सम्पूर्ण रामायण की कहानी हिन्दी में Full Ramayan Story in Hindi

रामायण, हिन्दू धर्म के सबसे पूजनीय और महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित यह महाकाव्य, जिसे गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस के रूप में भी प्रस्तुत किया है, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के जीवन की गाथा कहता है।

यह रिपोर्ट रामायण की सम्पूर्ण कहानी को सात प्रमुख कांडों में विभाजित करके प्रस्तुत करती है, जिसमें प्रत्येक कांड के महत्वपूर्ण घटनाओं का विस्तृत वर्णन किया गया है।

कांड का नाम (हिन्दी और लिप्यंतरण)मुख्य घटनाओं का संक्षिप्त सारांशअनुमानित श्लोक संख्या
बालकांड (Balakanda)श्रीराम का जन्म, बचपन, शिक्षा, विश्वामित्र का आगमन, ताड़का वध, जनकपुरी यात्रा, शिव धनुष भंजन, सीता-राम विवाह2280 , 358 चौपाई, 341 दोहा, 25 सोरठा, 39 छंद
अयोध्याकांड (Ayodhyakanda)श्रीराम का राज्याभिषेक निश्चित होना, कैकेयी द्वारा दो वरदान मांगना, राम, सीता और लक्ष्मण का वनवास, भरत की अयोध्या वापसी और राम की खड़ाऊं को राजगद्दी पर रखना
अरण्यकांड (Aranyakanda)राम, सीता और लक्ष्मण का दंडकारण्य में प्रवेश, शूर्पणखा प्रकरण और खर-दूषण वध, रावण द्वारा सीता हरण, जटायु का बलिदान और श्रीराम का विलाप
किष्किंधाकांड (Kishkindhakanda)हनुमान और सुग्रीव से भेंट, बाली वध, सुग्रीव का राज्याभिषेक, वानर सेना का सीता की खोज में भेजा जाना
सुंदरकांड (Sundarakanda)हनुमानजी का लंका में प्रवेश, अशोक वाटिका में सीता से भेंट, लंका दहन, हनुमानजी का श्रीराम को सीता की खबर देना526 चौपाई, 60 दोहा, 3 श्लोक
युद्धकांड (लंका कांड) (Yuddhakanda/Lanka Kanda)वानर सेना का लंका प्रस्थान, राम-रावण युद्ध, कुम्भकर्ण और मेघनाद का वध, रावण वध और सीता की अग्नि परीक्षा, श्रीराम का अयोध्या लौटना (विजयादशमी)
उत्तरकांड (Uttarakanda)श्रीराम का अयोध्या में राज्याभिषेक, सीता का त्याग और वाल्मीकि आश्रम में निवास, लव-कुश का जन्म और राम के दरबार में आगमन, सीता का पृथ्वी में समाहित होना, श्रीराम का बैकुंठ गमन

1. बालकांड (Balakanda): श्रीराम का जन्म, बचपन और शिक्षा

अयोध्या के धर्मात्मा राजा दशरथ की तीन रानियाँ थीं – कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी, परन्तु किसी से भी उन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई थी, जिसके कारण वे चिंतित रहते थे। अपने वंश को आगे बढ़ाने और संतान प्राप्ति की तीव्र इच्छा से उन्होंने महान अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया।

इस यज्ञ के परिणामस्वरूप, भगवान विष्णु ने स्वयं राजा दशरथ की तीन पत्नियों के गर्भ से चार पुत्रों के रूप में अवतार लिया। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को कौशल्या ने राम को जन्म दिया, सुमित्रा ने लक्ष्मण और शत्रुघ्न को, और कैकेयी ने भरत को जन्म दिया।  

राजकुमारों का बचपन अयोध्या में बीता, जहाँ उन्होंने अपनी बाल लीलाओं से सभी का मन मोह लिया। विशेष रूप से राम की भोली और सुंदर बाल लीलाओं का वर्णन अनेक शास्त्रों में मिलता है। यह माना जाता है कि उनका चित्त चंचल था, और वे भोजन करते समय भी अवसर पाकर दही-भात मुंह में लपटाकर किलकारी मारते हुए इधर-उधर भाग जाते थे। उनकी दिव्य प्रकृति बचपन से ही झलकती थी, और सरस्वती, शेषनाग, शिवजी और वेदों ने भी उनकी बाल लीलाओं का गान किया है।  

जब चारों भाई कुमार हुए, तो रघुकुल की परंपरा के अनुसार गुरु वशिष्ठ ने उनका जनेऊ संस्कार किया। इसके पश्चात, रघुकुल के इन राजकुमारों ने गुरु के आश्रम में रहकर विद्या ग्रहण की। राम और लक्ष्मण ने अल्प समय में ही सभी प्रकार की विद्याओं में कुशलता प्राप्त कर ली। इस प्रकार, गुरु-शिष्य परंपरा का महत्व भगवान राम के जीवन के प्रारंभिक चरण में ही स्थापित हो जाता है।  

इसी दौरान, ऋषि विश्वामित्र अयोध्या आए और राजा दशरथ से राम और लक्ष्मण को अपने यज्ञ की रक्षा के लिए साथ ले जाने का अनुरोध किया। विश्वामित्र अपने यज्ञ को मारीच और सुबाहु जैसे राक्षसों से बचाना चाहते थे। राजा दशरथ पहले तो अपने प्रिय पुत्रों को भेजने में हिचकिचाए, परन्तु गुरु वशिष्ठ के समझाने पर उन्होंने राम और लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ भेज दिया। राम और लक्ष्मण ने विश्वामित्र के साथ जाकर उनके यज्ञ को राक्षसों से बचाया। इसी यात्रा में राम ने ताड़का नामक भयंकर राक्षसी का वध किया, जिसने वन में आतंक मचा रखा था। यह घटना धर्म की रक्षा और बुराई के नाश के प्रति राम के पहले कदम को दर्शाती है।  

विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को मिथिला के राजा जनक की नगरी जनकपुरी ले गए। राजा जनक ने अपनी परम रूपवती और गुणवान पुत्री सीता के स्वयंवर की घोषणा की थी, जिसमें शिव के दिव्य और अत्यंत भारी धनुष को उठाने और उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने की शर्त रखी गई थी।

अनेक शक्तिशाली राजा और राजकुमार उस धनुष को उठाने में भी असफल रहे, वे तो उसे हिला भी नहीं सके। तब राम ने सहजता से उस धनुष को उठाया, प्रत्यंचा चढ़ाई और उसे भंग कर दिया। शिव के धनुष का टूटना न केवल राम की असाधारण शक्ति का प्रमाण था, बल्कि सीता के साथ उनके नियत विवाह का भी संकेत था।  

इसके बाद, सीता और राम का भव्य विवाह समारोह आयोजित हुआ। इस शुभ अवसर पर, राम के अन्य भाइयों – लक्ष्मण का उर्मिला से, भरत का मांडवी से और शत्रुघ्न का श्रुतकीर्ति से भी विवाह हुआ। इन सामूहिक विवाहों ने न केवल दोनों राज परिवारों के बीच एक अटूट बंधन स्थापित किया, बल्कि पारिवारिक सौहार्द और एकता के महत्व को भी दर्शाया।

बालकांड रामायण की इस दिलचस्प यात्रा की नींव रखता है। बृहद्धर्मपुराण के अनुसार, बालकांड का पाठ करने से अनावृष्टि, महापीड़ा और ग्रहपीड़ा से मुक्ति मिलती है। बालकांड में प्रभु श्रीराम के जन्म से लेकर विवाह तक के संपूर्ण घटनाक्रम का विवरण आता है।  

राम नाम की महिमा अपरंपार है। यह कृशानु (अग्नि), भानु (सूर्य) और हिमकर (चन्द्रमा) का हेतु अर्थात् ‘र’ ‘आ’ और ‘म’ रूप से बीज है। यह ‘राम’ नाम ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप है और वेदों का प्राण है। जगत में चार प्रकार के रामभक्त हैं – अर्थार्थी, आर्त, जिज्ञासु और ज्ञानी, और चारों ही पुण्यात्मा हैं। चारों युगों में नाम जपकर जीव शोकरहित हुए हैं।

अच्छे भाव, बुरे भाव, क्रोध या आलस्य से, किसी भी तरह से नाम जपने से कल्याण होता है। गुरु महाराज के चरण कमलों की रज सुरुचि, सुगंध और अनुराग रूपी रस से पूर्ण है और यह अमर मूल का सुंदर चूर्ण है जो सम्पूर्ण भव रोगों को नाश करने वाला है। गुरु महाराज के चरण-नखों की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान है, जिसके स्मरण करते ही हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है और अज्ञान रूपी अंधकार का नाश होता है।  

2. अयोध्याकांड (Ayodhyakanda): श्रीराम का राज्याभिषेक निश्चित होना

भगवान राम के अद्वितीय गुणों, प्रजा के प्रति उनके प्रेम और उनकी लोकप्रियता को देखते हुए, वृद्ध हो चुके राजा दशरथ ने उन्हें युवराज (उत्तराधिकारी) बनाने का निर्णय लिया। इस शुभ घोषणा से अयोध्या के नागरिक अत्यंत प्रसन्न हुए और पूरे नगर में उत्सव का माहौल छा गया। सभी राम को भावी राजा के रूप में देखने के लिए उत्सुक थे और उनके राज्याभिषेक की प्रतीक्षा कर रहे थे।

हालांकि, होनी को कुछ और ही मंजूर था। मंथरा नामक एक कुटिल दासी ने राजा दशरथ की प्रिय रानी कैकेयी के मन में ईर्ष्या और द्वेष की भावना भरकर उन्हें भड़का दिया। मंथरा ने कैकेयी को राजा दशरथ द्वारा वर्षों पहले दिए गए दो वरदानों की याद दिलाई, जिनका उपयोग वह अपने पुत्र भरत के लिए राजगद्दी और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास मांगने के लिए करने लगी। मंथरा के बहकावे में आकर कैकेयी ने महाराज दशरथ से अपने दोनों वरदान मांगे, जिससे राजा दशरथ गहरे शोक में डूब गए।

राम अपने पिता के वचन के प्रति दृढ़ थे। उन्होंने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए तत्काल वनवास जाने का निर्णय लिया। सीता और लक्ष्मण ने भी राम के प्रति अपने अटूट प्रेम और कर्तव्यनिष्ठा का परिचय देते हुए उनके साथ वन जाने का आग्रह किया। राम के लिए अपने पिता के वचन का पालन करना और सीता व लक्ष्मण का उनके प्रति अटूट स्नेह उनके चरित्र की दृढ़ता और मर्यादा को दर्शाता है।

भरत उस समय अयोध्या में नहीं थे, वे अपने मामा के घर गए हुए थे। जब वे वापस अयोध्या आए और उन्हें कैकेयी के षडयंत्र और राम के वनवास के बारे में पता चला, तो वे अत्यंत दुखी और क्रोधित हुए। उन्होंने अपनी माता कैकेयी के इस कृत्य की घोर निंदा की और सिंहासन स्वीकार करने से स्पष्ट इनकार कर दिया।

भरत तुरंत राम को वापस लाने के लिए वन में उनसे मिलने गए। भरत ने राम से अयोध्या लौटकर राज करने का अनुरोध किया, लेकिन राम ने अपने पिता के वचन का सम्मान करते हुए और धर्म का पालन करते हुए लौटने से मना कर दिया। अंततः, भरत राम की खड़ाऊं (पैर की पादुकाएं) लेकर अयोध्या लौटे और उन्हें सिंहासन पर रखकर राम के प्रतिनिधि के रूप में शासन करने लगे। भरत का यह महान त्याग, उनके धर्मपरायणता और अपने बड़े भाई राम के प्रति गहरे सम्मान को दर्शाता है।  

अयोध्याकांड, श्री रामचरित मानस का दूसरा कांड है, और इसका अर्थ है वह स्थान जहाँ कभी युद्ध न हुआ हो। रामचरित मानस के सात कांडों में से छह में किसी न किसी युद्ध की कथा मिलती है, लेकिन अयोध्याकांड में किसी युद्ध की कथा नहीं है। अयोध्याकांड में श्रीराम के वनगमन से लेकर श्रीराम-भरत मिलाप तक की घटनाओं का सार है। इस कांड के माध्यम से गोस्वामी तुलसीदासजी ने अनेक नैतिक पारिवारिक मूल्यों की स्थापना की है।

यह कांड पारिवारिक संबंधों के बीच समन्वय स्थापित करके एक आदर्श परिवार की उद्भावना करता है, जिसके आदर्श आज भी अनुकरणीय हैं। इसमें पिता-पुत्र के संबंध का आदर्श रूप प्रस्तुत किया गया है। अयोध्याकांड में राम के अपने भाइयों के प्रति प्रेम को अत्यंत सरल और भावपूर्ण शब्दों में व्यक्त किया गया है।

सभी को श्री राम वैसे ही प्रिय हैं जैसे वे राजा दशरथ को थे। भरत के आने की सूचना देने वाले अनेक शुभ शकुन दिखाई देते हैं। श्री राम किसी प्रकार किए गए एक ही उपकार से संतुष्ट हो जाते थे और सैकड़ों अपकार को भी भूल जाते थे। जब से श्री रामचंद्र जी विवाह करके घर आए तब से अयोध्या में नित्य नए मंगल हो रहे हैं और आनंद के बधावे बज रहे हैं।  

3. अरण्यकांड (Aranyakanda): राम, सीता और लक्ष्मण का दंडकारण्य में प्रवेश

पिता की आज्ञा का पालन करते हुए राम, सीता और लक्ष्मण ने अयोध्या त्याग दी और वे दंडकारण्य वन में प्रवेश किया। वन में उन्होंने अनेक ऋषि-मुनियों से भेंट की और उनके आश्रमों में निवास किया। राम का ऋषियों से मिलना उनके आध्यात्मिक पक्ष को दर्शाता है और यह भी स्पष्ट करता है कि वे धर्म की रक्षा करने और पुण्यात्माओं को आश्रय देने के लिए वन में आए थे। अरण्यकांड, श्री रामचरित मानस का तीसरा भाग है और इसमें रामकथा का सार छिपा हुआ है। इसी कांड में राम अगस्त्य, शरभंग और सुतीक्ष्ण जैसे ऋषि मुनियों से मिलते हैं।  

पंचवटी में निवास करते समय, लंका के राजा रावण की बहन शूर्पणखा ने राम को देखा और उनके रूप पर मोहित होकर उनसे विवाह करने की इच्छा प्रकट की। राम ने यह कहकर कि वे विवाहित हैं, उसे लक्ष्मण के पास भेज दिया। लक्ष्मण ने भी उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और शत्रु की बहन जानकर उसके नाक और कान काट लिए। शूर्पणखा का यह अपमान रावण के क्रोध का कारण बना और इसी से आगामी संघर्ष की नींव पड़ी।  

शूर्पणखा ने अपमानित होकर अपने भाइयों खर और दूषण से सहायता मांगी। खर और दूषण अपनी विशाल राक्षस सेना के साथ राम पर आक्रमण करने आए। राम ने अकेले ही खर, दूषण और उनकी पूरी सेना का वध कर दिया। यह असाधारण पराक्रम राम की शक्ति और देवत्व का प्रमाण था।  

शूर्पणखा ने लंका जाकर अपने भाई रावण से राम की शक्ति और सीता की सुंदरता का वर्णन किया। उसने रावण को सीता को हरण करने के लिए उकसाया। रावण ने अपनी बहन के अपमान का बदला लेने और सीता को प्राप्त करने के लिए उनका हरण करने का निश्चय किया।  

रावण ने मारीच नामक मायावी राक्षस की सहायता से एक योजना बनाई। मारीच ने स्वर्ण मृग का रूप धारण किया, जिसके अद्भुत सौंदर्य ने सीता को मोहित कर लिया। सीता ने राम से उस मृग को पकड़ने का आग्रह किया। राम ने लक्ष्मण को सीता की रक्षा करने की आज्ञा दी और स्वयं मृग के पीछे चले गए। मारीच ने मरते समय राम की आवाज में ‘हे लक्ष्मण’ की पुकार लगाई। सीता, राम की सुरक्षा को लेकर अत्यधिक चिंतित होकर, लक्ष्मण को उनकी सहायता के लिए जाने के लिए कहने लगीं, जबकि लक्ष्मण राम की आज्ञा का पालन करना चाहते थे और उन्हें अकेले छोड़कर नहीं जाना चाहते थे।  

लक्ष्मण के अनिच्छा से जाने के बाद, रावण एक साधु के वेश में आया और अकेली सीता का छलपूर्वक हरण करके उन्हें अपने साथ लंका ले गया। सीता का हरण महाकाव्य का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने राम के सीता को वापस पाने के दृढ़ संकल्प को जन्म दिया।  

सीता को बचाने के अपने प्रयास में, महान गिद्धराज जटायु ने रावण से वीरतापूर्वक युद्ध किया। जटायु ने रावण से कड़ी लड़ाई लड़ी, लेकिन अंततः रावण ने उनके पंख काटकर उन्हें बुरी तरह से घायल कर दिया। जटायु का यह बलिदान धर्म और निष्ठा का प्रतीक है।  

जब राम और लक्ष्मण लौटे तो उन्होंने सीता को कुटिया में न पाकर अत्यंत दुख का अनुभव किया और वे व्याकुल होकर विलाप करने लगे। रास्ते में उनकी भेंट मरणासन्न जटायु से हुई, जिसने उन्हें रावण द्वारा सीता के हरण और दक्षिण दिशा की ओर ले जाने की जानकारी दी। जटायु की मृत्यु के बाद, राम ने उनका अंतिम संस्कार किया और सीता की खोज में घने वन में आगे बढ़े। रास्ते में राम ने दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण राक्षस बने गंधर्व कबन्ध का वध करके उसका उद्धार किया और शबरी के आश्रम पहुंचे, जहाँ उन्होंने शबरी द्वारा दिए गए जूठे बेरों को उसकी भक्ति के वश में होकर खाया।

अरण्यकांड में राम, सीता और लक्ष्मण चित्रकूट से आगे अत्रि ऋषि के आश्रम पहुंचते हैं, जहाँ अत्रि ऋषि राम की स्तुति करते हैं और उनकी पत्नी अनसूया सीता को पातिव्रत धर्म का महत्व समझाती हैं। राम ने पृथ्वी को राक्षस विहीन करने की प्रतिज्ञा भी इसी कांड में की थी। वन में नारद मुनि ने भी भगवान राम से भेंट की थी।  

4. किष्किंधाकांड (Kishkindhakanda): हनुमान और सुग्रीव से भेंट

सीता की खोज में व्याकुल राम और लक्ष्मण किष्किंधा के पास पहुंचे, जो वानरों का राज्य था। वहां उनकी भेंट हनुमान से हुई, जो सुग्रीव के निष्ठावान मंत्री और परम भक्त थे। हनुमान का परिचय राम के सबसे शक्तिशाली और वफादार सहयोगी के रूप में होता है। किष्किंधाकांड में हनुमान ने ब्राह्मण का वेश धारण करके राम और लक्ष्मण से मुलाकात की और उनसे वन में भटकने का कारण पूछा।  

हनुमान ने ही राम की भेंट सुग्रीव से करवाई, जो अपने बड़े भाई बाली द्वारा निर्वासित वानर राजा थे। सुग्रीव ने राम को अपनी दुख भरी कहानी सुनाई: उनके शक्तिशाली भाई बाली ने न केवल उनका राज्य छीन लिया था, बल्कि उनकी पत्नी रूमा को भी अपने अधिकार में कर लिया था। बाली और सुग्रीव का संघर्ष न्याय, विश्वासघात और जटिल पारिवारिक संबंधों के विषयों को उजागर करता है।  

राम ने सुग्रीव को बाली को पराजित करके उनका राज्य और पत्नी वापस दिलाने का वचन दिया। बाली और सुग्रीव के बीच भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें राम पेड़ों के पीछे छिपकर बाली पर बाण चलाकर उसका वध कर देते हैं। राम द्वारा बाली का वध एक विवादास्पद कार्य है जिस पर धर्म और न्यायपूर्ण युद्ध के दृष्टिकोण से अक्सर बहस होती है।  

बाली की मृत्यु के बाद, सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बनाया गया। राजा बनने के बाद, सुग्रीव ने सीता को खोजने में राम की सहायता करने का संकल्प लिया। उन्होंने अपनी विशाल वानर सेना को विभिन्न दिशाओं में सीता की खोज के लिए भेजा। हनुमान को दक्षिण दिशा में खोजने का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया, क्योंकि माना जाता था कि लंका वहीं स्थित है।

जाम्बवंत ने हनुमान को उनके अपार बल, बुद्धि और क्षमता की याद दिलाकर इस महान कार्य के लिए प्रोत्साहित किया। वानर सेना का एकत्र होना और सीता की खोज में निकलना राम के महान मिशन में एक महत्वपूर्ण कदम था। किष्किंधाकांड में भगवान राम ने सुग्रीव को मित्र के लक्षण भी बताए। सच्चा मित्र वही है जो अपने हरे हुए मित्र को फिर से विजयी बनाने के लिए अपनी प्रिया से प्रिया वस्तु का बलिदान कर दे।  

5. सुंदरकांड (Sundarakanda): हनुमानजी का लंका में प्रवेश

सीता की खोज में निकले हनुमान ने लंका तक समुद्र पार करने की कठिन यात्रा शुरू की। सौ योजन (चार सौ कोस) विस्तार वाले समुद्र को एक ही छलांग में लांघने की उनकी अद्भुत क्षमता उनकी असाधारण शक्ति और दिव्य आशीर्वाद को दर्शाती है। रास्ते में उनकी भेंट नागों की माता सुरसा से हुई, जिसने उनकी शक्ति और बुद्धिमत्ता की परीक्षा ली। इसके बाद, उन्होंने लंका की रक्षिका लंकिनी का सामना किया और उसे पराजित करके लंका नगरी में प्रवेश किया।  

लंका में प्रवेश करने के बाद, हनुमान ने सीता की खोज शुरू की। उन्होंने रावण के विशाल महल और पूरी लंका नगरी का कोना-कोना छान मारा। अंततः उन्होंने सीता को अशोक वाटिका में पाया, जहाँ वे राक्षसों से घिरी हुई थीं और रावण उन्हें धमका रहा था। सीता का पता चलना राम के लिए आशा की किरण थी और यह मिशन का एक महत्वपूर्ण क्षण था।  

हनुमान ने सावधानी से सीता से संपर्क किया और उन्हें राम की अंगूठी दिखाकर अपनी पहचान बताई। उन्होंने सीता को राम का संदेश सुनाया, जिसमें उन्हें आश्वस्त किया गया था कि राम उन्हें बचाने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं और शीघ्र ही लंका आकर रावण का वध करेंगे। हनुमान ने सीता से कुछ समय तक वार्तालाप भी किया और उन्हें राम के गुणों और पराक्रम के बारे में बताया।  

रावण के सैनिकों द्वारा हनुमान को पकड़ लिया गया। रावण के आदेश पर उनकी पूंछ में तेल में डूबा हुआ कपड़ा बांधकर आग लगा दी गई। हनुमान ने अपनी जलती हुई पूंछ का उपयोग करके पूरी लंका नगरी में आग लगा दी, जिससे भारी विनाश हुआ। लंका का दहन हनुमान की शक्ति का अद्भुत प्रदर्शन था और रावण और उसके राक्षसों के लिए एक कठोर चेतावनी भी थी।  

हनुमान समुद्र पार करके वापस किष्किंधा लौटे। उन्होंने राम से मिलकर सीता का बहुमूल्य समाचार सुनाया और उन्हें सीता की वर्तमान स्थिति के बारे में विस्तार से बताया। हनुमान की सफल वापसी और सीता की खबर सुनकर राम का सीता को वापस लाने का संकल्प और भी मजबूत हो गया।

सुन्दरकाण्ड रामचरित मानस के सात कांडों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इसमें हनुमान जी की वीरता और सफलता की गाथा है। सुन्दरकाण्ड का पाठ जीवन की बाधाओं को दूर करने और ग्रहों की पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए विशेष फलदायी होता है। इसका पाठ संध्याकाल में करना बेहतर होता है और हनुमान जी के समक्ष घी का दीपक जलाना चाहिए।  

6. युद्धकांड (लंका कांड) (Yuddhakanda/Lanka Kanda): वानर सेना का लंका प्रस्थान

हनुमान की वापसी और सीता का समाचार मिलने के बाद, राम, सुग्रीव और हनुमान के नेतृत्व में विशाल वानर सेना ने लंका की ओर प्रस्थान किया। वानर सेना में नल और नील नामक दो अद्भुत इंजीनियर थे, जिनकी सहायता से समुद्र पर एक विशाल पुल (राम सेतु) का निर्माण किया गया। पुल का निर्माण धर्म के मार्ग में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करने के लिए सामूहिक प्रयास और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। भगवान राम से सुरक्षित होकर पूरी वानर सेना प्रसन्नतापूर्वक बड़ी तेजी से लंका पहुंची।  

राम की शक्तिशाली सेना और रावण की विशाल राक्षस सेना के बीच लंका की भूमि पर भयंकर युद्ध शुरू हुआ। दोनों पक्षों के अनेक महान योद्धाओं ने अद्भुत वीरता और पराक्रम का प्रदर्शन करते हुए युद्ध किया।  

रावण का शक्तिशाली और विशालकाय भाई कुम्भकर्ण युद्ध में उतरा और उसने वानर सेना और स्वयं राम के साथ भयंकर युद्ध किया। अंततः भगवान राम ने अपने तीक्ष्ण बाणों से कुम्भकर्ण का वध कर दिया। कुम्भकर्ण की हार रावण की राक्षस सेना के लिए एक बहुत बड़ा झटका था।  

रावण के पराक्रमी पुत्र मेघनाद ने भी युद्ध में अद्भुत वीरता दिखाई। उसने अपनी मायावी शक्तियों से राम की सेना को भारी क्षति पहुंचाई और एक भीषण युद्ध में लक्ष्मण को शक्ति नामक अस्त्र से घायल कर दिया। हनुमान तुरंत हिमालय पर्वत पर गए और वहां से संजीवनी बूटी लाए, जिससे लक्ष्मण के प्राण बचाए जा सके। अंततः लक्ष्मण ने मेघनाद का वध कर दिया। मेघनाद की मृत्यु राम की सेना के लिए एक और महत्वपूर्ण विजय थी।  

अंत में, धर्म और अधर्म के प्रतीक राम और रावण का आमना-सामना हुआ। दोनों महान योद्धाओं के बीच भीषण और लंबा युद्ध चला। अंततः मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करके रावण का वध कर दिया, इस प्रकार बुराई पर अच्छाई की विजय हुई। रावण की मृत्यु धर्म की अधर्म पर विजय का चिरस्थायी प्रतीक है। रावण की मृत्यु के बाद, मरने से बचे हुए राक्षसों के साथ रावण की अनाथा स्त्रियां विलाप करने लगीं।  

रावण के वध के बाद, सीता और राम का पुनर्मिलन हुआ। हालांकि, सीता के रावण की कैद में रहने के कारण उनकी पवित्रता पर कुछ संदेह उठाए गए। अपनी पवित्रता साबित करने के लिए सीता ने अग्नि परीक्षा दी, जिसमें वे सफलतापूर्वक उत्तीर्ण हुईं। सीता की अग्नि परीक्षा एक महत्वपूर्ण घटना है जो उस समय के सामाजिक दबावों को दर्शाती है।  

राम, सीता, लक्ष्मण और विजयी वानर सेना पुष्पक विमान में अयोध्या के लिए लौटे। अयोध्या में उनका भव्य स्वागत हुआ और इस दिन को विजयादशमी के रूप में मनाया गया, जो बुराई पर अच्छाई की शाश्वत जीत का प्रतीक है। युद्धकांड रामचरितमानस का एक महत्वपूर्ण भाग है और यह धर्म और अधर्म के बीच अंतिम युद्ध का वर्णन करता है, जिसमें हमेशा धर्म की विजय होती है। यह कांड राम के पराक्रम, न्याय और धर्मपरायणता को दर्शाता है। रावण की मृत्यु के बाद राम ने विभीषण को लंका का राज्य सौंप दिया।  

7. उत्तरकांड (Uttarakanda): श्रीराम का अयोध्या में राज्याभिषेक

अयोध्या लौटने पर भगवान राम का भव्य राज्याभिषेक समारोह आयोजित किया गया। अयोध्या नगरी में खुशियाँ मनाई गईं, जो एक धर्मात्मा और न्यायप्रिय राजा की वापसी का प्रतीक था। राम का राज्याभिषेक राम राज्य की स्थापना का प्रतीक है, जिसे इतिहास में न्याय और समृद्धि का आदर्श शासन माना जाता है।  

हालांकि, अयोध्या के कुछ नागरिकों के बीच सीता की पवित्रता को लेकर अफवाहें और संदेह बने रहे, क्योंकि वे लंका में रावण की कैद में रही थीं। एक आदर्श राजा के रूप में अपने वंश और राज्य की प्रतिष्ठा बनाए रखने के कर्तव्य से बंधे राम ने अनिच्छा से सीता का त्याग कर दिया। सीता का त्याग एक अत्यंत विवादास्पद घटना है जो शासक की जिम्मेदारियों और महिलाओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण पर सवाल उठाती है।  

सीता ने वन में ऋषि वाल्मीकि के पवित्र आश्रम में शरण ली। वहीं उन्होंने जुड़वां पुत्रों, लव और कुश को जन्म दिया। ऋषि वाल्मीकि ने लव और कुश को वेद, शास्त्रों और युद्धकला की शिक्षा और प्रशिक्षण दिया, और वे वीर और कुशल योद्धा बने।

कई वर्षों बाद, लव और कुश अयोध्या आए और राम के दरबार में रामायण की मधुर कहानी गाई, बिना यह जाने कि स्वयं राम उनके पिता हैं। अंततः राम ने उन्हें अपने पुत्रों के रूप में पहचाना, और उनका भावुक पुनर्मिलन हुआ। लव और कुश की कहानी राम के वंश और उनकी वीरता की निरंतरता को दर्शाती है।  

राम ने सीता से सभा के सामने एक और पवित्रता परीक्षा देने का अनुरोध किया। दुखित और अन्यायपूर्ण आरोप से व्यथित सीता ने अपनी माता, पृथ्वी देवी, से उन्हें वापस लेने की प्रार्थना की। पृथ्वी फट गई, और सीता अपने दिव्य धाम में समा गईं। सीता का यह अंतिम प्रस्थान उनकी दिव्य प्रकृति को दर्शाता है और सामाजिक दबावों और गलतफहमी के दुखद परिणामों को उजागर करता है।  

कई वर्षों तक न्याय और धर्म के साथ अयोध्या पर शासन करने के बाद, भगवान राम ने अपने नश्वर रूप को त्यागने का निर्णय लिया। वे अपने भाइयों और प्रजा के साथ सरयू नदी में चले गए और अपने शाश्वत धाम बैकुंठ (विष्णु का स्वर्ग) लौट गए। राम का बैकुंठ लौटना उनके सांसारिक मिशन की समाप्ति और उनके दिव्य रूप में वापसी का प्रतीक है।

उत्तरकांड राम कथा का उपसंहार है। इस कांड में राम, सीता, लक्ष्मण और पूरी वानर सेना के साथ अयोध्या लौटते हैं और राम का भव्य राज्याभिषेक होता है। रामराज्य एक आदर्श शासन बन जाता है।  

निष्कर्ष

रामायण की यह पवित्र कहानी, जो सात कांडों में सुंदरता से विभाजित है, भगवान राम के जीवन के महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक चरणों को दर्शाती है। यह धर्म, कर्तव्य, न्याय, प्रेम, त्याग और मर्यादा जैसे शाश्वत मूल्यों को स्थापित करती है। राम का जीवन एक आदर्श प्रस्तुत करता है, और रामायण की यह अमर कथा आज भी करोड़ों लोगों को प्रेरित करती है।

44 thoughts on “सम्पूर्ण रामायण की कहानी हिन्दी में Full Ramayan Story in Hindi”

  1. Story was very nice And clear to understand but one thing is missing.
    Iss story me Bhagwan Ram ka Birth Date kiyun nai bataya gaya hai Please Kisiko pata haito mujhe batadijiye mai Janna chata hun Bhagwan Ram kab Janame…

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  2. श्रीराम का वंशज हूँ मैं, गीता ही मेरी गाथा हैं . Dhanywaad

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  3. Time phone m jiada lagane valo din m 2 minute ramayan ko bhi yad karlia karo Jo hame sans deta h pani deta h or bhi bahut kuch bhagvan use bhi batadia karo ki ham bhi tere neq bande h. Jai sree ram

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  4. it our life .every parts belongs to us ,
    i m very proud of an human being , we concactted to true behalf of ramayana.

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  5. Thank u so much
    Kya aap shree krishna ki bhi story bata sakte ho please ya fir chota bheem ki
    Ramayan ke liye very very thank u

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  6. Nice post sir ji bahut bahut dhanywaad or all bro….
    Sister reading a ramayan and mahabharat and geetanjli
    Thanks for watching my comments

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