टीपू सुल्तान का इतिहास Tipu Sultan History in Hindi
इस लेख में आप टीपू सुल्तान का इतिहास व जीवनी Tipu Sultan History in Hindi हिन्दी में पढ़ेंगे। इसमें टीपू सुल्तान का जन्म व प्रारंभिक जीवन, शिक्षा, निजी जीवन, उनके शासनकाल की कहानी, मृत्यु, तथ्य इत्यादि के विषय में संक्षिप्त में जानकारी दी गई है।
टीपू सुल्तान का इतिहास Tipu Sultan History in Hindi
टीपू सुल्तान मैसूर के राजा थे। उनको ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लड़ाई में अपने साहस के लिए जाना जाता था। टीपू सुल्तान के साम्राज्य को लेने का प्रयास करने वाले अंग्रेजों के खिलाफ उनके हिंसक संघर्षों के कारण उन्हें भारत के पहले स्वतंत्रता योद्धा के रूप में जाना जाता है।
उन्होंने द्वितीय एंग्लो-मैसूर युद्ध को समाप्त करने के लिए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ मैंगलोर की संधि पर हस्ताक्षर किए, जो आखिरी बार एक भारतीय सम्राट ने अंग्रेजों को शर्तों को निर्धारित किया था। 1782 में अपने पिता, मैसूर के सुल्तान हैदर अली की मृत्यु के बाद टीपू सुल्तान सिंहासन पर बैठे।
सम्राट के रूप में, उन्होंने अपनी सरकार में विभिन्न सुधारों की स्थापना की और लोहे के आवरण वाले मैसूरियन रॉकेटों के उत्पादन में वृद्धि की, जिसका उपयोग वह बाद में ब्रिटिश अग्रिमों का मुकाबला करने के लिए किया।
उन्होंने सत्ता संभालने के बाद अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में फ्रांसीसियों का साथ देने की अपने पिता की रणनीति का पालन किया। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कई युद्ध लड़े और अपने राज्य को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के चंगुल में फिसलने से बचाने के लिए हर संभव कोशिश की।
टीपू सुल्तान का जन्म व प्रारंभिक जीवन Birth and Early Life of Tipu Sultan in Hindi
एक कुशल योद्धा और शासक टीपू सुल्तान का जन्म कर्नाटक के देवनाहल्ली में 20 नवंबर सन 1750 में हुआ था। उनके पिता का नाम हैदर अली और माता का नाम फातिमा फख-उन निसा था। हैदर अली ने अपने बेटे का नाम टीपू सुल्तान रखा था। इसके अलावा उन्हें बाद में टीपू साहिब, फतेह अली टीपू इत्यादि कई नाम से भी जाना गया। वे अपने सभी भाइयों में सबसे बड़े थे।
टीपू सुल्तान के पिता मैसूर साम्राज्य के सेनापति हुआ करते थे, जिन्होंने अपने रणनीति से मैसूर राज्य पर कब्जा कर लिया और स्वयं को राजा घोषित कर दिया। कहा जाता है, कि बचपन से ही टीपू सुल्तान के अंदर धार्मिक प्रवृत्तियां समाहित थी।
बहुत कम उम्र में ही उन्होंने एक योद्धा होने के सारे गुण सीख लिए थे और अपने पिता के साथ रणभूमि में दुश्मनों से युद्ध करने के लिए जाया करते थे। अपने पिता के संरक्षण में टीपू सुल्तान का प्रारंभिक जीवन बिता।
टीपू सुल्तान की शिक्षा Tipu Sultan’s Education in Hindi
टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली भले ही पढ़े-लिखे नहीं थे, किंतु उन्होंने अपने जेष्ठ पुत्र टीपू को वह सारी युद्ध कलाएं और रणनीतियां सिखाई जो एक कुशल शासक में पाई जाती हैं। टीपू सुल्तान की शिक्षा के लिए उन्होंने कई शाही और सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों को नियुक्त किया था।
क्योंकि हैदर अली के संबंध फ्रांसीसी अधिकारियों से भी थे, इसी कारण उन्होंने टीपू को भी आने वाले समय के लिए श्रेष्ठ फ्रांसीसी अधिकारियों द्वारा अपने बेटे को राजनीतिक मामलों में प्रशिक्षित करने का आदेश दिया था। टीपू सुल्तान बचपन से ही इतने होनहार थे, कि उन्होंने कम उम्र में ही अच्छी तलवारबाजी सीख ली थी।
इसके अलावा वह निशानेबाजी और घुड़सवारी में भी माहिर हो गए थे। टीपू सुल्तान एक बेहद पढ़े लिखे शासकों में गिने जाते हैं, जिन्होंने कम उम्र में ही हिंदी, फारसी,कन्नड़, उर्दू, अरबी इत्यादि जैसी कई भाषाएं सीख लिया।
कई ऐतिहासिक साक्ष्यों के मुताबिक कहा जाता है कि टीपू सुल्तान धार्मिक प्रकृति के थे, जिन्होंने तथाकथित रूप से अपने समय काल में दूसरे धर्म के लोगों पर होने वाले धार्मिक उत्पीड़न के विरुद्ध आवाज उठाई थी। लेकिन अन्य इतिहासकार इस मान्यता को जड़ से खारिज करते हैं और टीपू सुल्तान को एक क्रूर शासक का दर्जा देते हैं।
टीपू सुल्तान का निजी जीवन Tipu Sultan’s Personal Life in Hindi
टीपू सुल्तान का पूरा नाम सुल्तान सईद वाल्शारीफ़ फ़तह अली खान बहादुर साहब टीपू था। फातिमा फख- उन निसा और हैदर अली की सबसे प्रभावकारी संतान टीपू सुल्तान ही थे। 1761 में टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली ने मैसूर राज्य पर अपना शासन जमा लिया था। जिसके पश्चात बाल्यावस्था में टीपू सुल्तान को भी अपने पिता से कई रणनीतिक ज्ञान विरासत में प्राप्त हुई।
लेकिन 1782 में हैदर अली की मृत्यु के बाद टीपू सुल्तान को मैसूर का साम्राज्य संभालना पड़ा। अचानक से राज सिंहासन खाली हो जाने के कारण कई विपक्षी राजवंश ने मैसूर पर आक्रमण कर दिया, लेकिन टीपू सुल्तान ने अपनी सूझबूझ से अपने साम्राज्य को दुश्मनों से दूर रखा।
उसी दौरान टीपू सुल्तान का विवाह सिंधु सुल्तान से हुआ। विस्तार वाद की नीति अपनाते हुए टीपू ने कई छोटे-छोटे राज्यों को अपने राज्य में मिला लिया। हालांकि वे खुद को पूरे भारत का सम्राट बनते हुए देखना चाहते थे, लेकिन उनकी इच्छा पूरी नहीं हो पाई।
तत्पश्चात टीपू सुल्तान ने कई विवाह किए जिनसे कई संताने उत्पन्न हुए। जिनमें मुख्यतः शहज़ादा मु’इज्ज़ – उद – दिन सुल्तान,शहज़ादा अब्दुल खालिक़ सुल्तान, शहज़ादा हैदर अली सुल्तान, शहज़ादा मुहि – उद – दिन सुल्तान इत्यादि प्रमुख संताने थी।
18 वीं शताब्दी में अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध में लड़ते हुए इतिहास के पहले शासक टीपू सुल्तान थे, जिन्होंने मैसूर की रक्षा करते हुए अपने प्राण गवा दिए। एक योद्धा के रूप में उनकी जितनी प्रशंसा की जाए वह कम ही होगी।
लेकिन कई इतिहासकार टीपू सुल्तान को दक्षिण भारत का सबसे क्रूर शासक के रूप में याद करते है, जिन्होंने अपने शासनकाल में लगभग लाखों गैर मुसलमानों का धर्म परिवर्तन और नरसंहार करवाया था।
टीपू सुल्तान के शासनकाल की कहानी Story of Tipu Sultan’s Reign in Hindi
जब मैसूर की गद्दी पर हैदर अली का शासन था, तब सन 1779 में टीपू सुल्तान के संरक्षण में आए एक बंदरगाह पर अंग्रेजों ने अवैध रूप से अपना कब्जा कर लिया। जिसके कारण टीपू सुल्तान के पिता ने इसका बदला लेने के लिए वर्ष 1780 में अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया, जिसे “द्वितीय एंग्लो मैसूर युद्ध” के नाम से जाना जाता है।
इस युद्ध में हैदर अली की जीत हुई थी। अगले 2 सालों में हैदर अली को कैंसर की गंभीर बीमारी हो गई, जिसके कारण 1782 में उनकी मृत्यु हो गई थी।
पिता के इस प्रकार आकस्मिक निधन के कारण टीपू सुल्तान ने हिम्मत करके मैसूर राज्य को दुश्मनों से बचाए रखने के लिए स्वयं राजगद्दी संभाली और मैसूर शासक बन गए। सत्ता में आने के बाद टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों की जांच करवाने के लिए कई मुग़ल और मराठों के साथ गठबंधन कर लिया और अंग्रेजो के खिलाफ रणनीति पर काम करने लगे।
अंत में अंग्रेजों और टीपू सुल्तान के बीच 1784 में “द्वितीय एंग्लो मैसूर युद्ध” समाप्त होने के बाद ‘मंगलौर की संधि’ पर हस्ताक्षर किया जो पूरी तरह से सफल रहा।
अपने जीवन काल में दूसरे बड़े युद्ध के बाद टीपू सुल्तान ने अब अपने क्षेत्र में सुधार काम की महत्वाकांक्षा रखी और विभिन्न प्रकार की परियोजनाओं के साथ सैन्य बल, पुल, मकान, बंदरगाह और युद्ध में उपयोग करने के लिए मैसूरियन रॉकेट का निर्माण करवाया, जिसे वे अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध में इस्तेमाल करने के लिए प्रयोग करते थे।
लेकिन टीपू सुल्तान से इस बार उनकी बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के कारण एक भूल हो गई। अंग्रेजों से की गई मंगलौर संधि में यह प्रस्ताव भी शामिल था, की टीपू सुल्तान और उनके सहयोगी कभी भी त्रवंकोर राज्य पर आक्रमण नहीं करेंगे। त्रवंकोर राज्य उस समय में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का एक उपनिवेश था।
वर्ष 1789 के दरमियान टीपू सुल्तान ने ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ किए गए संधि का उल्लंघन करके त्रवंकोर पर पहला हमला कर दिया। इसके विरोध में अंग्रेजों ने मजबूत सैन्य बल की स्थापना के लिए हैदराबाद के निजामों और कई मराठों के साथ गठबंधन कर लिया और अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाकर वर्ष 1790 में टीपू सुल्तान पर हमला कर दिया।
परिणाम स्वरूप टीपू सुल्तान को अपने अन्य अधिकृत राज्यों में सुरक्षा और भी बढ़ानी पड़ी। टीपू सुल्तान और अंग्रेजों के बीच छिड़ी इस युद्ध को “तृतीय एंग्लो मैसूर युद्ध” के नाम से जाना जाता है, जिसमें टीपू सुल्तान की हार हुई थी।
इस युद्ध में हार के बाद भी टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों से की गई दुश्मनी को समाप्त नहीं किया और अंग्रेजों के विरुद्ध एक के बाद एक चाल चलते गए। इसके कारण जब “चौथा एंग्लो मैसूर युद्ध” हुआ तो इसमें टीपू सुल्तान को अपने साम्राज्य के साथ साथ अपने प्राण से भी हाथ धोने पड़ गए।
टीपू सुल्तान के तलवार की विशेषता, लंबाई, वज़न Features, length, weight of Tipu Sultan’s !word in Hindi
अंग्रेजों से लड़ते समय टीपू सुल्तान जैसे महान योद्धा ने जो साहस का प्रदर्शन किया था, वह वाकई में अद्वितीय था। टीपू सुल्तान की सबसे बड़ी खासियत उनके पास रहने वाले तलवार की थी।
टीपू सुल्तान की तलवार के विषय में कई रोचक इतिहास जुड़ा है। करीब 7 किलो से अधिक वजन वाला तलवार टीपू सुल्तान की शोभा बढ़ाती थी।
कहा जाता है कि अंग्रेज भी एक समय पर उनकी तलवार के दीवाने हो गए थे। यही कारण है कि जब टीपू सुल्तान की मौत युद्ध भूमि में हुई तब उनके शव के बाजू में पड़ी तलवार को अंग्रेज अपने साथ ले गए थे। कई सालों तक टीपू सुल्तान की तलवार ब्रिटेन के एक म्यूजियम में रखी गई थी।
यह तलवार बेहद खूबसूरत और धारदार थी, जिसके ऊपर रत्न जड़ित बाग का दृश्य बना हुआ था। वर्तमान समय में उनकी इस अनोखी तलवार की कीमत करोड़ों में है।
टीपू सुल्तान की आखिरी लड़ाई का इतिहास History of Tipu Sultan’s Last Battle in Hindi
एक टुकड़े पर व्यापार करने से लेकर पूरे हिंदुस्तान में “फूट डालो और राज करो” की नीति अपना कर अंग्रेजों ने जिस तरह भारतीयों पर अत्याचार किए यह बात किसी से भी नहीं छुपी है। ब्रिटिशो ने तीसरी बार तक टीपू सुल्तान के पूरे साम्राज्य को ध्वस्त करने के तो बहुत प्रयास किए थे, लेकिन वे इसमें पूरी तरह से सफल नहीं हो पाए थे।
तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध के बाद अंग्रेजों ने हैदराबाद के निजाम की सहायता लेनी शुरू कर दी। लालच देकर अंग्रेजों ने निजामो को अपने साथ मिलाकर चौथा युद्ध टीपू सुल्तान के विरुद्ध छेड़ा।
इस बार टीपू सुल्तान अपने राज्य को बचाने में असमर्थ रहे और मैसूर के श्रीरंगपट्टनम की रक्षा करते हुए 4 मई सन 1799 के दिन शहीद हो गए। यह लड़ाई महान योद्धा टीपू सुल्तान के जीवन की आखिरी लड़ाई साबित हुई।
उनकी मृत्यु के तुरंत बाद ही अंग्रेजों ने मैसूर की गद्दी पर कब्जा कर लिया और वहां अपने पसंद के एक राजा को बैठा दिया। भले ही टीपू सुल्तान ने देश में कई भेदभाव और अत्याचार किए होंगे, लेकिन अंग्रेजों के सामने जिस तरह से उन्होंने अंतिम सांस तक युद्ध किया वह इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज है।
टीपू सुल्तान की मृत्यु Death of Tipu Sultan in Hindi
4 मई 1799 के दिन मैसूर के एक शहर श्रीरंगपट्टनम में टीपू सुल्तान अंग्रेजो के खिलाफ लड़ते लड़ते शहीद हो गए। उनके शव को पूरे विधि विधान से और सम्मान पूर्वक श्रीरंगपट्टनम में ही दफन किया गया।
उस समय एकमात्र टीपू सुल्तान ही थे, जिसने अपने राज्य की रक्षा करने के लिए अंग्रेजों से सीधे-सीधे लोहा लिया था। आज भी मैसूर में टीपू सुल्तान को वहां के आम निवासी किसी महान पुरुष के रूप में याद रखते हैं।
टीपू सुल्तान का किला Tipu Sultan’s Fort in Hindi
18 वीं सदी में टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली द्वारा निर्मित पालक्काड किला मैसूर के सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है। इसे टीपू का किला के नाम से पहचाना जाता है, जो पूरे भारत में बेहद प्रसिद्ध है। अंग्रेजों के मैसूर पर विजय के पहले पालक्काड किला मैसूर के नवाबों के अंतर्गत आता था।
दक्षिण भारत में स्थित टीपू का किला सबसे संरक्षित और खूबसूरत जगहों में से एक है, जो एक पर्यटन का मुख्य केंद्र भी है। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के अंतर्गत टीपू सुल्तान का किला का संरक्षण और देखरेख किया जाता है।
टीपू सुल्तान के विषय मे रोचक तथ्य Interesting Facts About Tipu Sultan in Hindi
- टीपू सुल्तान को दुनिया का पहला ‘मिसाइल मैन’ कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने अंग्रेजों से युद्ध लड़ने के लिए एक रॉकेट का इजाद किया था, जिसे वर्तमान समय में लंदन के सुप्रसिद्ध साइंस म्यूजियम में संभाल कर रखा गया है।
- नए भारत के पहले मिसाइल मैन डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने स्वयं टीपू सुल्तान के रॉकेट प्रवर्तक होने की बात कही है।
- टीपू सुल्तान खुद को नागरिक टीपू कहा करते थे।
- कई इतिहासकारों का मानना है, कि टीपू सुल्तान जब मैसूर की गद्दी पर बैठे तब उन्होंने पूरे शहर को इस्लामिक शहर घोषित कर दिया और बाद में लगभग करोड़ों गैर मुसलमानों को जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करा कर मुसलमान बनाया था।
- कहा जाता है, कि टीपू सुल्तान ने मैसूर सहित अपना साम्राज्य विस्तृत किया था, वहां के अधिकतर नामों को बदल कर इस्लामिक परंपरा से जुड़े नामों को रख दिया। जिसके साक्ष्य आज भी मौजूद है और कई आज भी उसी नाम से जाने जाते हैं।
- टीपू सुल्तान को ‘शेर ए मैसूर’ भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने बहुत कम उम्र में ही अपने पिता के साथ जंग लड़ने की शुरुआत कर दी थी।
- मात्र 18 वर्ष की आयु में ही टीपू सुल्तान ने अपने जीवन का पहला युद्ध लड़ा और उसमें जीत हासिल की थी।
- कुछ ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं, कि टीपू सुल्तान ने अपने शासनकाल में कई हिंदू मंदिरों को तोड़ा तथा लाखों हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करवाया और जिसने धर्म परिवर्तन करने से इनकार किया उसको मौत की सजा सुनाई थी।
- टीपू सुल्तान की तलवार के विषय में कहा जाता है कि अंग्रेजों ने उनके पार्थिव शरीर के पास पड़े तलवार को एक जीत के संकेत के रूप में इंग्लैंड की राजधानी लंदन लेकर चले गए और वहां के एक म्यूजियम में रखा।