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Home » Quotes » मिर्जा ग़ालिब की प्रसिद्ध शायरी 50 Most Popular Mirza Ghalib shayari in Hindi

मिर्जा ग़ालिब की प्रसिद्ध शायरी 50 Most Popular Mirza Ghalib shayari in Hindi

Last Modified: January 4, 2023 by बिजय कुमार Leave a Comment

मिर्जा ग़ालिब की प्रसिद्ध शायरी 50 Most Popular Mirza Ghalib shayari in Hindi

मिर्जा ग़ालिब की प्रसिद्ध शायरी 50 Most Popular Mirza Ghalib Shayari in Hindi

मिर्जा गालिब का पूरा नाम “मिर्जा असद उल्लाह बेग खां” था। वे ग़ालिब के नाम से भी मशहूर थे। वह उर्दू और फारसी भाषा के महान शायर थे।

मिर्जा गालिब को भारत और पाकिस्तान में एक मशहूर कवि के रूप में जाना जाता है। मिर्जा गालिब द्वारा लिखे गए पत्र उर्दू भाषा की महत्वपूर्ण साहित्य सामग्री मानी जाती हैं।

मिर्जा ग़ालिब आखरी मुगल शासक बहादुर शाह जफर के दरबार में कवि थे। उनको उर्दू गजलों के लिए भी जाना जाता है। उन्हें नज़्म-उद-दौला और दबीर-उल-मुल्क का खिताब मिला था। इस लेख में हम आपको मिर्जा गालिब की 50 प्रसिद्ध शायरी के बारे में बताएंगे।

पढ़ें : कबीर के दोहें

मिर्जा ग़ालिब की प्रसिद्ध शायरी 50 Most Popular Mirza Ghalib Shayari in Hindi

शायरी 1

आह को चाहिये इक उम्र असर होते तक

कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक

शायरी 2

गैर ले महफ़िल में बोसे जाम के

हम रहें यूँ तश्ना-ऐ-लब पैगाम के

खत लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो

हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के

इश्क़ ने “ग़ालिब” निकम्मा कर दिया

वरना हम भी आदमी थे काम के

शायरी 3

बाजीचा ए अतफाल है दुनिया मिरे आगे

होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे

शायरी 4

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकले

बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले

शायरी 5

चंद तस्वीर-ऐ-बुताँ , चंद हसीनों के खतूत .

बाद मरने के मेरे घर से यह सामान निकला

शायरी 6

बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना

आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना

शायरी 7

उनको देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक,

वो समझते हैं के बीमार का हाल अच्छा है

इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,

कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे

शायरी 8

फिर तेरे कूचे को जाता है ख्याल

दिल -ऐ -ग़म गुस्ताख़ मगर याद आया

कोई वीरानी सी वीरानी है .

दश्त को देख के घर याद आया

शायरी 9

हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे

कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और

पढ़ें : रहीम के दोहे

शायरी 10

यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं,

अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो

हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,

दिल के खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है

शायरी 11

सादगी पर उस के मर जाने की  हसरत दिल में है

बस नहीं चलता की फिर खंजर काफ-ऐ-क़ातिल में है

देखना तक़रीर के लज़्ज़त की जो उसने कहा

मैंने यह जाना की गोया यह भी मेरे दिल में है

शायरी 12

लाज़िम था के देखे मेरा रास्ता कोई दिन और

तनहा गए क्यों, अब रहो तनहा कोई दिन और

शायरी 13

तेरे वादे पर जिये हम, तो यह जान, झूठ जाना,

कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता

तुम न आए तो क्या सहर न हुई

हाँ मगर चैन से बसर न हुई

मेरा नाला सुना ज़माने ने

एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई

शायरी 14

मेह वो क्यों बहुत पीते बज़्म-ऐ-ग़ैर में या रब

आज ही हुआ मंज़ूर उन को इम्तिहान अपना

मँज़र इक बुलंदी पर और हम बना सकते “ग़ालिब”

अर्श से इधर होता काश के माकन अपना

शायरी 15

काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’

शर्म तुम को मगर नहीं आती

शायरी 16

न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,

डुबोया मुझको होने ने न मैं होता तो क्या होता !

हुआ जब गम से यूँ बेहिश तो गम क्या सर के कटने का,

ना होता गर जुदा तन से तो जहानु पर धरा होता!

शायरी 17

मैं नादान था जो वफ़ा को तलाश करता रहा ग़ालिब

यह न सोचा के एक दिन अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी

शायरी 18

कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वाइज़

पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले

शायरी 19

हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है,

वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता !

शायरी 20

तोड़ा कुछ इस अदा से तालुक़ उस ने ग़ालिब

के सारी उम्र अपना क़सूर ढूँढ़ते रहे

शायरी 21

मेरे कोई दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को

ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता

शायरी 22

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है

तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है

न शोले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा

कोई बताओ कि वो शोखे-तुंदख़ू क्या है

शायरी 23

बे-वजह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिब

जिसे खुद से बढ़ कर चाहो वो रूलाता ज़रूर है

शायरी 24

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का

उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले

शायरी 25

ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न हमसे

वरना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अदू क्या है

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन

हमारी ज़ेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है

शायरी 26

क़ासिद के आते-आते खत एक और लिख रखूँ

मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में

शायरी 27

न था तो कुछ ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता

डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता

शायरी 28

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा

कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल

जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

शायरी 29

फिर उसी बेवफा पे मरते हैं

फिर वही ज़िन्दगी हमारी है

बेखुदी बेसबब नहीं ‘ग़ालिब’

कुछ तो है जिस की पर्दादारी है

शायरी 30

क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ

रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन

शायरी 31

वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त अज़ीज़

सिवाए बादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू क्या है

पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो चार

ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू क्या है

शायरी 32

बाजीचा-ऐ-अतफाल है दुनिया मेरे आगे

होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे

शायरी 33

रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज

मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं

शायरी 34

रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी

तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है

बना है शह का मुसाहिब, फिरे है इतराता

वगर्ना शहर में “ग़ालिब” की आबरू क्या है

शायरी 35

सबने पहना था बड़े शौक से कागज़ का लिबास

जिस कदर लोग थे बारिश में नहाने वाले

अदल के तुम न हमे आस दिलाओ

क़त्ल हो जाते हैं , ज़ंज़ीर हिलाने वाले

शायरी 36

इश्क़ मुझको नहीं वेहशत ही सही

मेरी वेहशत तेरी शोहरत ही सही

कटा कीजिए न तालुक हम से

कुछ नहीं है तो अदावत ही सही

शायरी 37

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल

जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

शायरी 38

ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं

कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते हैं

वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं!

कभी हम उमको, कभी अपने घर को देखते हैं

शायरी 39

लाग् हो तो उसको हम समझे लगाव

जब न हो कुछ भी , तो धोखा खायें क्या

शायरी 40

ज़रा कर जोर सीने पर की तीर -ऐ-पुरसितम् निकले जो

वो निकले तो दिल निकले , जो दिल निकले तो दम निकले

शायरी 41

रेख़्ते के तुम्ही उस्ताद नहीं हो ‘ग़ालिब’

कहते हैं अगले ज़माने में कोई ‘मीर’ भी था

शायरी 42

नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को

ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं

तेरे ज़वाहिरे तर्फ़े कुल को क्या देखें

हम औजे तअले लाल-ओ-गुहर को देखते हैं

शायरी 43

खुदा के वास्ते पर्दा न रुख्सार से उठा ज़ालिम

कहीं ऐसा न हो जहाँ भी वही काफिर सनम निकले

शायरी 44

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता

शायरी 45

तेरी दुआओं में असर हो तो मस्जिद को हिला के दिखा

नहीं तो दो घूँट पी और मस्जिद को हिलता देख

शायरी 46

कितने शिरीन हैं तेरे लब के रक़ीब

गालियां खा के बेमज़ा न हुआ

कुछ तो पढ़िए की लोग कहते हैं

आज ‘ग़ालिब ‘ गजलसारा न हुआ

शायरी 47

लफ़्ज़ों की तरतीब मुझे बांधनी नहीं आती “ग़ालिब”

हम तुम को याद करते हैं सीधी सी बात है

शायरी 48

थी खबर गर्म के ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्ज़े ,

देखने हम भी गए थे पर तमाशा न हुआ

शायरी 49

दिल दिया जान के क्यों उसको वफादार , असद

ग़लती की के जो काफिर को मुस्लमान समझा

शायरी 50

इस नज़ाकत का बुरा हो , वो भले हैं तो क्या

हाथ आएँ तो उन्हें हाथ लगाए न बने

कह सके कौन के यह जलवागरी किस की है

पर्दा छोड़ा है वो उस ने के उठाये न बने

Filed Under: Dohe and Chaupai, Quotes Tagged With: Rahim Ke Dohe for Class 7 in Hindi, कबीर दास के दोहे, रहीम दास के दोहे हिंदी अर्थ सहित

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नमस्कार रीडर्स, मैं बिजय कुमार, 1Hindi का फाउंडर हूँ। मैं एक प्रोफेशनल Blogger हूँ। मैं अपने इस Hindi Website पर Motivational, Self Development और Online Technology, Health से जुड़े अपने Knowledge को Share करता हूँ।

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