संत रविदास की जीवनी Life History of Sant Ravidas in Hindi
इस लेख में संत गुरु रविदास की जीवनी Sant Guru Ravidas Ji Life History in Hindi आप पढ़ सकते हैं।
संत रविदास की जीवनी Life History of Sant Ravidas in Hindi
इसमें आप रविदास जी कौन थे, प्रारम्भिक जीवन, शिक्षा, वैवाहिक जीवन, सामाजिक मुद्दे, मृत्यु के विषय में पूरी जानकारी दी गयी है।
संत गुरु रविदास जी कौन थे? Who was Sant Ravidas Ji?
श्री संत गुरु रविदास जी 15वें सदी के एक महान संत, दार्शनिक, कवि, समाज सुधारक और भगवान के अनुनायी थे।
वो एक बहुत ही महान निर्गुण संप्रदाय के संत थे जिन्होंने उत्तर भारतीय भक्ति आंदोलन का नेतृत्व किया था। उन्होंने कई भक्ति और सामाजिक संदेशों को अपने लेखन के माध्यम से अपने भक्तों, अनुनायियों, समुदाय और समाज के लोगों के लिए इश्वर के प्रति प्रेम भाव को दर्शाया।
संत रविदास जी लोगों के लिए मसीहा के रूप में एक व्यक्ति थे जिन्हें लोग पूजते थे। उनके जन्म महोत्सव के दिन लोग महान धार्मिक गीतों, दोहों और पदों को रात दिन आज भी सुनते हैं।
वैसे तो उनको पुरे विश्व भर में सम्मान दिया जाता है परन्तु उत्तर प्रदेश, पंजाब, और महाराष्ट्र में उनके भक्ति आंदोलन और भक्ति गीत को कुछ अलग ही अच्छा सम्मान दिया जाता है।
संत गुरु रविदास जी जयंती कब मनाया जाता है When Sant Guru Ravidas Jayanti is Celebrated?
संत गुरु रविदास जी जयंती प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा, पूर्ण चन्द्रमा के दिन बहुत ही उत्साह के साथ भारत में मनाया जाता है।
वनारस के लोग इस मौके पर बहुत सारे सुन्दर कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं और इस दिन को एक त्यौहार के जैसे मनाते हैं। हरयाणा, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में भी इस दिन को बहुत ही सुन्दर रूप से मनाया जाता है।
10 फरवरी, 2017 को संत गुरु रविदास जी का 640वां जयंती मनाया जाएगा।
प्रतिवर्ष वाराणसी में “श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर, सीर गोवेर्धनपुर, वाराणसी” में इस दिन को बहुत ही भव्य रूप से मनाया जाता है जहाँ पुरे विश्व भर से लोग इस महोत्सव में भाग लेने के लिए आते हैं।
संत गुरु रविदास जी के विषय में कुछ बातें About Sant Ravidas in Hindi
जन्म: 1377 AD सीर गोवेर्धनपुर, वाराणसी
पिता: श्री संतोख दस् जी
माता: श्रीमती कलसा देवी जी
दादा: श्री कालू राम जी
दादी: श्रीमती लखपति जी
पत्नी: श्रीमती लोना जी
पुत्र: विजय दस् जी
मृत्यु: वाराणसी 1540 A.D
गुरु रविदास जी का प्रारंभीक जीवन Early Life of Guru Ravidas Ji in Hindi
रविदास जी का जन्म 15वें सताब्दी के एक दलित परिवार में वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनकी माता का नाम माता कलसा देवी जी था और उनके पिता का नाम संतोख दास जी था।
हलाकि उनका सही जन्म तिथि आज तक मालूम नहीं लग पाया है परन्तु अनुमान लगाया जाता है की उनका जन्म 1376, 1377, और 1399 के बिच हुआ था।
उनके पिता राजा नगर मल के राज्य में सरपंच थे और उनके खुद का जूता बनाने और ठीक करने का व्यापार भी था। रविदास जी बहुत ही निडर थे और बचपन से ही भगवान के प्रति भक्ति उनके ह्रदय में थी।
उनको बहुत सारे उच्च जातियों द्वारा बनगए नियमों और मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा था जिसका ज़िक्र उन्होंने अपने लेखों में भी किया है।
उच्च जाती के लोगों और ब्राह्मणों ने उनकी शिक्षा के समय राजा के समय भी यह शिकायत किया की इस दलित व्यक्ति को भगवान का नाम लेने के लिए मना किया जाये।
गुरु रविदास जी की शिक्षा Education of Guru Ravidas Ji
बचपन में रविदास जी अपने गुरु, पंडित शारदा नन्द पाठशाला में पढने के लिए गए परन्तु कुछ उच्च जाति के लोगों द्वारा उन्हें वहां पढने के लिए मन किया गया।
परन्तु उनके विचारों को देख पंडित शारदा नन्द को भी यह एहसास हुआ की रविदास जी बहुत ही प्रतिभाशाली हैं और उन्होंने रविदास जी को पाठशाला में दाखिला दे दिया और उन्हें पढ़ाने लगे।
रविदास जी बहुत ही अच्छे और बुद्धिमान बच्चे थे और पंडित शारदा नन्द से शिक्षा प्राप्त करने के साथ वो एक महान समाज सुधारक बने। पाठशाला में पढाई करते हुए पंडित शारदा नन्द जी का पुत्र उनका मित्र बन गया।
एक दिन दोनों छुपान-छुपी खेल रहे थे। खेल में दोनों एक-एक बार जित चुके थे। शाम हो जाने के कारण दोनों ने अगले दिन फिर खेलने का मन बनाया। अगले दिन पंडित शारदा नन्द का पुत्र खेलने नहीं आया।
जब बहुत देर तक वह नहीं आया तो रविदास जी उनके घर गए। जब वे घर पहुंचे तो उन्हें पता चला की उनके मित्र की मृत्यु हो गयी है।
सभी लोग उनके मित्र की लाश के चारों और बैठ कर रो रहे थे। तभी रविदास जी पंडित शारदा नन्द जी के पुत्र के शारीर के पास जाकर वो बोले – अभी सोने का समय नहीं है, चलो छुपान-छुपी खेलें।
यह शब्द सुनते ही वह जीवित हो गया। गुरु रविदास जी को भगवान से मिली शक्तियों के कारण उनके शब्दों से वह बच्चा जीवित हो गया। सब कोई यह देख कर अचंभे में पड़ गए।
गुरु रविदास जी का वैवाहिक जीवन Marriage Life Of Guru Ravidas Ji
भगवान् के प्रति उनका घनिष्ट प्रेम और भक्ति के कारण वो अपने पारिवारिक व्यापार और माता-पिता से दूर हो रहे थे। यह देख कर उनके माता-पिता ने उनका विवाह श्रीमती लोना देवी से करवा दिया और उनसे उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम था विजय दास।
विवाह के बाद भी वो अपने परिवार के व्यापार में सही तरीके से ध्यान नहीं लगा पा रहे थे। यह देख कर उनके पिता ने एक दिन उन्हें घर से निकल दिया यह देखने के लिए की कैसे गुरु रविदास जी अपने परिवार की मदद के अपने सामजिक कार्यों को कर सकते है। इसके बाद वो अपने घर के पीछे रहने लगे और अपने सामजिक कार्यों को करने लगे।
बाद में गुरु रविदास जी राम रूप के भक्त बन गए और राम, रघुनाथ, रजा राम चन्द्र, कृष्णा, हरी, गोविन्द के नामों का उच्चारण करके भगवान के प्रति अपनी भावना व्यक्त करने लगे।
गुरु रविदास जी और बेगमपुर शहर Guru Ravidas Ji and Begumpura City
संत गुरु रविदास जी ने बेगमपुर शहर का बीड़ा उठाया और लोगों को सही मार्ग दिखया। बेगमपुर शहर को उन्होंने एक आदर्श शहर के रूप में अपने दोहों में बताते हुए एक बिना मुश्किलों का, बिना डर का, बिना किसी जाति भेदभाव और गरीबी वाला, शहर बताया है। और एक ऐसा जगह कहा है जहाँ – ना कोई कर देता है, ना कोई चिंता है, और ना ही कोई दहशत है।
गुरु रविदास जी और मीरा बाई Guru Ravidas Ji and Meera Bai
संत गुरु रविदास जी को मीरा बाई का अद्यात्मिक गुरु कहा जाता है। मीरा बाई चित्तूर के राजा और राजस्थान के राजा की बेटी थी। वो गुरु रविदास जी के सुविचारों से बहुत ज्यादा प्रभावित हुई थी और उन्होंने उनका सम्मान करते हुए कुछ पंक्ति भी लिखे थे –
गुरु मिल्या रविदास जी दिनी ज्ञान की गुटकी ।
चोट लगी निजनाम हरी की म्हारे हिवरे खटकी ।।
मीरा बाई अपने दादा जी के साथ गुरु रविदास जी से मिल पाई और उनके अध्यात्मिक विचारों से बहुत प्रभावित हुई।
उसके बाद वो गुरु रविदास जी की सभी धार्मिक प्रवचनों को सुनने जाने लगी। इससे वो परमात्मा की भक्ति में लीं हो गयी और भक्ति गीत गाने लगीं।
गुरु रविदास जी के कुछ सामाजिक मुद्दे Some Social Topics About Ravidas in Hindi
उन्हें भगवान् ने पृथ्वी पर असली सामाजिक और धार्मिक कार्यों को पूरा करने के लिए भेजा था और मनुष्यों द्वारा बनाये गए सभी भेदभावों को दूर किया जा सके। गुरु रविदास जी को कर्म के प्रति महान कार्यों के लिए जाना जाता है।
उनके समय में दलित लोगों को बहुत ही ज्यादा नज़र अंदाज़ किया जाता था और उन्हें समाज में अन्य जाति के लोगों से दूर किया जाता था। उन्हें मंदिरों में पूजा करने के लिए नहीं जाने दिया जाता था और बच्चों को स्कूलों में भी भेद भाव किया जाता था।
ऐसे समय में गुरु रविदास जी ने दलित समाज के लोगों को एक नया अध्यात्मिक सन्देश दिया जिससे की वो इस तरीके की मुश्किलों से लड़ सकें।
सिख धर्म के लिए गुरु रविदास जी का योगदान Contribution of Sant Guru Ravidas Ji to Sikhism
उनके पद, भक्ति संगीत और अन्य लिखे हुए 41 छंद पवित्र गुरु ग्रन्थ साहिब में लिखा गया है। सिख धर्म में दलितों के एक बड़े समुदाय के लोग रविदासिया हैं।
गुरु रविदास जी धर्म के नाम पर चल रहे अंधविश्वास, नाटक और कर्मकांड को निरर्थक मानते थे। उनकी भक्ति-साधना में भावुकता, विनम्रता और प्रेम की झलक मिलती है।
गुरु ग्रन्थ साहिब में उल्लेख किये फाये गुरु रविदास जी के पवित्र लेख
सीरी – 1
गौरी – 5
असा – 6
गुजारी – 1
सोरथ – 7
धनासरी – 3
जैतसरी – 1
सूही – 3
बिलावल – 2
गौंड – 2
रामकली – 1
मरू – 2
केदार – 1
भैरू – 1
बसंत – 1
मल्हार – 3
गुरु रविदास जी हमेशा अपने शिष्यों को कहते थे की कभी भी धन के लिए लालची ना बनें। धन स्थाई नहीं है, इससे अच्छा है कड़ी मेहनत करिए और जीने के लिए कमायें।
गुरु रविदास जी और ब्रहामणों की कहानी
एक बार की बात है गुरु रविदास जी को कशी नरेश के दरबार में बुलाया गया। ब्राहमणों ने उनपर यह शिकायत किया था कि गुरु जी एक पाखंडी हैं और उन्हें भगवान की पूजा तो दूर भगवान को छूना भी नहीं चाहिए।
उसके बाद राजा ने गुरु रविदास जी और ब्रहामणों से कहा कि आप दोनों अपने ठाकुर जी की मूर्ति ले कर गंगा नदी के किनारे आयें। जिसके भगवान की मूर्ति पानी में तैरेगी और नहीं डूबेगी वही सच्चा भक्त है।
ब्रहामण लोग एक छोटा मूर्ति लाये जिसे उन्होंने रुई से धक् रखा था। गुरु रविदास जी 40 किलो का मूर्ति लेकर आये थे चौकोर बना हुआ था। सबसे पहले ब्रहामणों ने अपना मूर्ति पानी में छोड़ा, पर मूर्ति झट से पानी में डूब गया। उसके बाद गुरु रविदास जी ने ठाकुर जी के मूर्ति को धीरे से पानी में छोड़ा और वो तैरने लगा।
यह देख कर लोग गुरु रविदास जी के पैर छूने लगे और उस दिन से कशी नरेश के साथ-साथ बाकी लोग भी गुरु जी का सम्मान करने लगे।
उनके हाथों में कुष्ठ रोग को ठीक करने की शक्ति – कहानी God Gifted Power to Treat Leprosy
कहते हैं गुरु जी अपने पास रखे एक मटके का पवित्र पानी लोगों को पीने के लिए देते थे। एक बार एक धनि सेठ ने उस पानी को पीने का नाटक करते हुए अपने पीछे फैंक दिया जो उसके कपडे में गिर गया।
जब वह सेठ अपने घर गया उसने उन कपड़ों को एक कुष्ट रोगी को दान दे दिया। जब उस कुष्ट रोगी ने उस कपडे को पहना कहते हैं वह बहुत जल्द रोग मुक्त हो गया। पर वह सेठ कुष्ट रोग से पीड़ित हो गया और बहुत चिकित्सा करवाने पर भी वह ठीक ना हो पाया।
अंत में वह भी गुरु रविदास जी के पास गया और गुरु से उसने क्षमा मांगी। गुरु जी ने उस सेठ को क्षमा कर दिया और अपने आशीर्वाद से उस सेठ को जल्दी ही ठीक कर दिया।
कुंभ महोत्सव की एक घटना – कहानी A Incident of Kumbh Festival
एक बार की बात है, पंडित गंगा राम , गुरु रविदास जी से मिले और उन्हें सम्मानित किया। वो कुम्भ मेला जा रहे थे, तो गुरु जी ने गंगा राम को एक छोटा सा सिक्का दिया और कहा कि उसे माता गंगा के हांथों में दे कर आना। उन्होंने वह सिक्का ले लिया और वो हरिद्वार चले गए। वो गंगा में नहाये और सिक्के को बिना दिए ही वापस आ रहे थे।
तभी रास्ते में वो बेहोश हो गए और जब उनकी आँख खुली तो उन्हें याद आया की वो सिक्के को माता गंगा को देना तो भूल गए।
वो दोबारा गंगा नदी के पास गए और ज़ोर-ज़ोर से माता-गंगा, माता-गंगा चिल्लाने लगे, तभी माता गंगा प्रकट हुई और पंडित गंगा राम ने उन्हें वह सिक्का दे दिया। बदले में माता गंगा ने गुरूजी के लिए एक सोने का चूड़ा/कंगन उपहार में दिया।
गंगा राम ने वह चूड़ा, गुरु रविदास जी को ना देकर अपनी पत्नी को दे दिया। एक दिन उसकी पत्नी कंगन को लेकर बेचने के लिए गयी। पर चालाक व्यापारी ने उस कंगन को महाराज और महारानी को दिखाया। पर राजा और रानी ने उस कंगन के साथ दुसरे हाँथ के कंगन को लाने के लिए कहा।
उसके बाद पंडित को बहुत धुक हुआ और ऐसा गलत कार्य करने के कारण वह लज्जित भी हुआ। उसके बाद वो गुरु रविदास जी के पास गया और अपने गलती की माफ़ी मांगी। उन्होंने उसे दोहे में समझाते हुए कहा –
मून चंगा तो कठौती में गंगा
यानि की कंगन का दूसरा जोड़ा तुमको इस पानी के मटके में मिलेगा क्योंकि यहाँ पर भी गंगा स्थित हैं। गुरु जी के इस शक्ति को देख कर सब कोई अचंभे में पड़ गए।
बाबर और गुरु रविदास जी Babur and Guru Ravidas Ji
इतिहास के अनुसार कहा जाता है बाबर , मुग़ल साम्राज्य का प्रथम राजा था। वो गुरु रविदास जी के अध्यात्मिक शक्ति को जानते थे और एक दिन वो हुमायु के साथ उनसे मिलने गए।
जसी ही उन्होंने गुरु रविदास जी के पैर छुए उन्होंने आशीर्वाद देने के बजाये उन्हें दण्डित कर दिया क्योंकि बाबर ने कई मासूम लोगों की जान ली थी। उसके बाद बाबर के मन में बदलाव आया और वो दिल्ली और आगरा के लिए अच्छे सामाजिक कार्यों में लग गए।
संत गुरु रविदास जी की मृत्यु कैसे हुई? Death of Sant Ravidas Ji
उनके कुछ अनुनायियों का कहना है की उनकी मृत्यु प्राकृतिक रूप से 120-126 वर्ष की आयु में हुई। हलाकि कुछ लोगों का मानना है उनकी मृत्यु 1540 AD को उनके जन्म स्थान वाराणसी में हुआ था।
Jai gurdev ji
bahut hi achhi jankari di hai padhakar bahut achha lga
bahut hi achhi jankari hai
I belive in Sant Ravidass ji. Follow Ravidasia Dharam and make life easy.
मुझे आपकी दी गई श्री गुरु रविदास महाराज की जीवनी जान कारी आछी लागी
बहुत सुंदर कहानी है
Bahumulaya jankari I respect saint Ravidass ji
Jai Gurdev Dhan Gurdev Ji
Sant Shri Guru Ravidass Maharaj Ki Jai
Very nice
Sant guru ravidas ji Maharaj ki Jai Jo
Shri guru ravidas ji Maharaj ji ki jai
Sharing guru ravidas Ji maharaj ki jai guru ravidas shakti amar rahe
I AM VERY HAPPY TO THE LIFE OF SHRI GURU RAVIDAS JI .HE IS VERY VERY GREAT GURU OF HINDU DHARMA AND CHAMAR PEOPLE
Jai guru ravidass ji maharaja
Information given in the blog is totaly wrong…You have told the fake incidents ..
guru ravidas bhagwan ke rup me aye the
very nice history guru ravidas ki g
JAI GURU DEV JAI HO SHRI GURU RAVIDAS ji MAHARAJ
जय गुरु रविदास जी
Bhut hi sunder jivni hai guru baba Ravi das ji ka
Jai ho guru Ravi dass ji mharajj
Itne mahan sant thhe.sant Ravidas ko sat sat naman karta hu
Jo aapne jankari di aapko mai tahe dil se Naman karta hu