महाशिवरात्रि की कहानी व निबंध Mahashivratri Story Essay in Hindi
आज हम इस पोस्ट में हमने महाशिवरात्रि की कहानी व निबंध Mahashivratri Story Essay in Hindi लिखा है जिसमे हम आपको बताएँगे महाशिवरात्रि की कहानी , इसका महत्व और इस महा पर्व की तारीख के विषय में।
महाशिवरात्रि भगवान शिवजी पर आधारित पौराणिक काल से चाला आ रहा एक भारतीय त्यौहार है। साथ ही इस पोस्ट में हमने भगवान शिव की कहानी भी बताई हैं जिनके विषय में पढ़ कर आपको शिवजी के विषय में और जानकारी मिलेगी।
भगवान शिवजी के याद करते हुए भक्त कहते हैं – ॐ नमः शिवाय
महाशिवरात्रि कब है? When is Maha Shivratri? 2023
18 फरवरी, 2023 को इस वर्ष महाशिवरात्रि का पर्व उत्साह और भक्ति के साथ पुरे भारत में मनाया जायेगा।
महाशिवरात्रि का उत्सव Maha Shivratri Celebration
महाशिवरात्रि एक हिन्दू पर्व या त्यौहार है जो प्रतिवर्ष भगवान शिव के सम्मान में मनाया जाता है। यह दिन हर साल सर्दियों के महीनों के खतम-ख़तम होते-होते फरवरी या मार्च में आता है।
शिवरात्रि का त्यौहार शिव और शक्ति का अभिसरण है। दक्षिण भारतीय कैलेंडर के अनुसार माघ महीने के कृष्ण पक्ष, चतुर्दशी तिथि में महाशिवरात्रि मनाया जाता है।
भारत में महाशिवरात्रि रात के समय मनाया जाता है। इस दिन शिवजी के मंदिरों को बहुत ही सुन्दर तरीके से सजाया जाता है। बड़े शहरों में मंदिरों के रास्तो और मंदिरों को सुन्दर रंगीन लाइट से साजते हैं जो रात के समय बहुत जगमगाते हुए सुन्दर नज़र आता है या प्रभा की तैयारी की जाती है।
मंडी का शिवरात्रि मेला महाशिवरात्रि के उत्सव के लिए सबसे मशहूर स्थान है। मंडी के इस शिवरात्रि मेले में दूर-दूर से शिव भक्त आते हैं। यह माना जाता है कि 200 से भी ज्यादा देवी और देवता महाशिवरात्रि पर वहां होते हैं। यह टाउन व्यास नदी के किनारे स्तिथ है।
यह हिमाचल प्रदेश का सबसे पुराना नगर है जहाँ 81 से ज्यादा अलग-अलग देवी देवताओं के मंदिर हैं। कश्मीर शैव में महाशिवरात्रि बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है। शिवरात्रि त्यौहार भगवान शिव और पारवती के विवाह सालगिराह पर मनाया जाता है। शिवरात्रि के 3-4 दिन पहले से ही यह महोत्सव शुरू हो जाता है और शिवरात्रि के दो दिन बाद भी चलता है।
महाशिवरात्रि को बड़े तौर पर मनाने वाले मंदिर महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिल नाडू, मध्य प्रदेश और तेलन्गाना हैं। वैसे तो पुरे भारत में शिवजी की पूजा सभी शहरों में की जाती है परन्तु मध्य भारत में सबसे अधिक शिव भक्त हैं।
उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर (Mahakaleshwar Temple, Ujjain) शिव जी एक सबसे पवित्र और सम्मानीय धार्मिक स्थलों में से एक माना जाता है। महाशिवरात्रि के दिन यहाँ लाखों श्रद्धालु शिवजी की आराधना और आशीर्वाद पाने के लिए एकत्रित होते हैं।
जबलपुर शहर के तिलवारा घाट(Jabalpur City, Tilwara) और जिओनारा गाँव, सिवनी(Jeonara, Seoni) अन्य ऐसे धार्मिक स्थल हैं जहाँ भी शिवरात्रि का त्यौहार बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है।
काशी, वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर(Varanasi, Bishwanath Temple) में शिव लिंग की पूजा की जाती है जिसे प्रकाश के स्तंभ का प्रतीक माना जाता है और शिवजी को सर्वोच्च ज्ञान का प्रकाश माना जाता है।
महाशिवरात्रि का महापर्व नेपाल में भी बहुत ही श्रद्धा और धूम धाम से मनाया जाता है पर सबसे ज्यादा इसकी धूम पशुपतिनाथ मंदिर(Pashupatinath Temple) में देखा जाता है।
यहाँ हजारों की तगाद में शिव भक्त मशहूर शिव शक्ति पीठ को देखने भी जाते हैं। नेपाली सेना इस अवसर पर भगवान शिव को श्रधांजलि देते हुए काठमांडू शहर के चारों और परेड करते हैं पवित्र मंत्रों का उच्चारण भी करते हैं।
महाशिवरात्रि के रात को कई जगह शास्त्रीय संगीत और नृत्य का आयोजन किया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति के लिए लम्बी उम्र की कामना करती हैं और अविवाहित लडकियां शिव भगवान के जैसा स्वामी पाने के लिए कामना करते हैं।
महाशिवरात्रि की कहानी व कथा Maha Shivaratri Story in Hindi
वैसे तो पुरानों में महाशिवरात्रि के पर्व को मानाने के कारण को दर्शाते कई कहानियाँ पढ़े गए हैं। उनमें से कुछ महत्वपूर्ण शिवजी कहानी आज हम आपको यहाँ बताने जा रहे हैं –
कहानी 1: शिवजी को नीलकंठ क्यों कहते हैं? Why Lord Shiva Called Neelkanth Story?
एक बार की बात है, अमृत की खोज में समुद्र मंथन हुआ। इस समुद्र मंथन में देवता और असुर दोनों ने भाग लिया। समुद्र मंथन के दौरान एक विष का मटका उत्पन्न हुआ। विष के मटके को देख कर देवताओं और असुरों के मन में डर से हाहाकार मच गया क्योंकि उस विष में इतनी शक्ति थी कि पूरा विश्व द्वंस हो सकता था।
सभी देवता मदद मांगने के लिए भगवान शिव के पास पहुंचे। विष के प्रकोप से दुनिया को बचाने के लिए शिवजी ने विषय को पी लिया परन्तु उसे अपने गले से नीचे जाने नहीं दिया। विष की ताकत से शिवजी का गाला नीला पड़ गया। उनका गला नीला पड़ने के कारण शिवजी को नील खंठ नाम से जाना जाता है।
कहानी 2: महाशिवरात्रि पर रात भर पूजा करने का कारण क्या है? Why Devotees Worship whole Night on Maha Shivratri?
एक बार की बात है एक आदिवासी व्यक्ति था। वह भगवान शिव का अपार भक्त था। एक बार वह जंगल में लकडियाँ लेने गया। लकड़ी लेकर आते समय बहुत देर होने के कारण अँधेरा हो गया और वह रास्ता भूल गया। अँधेरे और रास्ता ना दिखने के कारण वह आगे नहीं बढ़ पाया।
ज्यादा रात होने पर जंगली जानवरों की भयानक आवाजें जंगल में सुनाई देने लगी। जंगली जानवरों के डर और उनसे बचने के लिए वह एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गया। नींद आने पर पेड़ से गिरने के डर से बचने के लिए उसने एक तरकीब निकला।
उसने सोचा की वो रात भर उस पेड़ के पस्सों को तोड़ कर नीचे गिरता रहेगा ताकि उसको नींद ना आ सके और ना गिरे। उसने भगवान शिव का नाम लेते हुए एक-एक करके पत्ते तोड़ कर नीचे गिराने लगा।
एसा करते-करते सुबह हो गयी। जिस पेड़ पर वह व्यक्ति बैठा था वह एक बेल का पेड़ था। जब उसने नीचे देखा तो उसे एक लिंग दिखा जिस पर वह हज़ार बेल के पत्ते गिरा चूका था। जिसके कारण शिवजी बहुत खुश हुए और उन्होंने उसे दिव्य आनंद का आशीर्वाद दिया।
यह कहानी महाशिवरात्रि को भक्त रात में सुनते हैं और उस दिन वो सभी उपवास भी करते हैं। रात्रि के कथा उपवास के बाद सभी भक्त शिवजी के प्रसाद ग्रहण करते हैं।
कहानी 3: शिवजी के पूजा में केतकी / केवडा के पुष्प का उपयोग क्यों नहीं होता? Why Ketaki / Kewra flower is not used in Lord Shiva Worship?
सभी हिन्दू देवताओं के पूजा में सुगन्धित पुष्पों का उपयोग होता है। परन्तु क्या आपको पता केतकी / केवड़े के फुल को शिवजी के पूजा में नहीं चढ़ाया जाता है? चलिए जानते हैं।
एक बार की बात है त्रिनाथ में से दो भगवान ब्रह्मा और विष्णु जी में इस बात को लेकर लड़ाई छिड़ जाती है कि उनमें से शक्तिशाली और उच्चतर कौन है? उनके लड़ाई को देख कर सभी देवगण भयभीत हो गए और उन्होंने शिवजी से निवेदन किया कि वो उनकी लड़ाई को किसी भी तरह रोकें।
दोनों की लड़ाई को रोकने के लिए शिवजी ने उन्हें समझाया परन्तु वे ना माने। अंत में शिवजी ने दोनों को रोकने के लिए स्वयं को ब्रह्मा और विष्णु के बिच में एक अग्नि की दीवार बना लिया। सभी देवताओं ने यह नियम बनाया की जो इस अग्नि का छोर (शिवलिंग का छोर) पहले ढूँढेगा वही श्रेष्ट होगा।
दोनों देव विष्णु और ब्रह्मा जी अपनी प्रधानता दिखाने के लिए अग्नि का छोर ढूंडने के लिए निकल पड़े। ब्रह्मा जी ने एक हंस का रूप धारण किया और वो ऊपर की ओर उड़ कर शिवजी द्वारा निर्णित अग्नि की दीवार का अंतिम छोर ढूंडने लगे और विष्णु जी वराह का रूप धारण करके धरती की ओर अग्नि दीवार का अंतिम छोर ढूंडने के लिए निकल पड़े।
परन्तु शिवजी द्वारा निर्मित अग्नि का कोई अंत तो था ही नहीं। तभी ब्रह्मा जी ने देखा कि एक केतकी या केवड़े का फूल ऊपर से गिर रहा है। तभी ब्रह्मा जी ने केवड़े के फूल से प्रश्न किया कि – तुम कहाँ से आ रहे हो। केवड़े के फूल ने उत्तर दिया इस अग्नि के ऊपर के छोर से।
तब ब्रह्मा जी ने उस केतकी फूल को पकड़ कर शकशी के रूप में ले गए। विष्णु जी भी अग्नि का अंतिम छोर ना पाने के कारण वापस लौट आये। वापस आने के बाद ब्रह्मा जी ने असत्य कहते हुए विष्णु जी को बताया कि वो छोर तक पहुँच चुके थे और केतकी / केवड़े का फूल भी वहीँ से वो लेकर आये हैं। इस असत्य बात में केतकी फूल ने भी उनका साथ दिया।
ब्रह्मा जी के असत्य को देखकर शिवजी बहुत क्रोधित हुए और वो वहां प्रकट हुए। शिवजी बोले में ही सृष्टि का उत्पत्तिकर्ता, कारण और स्वामी हूँ। भगवान शिवजी ने ब्रह्मा जी की कड़ी आलोचना करते हुए श्राप दिया और कहा कि कभी भी उनकी कोई पूजा प्रार्थना नहीं करेगा।
शिवजी ने केतकी या केवड़े के फूल को भी असत्य का साथ देने के लिए दण्डित करते हुए कहा की पूजा में कभी भी केतकी के फूलों का उपयोग नहीं किया जायेगा। मात्र एक दिन शिवरात्रि को ही केतेकी फूलों को शिवजी को चढ़ाया जाता है।
जैसे की वो दिन फाल्गुन माह का 14वां आधा अँधेरा दिन था और शिवजी ने स्वयं को लिंग के रूप में धारण किया था इस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
निष्कर्ष Conclusion
कहा जाता है महाशिवरात्रि के दिन उपवास रख कर शिवजी की कथाओं को सुनने और उनकी पूजा करने से जीवन में शेर सारा सुख और समृद्धि आता है। आशा करते हैं आपको महाशिवरात्रि की कहानी व निबंध Mahashivratri Story Essay in Hindi लेख आपको पसंद आया होगा – हरहर महादेव।
very nice article than you sharing with us
bum bum bole… jai mahalkal