तुलसी विवाह व्रत कथा, उसका महत्व, पूजा विधि Tulsi Vivah Vrat Katha in Hindi
तुलसी विवाह व्रत कथा, उसका महत्व, पूजा विधि Tulsi Vivah Vrat Katha in Hindi
इस विवाह को हिंदू धर्म के व्रतों में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इस दिन तुलसी जी एवं शालिग्राम देवता की पूजा की जाती है। मान्यता की मानें तो इस दिन शालिग्राम अर्थात विष्णु जी का विवाह तुलसी नामक पौधे के साथ कराया जाता है।
इस अवसर के बाद ही हिंदू धर्म में विवाह का शुभ आरंभ हो जाता है। हिंदू धर्म में तुलसी को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है, कहा जाता है, कि जिस घर में तुलसी का वास होता है, वहां किसी तरह की समस्या या क्लेश नहीं होती।
साथ ही जिस घर में तुलसी रहती है, वहां नकारात्मक ऊर्जा भी खत्म हो जाती है शालिग्राम भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं, जिनका विवाह तुलसी के साथ इस पावन अवसर पर तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।
तुलसी विवाह में हिन्दू विवाह के समान ही सभी कार्य संपन्न होते हैं। विवाह के समय मंगल गीत भी गाए जाते हैं। राजस्थान में तुलसी विवाह को ‘बटुआ फिराना’ के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है श्रीहरि विष्णु को एक लाख तुलसी पत्र समर्पित करने से वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होती है।
कब है तुलसी विवाह
इस वर्ष तुलसी विवाह 8 नवंबर 2019 दिन शुक्रवार को है।
तुलसी विवाह से लाभ
एकादशी के दिन तुलसी और भगवान शालिग्राम की विधिपूर्वक पूजा कराने से वैवाहिक जीवन में आ रही समस्याए दूर होती है और उनके रिश्ते मजबूत हो जाते है, इतना ही नही तुलसी विवाह कराने से कन्यादान जैसा पुण्य प्राप्त होता है। जिन लोगों का विवाह नहीं हो रहा है, उनलोगों को मनचाहा जीवन साथी प्राप्त होता है।
तुलसी विवाह का महत्व
जैसा कि हम सब जानते हैं, तुलसी विवाह को हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान प्राप्त है। इस दिन मां तुलसी के साथ शालिग्राम की पूजा कराई जाती है एवं उनके विवाह के रूप में ही दिन मनाया जाता है।
कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु अपने 4 महीने की नींद पूरी कर के जागते हैं, और इसी दिन से शादी विवाह के शुभ कार्य शुरू होते हैं, हिंदू धर्म में तुलसी विवाह को महत्व दिया जाता है, क्योंकि तुलसी विवाह को कन्या दान के बराबर माना जाता है।
तुलसी विवाह का रोमांच
मान्यता है कि कार्तिक मास में तुलसी के पास दीपक जलाने से अनंत पुण्य प्राप्त होता है। तुलसी को साक्षात लक्ष्मी का निवास माना जाता है इसलिए कहा जाता है कि जो भी इस मास में तुलसी के समक्ष दीप जलाता है उसे अत्यंत लाभ होता है।
तुलसी जी को हिंदू धर्म में देवी के रूप में माना जाता है तथा इनको विष्णु पत्नी के रूप में माना जाता है और प्यार से इनको विष्णु प्रिया यानी कि विष्णु की पत्नी कहा जाता है।
बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है यह त्यौहार भारत के प्रभु धाम शहर में यह त्यौहार सारे गांव वालो द्वारा मनाया जाता है और इसके कारण यह गांव आकर्षण का केंद्र बना हुआ है, यहां यह त्यौहार 3 दिन, (एकादशी से त्रयोदशी के बीच) मनाया जाता है। स्वयं गांव वाले इस त्यौहार का शुभारंभ रामचरित मानस / रामायण से करते हैं, दूसरे दिन बहुत ही बड़े पैमाने पर शोभा यात्रा निकाली जाती है, तीसरे दिन तिलकोत्सव या विवाह उत्सव, विष्णु भगवान और देवी तुलसी (वृंदा) के विवाह के रूप में मनाया जाता है
गांव के लोग प्रसाद के रूप में 56 तरीके का प्रसाद तैयार करते हैं। जिसको छप्पन भोग के नाम से जाना जाता है और पूरे गांव में बटवाते हैं, दूर-दूर से भक्त गण महंत संत लोग इस त्यौहार में हिस्सा लेने के लिए आते हैं।
महाराष्ट्र में भी यह त्यौहार बड़ी जी धूमधाम से मनाया जाता है, जिसमें पंडित द्वारा मंत्रों का उच्चारण किया जाता है, जैसे लोगो के विवाह होते है वैसे ही तुलसी विवाह कराया जाता है, लोग विवाह होने के बाद तालियां बजाते हैं, जिसका उद्देश्य उनका समर्थन होता हैं।
वास्तविक खाना पीना बनवाया जाता है, गन्ने का प्रसाद, नारियल चिप्स, फल, मूंगफली आदि लोगो के बीच बांटी जाती है। यह सारा खर्चा अधिकतर वह लोग करते हैं, जिन लोगो की पुत्री के रूप में संतान नही होती, और वह माता पिता के रूप में सारे संस्कार, कन्यादान करते हैं वह तुलसी को एक कन्या के रूप में दुल्हे को सौंप देते हैं।
सौ-राष्ट्र में तो दो मंदिरों के बीच निमंत्रण पत्र भी भेजे जाते हैं, निमंत्रण पहला जो दुल्हन के घरवालों की तरफ से दूल्हे के घरवालों के लिए होता है, तुलसी विवाह में विष्णु जी को दूल्हे के रूप में बारात ढोल के साथ डांस करते , गाते हुए लाया जाता है, और तुलसी के आंगन में पहुँचाते हैं जो लोग बच्चे के लिए इच्छा रखते हैं, वह तुलसी का एक माता पिता के रूप में कन्या दान करते हैं। रात भर भजन गाये जाते हैं, सुबह बारात विदा होती है।
तुलसी पूजन की विधि
1. तुलसी विवाह वाले दिन सुबह जल्दी उठकर दैनिक कार्य कर के साफ वस्त्र धारण करें।
2. तुलसी विवाह वाले दिन तुलसी के पौधे को लाल चुनरी उड़ानी चाहिए साथ ही जितना श्रृंगार हो सके किया जाना चाहिए।
3. इसके बाद शालिग्राम को स्थापित करें और विधिवत पंडित जी से उनका विवाह करवाए।
4. तुलसी विवाह के बाद तुलसी और शालिग्राम की सात परिक्रमा करें और तुलसी जी की आरती गाए। साथ ही प्रसाद का वितरण भी किया जाना चाहिए।
5. दिन भर व्रत रख कर पूजा करने के बाद यह व्रत खोला जाता है।
शालीग्राम और तुलसी के विवाह की कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक भगवान शिव के गणेश और कार्तिकेय के अलावा एक और पुत्र थे, जिनका नाम था जलंधर, जलंधर असुर प्रवृत्ति का था। वह खुद को सभी देवताओं से ज्यादा शक्तिशाली समझता था, और देवगणों को परेशान करता था।
जलंधर का विवाह भगवान विष्णु की परम भक्त वृंदा से हुआ। जलंधर का बार-बार देवताओं को परेशान करने की वजह से त्रिदेवों ने उसके वध की योजना बनाई। लेकिन वृंदा के सतीत्व के चलते कोई उसे मार नहीं पाया।
इस समस्या के समाधान के लिए सभी देवगण भगवान विष्णु के पास पहुंचे, भगवान विष्णु ने हल निकालते हुए सबसे पहले वृंदा के सतीत्व को भंग करने की योजना बनाई, ऐसा करने के लिए विष्णु जी ने जलंधर का रूप धारण किया और वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया, इसके बाद त्रिदेव जलंधर को मारने में सफल हो गए।
वृंदा इस छल के बारे में जानकर बेहद दुखी हुई और उसने भगवान विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दिया। सभी देवताओं ने वृंदा से श्राप वापस लेने की, विनती की, जिसे वृंदा ने माना और अपना श्राप वापस ले लिया।
प्रायश्चित के लिए भगवान विष्णु ने खुद का एक पत्थर रूप प्रकट किया। इसी पत्थर को शालिग्राम नाम दिया गया।
वृंदा अपने पति जलंधर के साथ सती हो गई और उसकी राख से तुलसी का पौधा निकला, इतना ही नहीं भगवान विष्णु ने अपना प्रायच्क्षित जारी रखते हुए तुलसी को सबसे ऊंचा स्थान दिया और कहा कि, मैं तुलसी के बिना भोजन नहीं करूँगा।
इसके बाद सभी देवताओं ने वृंदा के सती होने का मान रखा और उसका विवाह शालिग्राम के कराया। जिस दिन तुलसी विवाह हुआ उस दिन देव उठनी एकादशी थी। इसीलिए हर साल देव उठनी के दिन ही तुलसी विवाह किया जाने लगा।
देव उठनी एकादशी को तुलसी एकादश भी कहा जाता है। तुलसी को साक्षात लक्ष्मी का निवास माना जाता है इसलिए कहा जाता है कि जो भी इस मास में तुलसी के समक्ष दीप जलाता है उसे अत्यंत लाभ होता है।
मान्यता है कि इस प्रकार के आयोजन से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। तुलसी शालिग्राम का विवाह करने से वही पुण्य प्राप्त होता है जो माता−पिता अपनी पुत्री का कन्या दान करके पाते हैं। शास्त्रों और पुराणों में उल्लेख है कि जिन लोगों के यहां कन्या नहीं होती यदि वह तुलसी का विवाह करके कन्या दान करें तो ज़रूर उनके यहां कन्या होगी। इस आयोजन की विशेषता यह होती है कि विवाह में जो रीति−रिवाज होते हैं उसी तरह तुलसी विवाह के सभी कार्य किए जाते हैं साथ ही विवाह से संबंधित मंगल गीत भी गाए जाते हैं।
तुलसी विवाह की पूजन विधि
देव उठनी एकादशी के दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराया जाता है, इस विवाह में तुलसी दुल्हन और शालिग्राम दूल्हा बनते हैं, दोनों की शादी मनुष्यों की शादी की तरह ही धूमधाम से की जाती है।
जिस गमले में तुलसी का पौधा लगा है उसे गेरु आदि से सजा कर उसके चारों ओर मंडप बनाकर उसके ऊपर सुहाग की प्रतीक चुनरी को ओढ़ा दें। इसके अलावा गमले को भी साड़ी में लपेट दें और उसका श्रृंगार करें। इसके बाद श्री गणेश सहित सभी देवी−देवताओं और श्री शालिग्रामजी का विधिवत पूजन करें। एक नारियल दक्षिणा के साथ टीका के रूप में रखें और भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसी जी की सात परिक्रमा कराए। इसके बाद आरती करें।
तुलसी का महत्व
सभी देवताओ ने तुलसी को एक उच्च स्थान प्रदान किया है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि ब्रह्मा जी कहते हैं कि यदि तुलसी के आधे पत्ते से भी प्रतिदिन भक्ति पूर्वक भगवान की पूजा की जाये तो भी वे स्वयं आकर दर्शन देते हैं।
अपनी लगायी हुई तुलसी जितना ही अपने मूल का विस्तार करती है, उतने ही सहस्त्र युगों तक मनुष्य ब्रह्मलोक में प्रतिष्ठित होता है। यदि कोई तुलसी युक्त जल में स्नान करता है तो वह सब पापों से मुक्त हो भगवान श्री विष्णु के लोक में आनंद का अनुभव करता है।
जो व्यक्ति तुलसी का संग्रह करता है और तुलसी का वन तैयार कर देता है, वह उतना ही पाप मुक्त होता है। जिसके घर में तुलसी का बगीचा होता है, वह घर तीर्थस्थल के समान माना जाता है, कहा जाता है, वहां यमराज के दूत नहीं जाते।
तुलसी वन सब पापों को नष्ट करने वाला, पुण्यमय तथा अभीष्ट कामनाओं को देने वाला होता है। जहां तुलसी वन की छाया होती है, वहीं पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध करना चाहिए। जिसके मुख में, कान में और मस्तक पर तुलसी का पत्ता दिखायी देता है, उसके ऊपर यमराज भी दृष्टि नहीं डाल सकते फिर दूतों की बात ही क्या है। जो प्रतिदिन आदरपूर्वक तुलसी की महिमा सुनता है, वह सब पापों से मुक्त हो ब्रह्मलोक को जाता है।
हमे पूरी निष्ठा के साथ पूजा अर्चन करना चाहिए एवं बताई गयी कथा एवं पूजा विधि का ध्यान रखना चाहिए।