मीरा बाई के पद (दोहे) अर्थ सहित Meera Bai Ke Pad with Meaning in Hindi

इस लेख में मीरा बाई के पद व दोहे हिन्दी अर्थ सहित (Meera Bai Ke Pad with Meaning in Hindi) शामिल किया गया है। मीराबाई से आज कौन नहीं अवगत होगा अगर प्रेम की बात करें तो उनके जैसा शुद्ध प्रेम की परिभाषा कोई नहीं दे सका है।

मीराबाई (Mirabai) जी ने सैंकड़ो दोहों और गीतों को रचा है यह लेख उनके सैकड़ों कृतियों में से कुछ Best Meera bai dohe को इस लेख में शामिल किया जा रहा है। हर दोहे के अर्थ को एकदम सरल और आकर्षक ढंग से लिखा गया है।

आईये जानते हैं – मीरा बाई के पद (Meera Bai Ke Pad)

मीराबाई द्वारा रचित सर्वश्रेष्ठ पद व दोहे Best Meera Bai Pad and Dohe in Hindi

1. माई री! मै तो लियो गोविन्दो मोल।
कोई कहे चान, कोई कहे चौड़े, लियो री बजता ढोल।।
कोई कहै मुन्हंगो, कोई कहे सुहंगो, लियो री तराजू रे तोल।
कोई कहे कारो, कोई कहे गोरो, लियो री आख्या खोल।।
याही कुं सब जग जानत हैं, रियो री अमोलक मोल।
मीराँ कुं प्रभु दरसन दीज्यो, पूरब जन्म का कोल।।

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

इस पद में मीरा बाई अपनी सखी से कहती हैं- माई मेने श्री कृष्ण को मोल ले लिया हैं। कोई कहता हैं, अपने प्रियतम को चुपचाप बिना किसी को बताए पा लिया हैं। कोई कहता हैं, खुल्लम खुला सबके सामने मोल लिया हैं।

मै तो ढोल-बजा बजाकर कहती हूँ बिना छिपाव दुराव सभी के सामने लिया हैं। कोई कहता हैं, तुमने सौदा महंगा लिया हैं तो कोई कहता हैं सस्ता लिया हैं। अरे सखी मेने तो तराजू से तोलकर गुण अवगुण देखकर मौल लिया हैं। कोई काला कहता हैं तो कोई गोरा मगर मैने तो अपनी आँखों को खोलकर यानि सोच समझकर कृष्ण को खरीदा हैं।

2. मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों न कोई।
जाके सिर मोर मुकट मेरो पति सोई।।

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

इस दोहे में मीराबाई जी कहती हैं की मेरे तो मात्र श्री कृष्ण हैं जिन्होंने उंगली पे पर्वत उठाकर गिरधर नाम पाया उनके अलावा मैं किसी को अपना नहीं मानती। जिनके मस्तक पर मोर मोकुट शोभित है वही हैं मेरे पति।

3. मन रे परसी हरी के चरण।
सुभाग शीतल कमल कोमल।
त्रिविध ज्वालाहरण।
जिन चरण ध्रुव अटल किन्ही रख अपनी शरण।
जिन चरण ब्रह्माण भेद्यो नख शिखा सिर धरण।
जिन चरण प्रभु परसी लीन्हे करी गौतम करण।
जिन चरण फनी नाग नाथ्यो गोप लीला करण।
जिन चरण गोबर्धन धर्यो गर्व माधव हरण।
दासी मीरा लाल गिरीधर आगम तारण तारण।
मीरा मगन भाई।
लिसतें तो मीरा मगनभाई।।

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

श्याम दीवानी मीराबाई उपरोक्त दोहे में अपने भक्ति को उनके आराध्य के प्रति समर्पित करते हुए करती हैं, कि अब इस सांसारिक मोह माया से मेरा मन बिल्कुल नहीं लगता। मैंने सभी मोह माया को तोड़कर केवल कृष्ण भक्ति का मार्ग चुना है। मेरे प्रभु कुंज बिहारी का मन बहुत ही दयालु और शीतल है, जिनके चारों तरफ ध्रुव स्थित है।

जो पृथ्वी सहित पूरे ब्रह्मांड के नियंत्रक हैं, तथा स्वयं शेषनाग भगवान जिनके चरणों में स्थित है ऐसे परम ब्रह्मा तेजस्वी जिन्होंने गोवर्धन पर्वत को उठाया था। मैं उन प्रभु की दासी मीरा सदैव अपना मन कृष्ण चरणों में अर्पित करती हूं। मेरा मन अब कृष्ण की लीलाओं के अलावा और कहीं भी नहीं लगता है।

4. मनमोहन कान्हा विनती करूं दिन रैन।
राह तके मेरे नैन।
अब तो दरस देदो कुञ्ज बिहारी।
मनवा हैं बैचेन।
नेह की डोरी तुम संग जोरी।
हमसे तो नहीं जावेगी तोड़ी।
हे मुरली धर कृष्ण मुरारी।
तनिक ना आवे चैन।
राह तके मेरे नैन ……..
मै म्हारों सुपनमा।
लिसतें तो मै म्हारों सुपनमा।।

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

इस दोहे में मीराबाई श्री कृष्ण से उनके दर्शन देने की प्रार्थना कर रही है। वह कहती हैं, कि हे प्रभु! आपकी राह देखते हुए मुझे बहुत समय गुजर गया है, अब मेरी आंखें आपके दर्शन के लिए बेचैन हो गई है। मुझे अपने जीवन में केवल आपके दर्शन की एकमात्र ललक है।

मैने केवल आप से ही प्रेम किया और अब ये बंधन कभी भी टूट नहीं सकता। मेरे आनंद का केवल आप ही एकमात्र जरिया है, इसलिए जब आप मुझे दर्शन देंगे तभी मेरे हृदय को चैन मिलेगा।

5. मै म्हारो सुपनमा पर्नारे दीनानाथ।
छप्पन कोटा जाना पधराया दूल्हो श्री बृजनाथ।
सुपनमा तोरण बंध्या री सुपनमा गया हाथ।
सुपनमा म्हारे परण गया पाया अचल सुहाग।
मीरा रो गिरीधर नी प्यारी पूरब जनम रो हाड।
मतवारो बादल आयो रे।
लिसतें तो मतवारो बादल आयो रे।।

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

मीराबाई अपने सपने में श्री कृष्ण को देखती हैं। कल्पना करते हुए वे इस पंक्ति में कहती हैं, कि स्वयं मुरलीधर उनके सपने में दूल्हे राजा बन कर दर्शन दिए थे। मीराबाई श्री कृष्णा दोनों ही विवाह के पवित्र बंधन में बंध रहे थे। सपने में एक तोरण बंधा था, जिसे श्याम ने तोड़कर रस्म पूरी की थी। सारी रस्में हो जाने के बाद मीराबाई श्री कृष्णा के पैर छूकर उनसे सदा उनकी सुहागन रहने का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।

6. ऐरी म्हां दरद दिवाणी
म्हारा दरद न जाण्यौ कोय
घायल री गत घायल जाण्यौ
हिवडो अगण सन्जोय।।
जौहर की गत जौहरी जाणै
क्या जाण्यौ जण खोय
मीरां री प्रभु पीर मिटांगा
जो वैद साँवरो होय।।

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

भक्त और भगवान के बीच पवित्र बंधन को केवल वही समझ सकते हैं, जिन्होंने अपने आराध्य की सच्ची आराधना की हो। मीराबाई भगवान श्री कृष्ण के दर्शन पाने के लिए सदियों से उनका इंतजार कर रही हैं, लेकिन तब भी श्री हरि ने उन्हें दर्शन दे दिया।

मीरा बाई कहती हैं, कि कृष्ण प्रेम के कारण मेरे हृदय में उठने वाली व्यथा मुझे पागल कर रही है। यह केवल एक भक्त ही समझ सकता है। जिस प्रकार अनमोल रत्नों को केवल जौहरी ही परख सकता है, इसी तरह जिसने प्रेम में विरह की पीड़ा झेली हों, केवल वही मेरा दर्द समझ सकता है। इस संसार में मेरी पीड़ा का इलाज करने वाला केवल एक ही वैध है, जो स्वयं मुरलीधर श्री कृष्ण हैं।

7. वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु किरपा करि अपनायो. पायो जी मैंने…
जनम जनम की पूंजी पाई जग में सभी खोवायो. पायो जी मैंने…
खरचै न खूटै चोर न लूटै दिन दिन बढ़त सवायो. पायो जी मैंने…
सत की नाव खेवटिया सतगुरु भवसागर तर आयो. पायो जी मैंने…
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर हरष हरष जस गायो. पायो जी मैंने

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

इस पंक्ति में मीराबाई कहती हैं की मैंने राम नाम का आलौकिक धन प्राप्त कर लिया है। जिसे उनके गुरु रविदास जी ने दिया हैं। इस एक नाम को पाकर उन्होंने कई जन्मो का धन एवम सभी का प्रेम पा लिया हैं। यह धन ना खरचने से से कम होता हैं और ना ही चोरी होता हैं यह धन तो दिन रात बढ़ता ही जा रहा हैं| यह ऐसा धन हैं जो मोक्ष का मार्ग दिखता हैं। इस नाम को अर्थात श्री कृष्ण को पाकर मीरा ने ख़ुशी – ख़ुशी से उनका गुणगान गाया।

8. तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई|
छाड़ि दई कुलकि कानि कहा करिहै कोई

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

कृष्ण भक्ति की राह पर चलकर मीराबाई ने वैराग्य ले लिया है। वे कहती हैं अब इस संसार में वे किसी को भी अपना नहीं मानती हैं, उन्हें सर्वत्र केवल श्रीकृष्ण ही दिखाई देते हैं। जब से उन्हें कृष्ण नाम की प्रीत लगी है, तब से ना ही इस संसार में उनके कोई पिता हैं, ना ही माता और ना ही कोई भाई हैं। भगवान कृष्ण ही अब मीराबाई के सबकुछ हैं।

9. मतवारो बादल आयें रे।
हरी को संदेसों कछु न लायें रे।
दादुर मोर पापीहा बोले।
कोएल सबद सुनावे रे।
काली अंधियारी बिजली चमके।
बिरहिना अती दर्पाये रे।
मन रे परसी हरी के चरण।
लिसतें तो मन रे परसी हरी के चरण।

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

मीराबाई अपने इस रचना में कहती हैं कि मतवाले हुए बादल आकाश में चारों तरफ फैल रहे हैं, लेकिन उन्होंने श्री कृष्ण के आने का कोई संदेशा नहीं मिला है। सुंदर दिखने वाले मोर ने भी हरि आगमन की खुशी में अपने लुभावने पंख फैला लिए हैं, कोयल अपनी मीठी वाणी से सभी को लुभा रही है।

चारों तरफ काली अंधियारी में बिजली चमक कर अपने विरह की दुःख को व्यक्त कर रही है। हर कोई केवल हरि दर्शन का प्यासा है।

10. भज मन! चरण-कँवल अविनाशी।
जेताई दीसै धरनि गगन विच, तेता सब उठ जासी।
इस देहि का गरब ना करणा, माटी में मिल जासी।
यों संसार चहर की बाजी, साझ पड्या उठ जासी।
कहा भयो हैं भगवा पहरया, घर तज भये सन्यासी।
जोगी होई जुगति नहि जांनि, उलटी जन्म फिर आसी।
अरज करू अबला कर जोरे, स्याम! तुम्हारी दासी।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर! काटो जम की फांसी।

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

प्रस्तुत पद में मीराबाई कहती हैं कि हे मेरे मन तू कभी नष्ट ना हो सकने वाले कृष्ण भगवान् के चरणों का ध्यान धरा कर। तुझे इस धरती और आसमान के बीच जो कुछ दिखाई दे रहा हैं वह एक दिन जरुर नष्ट हो जायेगा इसलिए यह जो तुम्हारा शरीर हैं इस पर बेकार में ही अहंकार कर रहे हो, यह भी एक दिन मिटटी में मिल जाएगा। यह संसार एक खेल की तरह हैं जिसकी बाजी शाम को खत्म हो जाती हैं । उसी प्रकार यह संसार भी नष्ट होने वाला हैं। भगवान् को प्राप्त करने के लिए भगवा वस्त्र धारण करना काफी नही हैं।

साथ ही मीराबाई जी कहती हैं कि साधू, सन्यासी बनने से भी न तो ईश्वर की प्राप्ति होती हैं और न ही जीवन मृत्यु  के इस चक्कर से मुक्ति मिल पाती है। इसलिए अगर ईश्वर  को प्राप्त करने की योजना नहीं अपनाई तो इस संसार में फिर से जन्म लेना पड़ेगा और वहीं मीराबाई ने अपने प्रभु से हाथ जोड़कर विनती करते हुए कहा है कि हे कृष्ण मै तुम्हारी दासी हूं, कृपया मुझे जन्म-मरण के  इस चक्र से मुक्ति दिलवाओ।

11. जब के तुम बिछुरे प्रभु मोरे कबहूँ न पायों चैन।।
सबद सुनत मेरी छतियाँ काँपे मीठे-मीठे बैन।
बिरह कथा कांसुं कहूँ सजनी, बह गईं करवत ऐन।।
कल परत पल हरि मग जोंवत भई छमासी रेण।
मीराँ के प्रभु कबरे मिलोगे, दुःख मेटण सुख देण।।

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

इस पद में मीराबाई जी कहती हैं कि हे प्रभु कित्नते दिनों से आपके दर्शन नहीं हुए हैं , इसलिए आपके दर्शन की लालसा से मेरे नेत्र दुःख रहे हैं। जब से आप मुझसे अलग हुए हैं, मैने कभी चैन नही पाया हैं। कोई भी आवाज होती हैं तो मुझे लगता हैं आप आ रहे हैं, आपके दर्शन के लिए मेरा ह्रदय अधीर हो उठता हैं। और मुख से मीठे वचन निकलने लगते हैं।

पीड़ा में कड़वे शब्द तो होते ही नही हैं। मीरा कहती हैं, सखी मुझे भगवान से न मिलने की पीड़ा हो रही हैं, मै किसे अपनी विरह व्यथा सुनाऊ, वैसे भी इससे कोई फायदा भी तो नही हैं। इतनी असहनीय पीड़ा हो रही हैं, यदि कांशी में जाकर करवट बदलू तो भी यह कष्ट कम नही होता।

पल-पल भगवान् की प्रतीक्षा ही किये रहती हु। उनकी प्रतीक्षा में यह समय बड़ा होने लग गया हैं, एक रात 6 महीने के बराबर लगती हैं आखिर में मीरा कहती हैं, प्रभु जब आप आकर मिलोगे तभी मेरी यह पीड़ा दूर होगी। आपके आने से ही सारा दुःख मिटेगा। आप आकर मेरा दुःख दूर कर दीजिए।

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12. हरि तुम हरो जन की भीर।  
द्रोपदी की लाज राखी, तुम बढायो चीर।।
भक्त कारण रूप नरहरि, धरयो आप शरीर। 
हिरणकश्यपु मार दीन्हों, धरयो नाहिंन धीर।।
बूडते गजराज राखे, कियो बाहर नीर। 
दासि ‘मीरा लाल गिरिधर, दु:ख जहाँ तहँ पीर।।

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

मीराबाई भगवान श्री कृष्ण से स्वयं के कष्टों को दूर करने के लिए उनसे कहती हैं, कि हे प्रभु आप सभी के कष्टों को दूर करते हैं। जिस प्रकार आपन दया दिखाते हुए द्रोपदी के सम्मान की रक्षा की और उसके लिए चमत्कार से चीर प्रकट करते गए।

जिस प्रकार हे प्रभु आपने हिरण कश्यप का वध करने के लिए भगवान नरसिंह का रूप धारण किया, जिस प्रकार पानी में डूबते हाथी को आपने बचाया, उसी तरह मुझ दासी पर भी कृपा करके हे गिरिधर मेरे दुखों का निवारण करिए।

13. पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे। 
मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गई दासी रे। 
लोग कहै मीरा भई बावरी न्यात कहै कुलनासी रे।।
विष का प्याला राणाजी भेज्या पीवत मीरा हाँसी रे। 
‘मीरा’ के प्रभु गिरिधर नागर सहज मिले अविनासी रे।।

मीरा बाई के पद का हिन्दी व्याख्या

कृष्ण नाम से मीराबाई को इस प्रकार प्रेम हो गया है, कि जहां भी कृष्ण धुन उन्हें सुनाई देती है, वह अपने पैरों में घुंघरू बांधकर नाचने लगती हैं। सांवले कन्हैया के प्रेम में मीराबाई इस प्रकार खो गई हैं, कि उन्हें अपने रिश्तेदारों का भी ध्यान नहीं है।

घरवाले मीराबाई को कुलनाशिनी कहते हैं, राणा ने मीराबाई को मारने के लिए विष भेजा है जिसे मीरा हंसते हुए कृष्ण नाम लेकर पी गई। भगवान श्री कृष्ण कभी भी अपने भक्तों पर आंच नहीं आने देते। कृष्ण अविनाशी हैं, जो मीराबाई को बड़ी ही सरलता से प्राप्त हो गए हैं।

14. बरसै बदरिया सावन की सावन की मन भावन की।
सावन में उमग्यो मेरो मनवा भनक सुनी हरि आवन की।।
उमड घुमड चहुं दिससे आयो, दामण दमके झर लावन की।
नान्हीं नान्हीं बूंदन मेहा बरसै, सीतल पवन सोहावन की।।
मीरां के प्रभु गिरधर नागर, आनन्द मंगल गावन की।। 

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

उपरोक्त दोहे में मीराबाई कहती हैं कि श्रीकृष्ण के आने की घड़ी आ चुकी है। मन को मोह लेने वाले सावन का मौसम आ गया है, जिससे चारों तरफ आकाश में बादल बरस रहे हैं। प्रकृति के ऐसे लुभावने स्वागत को देखकर मेरा मन प्रसन्नता से झूम उठा है।

मेघ स्वयं भगवान कृष्ण के आने की शुभ घड़ी में चारों तरफ उमड़ घुमड़ कर वर्षा कर रहे हैं, बिजली चमक रही है तथा वर्षा की छोटी छोटी बूंदें धरती पर पड़ रही है। हवा कृष्ण धुन मैं मगन होकर बेसुध बह रही है। मीराबाई कहती हैं कि गिरिधर नागर के आने की खुशी में चलो सभी मिलकर मंगल गान करते हैं

15. स्याम म्हाने चाकर राखो जी,
गिरधारी लाला म्हाँने चाकर राखोजी।
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ।
बिन्दरावन री कुंज गली में , गोविन्द लीला गास्यूँ।
चाकरी में दरसन पास्यूँ, सुमरन पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ , तीनूं बाताँ सरसी।
मोर मुगट पीताम्बर सौहे , गल वैजन्ती माला।
बिन्दरावन में धेनु चरावे , मोहन मुरली वाला।
ऊँचा ऊँचा महल बनावँ बिच बिच राखूँ बारी।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ ,पहर कुसुम्बी साड़ी।
आधी रात प्रभु दरसण ,दीज्यो जमनाजी रे तीरा।
मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर , हिवड़ो घणो अधीरा।

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

उपरोक्त दोहे में मीराबाई कहती हैं, कि अब मुझे केवल श्री कृष्ण के समीप रहना है। हे मुरलीधर! मुझे आप अपनी दासी बना कर ही रखिए, लेकिन मुझे हमेशा आपके पास रहना है। मैं एक दासी बनकर बगीचे में पुष्प लगाऊंगी ताकि सवेरे उठकर मुझे प्रतिदिन आपका दर्शन हो सके। हे प्रभु! मैं वृंदावन की संकरी गलियों में आपके मनभावन लीलाओं का बखान करती फिरूंगी।

मीराबाई का मानना है, कि कृष्ण की दासी बनने से उन्हें तीन लाभ मिलेंगे जिन में पहला उन्हें सदैव कृष्ण के दर्शन प्राप्त होते रहेंगे, दूसरा मीराबाई को अपने प्रियतम अथवा कृष्ण की याद नहीं आएगी, तीसरा कृष्ण भक्ति का साम्राज्य विस्तृत होता चला जाएगा।

कृष्ण भक्त मीराबाई श्याम के अलौकिक सुंदरता का वर्णन करते हुए कहती हैं, कि पीला वस्त्र धारण कर सिर पर मोर मुकुट सजाकर गले में बैजंती की माला धारण किए हुए श्री कृष्ण बड़े ही मन भावना लगते हैं। जब गायों को चराते हुए वृंदावन में वे अपनी मुरली बजाते हैं तो हर कोई उनसे मोहित हो जाता है।

मीराबाई कहती है कि वृंदावन के बगीचों में वे ऊंचाई पर अपना महल बनवाएंगी और कुसुम्बी साड़ी धारण करके प्रतिदिन अपने स्वामी का दर्शन करेंगी। श्रीहरि का दर्शन पाने के लिए मीराबाई इतनी आतुर हो गई हैं, कि वे यह इच्छा कर रही हैं, कि आधी रात में ही श्री कृष्ण जमुना नदी के किनारे उन्हें अपने दर्शन दे।

16. अच्छे मीठे फल चाख चाख, बेर लाई भीलणी।
ऎसी कहा अचारवती, रूप नहीं एक रती।
नीचे कुल ओछी जात, अति ही कुचीलणी।
जूठे फल लीन्हे राम, प्रेम की प्रतीत त्राण।
उँच नीच जाने नहीं, रस की रसीलणी।
ऎसी कहा वेद पढी, छिन में विमाण चढी।
हरि जू सू बाँध्यो हेत, बैकुण्ठ में झूलणी।
दास मीरां तरै सोई, ऎसी प्रीति करै जोइ।
पतित पावन प्रभु, गोकुल अहीरणी।

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

मीराबाई भगवान राम और उनकी परम भक्त शबरी के विषय में वर्णन करते हुए कहती है, कि जिस प्रकार आपने श्री राम के रूप में गरीब और अछूत भक्तों के यहां दर्शन देकर उसे वशीभूत किया था। शबरी की भक्ति इतनी पवित्र थी, कि वह अपने प्रभु के लिए बेर को चक्कर इकट्ठा कर रही थी, ताकि यदि कोई भी त्रुटि या विष उसमें मौजूद हो, तो उसके प्रभु को कुछ होने से पहले उसे हो जाए।

अपने प्रेम और अंतरात्मा को प्रभु चरण में अर्पित कर देने वाली शबरी के झूठे फलों को जिस प्रकार श्री राम ने बड़े ही प्रसन्नता के साथ खाया था। हे प्रभु! उसी तरह मुझ पर भी दया करिए। अछूत जाति और कुरूप होने के बावजूद भी आपने तनिक भी घृणा किए बिना शबरी द्वारा लाए गए अमृत फलों का सेवन किया था, उसी तरह आप मुझ पर भी आशीर्वाद बरसा कर मेरा उद्धार करिए।

श्री कृष्ण मैं भी आपकी दासी बनकर सदियों से आपकी प्रतीक्षा कर रही हूं आप मुझे दर्शन देने के लिए कब आएंगे। मुझे सदैव से उस अवसर का इंतजार है, जब आपके चरण रज को मुझे स्पर्श करने का सौभाग्य उस भीलनी की भांति ही प्राप्त होगा।

17. पायो जी मैंने राम रतन धन पायो !
वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु किरपा करि अपनायो। पायो जी मैंने…
जनम जनम की पूंजी पाई जग में सभी खोवायो। पायो जी मैंने…
खरचै न खूटै चोर न लूटै दिन दिन बढ़त सवायो। पायो जी मैंने…
सत की नाव खेवटिया सतगुरु भवसागर तर आयो। पायो जी मैंने…
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर हरष हरष जस गायो। पायो जी मैंने…

मीरा बाई के पद का हिन्दी व्याख्या

ईश्वर की भक्ति में मीराबाई इस प्रकार लीन हो गई है, कि वे राम कृष्ण नाम लेते हुए चारों तरफ मग्न होकर केवल प्रभु के ही गुण गा रही हैं। मीराबाई कहती हैं कि मुझे राम नाम की अनमोल धन प्राप्ति हो गई है। ऐसा प्रतीत हो रहा है, जैसे कि मुझे जन्मो जन्म से इस वस्तु का ही इंतजार था, जो मुझे आज मिल गया है।

अपने पूर्व जन्मों से अब तक मैंने जो कुछ भी प्राप्त किया है, उसमें सबसे मूल्यवान यही है। मुझे अब प्रभु के नाम के अलावा और कुछ भी दिखाई नहीं देता है। राम रत्न जैसा अनमोल नाम ऐसा धन है, जो कभी भी कम नहीं होता है चाहे उसे कितना भी खर्च कर दिया जाए।

यह मूल्यवान धन प्रतिदिन अपनी प्रतिभा को बढ़ाएं ही जाता है। हरि नाम ही एक ऐसा नाम है, जो जीवन मृत्यु के चक्र को तोड़कर मोक्ष का मार्ग दिखलाता है। कृष्ण अथवा हरि नाम को प्राप्त करके मीराबाई खुशी से झूम रही हैं।

18. बसो मोरे नैनन में नंदलाल
मोर मुकुट मकराकृत कुंडल, अरुण तिलक दिये भाल
मोहनी मुरति सांवरी सूरति, नैना बने बिसाल
अधर सुधारस मुरली राजति, उर बैजंती माल
छुद्र  घंटिका कटि तट शोभित, नूपुर सबद रसाल
मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भक्त बछल गोपाल 

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

मीराबाई उपरोक्त पंक्ति में श्री कृष्ण से कहती हैं, कि है श्री हरि आप सदा ही मेरे नैनों में निवास करिए। मेरी कामना है कि आपका मनमोहन रूप सदा ही मेरे आंखों में बसा रहे। मस्तक पर मोर मुकुट और कानों में  कुंडल सुशोभित हो रहा है और माथे पर लाल रंग का तिलक लगाए हुए आप अत्यंत मनमोहक लग रहे हैं।

आपके सांवले रंग पर आपकी हिरनी जैसी मनमोहक आंखें सुंदरता को और भी बढ़ाए जा रहे हैं। अपने होठों से अमृत की वर्षा करने वाले मुरली को बजाते हुए आप बड़े अच्छे लगते हैं। गले में बैजन्ती की माला बड़ी लुभावनी है।

मुरली मनोहर आपके कमर और पैरों पर लगी हुई छोटी सी मधुर घंटी से उत्पन्न होने वाला स्वर बहुत ही कर्ण प्रिय है। मीराबाई कहती हैं, कि श्री कृष्ण अपने सभी भक्तों का ख्याल रखते हैं और संतो को सुख प्रदान करते हैं।

19. मेरो तो गिरधर गोपाल, दूसरों न कोई
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई
छांडी दई कुल की कानि कहा करें कोई
संतन ढिंग बैठी- बैठी, लोक लाज खोई
असुवन जल सींचि सींचि, प्रेम बेलि बोई
अब तो बेली फैल गई, आनंद फल होई
भगत देखि राजी भाई, जगत देखि रोई
दासी मीरा, लाल गिरधर, तारों अब मोही

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

मीराबाई कहती है, कि इस संसार में गिरधर गोपाल के सिवाय उनका दूसरा कोई भी नहीं है। जिनके सिर पर मोर मुकुट है, वही मेरे प्रियतम कृष्ण है। अपने पति के रूप मे उन्हें प्राप्त करने के लिए सारे लोक लाज का त्याग कर साधु संतों की संगति मैं बैठ गई हूं।

मीराबाई कहती है कि मैंने अपने आंसुओं से इस भक्ति के बीज को बोया है, अब मेरा बोया हुआ कृष्ण प्रेम का बीज परिपक्व हो गया है और चारों तरफ फैल रहा है। मुरलीधर के लिए मेरा प्रेम और भी प्रगाढ़ होता जा रहा है। मैं श्री कृष्ण की दासी बन चुकी हूं और उन्हें मन ही मन अपना मान चुकी हूं।

20. मीरा मगन भई, हरि के गुण गाए
सांप पेटारा राणा भेज्या, मीरा हाथ दियो जाए
न्याह धोय देखन लागीं, शालिग्राम गई पाय
जहर का प्याला राणा भेज्या, अमृत दीन्हबनाए
सूल सेज राणा ने भेजी, दीज्यो मीरा सुवाय
सांझ भई मीरा सोवण लागी,मानो फूल बिछाए
मीरा के प्रभु सदा सहाई, राखे विघ्न हटाए
भजन भाव में मस्त डोलती, गिरधर पे बलिजाय

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

अर्थात मीराबाई हरि गुण में अपना सर्वत्र श्री कृष्ण को अर्पित कर मगन हो गई हैं। उनके ही परिवार वाले उन्हें कुलनाशिनी कहते हैं, जिसके कारण मीराबाई को मारने के लिए राणा ने सांप का पिटारा अपने दूत से मीराबाई को देने के लिए भेजा।

लेकिन जैसे ही वह पिटारे को खोलती हैं, तो उसमें साप नहीं बल्कि एक शालिग्राम की प्रतिमा रहती है। इसके पश्चात पुनः मीराबाई के प्राण हरने के लिए राणा अपने दूत के माध्यम से विष का प्याला मीराबाई को पिलाने के लिए भेजता है, लेकिन जब मीराबाई नहा धोकर अपने प्रियतम का दर्शन कर उस प्याले का सेवन करती हैं, तो वह अमृत में बदल जाता है।

जब राणा किसी भी प्रकार से मीराबाई को मारने में असमर्थ रहता है, तो वह कांटो का सेज बनाकर उस पर मीराबाई को सुलाने की परियोजना बनाता है। लेकिन जब वह मृत्यु के सईया पर सोती है, तब वह फूलों के सेज में बदल जाता है। मीराबाई कहती हैं, कि श्री कृष्ण हमेशा उन्हें विघ्न से बाहर निकालते हैं, इसीलिए वह अपने श्याम पर स्वयं को न्योछावर करके सदा ही उनके गुण गाते रहती हैं।

21. अब तो मेरा राम नाम दूसरा न कोई॥
माता छोडी पिता छोडे छोडे सगा भाई।
साधु संग बैठ बैठ लोक लाज खोई॥
सतं देख दौड आई, जगत देख रोई।
प्रेम आंसु डार डार, अमर बेल बोई॥
मारग में तारग मिले, संत राम दोई।
संत सदा शीश राखूं, राम हृदय होई॥
अंत में से तंत काढयो, पीछे रही सोई।
राणे भेज्या विष का प्याला, पीवत मस्त होई॥
अब तो बात फैल गई, जानै सब कोई।
दास मीरां लाल गिरधर, होनी हो सो होई॥

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

उपरोक्त रचना में मीराबाई कहती हैं, कि अब तो इस संसार में उन्होंने केवल राम नाम को ही अपना सगा माना है और माता पिता और सगे भाई सहित सभी को त्याग दिया है। कृष्ण भक्त मीराबाई हरि गुण में सारा लोक लाज त्याग कर साधु की संगति में बैठी रहती हैं।

जहां भी वह संतो को हरि गुण गाते हुए देखती हैं तो वह सदा ही उनके साथ मिलकर कृष्ण भक्ति में लीन हो जाती हैं और जब वह इस माया रुपी संसार को देखती हैं, तो उन्हें लोगों पर दया आती है। मीराबाई कहती हैं कि उन्होंने अपने भक्ति की आंसुओं से अमरबेल बोई है।

वह सदैव कृष्ण प्रेम को अपने शीश पर रखती हैं। लोक लाज त्याग प्रभु के गुण गाने वाली मीराबाई को उनके ही सके कुलनाशीनी कहते हैं, जिसके कारण राणा ने उन्हें मृत्यु के घाट उतारने के लिए विष का प्याला भेजा, लेकिन वह कृष्ण नाम लेकर उसे पी गई और वह विष अमृत में बदल गया। यह बात चारों तरफ फैल गई और सभी मीरा के भक्ति से परिचित हो गए।

22. बंसीवारा आज्यो म्हारे देस। सांवरी सुरत वारी बेस।।
ॐ-ॐ कर गया जी, कर गया कौल अनेक।
गिणता-गिणता घस गई म्हारी आंगलिया री रेख।।
मैं बैरागिण आदिकी जी थांरे म्हारे कदको सनेस।
बिन पाणी बिन साबुण जी, होय गई धोय सफेद।।
जोगण होय जंगल सब हेरूं छोड़ा ना कुछ सैस।
तेरी सुरत के कारणे जी म्हे धर लिया भगवां भेस।।
मोर-मुकुट पीताम्बर सोहै घूंघरवाला केस।
मीरा के प्रभु गिरधर मिलियां दूनो बढ़ै सनेस।।

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

मीराबाई उपरोक्त पंक्ति में कह रहीं हैं की मुरलीधर उनके देश पधारे हैं, जिनकी सांवली सूरत पर सभी अपना हृदय हार गए। श्याम ने सभी पर इस प्रकार अपना जादू डाला जिससे हर कोई उनके मोहनी सूरत पर न्योछावर हो गया है।

कृष्ण की तलाश में उनकी उंगलियां गिनते गिनते घिस गई है, लेकिन फिर भी श्याम के कदमों का कोई निशान अब तक नहीं मिला है। प्रभु का नाम लेकर बिना पानी और साबुन के ही मीराबाई एकदम स्वच्छ और निर्मल हो गई हैं।

कृष्ण की मोहनी सूरत के कारण ही अब मीराबाई ने साधु संतों का भगवा भेष धारण कर लिया है। घुंघराले बालों पर मोर मुकुट, पीतांबर धारण किए हुए तथा मुख पर ललाट लिए हुए श्री हरि को मीराबाई चारों तरफ ढूंढ रही हैं। 

23. आओ मनमोहना जी जोऊं थांरी बाट।
खान पान मोहि नैक न भावै नैणन लगे कपाट॥
तुम आयां बिन सुख नहिं मेरे दिल में बहोत उचाट।
मीरा कहै मैं बई रावरी, छांड़ो नाहिं निराट॥
आओ सहेल्हां रली करां है पर घर गवण निवारि॥
झूठा माणिक मोतिया री झूठी जगमग जोति।
झूठा आभूषण री, सांची पियाजी री प्रीति॥
झूठा पाट पटंबरा रे, झूठा दिखडणी चीर।
सांची पियाजी री गूदड़ी, जामें निरमल रहे सरीर॥

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

मीराबाई कहती हैं कि हे मन को मोहित कर लेने वाले मैं आपकी राह देख रही हूं। अब मुझे खानपान भी अच्छा नहीं लगता और नैनो को आपके सिवाय कुछ भी देखना नहीं पसंद आता। मीराबाई कहती हैं की आप मुझे दर्शन नहीं दे रहे हैं, इसीलिए मेरे हृदय में बहुत पीड़ा होती है।

कृष्ण के दर्शन न पाने के कारण अब मीरा कृष्ण प्रेम में बावरी होकर कृष्ण को ढूंढ रही हैं। अपनी सहेलियों को मीराबाई कहती हैं, की यह चमकने वाले आभूषण और मणि मोतियां सभी की ज्योति झूठी है, यदि इस संसार में कुछ सच्चा है तो वह मेरे पिया जी की प्रीत है।

शरीर पर शोभा देने वाले सभी दिखावटी और सुंदर कपड़े झूठे हैं। मेरे प्रभु कृष्ण की गुदड़ी सबसे अच्छी है, जिसमें शरीर निर्मल रहता है। 

24. होरी खेलनकू आई राधा प्यारी हाथ लिये पिचकरी॥ध्रु०॥
कितना बरसे कुंवर कन्हैया कितना बरस राधे प्यारी॥ हाथ०॥१॥
सात बरसके कुंवर कन्हैया बारा बरसकी राधे प्यारी॥ हाथ०॥२॥
अंगली पकड मेरो पोचो पकड्यो बैयां पकड झक झारी॥ हाथ०॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर तुम जीते हम हारी॥ हाथ०॥४॥

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

अर्थात अपने हाथों में पिचकारी लिए हुए राधा रानी कृष्ण के संग होली खेलने आई है। मीराबाई कहती है की श्री कृष्ण और उनकी प्रियतमा राधे रानी की उम्र में बहुत ज्यादा फासला नहीं है। वह कृष्ण को स्वयं के साथ होली खेलते हुए कल्पना कर रही हैं, जहां श्री कृष्ण उनके ऊपर रंग डाल कर उंगली पकड़ रहे हैं। इस होली के खेल में मीराबाई कहती हैं कि हे प्रभु गिरिधर आप जीत गए और हम हार गए। 

25. मेरो मनमोहना, आयो नहीं सखी री॥
कैं कहुं काज किया संतन का, कै कहुं गैल भुलावना॥
कहा करूं कित जाऊं मेरी सजनी, लाग्यो है बिरह सतावना॥
मीरा दासी दरसण प्यासी, हरिचरणां चित लावना॥

मीरा बाई के पद का हिन्दी भावार्थ

कृष्ण भक्ति में डूबी हुई मीराबाई अपनी सखी से अपने ह्रदय की पीड़ा बताते हुए कहती हैं, कि हे सखी अब तक मेरे मनमोहन नहीं आए, मैंने संत का रूप धारण कर इस पूरे जगत का त्याग कर वन में उन्हें ढूंढते हुए भटकती हूं लेकिन फिर भी वह मुझे दर्शन नहीं देते हैं।

ए सखी मुझे कुछ उपाय बताओ अब मैं क्या करूं, कहां जाऊं। क्योंकि मेरे हृदय में जो विरह की पीड़ा सता रही है वह बहुत दुखदाई है। मीराबाई अब केवल श्री कृष्ण के दर्शन की प्यासी है। 

26. हरिनाम बिना नर ऐसा है। दीपकबीन मंदिर जैसा है॥ध्रु०॥
जैसे बिना पुरुखकी नारी है। जैसे पुत्रबिना मातारी है।
जलबिन सरोबर जैसा है। हरिनामबिना नर ऐसा है॥१॥
जैसे सशीविन रजनी सोई है। जैसे बिना लौकनी रसोई है।
घरधनी बिन घर जैसा है। हरिनामबिना नर ऐसा है॥२॥
ठुठर बिन वृक्ष बनाया है। जैसा सुम संचरी नाया है।
गिनका घर पूतेर जैसा है। हरिनम बिना नर ऐसा है॥३॥
कहे हरिसे मिलना। जहां जन्ममरणकी नही कलना।
बिन गुरुका चेला जैसा है। हरिनामबिना
नर ऐसा है॥४॥

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

अर्थात जो मनुष्य हरि नाम नहीं लेता वह बिना दीपक के मंदिर के समान होता है। जिस तरह बिना पुत्र के माता को सभी बुरा भला कहते हैं, जल के बिना सरोवर महत्वहीन है, उसी तरह हरि नाम के बिना मनुष्य भी ऐसा ही है।

जिस प्रकार चांद के बिना रात घनी अंधेरी दिखती है, इसी तरह यदि श्री कृष्ण का नाम ना लिया जाए तो जीवन बिल्कुल ऐसा ही प्रतीत होता है।  बिना वृक्ष तथा गुरु बिना शिष्य का भविष्य धुंधला पड़ जाता है, उसी प्रकार जो कृष्ण भक्ति नहीं करते हैं उनका जीवन तेज हीन और बिना मूल्य का होता है।

27. हरि गुन गावत नाचूंगी॥ध्रु०॥
आपने मंदिरमों बैठ बैठकर। गीता भागवत बाचूंगी॥१॥
ग्यान ध्यानकी गठरी बांधकर। हरीहर संग मैं लागूंगी॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। सदा प्रेमरस चाखुंगी॥३॥

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

मीराबाई कहती है, कि मैं श्री कृष्ण के गुण गा कर  नाचूंगी। श्याम के मंदिर में बैठकर कन्हैया द्वारा बताया गया अमृत सूत्र गीता का पाठ करूंगी। अपने सभी विकारों को दूर करके ज्ञान और ध्यान की गठरी बांध कर सदा ही हरि के ध्यान में लीन रहूंगी। मेरे प्रभु गिरिधर नागर के प्रेम भक्ति का रस में सदा चखती रहूंगी और अपने जीवन को सार्थकता प्रदान करूंगी।

28. तो सांवरे के रंग राची।
साजि सिंगार बांधि पग घुंघरू, लोक-लाज तजि नाची।।
गई कुमति, लई साधुकी संगति, भगत, रूप भै सांची।
गाय गाय हरिके गुण निस दिन, कालब्यालसूँ बांची।।
उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब कांची।
मीरा श्रीगिरधरन लालसूँ, भगति रसीली जांची।।

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

मीराबाई कृष्ण प्रेम में इस प्रकार दीवानी हो गई हैं कि अब उन्हें लोक लाज की कोई चिंता नहीं सताती है। वह कृष्ण के रंग में रंग गई है और अपनी कुमति को त्याग कर साधु संतों की संगति में लीन हो गई हैं। हर तरफ हरि गुण गाकर वह प्रतिदिन कृष्ण की भक्ति करती हैं।

मीराबाई कहती है कि मेरे श्याम सखा के बिना यह पूरा संसार बेहद खारा प्रतीत होता है। यदि जगत में कोई सार्थक कार्य है तो वह श्री गिरिधर की भक्ति है, जो मधुर भक्ति रस से परिपूर्ण है।

29. होरी खेलत हैं गिरधारी।
मुरली चंग बजत डफ न्यारो।
संग जुबती ब्रजनारी।।
चंदन केसर छिड़कत मोहन
अपने हाथ बिहारी।
भरि भरि मूठ गुलाल लाल संग
स्यामा प्राण पियारी।
गावत चार धमार राग तहं
दै दै कल करतारी।।
फाग जु खेलत रसिक सांवरो
बाढ्यौ रस ब्रज भारी।
मीरा कूं प्रभु गिरधर मिलिया
मोहनलाल बिहारी।।

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

उपरोक्त दोहे में ब्रज में खेले जाने वाली होली का सुंदर वर्णन मीराबाई ने किया है। वह कहती हैं की गिरधारी सभी के साथ मिलकर होली खेल रहे हैं। यहां मुरली चंग और डफली वाद्य यंत्र बजाए जा रहे हैं। सारे ब्रजवासी मधुर ताल पर बड़े ही उत्साह से कृष्ण के संग होली खेल हैं।

चंदन और केसर को श्री कृष्ण अपने हाथों में उठाकर चारों तरफ बिखेर रहे हैं। अपनी मुट्ठियों में गुलाल लेकर वे ब्रज वासियों पर छिड़क रहे हैं। सभी होली खेलते समय चार धमार राग गा रहे हैं। राधा और गोपियां के संग श्री गिरिधर होली खेल रहे हैं। मीरा को उनके प्रभु मोहन लाल बिहारी होली खेलते समय बड़े ही मनभावन लग रहे हैं। 

30. राम मिलण के काज सखी, मेरे आरति उर में जागी री।
तड़पत-तड़पत कल न परत है, बिरहबाण उर लागी री।
निसदिन पंथ निहारूँ पिवको, पलक न पल भर लागी री।
पीव-पीव मैं रटूँ रात-दिन, दूजी सुध-बुध भागी री।
बिरह भुजंग मेरो डस्यो कलेजो, लहर हलाहल जागी री।
मेरी आरति मेटि गोसाईं, आय मिलौ मोहि सागी री।
मीरा ब्याकुल अति उकलाणी, पिया की उमंग अति लागी री।

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

हरि से मिलने के लिए मीराबाई के हृदय में भक्ति की अग्नि प्रज्वलित हो रही है। अपने प्रभु से मिले बिना हर एक क्षण उनके लिए बहुत भारी हो रहा है। प्रभु मिलन की बिरह में मीराबाई तड़प रही हैं। वे हर क्षण अपने आराध्य की राह देख रही हैं, जिसके कारण वे अपनी पलकें भी नहीं झपका रही हैं।

मीराबाई कहती हैं की बिरह के विशाल भुजा वाले लहर ने उन्हें इस प्रकार डस लिया है कि अब दिन रात उन्हें केवल प्रभु का ही सुध रहता है और उनका ही नाम सदैव मीरा के मुख पर रहता है। मीरा बाई कन्हैया से मिलने के लिए इतनी व्याकुल हो चुकी हैं, कि हर क्षण उनके लिए विशाल बन गया है।

31. करुणा सुणो स्याम मेरी, मैं तो होय रही चेरी तेरी॥
दरसण कारण भई बावरी बिरह-बिथा तन घेरी।
तेरे कारण जोगण हूंगी, दूंगी नग्र बिच फेरी॥
कुंज बन हेरी-हेरी॥
अंग भभूत गले मृगछाला, यो तप भसम करूं री।
अजहुं न मिल्या राम अबिनासी बन-बन बीच फिरूं री॥
रोऊं नित टेरी-टेरी॥
जन मीरा कूं गिरधर मिलिया दुख मेटण सुख भेरी।
रूम रूम साता भइ उर में, मिट गई फेरा-फेरी॥
रहूं चरननि तर चेरी॥

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

मीराबाई कहती हैं, कि हे श्याम प्यारे! तुम मेरी करुणा सुनो मैं तो अब तुम्हारी हो गई हूं। तुम्हारे दर्शन मात्र के लिए मैं बावरी होकर बिरह की अग्नि में जल रही हूं। केवल तुम्हारे कारण ही मैंने इस जग को त्याग दिया और गली गली में तुम्हें ढूंढती फिर रही हूं।

हे कृष्ण अपने अंगों पर भभूत लगाकर गले में मृगछाल की माला पहन कर मैं तप कर रही हूं, केवल आपको प्राप्त करने के लिए। लेकिन अब भी हे राम अविनाशी आप मुझे अब तक ना मिले। बिरह की आग में मेरी आंखों से अश्रु नहीं रुक रहे हैं। हे प्रभु मेरी पीड़ा तभी समाप्त होगी जब आप मुझे प्राप्त होंगे। 

32. काना चालो मारा घेर कामछे। सुंदर तारूं नामछे॥ध्रु०॥
मारा आंगनमों तुलसीनु झाड छे। राधा
गौळण मारूं नामछे॥१॥
आगला मंदिरमा ससरा सुवेलाछे। पाछला मंदिर सामसुमछे॥२॥
मोर मुगुट पितांबर सोभे। गला मोतनकी मालछे॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरन कमल चित जायछे॥४॥

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

उपरोक्त पंक्ति में मीराबाई कह रही हैं कि हे अति सुंदर नाम वाले श्री कृष्ण आप मेरे साथ मेरे घर चलिए। मैंने अपने आंगन में पवित्र तुलसी का झाड़ लगाया है। हे कृष्ण मैं राधा रानी की तरह ही आपसे प्रेम करती हूं। मस्तक पर मोर मुकुट और पितांबरी धारण किए हुए तथा गला में सुंदर मोतियों की माला को धारण किए हुए हे गिरिधर नागर मैं आपके चरणों को प्रणाम करती हूं। 

32. कान्हा बनसरी बजाय गिरधारी, तोरि बनसरी लागी मोकों प्यारीं॥ध्रु०॥
दहीं दुध बेचने जाती जमुना। कानानें घागरी फोरी॥ काना०॥१॥
सिरपर घट घटपर झारी। उसकूं उतार मुरारी॥ काना०॥२॥
सास बुरीरे ननंद हटेली। देवर देवे मोको गारी॥ काना०॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल बलहारी॥ काना०॥४॥

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

श्री कृष्ण की महान भक्त मीराबाई ने अपने सभी सगे संबंधियों को त्याग कर अपना मन कृष्ण भक्ति की तरफ आकर्षित किया है। मीराबाई की कृष्ण भक्ति उनके परिवार वालों को अच्छी नहीं लगती, जिससे उनकी सास और ननद उनसे इष्या करती हैं और देवर उन्हें गालियां देते हैं।

उपरोक्त पंक्ति में मीराबाई कहती हैं कि उन्हें केवल कृष्ण के चरण कमल ही अच्छे लगते हैं। हे कान्हा जब तुम मुरली बजाते हो तब तुम्हारी मुरली मुझे बहुत प्यारी लगती है। हे कृष्णा मैं आप पर बलिहारी हो गई हूं। 

33. किन्ने देखा कन्हया प्यारा की मुरलीवाला॥ध्रु०॥
जमुनाके नीर गंवा चरावे। खांदे कंबरिया काला॥१॥
मोर मुकुट पितांबर शोभे। कुंडल झळकत हीरा॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरन कमल बलहारा॥३॥

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

मीराबाई सभी से कृष्ण के बारे में पूछ रही हैं कि क्या किसी ने मुरली धारण किए हुए मेरे प्यारे कन्हैया को देखा है। वह जमुना नदी के किनारे गायों को चराते हैं। सांवले रंग के मनमोहन अपने मस्तक पर मोर मुकुट और पीतांबर धारण किए हैं। ऐसे तेजपुंज वाले मेरे प्रभु को क्या किसी ने देखा है। 

34. बादल देख डरी हो, स्याम! मैं बादल देख डरी।
श्याम मैं बादल देख डरी।
काली-पीली घटा ऊमड़ी बरस्यो एक घरी।
श्याम मैं बादल देख डरी।
जित जाऊँ तित पाणी पाणी हुई भोम हरी।।
जाका पिय परदेस बसत है भीजूं बाहर खरी।
श्याम मैं बादल देख डरी।
मीरा के प्रभु हरि अबिनासी कीजो प्रीत खरी।
श्याम मैं बादल देख डरी।

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

श्री कृष्ण के परदेस चले जाने के कारण मीराबाई अपने प्रीत को जाहिर करते हुए कहती हैं, कि हे मुरलीधर मैं आकाश में छा रहे इन घोर बादलों को देखकर भयभीत हो रही हूं। तेज ध्वनि में काली पीली घटा मेरे घर पर बरस रही है। हे कृष्ण! मुझे इन बादलों से बेहद डर लग रहा है।

जहां देखो वहां चारों तरफ पानी ही पानी नजर आ रहा है, जिससे भूमि हरि हो गई है। जिसके पिया परदेश में बसते हो वह विवश प्रेमिका इस बारिश में बाहर खड़ी होकर भीग रही है। हे कृष्णा  अविनाशी अपने इस भक्त से सच्ची प्रीत निभाईए। हे आपके यहां ना होने के कारण मुझे इन बादलों से बेहद डर लग रहा है। 

35. कीत गयो जादु करके नो पीया॥ध्रु०॥
नंदनंदन पीया कपट जो कीनो। नीकल गयो छल करके॥१॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे। कबु ना मीले आंग भरके॥२॥
मीरा दासी शरण जो आई। चरणकमल चित्त धरके॥३॥

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

सांवली सूरत वाले कन्हैया आप मुझ पर जादू करके अचानक से कहां चले गए हैं। आपने मेरा मन मोह कर मुझसे दूर चले गए, जिससे आपने मेरे साथ कपट किया है। हे मुरलीधर आप मुझसे छल करके दूर चले गए हैं। मोर मुकुट और पितांबरी से सुशोभित हे गिरिधर मैं आपकी दासी मीरा आपके चरण कमल में आई हूं, कृपया मुझे अपने दर्शन दीजिए। 

36. कैसी जादू डारी। अब तूने कैशी जादु॥ध्रु०॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे। कुंडलकी छबि न्यारी॥१॥
वृंदाबन कुंजगलीनमों। लुटी गवालन सारी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलहारी॥३॥

अर्थ: हे कान्हा अब तुमने मुझ पर यह कैसा जादू कर दिया है, कि मुझे हर तरफ केवल तुम्हारी ही छवि दिखाई दे रही है। सुंदर मोर के पंखों से बना मुकुट धारण किए हुए प्यारी छवि वाले कृष्ण जब वृंदावन की कुंज गलियों में से गुजरते हैं, तो सारी ग्वालन अपना ह्रदय उनकी मोहनी लीला पर हार बैठती है। गिरधारी के चरण कमलों में मीराबाई शत शत नमन करती हैं। 

37. कोई कहियौ रे प्रभु आवन की,
आवनकी मनभावन की।
आप न आवै लिख नहिं भेजै ,
बाण पड़ी ललचावन की।
ए दोउ नैण कह्यो नहिं मानै,
नदियां बहै जैसे सावन की।
कहा करूं कछु नहिं बस मेरो,
पांख नहीं उड़ जावनकी।
मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे,
चेरी भै हूँ तेरे दांवन की।

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

उपरोक्त दोहे में मीराबाई कहती हैं, कि कोई कहता है कि यह मेरे प्रभु के पधारने की बेला है। ऐसी मधुर नाम वाली वाणीया सुनकर मेरा मन उमंग से भर उठता है। लेकिन हे कृष्ण यह तो केवल आपके ललचाने वाला धनुष बाण है। आप मुझे दर्शन देने के लिए नहीं आते हैं और ना ही कोई संदेश मेरे लिए भेजते हैं।

आपको देखे बिना मेरे नैनों से इस प्रकार आंसू बहते हैं जैसे नदियों में वर्षा ऋतु के समय पानी। लेकिन मैं क्या कर सकती हूं, क्योंकि कुछ भी मेरे बस में नहीं है। मीराबाई कहती हैं कि मैं उस सांवले कन्हैया का दर्शन करने के लिए कब से इंतजार में बैठी हूं न जाने कब वह मुझे मिलेंगे। 

38. कौन भरे जल जमुना। सखीको०॥ध्रु०॥
बन्सी बजावे मोहे लीनी। हरीसंग चली मन मोहना॥१॥
शाम हटेले बडे कवटाले। हर लाई सब ग्वालना॥२॥
कहे मीरा तुम रूप निहारो। तीन लोक प्रतिपालना॥३॥

मीरा बाई के पद का हिन्दी व्याख्या

जमुना से पानी भरने गई ग्वालियों का मन श्री कृष्ण ने बंसी बजा कर मोह लिया है। मीराबाई कहती है कि अब तो सारी सखियां कृष्ण की मुरली की मधुर ताल के साथ खो गई हैं, अब जमुना से पानी कौन भरेगा।

शाम होने को आई है लेकिन किसी को भी सुध नहीं है। मीराबाई कहती हैं की हे सखियों तुम केवल लीला पति के मनमोहक रूप को निहारो जो तीनों लोकों के प्रति पालन है। 

39. खबर मोरी लेजारे बंदा जावत हो तुम उनदेस॥ध्रु०॥
हो नंदके नंदजीसु यूं जाई कहीयो। एकबार दरसन दे जारे॥१॥
आप बिहारे दरसन तिहारे। कृपादृष्टि करी जारे॥२॥
नंदवन छांड सिंधु तब वसीयो। एक हाम पैन सहजीरे।
जो दिन ते सखी मधुबन छांडो। ले गयो काळ कलेजारे॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। सबही बोल सजारे॥४॥

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

मीराबाई कहती है कि यदि कोई मेरे प्रियतम के देश जा रहा है, तो मेरा संदेश भी उन तक पहुंचा दें की एक बार मुझ अभागिन को अपने दर्शन दे जावे। ना जाने कितने वर्षों से उनकी बाट में मैं बैठी हूं, एक बार अपनी कृपा दृष्टि मुझ पर भी डालकर मुझे दर्शन दे।

जिस दिन श्रीकृष्ण ने मधुबन को छोड़ा वह अपने साथ हमारी सुखचैन अपने साथ ले गए थे। जब तक कृष्णा मुझे दर्शन नहीं देते, तब तक मेरे हृदय को शांति नहीं मिलेगी। 

40. गली तो चारों बंद हुई, मैं हरिसे मिलूं कैसे जाय।
ऊंची नीची राह लपटीली, पांव नहीं ठहराय।
सोच सोच पग धरूं जतनसे, बार बार डिग जाय॥
ऊंचा नीचा महल पियाका म्हांसूं चढ़्‌यो न जाय।
पिया दूर पंथ म्हारो झीणो, सुरत झकोला खाय॥
कोस कोस पर पहरा बैठ्या, पैंड़ पैंड़ बटमार।
है बिधना, कैसी रच दीनी दूर बसायो म्हांरो गांव॥
मीरा के प्रभु गिरधर नागर सतगुरु दई बताय।
जुगन जुगन से बिछड़ी मीरा घर में लीनी लाय॥

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

मीराबाई कहती है कि कृष्ण से मिलने की इच्छा तो बहुत हो रही है, लेकिन चारों तरफ से गलियां बंद कर दी गई है, मैं अब अपने प्रभु से कैसे मिलूं। सामने ऊंची ऊंची लहरे उछाल मार रही है, जहां पैर ठहर ही नहीं पा रहे हैं। बड़े ही सोच समझकर हर एक कदम मैं आगे रख रही हूं।

मेरे पिया का महल तो बड़े ही ऊंचे  नीचे स्थान पर है, जहां मुझे चढ़ने में बेहद कठिनाई हो रही है। मैं अपने प्रियतम से मिलने के लिए बड़ी बेताब हो रही हूं, लेकिन हर एक कदम पर पहरा बैठा हुआ है। हे कृष्ण! तुमने इतना दूर अपना घर क्यों बसाया है।

मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि तुम से बिछड़े मुझे सदियां बीत गई है। अब मेरे मन में उठने वाले विरह की पीड़ा असहाय हो रही है। हे परमेश्वर मुझे अपनी दासी समझ कर मुझ पर कृपा करिए और अपने दर्शन दीजिए। 

41. घर आंगण न सुहावै, पिया बिन मोहि न भावै॥
दीपक जोय कहा करूं सजनी, पिय परदेस रहावै।
सूनी सेज जहर ज्यूं लागे, सिसक-सिसक जिय जावै॥
नैण निंदरा नहीं आवै॥
कदकी उभी मैं मग जोऊं, निस-दिन बिरह सतावै।
कहा कहूं कछु कहत न आवै, हिवड़ो अति उकलावै॥
हरि कब दरस दिखावै॥
ऐसो है कोई परम सनेही, तुरत सनेसो लावै।
वा बिरियां कद होसी मुझको, हरि हंस कंठ लगावै॥
मीरा मिलि होरी गावै॥

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

मीराबाई कहती है कि श्री कृष्ण के बिना उनका मन कहीं नहीं लगता और घर का आंगन भी बहुत सुना-सुना लगता है। अब मेरे पिया तो परदेस रहते हैं अब मैं क्या करूं कुछ समझ नहीं आ रहा। कभी-कभी अपने प्रभु से बिछड़ने का दुख इतना बढ़ जाता है, कि अपने हाथों से जहर पीने लगती हूं लेकिन जिया सिसक सिसक कर रह जाता है।

रातों को आंखों में नींद नहीं रहती। मैं कब से उनकी प्रतीक्षा कर रही हूं, प्रतिदिन बिरहा मुझे सता रहा है और हृदय में प्रभु मिलन की चाहना उठती है। हे श्री हरि वह समय कब आएगा जब तुम मुझे दर्शन दोगे। क्या कोई ऐसा प्रेमी होता है, जो अपनी प्रेमिका को इस प्रकार सताता है। 

42. चरन रज महिमा मैं जानी।
याहि चरनसे गंगा प्रगटी।
भगिरथ कुल तारी॥ चरण०॥१॥
याहि चरनसे बिप्र सुदामा।
हरि कंचन धाम दिन्ही॥ च०॥२॥
याहि चरनसे अहिल्या उधारी।
गौतम घरकी पट्टरानी॥ च०॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर।
चरनकमल से लटपटानी॥ चरण०॥४॥

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

मीराबाई कहती हैं कि उस चरण रज की महिमा मैं भली-भांति जानती हूं, जिसके प्रभाव से भगीरथ के लिए गंगा प्रकट हुई है। जिनके विशाल ह्रदय ने एक गरीब ब्राह्मण मित्र सुदामा को अनमोल सोने का भंडार प्रदान किया। इन्हीं चरण से अहिल्या का उद्धार हुआ जो गौतम के घर की पटरानी बनी। ऐसे अमूल्य प्रभु के चरणों से मैं लिपटकर बारंबार श्री हरि को प्रणाम करती हूं। 

43. स्याम म्हाने चाकर राखो जी,
गिरधारी लाला म्हाँने चाकर राखोजी।
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ।
बिंदरावन री कुंज गली में, गोविंद लीला गास्यूँ।
चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनूं बाताँ सरसी।

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

प्रस्तुत पंक्ति में श्री कृष्ण और मीरा बाई के बीच महान भगवान और भक्त का रिश्ता देखने को मिलता है। केवल श्री कृष्ण के दर्शन मात्र के लिए मीराबाई एक दासी बनने के लिए तैयार है। उपरोक्त पंक्ति में मीराबाई श्री कृष्ण से यह विनती कर रही है, कि हे प्रभु मुझे अपनी दासी बनाकर अपने समीप रख लीजिए।

सुबह सुबह जब मैं  बागवानी करूं, तब मुझे आपके दर्शन हो जाएंगे। हे गिरधर गोपाल वृंदावन की कुंज गलियों में मैं आपकी लीलाएं गाती थी फिरूँगी, बस केवल मुझे अपना दासी बना कर रख लीजिए।

इस नौकरी में मुझे वह सब कुछ प्राप्त होगा जो पिछले कई जन्मों से नहीं मिला है। अपनी दासी के कार्य के बदले मीराबाई को  खर्च करने के लिए कृष्ण दर्शन और उनका स्नेह मिलेगा जिसे वे सदा अपने पास रखेंगी।

44. चालो मन गंगा जमुना तीर।
गंगा जमुना निरमल पाणी सीतल होत सरीर।
बंसी बजावत गावत कान्हो, संग लियो बलबीर॥
मोर मुगट पीताम्बर सोहे कुण्डल झलकत हीर।
मीराके प्रभु गिरधर नागर चरण कंवल पर सीर॥

मीरा बाई के पद का हिन्दी व्याख्या

उपरोक्त दोहे में मीराबाई अपने मन को कह रही हैं, कि चलो गंगा के किनारे चलते हैं, जहां के शुद्ध जल को पीने से शरीर निर्मल और शीतल हो जाता है।

गंगा किनारे श्री कृष्ण अपने बड़े भाई बलवीर को लिए हुए बंसी बजा कर मधुर आवाज में गाते हैं। मोर मुकुट और पितांबर जिनके ऊपर शोभा देती है, ऐसे मेरे प्रभु गिरिधर नागर के चरणों में मैं शीश झुकाती हूं। 

45. झुलत राधा संग। गिरिधर झूलत राधा संग॥ध्रु०॥
अबिर गुलालकी धूम मचाई। भर पिचकारी रंग॥ गिरि०॥१॥
लाल भई बिंद्रावन जमुना। केशर चूवत रंग॥ गिरि०॥२॥
नाचत ताल आधार सुरभर। धिमी धिमी बाजे मृदंग॥ गिरि०॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलकू दंग॥ गिरि०॥४॥

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

इस दोहे में वृंदावन में कृष्ण और सभी वृंदावन वासियों द्वारा खेली जा रही होली का मीराबाई द्वारा अनोखा चित्रण किया गया है। मीराबाई कहती हैं कि गिरधर राधा रानी के साथ झूम कर गुलाल और अबीर को चारों तरफ उछालते हुए पिचकारी में भरे रंग को एक दूसरे पर बिखेर रहे हैं।

होली के रंगों से वृंदावन और जमुना लाल हो गए हैं और केसर रंग चारों तरफ बिखरा है। मृदंग की ताल पर मधुर राग गाया जा रहा है। अपनी लीलाओं से सबका मन मोहित कर लेने वाले श्री गिरिधर नागर को मेरा प्रणाम है। 

46. जमुनामों कैशी जाऊं मोरे सैया। बीच खडा तोरो लाल कन्हैया॥ध्रु०॥
ब्रिदाबनके मथुरा नगरी पाणी भरणा। कैशी जाऊं मोरे सैंया॥१॥
हातमों मोरे चूडा भरा है। कंगण लेहेरा देत मोरे सैया॥२॥
दधी मेरा खाया मटकी फोरी। अब कैशी बुरी बात बोलु मोरे सैया॥३॥
शिरपर घडा घडेपर झारी। पतली कमर लचकया सैया॥४॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलजाऊ मोरे सैया॥५॥

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

उपरोक्त दोहे में मीराबाई ग्वालिन और कन्हैया के बीच मधुर लीलाओं का वर्णन करते हुए कहती हैं कि अब मैं जमुना नदी में जल भरने के लिए कैसे जाऊं क्योंकि रास्ते में कन्हैया ने हमारा रास्ता रोक लिया है। हे पिया जी वृंदावन के मथुरा नगरी पानी भरने के लिए अब मैं किस प्रकार जाऊं।

इनके हाथों में चूड़ियां भरी है, लेकिन बालकृष्ण सखियों को सताने के लिए उनके कंगन को लहरा रहे हैं। गोपियों का मटका श्री कृष्ण तोड़कर दही माखन खा रहे हैं। श्री कृष्ण ऐसा करते हुए सभी का मन मोह लेते हैं और अब इतने प्यारे कन्हैया को भला कोई कैसे बुरा भला कह सकता है।

गोपियों के सिर पर घड़ा और उनके ऊपर जारी रखा है, जिससे गोपियों की पतली कमर लचक रही है। श्री कृष्ण सखियों को जमुना नदी मैं पानी भरने से रोकने के लिए बीच में ही उनका मार्ग रोक लिए हैं। 

47. जल कैशी भरुं जमुना भयेरी॥ध्रु०॥
खडी भरुं तो कृष्ण दिखत है। बैठ भरुं तो भीजे चुनडी॥१॥
मोर मुगुटअ पीतांबर शोभे। छुम छुम बाजत मुरली॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चणरकमलकी मैं जेरी॥३॥

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

अब मैं जमुना से जल कैसे भरूं क्योंकि जब मैं जल भरने के लिए खड़ी होती हूं, तो कृष्ण की मोहनी सूरत दिखाई पड़ती है लेकिन जब मैं बैठ जाती हूं तब मेरे वस्त्र पानी में भीग जाते हैं। कृष्ण की मोहनी सूरत मुझ पर इस प्रकार अपना जादू करती है कि मैं अपना सुध बुध गवा देती हूं।

पैरों में पायल पहने बालकृष्ण अपने मस्तक पर मोर मुकुट और पितांबर धारण किए हुए हैं। जब कन्हैयालाल चलते हैं तो उनके पैरों की पायल छम छम बजती है, जो सुनने में बडी ही मधुर लगती है। मीराबाई कहती हैं कि श्री कृष्ण के चरणों के दर्शन मात्र से इस संसार का सभी कष्ट दूर हो जाता है। 

48. जसवदा मैय्यां नित सतावे कनैय्यां, वाकु भुरकर क्या कहुं मैय्यां॥ध्रु०॥
बैल लावे भीतर बांधे। छोर देवता सब गैय्यां॥ जसवदा मैया०॥१॥
सोते बालक आन जगावे। ऐसा धीट कनैय्यां॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। हरि लागुं तोरे पैय्यां॥ जसवदा०॥३॥

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

उपरोक्त कविता में मीराबाई कहती हैं, कि श्री कृष्ण गोपियों को बहुत सताते हैं। इससे नाराज होकर सभी गोपियां यशोदा मैया से उनकी शिकायत करने जाती है और कहती हैं, कि हे यशोदा रानी तुम्हारा लाल हमें बहुत परेशान करता है।

बैलों को घर के भीतर लाकर सभी गायों को छोड़ देता है। हे यशोदा तुम्हारा लल्ला इतना नटखट है, कि हमारे सोते हुए बालकों को जगा देता है। हे गिरिधर मैं तुम्हारे पैर पड़ती हूं, हमें यू परेशान करना बंद करो। 

49. जागो बंसी वारे जागो मोरे ललन।
रजनी बीती भोर भयो है घर घर खुले किवारे।
गोपी दही मथत सुनियत है कंगना के झनकारे।
उठो लालजी भोर भयो है सुर नर ठाढ़े द्वारे।
ग्वाल बाल सब करत कोलाहल जय जय सबद उचारे ।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर शरण आया कूं तारे ॥

मीरा बाई के पद का हिन्दी भावार्थ

हे कृष्ण लल्ला जागो क्योंकि अब रात बीत चुकी है और सुबह हो गया है। सभी के घरों की खिड़कियां खुल गई है और गोपियां दही मक्खन मथ रही है। दही मथने से गोपियों के चूड़ियों की आवाज यहां तक सुनाई दे रही है।

देखो लल्ला सुबह हो गई अब उठ भी जाओ! श्री कृष्ण अभी तक सो रहे हैं और घर के बाहर सभी ग्वाले शोर मचाकर कोलाहल कर रहे हैं। इस पंक्ति में मीराबाई श्री कृष्ण को नींद से जगाने के लिए उनकी माता यशोदा द्वारा किए जा रहे प्रयत्नों का वर्णन कर रही हैं। 

50. जो तुम तोडो पियो मैं नही तोडू, तोरी प्रीत तोडी कृष्ण कोन संग जोडू ॥ध्रु०॥
तुम भये तरुवर मैं भई पखिया। तुम भये सरोवर मैं तोरी मछिया॥ जो०॥१॥
तुम भये गिरिवर मैं भई चारा। तुम भये चंद्रा हम भये चकोरा॥ जो०॥२॥
तुम भये मोती प्रभु हम भये धागा। तुम भये सोना हम भये स्वागा॥ जो०॥३॥
बाई मीरा कहे प्रभु ब्रज के बासी। तुम मेरे ठाकोर मैं तेरी दासी॥ जो०॥४॥

मीरा बाई के पद का हिन्दी अर्थ

हे कृष्ण तुम भले ही मेरे संग प्रेम के इस अद्भुत बंधन को तोड़ कर अपना मुंह मोड़ लो, लेकिन फिर भी मैं आपका साथ नहीं छोडूंगी। मीराबाई श्री कृष्ण से कहती हैं, कि हे प्रभु इस संसार में आप मेरे लिए सरोवर है और मैं एक मछली स्वरूप हूं।

भले ही आप मुझसे रूठ जाए लेकिन मैं फिर भी आपका स्मरण करना नहीं छोडूंगी। हे प्रभु! तुम मेरे मोती हो और हम तुम्हारे धागा है। मीराबाई कहती हैं की प्रभु आप ब्रज के वासी हो और हे ठाकुर! मैं आपकी दासी हूं कृपया मुझ पर कृपा बनाए रखें।

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1 thought on “मीरा बाई के पद (दोहे) अर्थ सहित Meera Bai Ke Pad with Meaning in Hindi”

  1. पति पत्नी के विश्वास व श्रद्धा पर आधारित, भारतीय परंपरा और संस्कृति के प्रतीक महापर्व ‘करवा चौथ’ की हार्दिक शुभकामनाएं।
    #karvachauth Gulab & H.R.Pooniya

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