इस लेख में हम आपको वैदिक ज्योतिष Vedic Astrology के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे ।
वैदिक ज्योतिष Vedic Astrology
भारतीय संस्कृति वेदों पर आधारित है। वेदों में न सिर्फ धार्मिक बल्कि चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान जैसे विषयों का विस्तृत वर्णन मिलता है। भारतीय ज्योतिष विद्या का जन्म भी वेदों से हुआ है। वेदों से जन्म लेने के कारण इसे वैदिक ज्योतिष भी कहा जाता है।
वैदिक ज्योतिष की परिभाषा Definition of Vedic Astrology
वैदिक शास्त्र एक प्रकार का विज्ञान है जो आकाश में स्थित सूर्य, चंद्रमा, नौ ग्रहों और नक्षत्रों का अध्ययन करता है और पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों के जीवन पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा बताता है। वैदिक ज्योतिष की गणना करते समय राशि चक्र, नवग्रह, जन्म राशि को आधार बनाया जाता है।
राशि और राशि चक्र Zodaic
राशियों का निर्माण नक्षत्रों से हुआ है। तारा समूह को नक्षत्र कहते हैं। कुल नक्षत्रों की संख्या 27 है। प्रत्येक नक्षत्र 13 डिग्री 20 मिनट का होता है। राशिचक्र में प्रत्येक राशि में 30 डिग्री होती है। राशिचक्र में सबसे पहला नक्षत्र अशिवनी है।
नवग्रह Nine Planets
सूर्य, चंद्रमा, मंगल, गुरु, बुध,, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु को नवग्रह के नाम से जाना जाता है। सभी ग्रह अपने गोचर में भ्रमण करते हुए राशिचक्र में कुछ समय के लिए ठहरते हैं और राशि फल प्रदान करते हैं। राहु और केतु को आभासीय ग्रह माना जाता है। इनका वास्तविक अस्तित्व नहीं है। यह दोनों राशि मंडल में गणितीय बिंदु के रूप में स्थित होते हैं।
लग्न और जन्म राशि
पृथ्वी अपने अक्ष पर 24 घंटे में एक चक्कर लगाती है जिससे दिन और रात पूरा होता है। पृथ्वी पश्चिम से पूरब दिशा में घूमती है। इस कारण सभी ग्रह, नक्षत्र और राशियाँ 24 घंटे में एक बार पूरब से पश्चिम दिशा में घूमती हुई दिखाई देती हैं।
जब कोई बालक जन्म लेता है उस समय अक्षांश और देशांतर में जो राशि पूर्व दिशा में उदित होती है वह राशि व्यक्ति का जन्म लग्न कहलाती है। जन्म के समय चंद्रमा जिस राशि में बैठा होता है उस राशि को जन्म राशि या चंद्र लग्न कहते हैं।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार ग्रहों का प्रभाव Effects of planets in Kundli
सूर्य
सूर्य ग्रह को ऊर्जा, पराक्रम, सम्मान, पिता, आत्मा का कारक माना जाता है। सभी ग्रहों का राजा भी सूर्य है। सूर्य के प्रकाश से सभी ग्रह और तारों में प्रकाश आता है।
जातक की कुंडली में जब सूर्य की स्थिति मजबूत होती है तो उसे बहुत से फायदे मिलते हैं। उसे नौकरी सम्मान और उच्च पद प्राप्त होता है। वह लीडर बनकर उभरता है।
चंद्र ग्रह
सभी ग्रहों में चंद्रमा को मन, माता, धन, जल और यात्रा का कारक माना गया है। जिन जातकों का चंद्र पीड़ित या कमजोर होता है उनका मन हमेशा व्याकुल रहता है। वे बेचैन दिखते हैं। जातक की कुंडली में जब चंद्रमा शुभ स्थान पर बैठा होता है तो जातक का मनोबल बढ़ा हुआ होता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार जन्म के समय चंद्रमा जिस राशि में स्थित होता है वह जातक की चंद्र राशि कहलाती है। चंद्र ग्रह कमजोर होने से व्यक्ति को मानसिक तनाव, डिप्रेशन, अवसाद जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
मंगल ग्रह
ज्योतिष विज्ञान के अनुसार मंगल ग्रह को शक्ति, साहस, क्रोध, उत्तेजना, शस्त्र छोटे भाई का कारक माना माना गया है। जिन जातकों का मंगल अच्छा होता है वह स्वभाव से साहसी होते हैं।
किसी से भी नहीं डरते। उन्हें युद्ध में विजय प्राप्त होती है, परंतु यदि जातक की कुंडली में मंगल शुभ स्थान पर बैठा है तो नकारात्मक फल देता है।
बुध ग्रह
बुध ग्रह को बुद्धि, मामा, गणित, तर्क शक्ति, संचार और मित्र का कारक माना गया है। बुध एक तटस्थ ग्रह है जो जिस ग्रह की संगति में आता है उसके अनुसार जातक को फल देता है।
यदि जातक का बुध कमजोर है तो उसकी गणित, तर्क शक्ति, बुद्धि, संवाद में समस्या का सामना करना पड़ता है। बुध मजबूत होने पर जातक का गणित, तर्क शक्ति और बुद्धि बहुत श्रेष्ठ होती है।
शुक्र ग्रह
शुक्र ग्रह को प्रेम, रोमांस, ऐश्वर्य, विलासिता, कामवासना, भौतिक सुख साधन, पति पत्नी का संगीत, फैशन डिजाइन आदि का कारक समझा जाता है। जिस जातक की कुंडली में शुक्र ग्रह अच्छा होता है वह भौतिक सुख साधनो से संपन्न होता है। वह प्रेमी और रोमांस करने वाला होता है।
शनि ग्रह
शनि ग्रह की चाल धीमी है। जातकों के राशि में यह अधिक देर तक रहता है। एक राशि में शनि करीब 2 से ढाई वर्ष रहता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार शनि रोग, पीढ़ा, विज्ञान, लोहा, खनिज तेल, कर्मचारी, सेवक, जेल, आयु, दुख का कारक माना जाता है। जातक की कुंडली में यदि शनि अशुभ स्थान पर बैठा है तो नकारात्मक फल देता है।
राहु केतु
इन दोनों ग्रहों को छाया ग्रह कहते हैं। उनका अपना कोई अस्तित्व नहीं है। अन्य ग्रहों की तरह इनमें कोई भार नहीं होता है। यह दोनों ग्रह सूर्य और चंद्रमा के साथ ग्रहण योग बनाते हैं। राहु को भ्रम का कारक माना जाता है और केतु को चिंताओं का कारक माना जाता है।