इल्तुतमिश का जीवन परिचय Life History of Iltutmish in Hindi

इस लेख में आप इल्तुतमिश का जीवन परिचय Life history of Iltutmish in Hindi पढ़ेंगे। जिसमें आप इलतुतमिश का जन्म, प्रारम्भिक जीवन, शासन, संघर्ष, स्मारक, मृत्यु के विषय में जानेंगे।

शम्स उद-दीन इल्तुतमिश या इलतुतमिश दिल्ली सल्तनत के तीसरे मुस्लिम सुल्तान थे और उन्होंने 1211 से लेकर अपने 1236 में निधन तक शासन किया। उन्हें गुलाम वंश का शासक भी कहा जाता है।

उन्होंने पंजाब और हरियाणा में इस्लामीकरण को तेजी से बढ़ाया। इल्तुतमिश ने कुतुब मीनार का निर्माण पूरा किया और कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को भी बनवाया जो कुतुब मीनार के पास है।

गज़ना शासक और हिन्दू प्रयासों की ओर से चुनौतियों का सामना करते हुए भी, उन्होंने मुस्लिम संपत्तियों को पकड़ा और समेकित किया।

शम्स उद-दीन इल्तुतमिश का जन्म तुर्किस्तान में हुआ था। शुरुवात मे उनका जन्म नाम शम्स-उद-दुन्या वा अद-दीन था। इल्तुतमिश को युवा आयु में गुलाम के रूप में बेच दिया गया था और उन्हें गजनी ले जाया गया, जो तब गुरीद वंश द्वारा शासित था। 

उनकी प्रतिबद्धता ने क़ुतुबुद्दीन ऐबक को प्रभावित किया, जो उस समय उत्तरी भारत में गुरीद सेनाओं के कमांडर थे। 

इल्तुतमिश के माता-पिता की जानकारी, उनकी उत्पत्ति और उस समय के विस्तृत ऐतिहासिक दस्तावेज़ों की कमी के कारण स्पष्ट नहीं हैं। 

हालांकि, यह जाना जाता है कि इल्तुतमिश राजवंशी नहीं थे और उन्होंने अपनी स्वयं की प्रथा और सैन्य कुशलता के माध्यम से शक्ति की ऊँचाइयों तक पहुंचा।

इल्तुतमिश का प्रारम्भिक जीवन

शम्स-उद-दीन इल्तुतमिश, मध्य एशिया के इलबारी जनजाति से तुर्क माता-पिता के बच्चे के रूप में जन्मे थे, उन्होंने अपने प्रारंभिक जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया, लेकिन आखिरकार उन्होंने शक्ति हासिल की और 1211 में दिल्ली के सुलतान बने।

वे शम्सी वंश (गुलाम वंश का एक वंश) के प्रमुख शासक थे जिन्होंने कुतब-उद-दीन ऐबक के बाद दिल्ली सलतनत की मैदानी मजबूती की थी। 

इल्तुतमिश ने विभिन्न तुर्क अमीरों और स्थानीय शासकों के विरुद्ध किया, और ताजुद्दीन यिलदोज़ और नासिर-उद-दीन कबाचा की चुनौतियों को सफलतापूर्वक सामना किया। 

उन्होंने मंगोल आक्रमण के खतरे का सामना भी किया, रणनीतिक रूप से अपने साम्राज्य को तिमुचिन, जिन्हें चांगीज़ खान भी कहा जाता है, से बचाने में सफल रहे। 

इसके अलावा, इल्तुतमिश ने अपने प्रभाव को बड़ाने के लिए बंगाल और बिहार की ओर अपनी प्रभुता बढ़ाई।

इल्तुतमिश एक न्यायप्रिय शासक

शम्स उद-दीन इल्तुतमिश एक न्यायप्रिय शासक थे और उनके शासनकाल में न्यायिक दृष्टिकोण ने उन्हें एक उत्कृष्ट और सुजब्द सुलतान के रूप में जाना जाता है। उनका न्यायप्रिय आचरण उन्हें एक समर्पित और सांस्कृतिक राजा बनाता है, जिन्होंने अपने राज्य के लोगों के प्रति समर्पण दिखाया।

इल्तुतमिश का न्यायप्रिय शासनकाल अनेक क्षेत्रों में विकास का दर्शन करता है:

सामाजिक सामंजस्य: इल्तुतमिश ने अपने शासनकाल में विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच सामंजस्य बढ़ाने के लिए कई उपायों को अपनाया। उन्होंने अलग-अलग जातियों और समुदायों को एक साथ रहने के लिए प्रोत्साहित किया और सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा दिया।

न्यायिक निर्णय: इल्तुतमिश ने न्यायिक प्रणाली में सुधार किया और न्यायिक निर्णयों में सत्य और न्याय की प्राथमिकता दी। उन्होंने न्यायिक निर्णयों को बिना किसी भेदभाव के दिया और समाज के हर वर्ग के लोगों को समर्थन दिया।

साहित्यिक और कला समर्थन: इल्तुतमिश ने साहित्य और कला को प्रोत्साहित किया और उन्होंने शासनकाल में साहित्यिक और कला के क्षेत्र में विकास को बढ़ावा दिया।

मुघल साम्राज्य के साथ रिश्तों की स्थापना: इल्तुतमिश ने अपने साम्राज्य को मुघल साम्राज्य के साथ शानदार रिश्तों के माध्यम से बढ़ावा दिया। उन्होंने एक स्थायी और सौहार्दपूर्ण रिश्ता बनाया और अपने राज्य को बचाने के लिए मुघल साम्राज्य के साथ मिलकर काम किया।

इस प्रकार, इल्तुतमिश एक न्यायप्रिय और सामर्थ्यपूर्ण शासक थे जो अपने समय में न्याय, सामाजिक सामंजस्य, और सांस्कृतिक विकास के क्षेत्र में उत्कृष्टता प्रदर्शित करते थे।

इल्तुतमिश एक कुशल शासक

इल्तुतमिश एक कुशल शासक, शिक्षित और न्यायप्रिय थे। उन्होंने शिक्षा को महत्वपूर्ण माना और अपने दरबार में विद्वानों को प्रोत्साहित किया। न्याय के मामले में उन्होंने न्यायिक तंत्र को सुधारा और सामाजिक न्याय की प्राथमिकता दी।

उनका शासन समझदारी और न्यायपूर्ण निर्णयों पर आधारित था। इल्तुतमिश समस्याओं को ठीक से विश्लेषण करते थे और उचित निर्णय लेने में सक्षम थे।  

इल्तुतमिश ने राजनीतिक संवाद में कुशलता दिखाई और वे विभिन्न समस्याओं का समाधान करने के लिए व्यापक समर्थन बनाए रखते थे। 

उनका शासन सामाजिक न्याय और समरसता के प्रति समर्पित था, और वे विभिन्न वर्गों और समुदायों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए नीतियों को प्रोत्साहित करते थे।

इल्तुतमिश ने अपने प्रजा के साथ संवाद बनाए रखने का प्रयास किया और वे लोगों की सुनी और उनके मुद्दों और आवश्यकताओं का समर्थन किया।

साथ ही उनका शासन शिक्षित और सतर्क था, जो उन्हें आत्मनियंत्रण और तत्पर बनाए रखने में मदद करता था। वे अपने शासनकाल में घटित होने वाली घटनाओं को ध्यानपूर्वक निगरानी करते थे।

इस रूप में, एक कुशल शासक न्यायप्रिय और समर्थ होता है, जो अपने राज्य को सुरक्षित और समृद्धिशील बनाने में सक्षम रहता है।

इल्तुतमिश ने चांदी और तांबे के सिक्के चलवाए

इल्तुतमिश ने अपने शासनकाल के दौरान चांदी और तांबे के सिक्के चलवाए। यह एक महत्वपूर्ण कार्य था जो उनके शासनकाल में आर्थिक विकास और सुदृढ़ आर्थिक नींव की दिशा में मदद करने के लिए किया गया था। 

इसके कुछ मुख्य पहलु निम्नलिखित हैं:

चांदी और तांबे के सिक्के:

इल्तुतमिश ने अपने सिक्के चलवाने के लिए चांदी और तांबे का उपयोग किया। यह सिक्के उनकी सत्ता और सोच को दर्शाते थे और भारतीय मुद्रा प्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक था।

रूपरेखा और चिन्हांकन:

इल्तुतमिश ने अपने सिक्कों की रूपरेखा और चिन्हांकन में भी सुधार किया। उन्होंने अपने सिक्कों पर अपनी सत्ता और समृद्धि का प्रदर्शन करने के लिए विशेष चिन्ह और तारीखें जोड़ीं।

सिक्के का प्रचलन:

इसके परे, चांदी और तांबे के सिक्के का प्रचलन व्यापक रूप से किया गया और इसने व्यापारिक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया। इससे व्यापार में सुधार और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला।

इस प्रकार, इल्तुतमिश ने चांदी और तांबे के सिक्के चलवाने के माध्यम से आर्थिक विकास को प्रोत्साहित किया और अपने समय के आर्थिक परिपेक्ष्य में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया।

इल्तुतमिश का संघर्ष

इल्तुतमिश के शासनकाल में कई संघर्ष और चुनौतियाँ थीं, जो उन्हें एक मजबूत शासक बनने के लिए परेशानी में डालती थीं। इस अवधि में हुए कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं निम्नलिखित हैं:

आंध्र-तमिळनाडु के खिलजी वंश के साथ संघर्ष (1216-1229):

इल्तुतमिश के शासनकाल की शुरुआत में, वह अंध्र और तमिळनाडु के खिलजी वंश के सुलतान याकुब के साथ संघर्ष में आए। 

इस संघर्ष के दौरान, इल्तुतमिश ने खुद को साबित करके अपने प्रतिद्वंद्वी को हराया और उन्हें अपनी सत्ता की मजबूती को स्थापित करने में मदद की।

1225 में बंगाल के शासक हिसामुद्दीन इवाज ने इल्तुतमिश के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और उसके आधीन होकर बंगाल में शासन करने लगा।

ताजुद्दीन यल्दूज़ के साथ विवाद (1229-1230):

इल्तुतमिश को अपने चाचा, ताजुद्दीन यल्दूज़ के साथ विवाद का सामना करना पड़ा। इस संघर्ष के बावजूद, इल्तुतमिश ने यल्दूज़ को हराया और अपनी सत्ता को मजबूती से बनाए रखने में सफल रहे।

1229 में बगदाद के खलीफ़ा ने इल्तुतमिश को “खिलअत” प्रमाण पत्र दिया और उसे ‘सुल्तान-ए-आजम‘ (महान शासक) की उपाधि भी प्रदान की।

नासिर-उद-दीन महमूद के साथ संघर्ष (1230):

इस संघर्ष में, नासिर-उद-दीन महमूद नामक एक अमीर ने इल्तुतमिश के खिलाफ विद्रोह किया। हालांकि, इल्तुतमिश ने इस विद्रोह को दबा दिया और अपनी सत्ता को सुरक्षित रखा।

इल्तुतमिश द्वारा बनवाए गए प्रमुख स्मारक

कुतुब मीनार: शम्स उद-दीन इल्तुतमिश ने कुतुब मीनार के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो दिल्ली, भारत में स्थित एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। 

इस प्रतीकात्मक टॉवर का निर्माण एक लम्बे समयीय परियोजना थी जो लगभग 75 वर्षों तक चली। यह स्पष्ट नहीं है कि यह निर्माण कब शुरू हुआ और कब समाप्त हुआ, लेकिन स्पष्ट है कि इल्तुतमिश ने इसमें अपना योगदान दिया जब वह 1211 से 1236 तक शासन कर रहे थे।

इल्तुतमिश का मकबरा: कुतुब मीनार संगठन में स्थित इल्तुतमिश का मकबरा 1235 ईसा पूर्व में बनवाया गया था। इस वर्गाकार संरचना का निर्माण बालुआ पत्थर से किया गया था, जिसमें तीन प्रवेशद्वार और एक मेहराब हैं। 

मकबरे में एक विशाल सजीव गहन मार्बल का जीनाजा है जो ऊपरी कमरे में सजीवता की भरपूर सजावट से भरा हुआ है, जबकि सीढ़ियां नीचे दफ़नी कक्ष में जाती हैं। 

बाह्य दीवारें, पतली और संभावना है कि मूल गुम्बद के बिगड़ने के कारण, दीवारों की खूबसूरत सजीवता के खिलाफ हो, जो भव्य अपस्तम्भ, अरबेस्क, ज्यामितीय डिज़ाइन और हिन्दू अवधारणाओं को शामिल करती हैं।

इल्तुतमिश का निजी जीवन

शम्स उद-दीन इल्तुतमिश, गुलाम वंश के तीसरे दिल्ली सुलतान थे जिसने कुतुब-उद-दीन ऐबक की बेटी तुर्कान खातून से विवाह किया, और उनके चार बच्चे थे। 

उनके बच्चे नासिरुद्दीन महमूद, रज़िया सुलताना, मुइज़ उद दीन बहराम, और रुक्न उद दीन फिरोज थे। इल्तुतमिश के परिवार में उनकी प्रसिद्ध बेटी, रज़िया सुलतान, भी शामिल थी, जो उनके 1236 में निधन के बाद उनकी सत्ता में आई। 

इल्तुतमिश की इच्छा थी कि उसकी बेटी उसकी जगह ले हो, जो उसकी प्रगतिशील मानसिकता का प्रमाण था। हालांकि, उनके पुत्रों का साम्राज्य में कोई योगदान नहीं रहा, जिससे उनकी वंशवृद्धि की अंत हो गई।

इल्तुतमिश की मृत्यु

शम्स उद-दीन इल्तुतमिश का निधन 1236, दिल्ली में हुआ और उनकी स्थानांतरित की गई उनकी बेटी, रज़िया सुल्तान दिल्ली की अगली शासक बनी।

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