ओशो रजनीश का जीवन परिचय Osho Rajneesh Biography in Hindi
प्रसिद्ध नाम – ओशो (Osho)
अन्य नाम – भगवान् श्री रजनीश, आचार्य रजनीश, और चन्द्र मोहन जैन (Bhagwan Shree Rajneesh, Acharya Rajneesh, and Chandra Mohan Jain)
राष्ट्रीयता – भारतीय (Indian)
जन्म – 11 दिसम्बर, 1931 कुच्वाडा गाँव, बरेली तहसील, रायसेन, भोपाल राज्य, ब्रिटिश भारत – जो आज के दिन मध्य प्रदेश, भारत है (Kuchwada Village, Bareli Tehsil, Raisen Distt. Bhopal State, British India (modern day Madhya Pradesh, India)
मृत्यु – 19 जनवरी, 1990 पूना, महाराष्ट्र, भारत
प्रसिद्ध होने का कारण – सबसे विवादास्पद आध्यात्मिक नेताओं और जनता के वक्ताओं में से एक।
ओशो रजनीश का जीवन परिचय Osho Rajneesh Biography in Hindi
ओशो रजनीश हिंदी Osho Rajneesh Short Wiki Hindi
ओशो एक भारतीय रहस्यवादी, गुरु और शिक्षक थे जिन्होंने ध्यान के लिए अध्यात्मिक अभ्यास बनाया था। वे एक विवादित नेता तो हैं पर पुरे विश्व में उनके लाखों अनुयायी हैं और हजारों की तागाद में उनके विरोधी भी थे।
वे एक प्रतिभाशाली वक्ता थे और किसी भी प्रकार के विषयों में अपने विचार व्यक्त करने में थोडा भी नहीं झिजकते थे। यहाँ तक की उन्हें रूढ़िवादी समाज द्वारा निषेध भी माना जाता है।
उनका जन्म एक उच्च परिवार में हुआ था और बाद में वे अपने दादा-दादी के साथ रहने लगे। उनके दादा-दादी से ही उनके मन में एक नेतृत्व और नेता बनने का विचार उत्पन्न हुआ।
वे एक विद्रोही किशोर के रूप में बड़े हुए और समाज के मौजूदा धर्मों, संस्कृतियों और समाज पर कई सवाल उठाये। वे सर्व धर्म सम्मलेन में सार्वजानिक रूप से बोलने की रूचि रखते थे और हर बार ओपने विचार व्यक्त करते थे।
उन्होंने 21 वर्ष की आयु में रहस्यमयी तरीके से अध्यात्मिक ज्ञान के अनुभव का दावा भी किया और उसी के बाद उन्होंने अपने प्रोफेसर की नौकरी छोड़ दी और उन्होंने अध्यात्मिक ज्ञान के गुरु के रूप में अपना कार्य शुरू कर दिया। ना सिर्फ भारत में बल्कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी उन्होंने एक लोकप्रिय अध्यात्मिक गुरु के रूप मैं स्वयं को साबित किया।
बचपन और प्रारंभिक जीवन Childhood and Starting Life
उनका जन्म चन्द्र मोहन जैन के नाम से दिसम्बर 11, 1931 को कुच्वाडा, मध्यप्रदेश में हुआ था। अपने 11 भाई बहनों में वे सबसे बड़े थे। उनके माता का नाम सरस्वती जैन और पिता का नाम बाबूलाल जैन था। उनके पीर एक कपड़ों के व्यापारी थे। उन्होंने अपना बचपन अपने दादा-दादी के साथ बिताया।
वे जबलपुर के हितकारिणी कॉलेज में पढाई कर रहे थे और उन्होंने एक प्रशिक्षक के साथ बहस किया जिसके कारण उन्हें वहां से निकाल दिया गया। उसके बाद 1955 में उन्होंने डी. एन. जैन कॉलेज से फिलोसोफी में B.A पूरा किया।
अपने छात्र जीवन से ही वे लोगों के समक्ष भाषण देना शुरू कर दिया था। उन्होंने बाद में 1957 में यूनिवर्सिटी ऑफ़ सागर से 21 वर्ष की आयु में फिलोसोफी में M.A डिस्टिंक्शन के साथ साथ पास किया।
अध्यात्मिक जीवन और कैरियर Spiritual Life and Career / Osho Meditation
वे 1958 में जबलपुर यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र के लेक्चरर बने और बाद में 1960 में उन्हें प्रोफेसर के पद पर प्रमोट कर दिया गया।
ओशो की किताब – संभोग से समाधि की ओर
अपने शिक्षक होने के साथ-साथ वे पुरे भारत के राज्यों में “आचार्य रजनीश” के रूप में जाकर अपने अध्यात्मिक भाषण दिया करते थे। उन्होंने समाजवाद का विरोध किया और महसूस किया कि भारत मात्र पूंजीवाद, विज्ञानं, प्रोद्योगिकी और जन्म नियंत्रण के माध्यम से ही समृद्ध हो सकता है।
उन्होंने अपने भाषणों में कई प्रकार के मुद्दों को उठाया जैसे उन्होंने रुढ़िवादी भारतीय धर्म और अनुष्ठानों की आलोचना की और कहा सेक्स(Osho Quote on Sex) अध्यात्मिक विकास को प्राप्त करने की दिशा में पहला कदम है। इस भाषण के कारन उनकी बहुत आलोचना हुई पर इसकी वजह से उन्होंने और भी लोगों को अपने विचारों की ओर आकर्षित किया।
उसके बाद आमिर व्यक्ति उनसे अध्यात्मिक विकास पर विचार करने के लिए आने लगे और उन्होंने बहुत दान भी किया और साथ ही उनके इस कार्य में भी वृद्धि हुई।
1962 में वे 3-10 दिन के ध्यान शिविर(Osho Meditation) करने लगे और जल्द ही ध्यान केन्द्रित करना उनकी शिक्षाओं में जाना-जाने लगा।
अगर हम खुले मन से सोचें तो वे एनी अध्यात्मिक नेताओं पूरी तरीके से अलग थे। 1960 के दशकों तक वे एक प्रमुख अध्यात्मिक गुरु बन गए थे और 1966 में उन्होंने अपने शिक्षण नौकरी को छोड़ कर खुद को पूर्ण रूप से आध्यात्मिकता के लिए समर्पित करने का निर्णय लिया। 1970 में उन्हें हिन्दू नेताओं नेंकंद के तहत भारतीय प्रेस द्वारा “सेक्स गुरु” का नाम करार दिया।
1970 में उन्होंने अपने सक्रीय धयन विधि (Dynamic Meditation method) को लोगों के सामने रखा और बताया की यह दिव्यता का अनुभव करने के लिए सक्षम बनाता है। उसी वर्ष वे बम्बई चले गए और अपने पहले समूह की शुरुवात की। इसी बिच उनसे पश्चिम से भी अनुने जुड़ने लगे थे और 1971 में उनका नाम “भगवान् श्री रजनीश” के रूप में जाना जाने लगा।
उनका कहना था कि ध्यान को हम हर एक पल बनाये रख रकते हैं बस हमको उसके लिए जागरूकता बनाये रखना होगा।
उनके गतिशील ध्यान तकनीक जैसे कुण्डलिनी (Shaking) और नदब्रह्मा (Humming) सहित 100 अन्य तरीकों से पढ़ा जाता है।
उसके बाद उन्होंने नव-सन्यास या शिष्यत्व में चाहने वालों के के लिए अपना भाषण तैयार किया। 1974 में वे पूना चले गए क्योंकि बम्बई में उनकी हालत कुछ ठीक नहीं थी। वे पूना में 7 वर्ष रहे और साथ ही उन्होंने वहां अपने समुदाय का विस्तार भी किया।
उन्होंने लगभग प्रतिदिन सुबह एक 90 मिनट का एक प्रवचन दिया जिसमे उन्होंने योग, जैन, ताओ धर्म, तंत्र, सूफी धर्म के सभी अध्यात्मिक अंतर्दृष्टि की पेशकश की।
उनके प्रवचन हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओँ में एकत्र किया गया है जो 600 से अधिक खण्डों में प्रकाशित और 50 भाषाओँ में अनुवाद किया गया है। उनके समुदाय में चिकित्सा समूह ने दुनिया भर के चिकित्सकों को आकर्षित किया।
भगवान श्री रजनीश उनके अनुनायियों द्वारा सम्मानित किये जाते थे पर समाज के अधिक रुढ़िवादी गुटों द्वारा उन्हें विवादस्पद माना जाता था। स्थानीय सरकार ने भी उनके अशर्म के गतिविधियों पर अंकुश लगाने की कोशिश की ज्सिके कारन उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा और मुश्कें बढ़ने के कारण उन्होंने अपने आश्रम को स्थान्तरित करने का फैसला किया।
वे अपने 2000 शिष्यों के साथ अमरीका चले गए और 1981 में वे 100 वर्ग मिल जगह में बस गए। वहां उन्होंने अपने चेलों के साथ अपना स्वयं का शहर बनाना शुरू किया जिसे रजनीशपुरम बुलाया गया। वहां उन्होंने सफलता पूर्वक अपना समुदाय नार्मण किया और हजारों की तागाद में प्रतिवर्ष उनके आश्रम में श्रद्धालु आने लगे।
1980 के दौरान वे अपना ज्यदातर समय अकेले बिताने लगे और उनके 1981 -1984 के उनके भाषण विडियो में संग्रह किया गया है। उसी समय उनके समुदाय और वहां के गवर्नमेंट के बिच मुश्किलें बढ़ने लगी। पता चला की उनके समुदाय के कुछ लोग मतदाता धोखाधड़ी करने के लिए, और हत्या जैसे गंभी अपराध में शामिल पाए गए। पुलिस से बचने के लिए कुछ समुदाय के लोग भाग भी गए पर 1985 में उन्हें पकड़ लिया गया और उनके पुरे समुदाय को सयुक्त राज्य अमरीका छोड़ने को कहा गया।
उसके बाद कुछ महीनों के लिए ओशो ने नेपाल, आयरलैंड, उरुग्वे और जमैका सहित दुनिया भर के कई देशों की यात्रा की पर उन्हें वहां लम्बे समय रूकने की मनाही थी।
भारत में उनका वापस लौटना और उनकी मृत्यु Osho Return to India and Death
वे अपने भारत के अशर्म 1987 में वापस आये और वे दोबारा लोगों को अपने ध्यान का पाठ पढ़ाया। फरवरी 1989 उन्होंने अपना नाम ओशो रजनीश (Osho Rajneesh) रखा और बाद में ओशो (Osho) सितम्बर के महीने में उसी वर्ष।
19 जनवरी 1990 को 58 वर्ष की आयु में हार्ट अटैक में उनकी मृत्यु हो गयी। उनके पुणे के आश्रम को Osho International Meditation Resort के नाम से जाना जाता हैं जहाँ आज के दिनों में 2 लाख से भी अधिक पर्यटक पुरे विश्व से प्रतिवर्ष आते हैं।
10 thoughts on “ओशो रजनीश का जीवन परिचय Osho Rajneesh Biography in Hindi”
Dynamic story
Nice
I really like you in God and my name is also osho singh
Oho is man who can real knowledge of dharma
Osho rajneesh ji NE sansar ko Jo gyan Diya woh bahut amulya hai…
Osho conducted 8 to 10 camps at Mount Abu, which are not mentioned in his Biography. It was during around 1970 to 1972.
Osho is super natural power…
I,m very impressed…
best presion best biography
Best ever
ओशो एक सुनामी की लहर की तरह आए और चले गए ।