कुतुबुद्दीन ऐबक का इतिहास व तथ्य Qutubuddin Aibak Life History in Hindi
इस लेख में हिंदी में कुतुबुद्दीन ऐबक का इतिहास (Qutubuddin Aibak Life History in Hindi) लिखा गया है। कुतुबुद्दीन ऐबक का परिचय, जन्म व प्रारंभिक जीवन, उसकी उपलब्धियों का वर्णन, उसके द्वारा लड़े गए युद्ध, किए गए अत्याचार, उसकी मृत्यु और उसके विषय में 10 तथ्य पर चर्चा किया गया है।
कुतुबुद्दीन ऐबक का इतिहास व तथ्य Qutubuddin Aibak Life History in Hindi
विश्व प्रसिद्ध दिल्ली मेंस्थित क़ुतुब मीनार, कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद और अजमेर में स्थित ढ़ाई दिन का झोपड़ा इसका निर्माण कार्य कुतुबुद्दीन ऐबक के समय में ही प्रारंभ हुआ था। मध्य भारत में कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली सल्तनत का पहला शासक था।
गुलाम वंश की नींव भी कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा ही डाली गई थी। हालांकि वर्ष 1206 से लेकर 1210 ई. तक ही वह दिल्ली सल्तनत पर राज कर सका। शासनकाल के दरमियान इसने वर्तमान लाहौर को अपनी राजधानी बनाई थी। कुतुबुद्दीन ऐबक मूल रूप से तुर्कस्तान का निवासी था।
यह दिल्ली सल्तनत पर हुकूमत करने वाला इकलौता ऐसा शासक था, जिसने कभी भी अपने शासनकाल में स्वयं को सुल्तान नहीं घोषित किया। शायद गुलाम वंश से ताल्लुक रखने के कारण कुतुबुद्दीन ऐबक ने ऐसा किया होगा। गौरतलब है कि वह गौरी साम्राज्य के शहंशाह मोहम्मद गौरी का गुलाम था।
कुतुबुद्दीन ऐबक हिंदुस्तान के इतिहास में सबसे खूंखार शासकों में से एक था, जिसने अपनी हुकूमत के दौरान बहुत सारे अपराध किए। हालांकि ऐबक ने बादशाह की पदवी तक पहुंचने के लिए बेहद कड़े प्रयास किए थे, जिसके फलस्वरूप उसे दिल्ली की गद्दी मिली।
कुतुबुद्दीन ऐबक की मंशा भारत में तुर्क सम्राज्य को स्थापित करना तथा इस्लाम धर्म का पूरे हिंदुस्तान में परचम लहराना था।
कुतुबुद्दीन ऐबक का जन्म व प्रारंभिक जीवन Birth and Early Life of Qutubuddin Aibak in Hindi
लगभग 1150 ईसा पूर्व कुतुबुद्दीन ऐबक का जन्म तुर्कस्तान में हुआ था। उस समय काल में दास व्यापार अथवा दास प्रथा बेहद प्रचलित थी। लोग दासों का व्यापार करना बड़ा ही लाभदायक कारोबार मानते थे।
दुर्भाग्यवश कुतुबुद्दीन ऐबक भी इसी दास प्रथा का शिकार हुआ था। बचपन में ही उसे किसी व्यापारी को बेच दिया गया था। जिसके बाद उस व्यापारी ने निशापुर के काजी फखरुद्दीन अब्दुल अजीज को उसे बेच दिया।
काजी ने बालक कुतुबुद्दीन ऐबक को अपने अन्य बच्चों के साथ ही धार्मिक तथा सैन्य प्रशिक्षण प्रदान किया। लेकिन जब काजी की मृत्यु हो गई, तब उसके पुत्रों ने कुतुबुद्दीन ऐबक को फिर से मोहम्मद गौरी को बेच दिया।
बचपन से ही ऐबक का जीवन बड़ी मुश्किलों में बीता, जहां उसे किसी सामान की भांति एक से दूसरे को बेचा जा रहा था। लेकिन सौभाग्य से अंत में उसे मोहम्मद गौरी ने खरीदा, जिसने उसकी साहस और स्वामी भक्ति को देखकर उसे अपना सबसे खास दास बना लिया।
कुतुबुद्दीन ऐबक की उपलब्धियों का वर्णन Achievements of Qutubuddin Aibak in Hindi
मोहम्मद गौरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक की स्वामी भक्ति को देखकर प्रारंभ में ही उसे शाही अस्तबल का अध्यक्ष बना दिया। यह पद उस समय में बेहद सम्मान वाला कार्यभार माना जाता था। कुछ समय के अंदर ही उसने मोहम्मद गौरी का दिल जीत लिया।
जिसके बाद गौरी ने उसे अपने साथ सैन्य अभियानों में भी शामिल कर लिया, जहां उसके जीवन की दिशा ही बदल गई। सैन्य अभियानों में बेमिसाल प्रदर्शन करके एक बार फिर से वह मोहम्मद गौरी के नजरों में आया जिसके बाद उसे सीधा सूबेदार का पद प्राप्त हुआ।
कब्जा की गई जमीनों में कुछ क्षेत्रफल को राजपूतों को सत्ता सौंपी गई थी। जो तुर्को का अधिक प्रभाव सहन नहीं कर रहे थे, इसलिए वे पूरी तरह से उन्हें नष्ट करना चाहते थे। लेकिन 1192 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने मेरठ और अजमेर में विद्रोह कर दिया, जिसके पश्चात वह फिर से दिल्ली की सत्ता पर बन गया।
गौरतलब है कि मोहम्मद गौरी ने किसी को भी अपना शाही वारिस घोषित नहीं किया था। क्योंकि कुतुबुद्दीन ऐबक मोहम्मद गौरी का सबसे प्रिय और विशेष दास व कार्यभारी था। हालांकि गौरी के दरबार में कई और बेहद शक्तिशाली और बुद्धिजीवी योद्धा थे, लेकिन अंत में गौरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को शासक की उपाधि दी।
लेकिन उसे सरदारों का प्रमुख अथवा सुल्तान की उपाधि नहीं दी गई थी। गौरी की मृत्यु के बाद अगर कुतुबुद्दीन ऐबक चाहता, तो खुद सुल्तान की उपाधि प्राप्त कर सकता था। लेकिन स्वामी भक्ति दिखाते हुए उसने ऐसा कुछ नहीं किया।
1206 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने स्वयं अपना राज्य अभिषेक करके ताज पहन लिया। अपने स्वामी के मृत्यु के बाद उसने बड़े ही प्रभावकारी ढंग से अपने शत्रुओं को दबाकर क्षेत्रों का विस्तार किया।
दिल्ली पर गुलाम वंश का आधिपत्य जमाने की जीत उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि साबित हुई। हिंदुस्तान में तुर्की साम्राज्य को बढ़ाने के लिए कुतुबुद्दीन ऐबक को याद किया जाता है। ऐबक ने सत्ता में आने के बाद दास प्रथा पर भी प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए।
कुतुबुद्दीन ऐबक के प्रभाव में सल्तनत की नींव अफगानिस्तान से लेकर उत्तर भारत के बहुत सारे क्षेत्रफल में फैल गई थी। गौरतलब है कि कुतुबुद्दीन ऐबक का मूल वंश गुलाम नहीं अपितु कुत्त्बी वंश था।
क्योंकि प्रारंभ में वह दास प्रथा का शिकार होकर एक गुलाम की तरह जीवन जीता था, इसीलिए उसे गुलाम वंश का शासक के रूप में जाना जाता है। कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद गुलाम वंश में इल्तुतमिश और बलवान यह दो शासक भी शामिल है। हालांकि इनका मूल वंश भी भिन्न था।
कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा लड़े गए युद्ध Wars Fought By Qutubuddin Aibak in Hindi
हिंदुस्तान में इस्लाम तथा तुर्को के साम्राज्य को फैलाने वाले सबसे शक्तिशाली शासकों में से एक कुतुबुद्दीन ऐबक भी था, जिसने अपने विपक्ष में रहे लोगों का सर्वनाश कर के चारों जगह अपना आधिपत्य जमा खा था।
मोहम्मद गौरी के नेतृत्व में वह सबसे पहले केवल सेना का नेतृत्व करता था। लेकिन उसके कर्म निष्ठा और शक्ति को देखकर मोहम्मद गौरी ने उसे कई जगहों का सुबेदार नियुक्त कर दिया।
इसके अलावा अपने महत्वपूर्ण युद्ध में भी वह कुतुबुद्दीन ऐबक को अपनी रणनीति में शामिल करता था। कुतुबुद्दीन ऐबक के सामने चुनौतियां ढेर सारी थी, लेकिन उसके बावजूद भी उसने अपनी स्वामी भक्ति को साथ लेकर कई सारे युद्ध में विजय पताका लहराई।
1206 से में जब कुतुबुद्दीन ऐबक को मोहम्मद गौरी द्वारा मालिक की उपाधि दी गई, तो यह वहां उपस्थित कई योद्धाओं को नागवार गुजरा। उसके बाद उसके राज्य में ही कई दुश्मन उसके विरुद्ध हो गए।
एक तरफ राजपूतों के विद्रोह करने का भय था, तो वहीं दूसरी ओर सबसे शक्तिशाली नसरुद्दीन कुबचा तथा ताज- उद्दीन- येल्दोज भी हाथ धोकर दिल्ली की तख्त के पीछे पड़े थे।
जब कुतुबुद्दीन ऐबक को आमीर-ए-आखूर अर्थात शाही अस्तबल का प्रधान के पद पर मोहम्मद गौरी ने उसे नियुक्त किया था, तो उसी दौरान ऐबक ने 1192 ईस्वी में गजनी, गोर और बामियान में मोहम्मद गौरी की सेवा की थी। इसके पश्चात उसने उसी वर्ष तराइन के युद्ध में भी भाग लिया।
जहां कुतुबुद्दीन ऐबक ने बेमिसाल प्रदर्शन करके अपनी प्रतिष्ठा को स्वामी के समक्ष और भी बढ़ा लिया। इसके बाद वह कई हिंदुस्तानी प्रदेशों का सूबेदार नियुक्त हुआ। वापस लौटने के बाद ऐबक ने मेरठ और अजमेर में उठने वाले कई विद्रोहियों का नाश किया और शांति कायम कर दी।
1194 ईस्वी में हुए कन्नौज के राजा जयचंद तथा मोहम्मद गौरी के बीच लड़ाई में शातिर तरीके से अपने स्वामी की सहायता की। कुछ सालों बाद उस समय काल में गुजरात की राजधानी अन्हिलवाड़ा को 1197 ईस्वी में उसने लूटा।
इसके बाद वहां के शासक भीमदेव को भी सजा दी। तत्पश्चात बुंदेलखंड के महाराज परमार्दिदेव के साथ सन 1202 में युद्ध किया और उन्हें हराने के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने खजुराहो, कालिंजर और महोबा पर जीत हासिल कर ली।
अगले 3 वर्षों के बाद ई. 1205 में मोहम्मद गौरी के साथ मिलकर खोक्खर के विरुद्ध षड्यंत्र किया और जीत भी हासिल की। अपने जिन विद्रोहियों को वह दबाने में सक्षम नहीं था, वहां उसने वैवाहिक संबंधों का सहारा लिया।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपनी पुत्री का विवाह इल्तुतमिश तथा अपनी बहन का विवाह सिंध और मुल्तान के शासक नसरुद्दीन कुबाचा से कर दिया। तत्पश्चात गजनी के शासक ताज- उद्दीन-येल्दोज की पुत्री से विवाह कर लिया।
इस तरह कई तरफ से उसने अपने दुश्मनों को मित्र में बदल लिया था। इसके पश्चात कुतुबुद्दीन ऐबक ने गंगा नदी के सहायक स्त्रोत के समीप आए सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक बदायूं को फिर से जीत लिया और वहां का शासन इल्तुतमिश के हाथों में सौंप दिया।
कुतुबुद्दीन ऐबक का अत्याचार Tyranny of Qutubuddin Aibak in Hindi
इतिहास में हुए सबसे शक्तिशाली गुलाम वंश के शासकों में कुतुबुद्दीन ऐबक प्रथम नंबर पर था। उसने बहुत कम समय में ही बड़ी उपलब्धि प्राप्त कर ली थी।
बेशक अपने साहस और विवेक से ऐबक ने दिल्ली सल्तनत को भी अपने अधीन कर लिया था। लेकिन कई इतिहासकारों का मानना है कि वह एक निर्दई व्यक्ति भी था। धार्मिक मामलों में कुतुबुद्दीन ऐबक इस्लामिक कट्टरवादी शासकों की तरह ही था।
कहा जाता है कि जिस जगह पर उसने कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद का निर्माण करवाया था, वहां पहले एक मंदिर था जिसे तोड़ने के बाद उसने मस्जिद की नींव रखी थी।
इसके अलावा हजारों मंदिरों को ध्वस्त करवा कर हिंदुओं पर भी बहुत अत्याचार किया था। इसके अलावा इतिहासकार यह भी तर्क देते हैं, कि जिस कलाकारी से कुतुब मीनार का निर्माण करवाया गया था, वह हिंदू कलाकृतियों से बहुत हद तक मिलता-जुलता था।
कुतुबुद्दीन ऐबक के जीते जी कुतुब मीनार का निर्माण पूरा नहीं हो सका, लेकिन ऐबक के दमाद इल्तुतमिश ने कुतुब मीनार के निर्माण कार्य को पूरा करवाया था। आज भी ऐसे कई सुराग अथवा साक्ष इतिहासकारों द्वारा पेश किए जाते हैं, जो कि उस समय काल में कुतुबुद्दीन ऐबक के अत्याचार को दर्शाता है।
कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु Qutbuddin Aibak’s Death in Hindi
दिल्ली पर शासन करने के 4 साल के पश्चात 1210 ई में जब कुतुबुद्दीन ऐबक अपने शाही बाग में घुड़सवारी करके पोलो अथवा चौगान खेल रहा था, उसी वक्त उसका पैर फिसल गया, इसके पश्चात व घोड़े से नीचे गिर गया।
कुतुबुद्दीन ऐबक को इससे काफी चोट आई जिसके पश्चात उसकी मृत्यू हो गई। वर्तमान में पाकिस्तान के लाहौर में कुतुबुद्दीन ऐबक का मकबरा आया हुआ है।।
कुतुबुद्दीन ऐबक के विषय में 10 तथ्य Facts About Qutubuddin Aibak
- कुतुबुद्दीन ऐबक ने ख्वाजा कुतुबुद्दीन की याद में कुतुब मीनार का निर्माण करवाया था।
- ‘लाख बख्श’ अर्थात लाखों में दान देने वाला की उपाधि कुतुबुद्दीन ऐबक को प्रदान की गई थी।
- कुतुबुद्दीन ‘ऐबक’ के नाम का मतलब गुलाम अथवा दास होता है।
- कुतुबुद्दीन ऐबक के दमाद इल्तुतमिश को गुलामो का गुलाम कहा जाता है, क्योंकि वह ऐबक का गुलाम था, जो कि खुद मोहम्मद गौरी का गुलाम था।
- गुलाम वंश को मामलूक अथवा दास वंश भी कहा जाता है।
- कुतुबमीनार को कुतुबुद्दीन ऐबक के विजय का प्रतीक माना जाता है।
- ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी, कुतुबुद्दीन ऐबक का गुरू था।
- पाकिस्तान के लाहौर में ऐबक का मकबरा स्थित है।
- शुभ्रक नामक घोड़े के ऊपर सवार होकर पोलो खेलते समय जमीन पर गिरने से ऐबक की मौत हो गई थी।
- कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपने शासनकाल में कभी भी ‘सुल्तान’ की उपाधि को प्राप्त नहीं किया था।