भारत की जनजातियाँ व उनका वर्गीकरण Tribes of India in Hindi
इस लेख में आप भारत की जनजातियाँ व उनका वर्गीकरण Tribes of India in Hindi पढ़ेंगे। इसमें जनजाति की परिभाषा, विभिन्न जनजातियाँ, तथा उनका वर्गीकरण व वितरण के विषय में पूरी जानकारी दी गई है।
हमारे भारत की संस्कृति ही ऐसी है कि यहां अनेकता में भी एकता पाई जाती है, और इस विविधता का कारण है भारत के अलग-अलग प्रदेशों में मौजूद जन जातियां।
कुछ विशेषज्ञ जनजातियों को परिभाषित करने के लिए संस्कृति को आधार मानते हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग क्षेत्र के अनुसार जनजातियों को विभाजित करते हैं। संस्कृति के अलावा और भी पक्ष है जो कि जनजाति को परिभाषित करने में मदद करते हैं, जैसे भौगोलिक स्थिति, भाषिक एवं राजनीतिक अवस्था भी।
जनजाति की परिभाषा Meaning of Tribe in Hindi
आज हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, जो एक टेक्नॉलॉजी का युग है। लेकिन विश्व में आज भी एक तबके के लोग ऐसे हैं, जो सामाजिक जीवन तथा टेक्नोलॉजी से बहुत दूर हैं। मानव समुदाय का यह तबका अमूमन जंगलों और पहाड़ी क्षेत्र में निवास करता है, जहां बाहरी लोगों का आना सख्त मना होता है।
ऐसे मानव समुदाय जो किसी अलग भूभाग पर समूह बनाकर निवास करते हो, जिनकी अपनी एक अलग संस्कृति, रिती रिवाज तथा बोलचाल की भाषाएं होती हैं, वे ‘जनजातियाँ’ कहलाती है।
भारत को विविधता में एकता वाला देश इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यहां पर नवीनतम टेक्नोलॉजी से परिचित लोगों से लेकर अति पिछड़े लोग भी रहते हैं।
भारतीय संविधान में विभिन्न पिछड़ी जातियों को ‘अनुसूचित जनजाति’ कहते हैं। इसके अलावा यह जनजातियाँ विभिन्न नामों से पहचानी जाती है, जैसे- आदिवासी, असभ्य जाति, वनवासी, कबीलाई समुदाय, आदिम जाति इत्यादि।
भारत में फैले तमाम अनुसूचित जनजातियों को प्रोटो ऑस्ट्रेलॉयड्स, नीग्रिटो जनजाति और मंगोलियाई प्रजातियों से जोड़ा जाता है। आज भी भारत के अंडमान निकोबार द्वीप पर इन जनजातियों के वंशज देखे जाते हैं।
भारत की जनजातियाँ Tribes of India in Hindi
1. द्रविड़ियन या द्रविड
भारत सहित पूरे दुनिया की सबसे पुरानी जनजातियों में द्रविड़ अथवा द्रविडियन जनजाति का समावेश होता है। आज भी द्रविड़ जनजाति के वंशज भारत के कुछ राज्यों में निवास करते हैं। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश के कई भागों में आज भी द्रविड़ियन प्रजाति रहती है।
2. भारतीय आर्य
आर्य प्रजाति के विषय में इतिहासकारों का अपना अलग अलग तथ्य है। साक्ष्यों के मुताबिक यह कहा जाता है कि आर्य पूर्वी मध्य एशिया से हिंदुस्तान आए थे। लेकिन कई साक्ष्य ये भी कहते हैं कि आर्य हमेशा से ही हिंदुस्तान की लोक जन जातियां थी, जिनका उद्भव भारत में ही हुआ था।
प्राचीन समय में भारतीय आर्य के कारण पूरे हिंदुस्तान को ‘आर्यव्रत’ के नाम से जाना जाता था। मूल रूप से इनका निवास पहले के समय में राजस्थान, पंजाब, जम्मू- कश्मीर, उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों में माना जाता है।
3. मंगोलायड
भारत की अति प्राचीन जनजातियों में मंगोलायड समुदाय का भी समावेश होता है। शारीरिक संरचना के मुताबिक मंगोलायड कद में थोड़े छोटे होते थे। इनकी आंखों की संरचना छोटी और लंबी होती थी। वर्तमान में असम, हिमाचल प्रदेश और नेपाल के कई क्षेत्रों में मंगोलायड जनजाति का निवास स्थान बताया जाता है।
4. आर्य द्रविड़ियन
आर्य द्रविडियन यह द्रविड़ तथा आर्य के मिश्रण से बनी प्रजाति मानी जाती है। बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे कई राज्यों में आर्य द्रविडियन प्रजाति का निवास माना जाता है। इस प्रजाति की भौगोलिक स्थिति आर्य और द्रविड़ दोनों के ही समान मानी जाती थी।
5. मंगोल द्रविड़ियन
मंगोलियाई और द्रविडियन जनजाति के मिश्रण से उपजी मंगोल द्रविडियन प्रजाति भारत की अति प्राचीन प्रजातियों में से एक मानी जाती है। इनका मुख्य निवास स्थान उड़ीसा, पश्चिम बंगाल जैसे पूर्वी राज्यों की तरह कई अन्य राज्य में भी माना जाता है।
6. सिधो-द्रविड़ियन
मध्य प्रदेश, सौराष्ट्र, गुजरात, केरल और कच्छ इत्यादि के पहाड़ी इलाकों में सिधो-द्रविड़ियन प्रजाति निवास करती है। आज भी पाकिस्तान के बलूचिस्तान और सिंध प्रांत में सिधो-द्रविड़ियन की जनजातियाँ देखी गई है। मुख्य रूप से यह प्रजातियां दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करती हैं।
7. तुर्क-ईरानी
तुर्क-ईरानी प्रजाति भी भारत की प्राचीनतम जनजातियों में से एक मानी जाती है। यह जातियां ईरान और तुर्की की मिश्रित प्रजातियां है, जो बड़ी मात्रा में बलूचिस्तान और अफगानिस्तान के कई प्रांतों में निवास करती हैं।
भारत की जनजातियों का वर्गीकरण Classification of Tribes of India in Hindi
1. भारतीय जनजातियों के भौगोलिक वितरण Geographical Distribution of Indian Tribes in Hindi (Belt or Zones)
भारत के विभिन्न जनजातियों को भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर बांटा गया है:
– उत्तरी क्षेत्र (North Zone)
भौगोलिक वितरण के आधार पर उत्तरी क्षेत्र में पाए जाने वाली जनजातियाँ जौनसारी, भोटिया, कनौटा, थारू, बुक्सा इत्यादि नाम से जानी जाती है। हिमालय के तराई क्षेत्र से लेकर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और बिहार जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में ये जनजातियाँ निवास करती हैं। उत्तरी क्षेत्र में निवास करने वाली यह जनजातियाँ सामान्यतः मंगोल प्रजातियों की भांति होती है।
– मध्य क्षेत्र (Central Zone)
भारत में अधिकतर पहाड़ी क्षेत्र एवं पठार क्षेत्र वाले दुर्गम इलाकों में विभिन्न प्रजातियां पाई जाती है। मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, गुजरात, ओडिशा और राजस्थान के दक्षिणी भाग में मध्य क्षेत्र की जनजातियाँ निवास करती हैं। इनमें कोली, कोल, भील, गोंड, मीणा, उरांव, रेड्डी, मुंडा, बंजारा, कोरवा, संथाल इत्यादि जनजातियाँ मध्य क्षेत्र में रहती हैं।
– दक्षिणी क्षेत्र (Southern Zone)
भारत के दक्षिणी क्षेत्र में निवास करने वाले अमूमन जनजातियों की मूल भाषा द्रविड़ मानी जाती है। कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु इत्यादि जैसे दक्षिणी राज्यों में यह जनजातियाँ फैली हुई है, जिनमे ईरुला, कडार, टोडा, भील, गोंड, कोरमा इत्यादि का समावेश होता है। इसके अलावा नीग्रिटो जनजाति से ताल्लुक रखने वाले अल्लार, नायक चेट्टी, कुरुम्बा, चेचूं, पनियड और कादर इत्यादि जनजातियाँ भी आती है।
– पश्चिमी भाग (Western Zone)
सामान्य तौर पर पश्चिमी भाग में आने वाली अधिकतर प्रजातियां ऑस्ट्रिक भाषा बोलती है। मूलतः यह प्रोटो ऑस्ट्रेलायड जनजातियों के समान होती हैं। पश्चिमी भाग में गुजरात, राजस्थान, पश्चिमी महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश इत्यादि क्षेत्रों में पाई जाने वाली जनजातियाँ मीणा, भील, गरासिया, कोली, डस्ला, बंजारा, बाली, महादेव, सहरिया, सांसी इसके अंतर्गत आती हैं।
– पूर्वी क्षेत्र (Eastern Zone)
भारतीय पूर्व क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली विभिन्न जनजातियाँ भी प्रोटो ऑस्टेलायड प्रजाति का ही एक हिस्सा मानी जाती है। ऑस्ट्रिक भाषा बोलने वाले इन लोगों की शारीरिक संरचना के आधार पर यह कद में छोटे और सांवले रंग के होते हैं।
घुंघराले बाल वाले पूर्वी क्षेत्र की प्रजातियां के बाल घुंघराले तथा ये लंबे सिर वाले होते है। आमतौर पर उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार जैसे राज्य में पाई जाने वाली प्रजातियों के अंतर्गत बिरहोर, संथाल, जुआंग, मुंडा, खरिया, हो, भूमिज, उरांव, खोंड इत्यादि जनजाति सम्मिलित हैं।
– पूर्वोत्तर क्षेत्र (Northeastern Zone)
पूर्वोत्तर क्षेत्र में आने वाले मेघालय, असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, मिजोरम और नागालैंड जैसे राज्यों के अंतर्गत पूर्वोत्तर क्षेत्रीय प्रजातियां पाई जाती हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र में आने वाली तमाम जनजातियों के लक्षण मंगोलॉयड प्रजाति के समान ही होते हैं। विभिन्न समुदायों के लोग गुजारा करने के लिए व्यापार करते हैं, इसके अंतर्गत शिकार, कृषि, खाद्य संग्रह और सिलाई बुनाई करके जीविका चलाते हैं।
पूर्वोत्तर क्षेत्रों में पाई जाने वाली जनजातियों में गारो, खांसी, नागा, लेपचा, मिरी, मिश्मी एवं डफला, आपतानी, कुकी, हैमर, लुशाई, मोनपास इत्यादि अंतर्गत आती हैं। इन समुदायों में बौद्ध धर्म को मानने वाली प्रजातियां भी निवास करती हैं। नागालैंड तथा असम में रहने वाली नागा जनजाति कई उप जातियों में बंटी हुई हैं, इनमें कोनयाक, तंखुल, कबुई, फोम व लहोटा, अंगामी व रेंगमा इत्यादि उपजातियां समाहित है।
– द्वीपीय क्षेत्र (Island Zone)
द्वीपीय क्षेत्र में आने वाली जनजातियाँ आमतौर पर अंडमान और निकोबार में निवास करती है। सामान्य तौर पर द्वीपीय क्षेत्र की जनजातियों का संबंध नीग्रिटो जाति से जोड़ा जाता है।
इस समुदाय के लोग शिकार, मछली पालन, कृषि इत्यादि से अपना जीवन यापन करते हैं। जारवा, सेंटिनलीज, शोम्पेन, ओंग इत्यादि द्वीपीय क्षेत्रीय जनजातियाँ है।
आज के समय में यह जनजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई हैं। सेंटिनलीज जनजाति को भारत सरकार ने गैर अधिसूचित जनजातियाँ का दर्जा दिया है। माना जाता है कि यह जनजातियाँ बाहरी लोगों का हस्तक्षेप बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करती और बेहद हिंसक हो जाती हैं।
2. भारतीय जनजातियों का भाषा के आधार पर वितरण Distribution of Indian Tribes by Language in Hindi
– द्रविड़ भाषा परिवार (Dravidian Speech Family)
द्रविड़ भाषा परिवार की मूलतः भाषा तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम है। कहा जाता है कि यह भाषाएं संस्कृत से भी प्राचीन है। विश्व में सबसे कठिन माने जाने वाली भाषाओं में दक्षिण भारत की भाषा पद्धतियां भी सम्मिलित है।
कई शिक्षाविदों का मानना है कि पृथ्वी की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक द्रविडियन के अंतर्गत आने वाली भाषाएं हैं। मालेर, कादर, साओरा व इरुला, घू, पनियन, टोडा, गोंड, खोड, मालसर, ओरांव इत्यादि इस वर्ग के अंतर्गत आने वाली कुछ जनजातियाँ है।
– आस्ट्रिक भाषा परिवार (Austric Speech Family)
ऑस्ट्रिक भाषा परिवार का संबंध ऑस्ट्रेलायड से माना जाता है। मध्य प्रदेश, असम, बिहार, उड़ीसा, और पश्चिम बंगाल में बड़ी मात्रा में भुमिज़, गारो, कोलू, खासी, मुण्डा, हो, खरिया, संथाली, इत्यादि जन जातियां निवास करती है। कई भाषा शास्त्रियों के मुताबिक मुंडा भाषा यह भारत की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक है, जो यहां निवास करने वाले जनजातियों द्वारा बोली जाती है।
– चीनी-तिब्बती भाषा परिवार (Sino-Tibetan Speech Family)
इस शाखा के अंतर्गत आने वाली जनजातियाँ खासी, खमटी, गलोंग, पदम, मिशनी, सिंहपो, लेपचा, गारो, कूकी, मिरी, गलोंग, पासी, पंगी इत्यादि है। मूल रूप से चीनी तिब्बती भाषा परिवार वाले इस वर्ग का संबंध मंगोल जनजाति से है। पूर्वोत्तर बंगाल, दक्षिणी हिमालय, असम इत्यादि जैसे कई सीमा प्रांत और ढलान वाले जगहों पर यह जनजातियाँ पाई जाती हैं।
मंडारिन और तिब्बत की मिश्रित भाषा बोलने वाले यह लोग आज के समय में विलुप्त होने की कगार पर है। इन समुदायों की भाषा बेहद जटिल मानी जाती है। कई घुमंतू जनजातियाँ अब बाहरी समाज के संपर्क में आने से नई भाषाएं बोलने लगी हैं, जिसके कारण चीनी तिब्बती भाषा परिवार के ऊपर अध्ययन करना और भी जटिल हो गया है।
3. भारतीय जनजातियों का अर्थव्यवस्था के आधार पर वितरण Distribution of Indian Tribes by Economy in Hindi
भारत की विभिन्न जनजातियाँ जीवन यापन करने के लिए अलग-अलग मार्ग अपनाती हैं। अर्थव्यवस्था भी एक महत्वपूर्ण कारक है, जो इन जनजातियों को विभाजित करता है। अर्थव्यवस्था के आधार पर वितरित की गई यह जनजातियाँ अधिकतर कृषि को अपना जीवन यापन का सहारा बनाते हैं।
भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर भी लोग यह तय करते हैं, कि उन्हें किस तरह का कार्य करना है। मैदानी इलाकों में रहने वाले तमाम जनजाति अधिकतर मछली पालन और कृषि कार्य करते हैं।
अर्थव्यवस्था के अंतर्गत अधिकतर जनजातियाँ बेहद पिछड़ी होती हैं, जिसके कारण उन्हें तमाम प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ जाता है। कई बार बड़े-बड़े व्यापारी, ठेकेदारों और दलालों से अधिक आर्थिक मदद लेने के कारण यह ऋणी ग्रस्त भी हो जाते हैं। जिसके कारण इन्हें आजीवन बंधुआ मजदूरी भी करनी पड़ जाती है।
यदि इन जातियों को अर्थव्यवस्था के आधार पर बांटा जाए तो मुख्यतः चार प्रकार होंगे- इनमें शिकार तथा खाद्य पदार्थों का संग्रहालय बनाकर जीवन यापन करने वाली जनजातियाँ , पशुपालन करने वाली जनजातियाँ , खेती करने वाली जनजातियाँ और तमाम छोटे-बड़े उद्योगों के अंतर्गत जीविका चलाने वाली जनजातियाँ का समावेश होता है।
4. सांस्कृतिक स्तरों के आधार पर जनजातियों का वितरण Cultural Distribution of Indian Tribes in Hindi
आज भी भारत की विभिन्न जनजातियाँ समाज में एक संपर्क कायम करने में नाकामयाब रही हैं। यही एक महत्वपूर्ण कारण है कि यह प्रजाति अति पिछड़ी मानी जाती हैं। सांस्कृतिक और सामाजिक आधार पर बांटी गई यह प्रजातियां कई सुविधाओं से वंचित है।
जैसा कि पहले बताया गया कि इन जनजातियों की अपनी अलग एक संस्कृति और देवी देवता होते हैं। अलग पद्धतियां और पूर्वज होने के कारण समाज में इन लोगों को छुआछूत और कई भेदभाव का सामना करना पड़ता है। सांस्कृतिक स्तरों के आधार पर जनजातियों का वितरण कुछ निम्नलिखित प्रकार से किया गया है-
- ऐसी जनजातियाँ जो बेहद पिछड़े वर्ग से आते हैं और बाहरी दुनिया से बिलकुल बेखबर और अछूत होते हैं। यह बाहरी समाज से बिल्कुल दूर घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों में निवास करते हैं। ऐसी जनजातियाँ हमेशा समूह में रहती हैं। जीवन यापन करने के लिए खेती करने का आसान तरीका अपनाते हैं और जंगलों को जलाकर जमीन पर विभिन्न अनाज उगाते हैं। भारत की सबसे पुरानी और पिछड़ी जनजातियों में बाँदो, जुआंग, भाड़िया इत्यादि जैसी शाखाएं आती है।
- अति पिछड़ी जनजातियों से थोड़ा ऊपर विभिन्न प्रकार के परंपराओं और रीति-रिवाजों को मानने वाली जनजातियाँ आती हैं, जो थोड़ी सभ्य होती हैं। ऐसी जनजातियाँ बाहरी समाज के संपर्क में भी आते हैं, जिसका प्रभाव इनके आजीविका के साधनों और जीवन में भी देखा जाता है।
- अगले श्रेणी में आने वाली जनजातियाँ तेजी से बाहरी समाज के संपर्क में आ रहे हैं। बाहरी लोगों के प्रभाव के कारण इन जातियों के प्राचीनतम रिती रिवाज, प्रथा, संस्कृति और परंपराओं में बदलाव साफ़ देखा जा सकता है। यह मानव बस्तियों में जाकर व्यापार करने में भी सहज महसूस करते हैं। कृषि, शिकार, पशुपालन के जरिए ही ये जनजातियाँ अपना जीवन यापन करती हैं।
- चौथे स्तर पर ऐसी जनजातियाँ आती हैं, जिन्होंने बाहरी दुनिया के प्रभाव के कारण अपनी संस्कृति को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है। इन जनजातियों को आधुनिक जनजातियाँ भी कहा जाता है। भील और नागा जनजातियाँ इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। ये लोग समाज में आकर मानव बस्तियों में रहकर अपनी आजीविका एक सामान्य मनुष्य जैसे चलाते हैं और सभी सुविधाओं का लाभ लेते हैं।
भारत के सांस्कृतिक एवं भाषाई वर्गीकरण की विवेचना कीजिए।
इस प्रश्न का उत्तर दीजिए—–
जनजातियों का सांस्कृतिक वर्गीकरण पर व्याख्या कीजिए ।
Explain on cultural classification on tribes.