 9 वर्ष की आयु में ही लिखा था। वीर रस से ओतप्रोत सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएं सीधे लोगों के हृदय को छू जाती है।
सुभद्रा जी ने तीन प्रमुख कहानियों का संग्रह लिखा जिनमें, ‘सीधे-साधे चित्र’, ‘बिखरे मोती’ तथा उन्मादिनी सम्मिलित है। ‘त्रिधारा’, ‘मुकुल’ इत्यादि अन्य कविता संग्रह है।
बिखरे मोती कविता संग्रह में कुल 15 कहानियां सम्मिलित है। इसमें ज्यादातर रचनाएं नारी विमर्श पर आधारित है। उन्मादिनी में कुल 9 कहानियां शामिल है, जो सामाजिक और पारिवारिक परिवेश पर आधारित है।
सीधे-साधे चित्र सुभद्रा कुमारी चौहान का अंतिम और तीसरा संग्रह है, जिसमें कुल 14 कहानियां सम्मिलित है। कुल मिलाकर 46 से अधिक कहानियों की रचना करके सुभद्रा कुमारी चौहान एक मशहूर लेखिका और कवित्री बन गई।
सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखे गए प्रमुख बाल साहित्य जिनमें ‘झांसी की रानी’, ‘सभा का खेल’ और कदंब का पेड़’ इत्यादि शामिल है। सुभद्रा कुमारी चौहान और उनके पति लक्ष्मण सिंह की संयुक्त जीवनी को ‘मिला तेज से तेज’ नमक साहित्य में दर्शाया गया है।
जिसे उनकी बेटी सुधा चौहान द्वारा लिखा गया था। 1919 में जलियाँवाला बाग हत्याकांड के ऊपर भी सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखी गई ‘जलियाँवाला बाग में बसंत’ नमक रचना बहुत प्रसिद्ध है।
सुभद्रा कुमारी चौहान का निजी जीवन Subhadra Kumari Chauhan Personal Life in Hindi
1919 में मध्य प्रदेश के खंडवा निवासी ठाकुर लक्ष्मण सिंह के साथ सुभद्रा कुमारी चौहान का विवाह हुआ। पेशे से ठाकुर लक्ष्मण सिंह एक नाटककार थे। विवाह के दो साल बाद ही वह जबलपुर रहने के लिए चली गई।
विवाह के पश्चात भी सुभद्र कुमारी चौहान ने अपनी कविताएं लिखने का शौक नहीं छोड़ा। उनके पति उन्हें पूरी तरह से प्रोत्साहित करते थे।
1921 में सुभद्रा कुमारी, महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन से जुड़ गई। आंदोलन में उन्हें जेल जाकर कई यातनाएं भी सहनी पड़ी, लेकिन इसके बावजूद भी सुभद्रा कुमारी चौहान और उनके पति कांग्रेस से जुड़कर भारतीयों को असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित करते थे।
सुभद्रा कुमारी चौहान और ठाकुर लक्ष्मण सिंह के कुल 5 बच्चे हुए। गृहस्थ जीवन के साथ साथ जिस तरह से उन्होंने समाज सेवा और आज़ादी के छेड़े गए मुहीम का प्रबल नेतृत्व किया वह काबिले तारीफ है।
सुभद्रा कुमारी चौहान मृत्यु Subhadra Kumari Chauhan Death in Hindi
एक महिला होने के बावजूद भी जिस प्रकार का साहस उन्होंने अपनी रचनाओं के साथ साथ ब्रिटिश गवर्नमेंट के खिलाफ दिखाया था, उससे पूरा हिंदुस्तान उन्हें एक आदर्श के रूप में देखता था।
15 फरवरी 1948 के दिन एक दुर्घटना में सुभद्रा कुमारी चौहान के आकस्मिक निधन से पूरे हिंदुस्तान में मातम छाया था। मात्र 43 वर्ष की आयु में ही उनकी मृत्यु हो गई फोन।
सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी मृत्यु के पहले ही यह यह कहा था, कि मरने के बाद भी मैं भारत माता के इस धरती को छोड़ने की कल्पना भी नहीं कर सकती।
मेरी इच्छा है कि जब मेरी समाधि बने तब उसके चारों तरफ बच्चे खेलते रहे, स्त्रियां गीत गुनगुनाए और चारों तरफ मधुर कोलाहल छाया रहे। सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्मान में 6 अगस्त 1976 को उन पर आधारित एक पोस्ट स्टैंप भी प्रकाशित किया गया था।
Bahut achi Kavita hai