ग्रामीण मेले पर निबंध Essay on Village fair in Hindi – Mela par Nibandh
ग्रामीण मेले पर निबंध Essay on Village fair in Hindi – Mela par Nibandh
मेला देखना हम सभी को पसंद होता है। कुछ दिनों बाद शिवरात्रि का त्यौहार आने वाला था। मैं भी अपने माता-पिता से मेला जाने को कहने लगा। शिवरात्रि के दिन मेरे मम्मी पापा मुझे मेला ले कर गये। हमारा घर इलाहाबाद के एक गांव में पड़ता है। शिवरात्रि के दिन हमारे गांव में बहुत बड़ा मेला लगता है।
सभी लोग उसे देखने जाते हैं। वहां पर बहुत मजा आता है। गांव का जीवन शहरों की तुलना में बहुत ही सीधा सरल होता है। गांव वाले स्वभाव से बहुत भोले वाले होते हैं। सभी गांव वालों को मेला देखना बहुत पसंद होता है।
ग्रामीण मेले पर निबंध Essay on Village fair in Hindi – Mela par Nibandh
मेले से बहुत मनोरंजन प्राप्त होता है। आप सभी जानते हैं कि गांव में घूमने फिरने की कोई खास जगह नहीं होती है। सिनेमाहॉल, मॉल या कोई थिएटर वगैरह नहीं होता है। ऐसे में मेले के द्वारा गांव वालों का भरपूर मनोरंजन होता है।
इसके अनेक फायदे भी हैं। बहुत से दुकान वाले, व्यापारी मेले में वस्तुएं बेच कर अच्छा मुनाफा कमा लेते हैं। बच्चों को मेला देखना हमेशा ही पसंद होता है। शायद ही ऐसा कोई बच्चा होगा जिसे मेला देखना पसंद ना हो।
बच्चों को मेले में खाने पीने की ढेरों चीजें मिलती हैं। टॉफी, बिस्कुट, बुढ़िया का का बाल, गुब्बारे, खिलौने, जूते चप्पल, कपड़े, तरह तरह के झूले देखने को मिलते हैं। शिवरात्रि के दिन हमारे स्कूल की भी छुट्टी थी।
यह तो पहले से ही तय हो चुका था कि आज मम्मी पापा हमें मेला ले कर जाएंगे। मेरा छोटा भाई सुरेश मुझसे बार-बार मेला जाने की जिद कर रहा था। “सुरेश तू जल्दी से नहा ले और अपना स्कूल का होमवर्क कर लें। फिर हम मेला देखने जाएंग” मैंने उससे कहा
शाम 5 बजे तक मेरे मम्मी पापा मुझे लेकर शिवरात्रि का मेला दिखाने ले गये। मेले में बहुत भीड़ थी। सब तरफ लोग ही लोग दिख रहे थे। हमारे आस पास के पड़ोस के गांव से भी बहुत सारे लोग आए थे। मेले में चारों तरफ बहुत सी लाइट्स लगी थी। सभी दुकाने प्रकाश से चकाचौंध थी। वहां पर हमें बहुत सी दुकान देखने को मिली। खिलौनों की दुकान पर तो बच्चों की भीड़ लगी हुई थी।
सभी बच्चे अपने मां बाप से खिलौना खरीदने की जिद कर रहे थे। मेरा छोटा भाई सुरेश भी खिलौने देखकर मम्मी से कहने लगा- “मम्मी! मुझे वह बंदर वाला खिलौना चाहिए” वह खिलौना बहुत ही अच्छा था। उसमें एक प्लास्टिक का बंदर था जिसमे चाभी भरने पर वह ढोल बजाता था। वो खिलौना 70 रूपये का था।
मम्मी भी सुरेश को खुश करना चाहती थी, इसलिए उन्होंने खिलौने वाली दुकान व से मोलभाव करके उस खिलौने को 50 रूपये में खरीद दिया। सुरेश बंदर वाला खिलौना पाकर बहुत खुश था। हम आगे बढ़े तो रेडीमेड कपड़ों की अनेक दुकान देखने को मिली। अब तो गांव में भी लोग शहरों जैसे कपड़े पहनना पसंद करते हैं।
उस दुकान पर जींस, टी शर्ट, लोवर, ट्राउजर, शर्ट्, टोपियां, जैकेट्स जैसे बहुत से कपड़े मिल रहे थे। वहां पर युवाओं की भीड़ लगी हुई थी। युवा लड़के लड़कियां उस दुकान से कपड़े खरीदने में व्यस्त थे। हम आगे पढ़े तो और भी बहुत सी दुकान देखने को मिली। मेले में चारों तरफ गहमागहमी थी। लोग धक्का-मुक्की कर रहे थे।
“राम! देखो तुम अपना जेब संभाल के रखना, वरना कोई तुम्हारा पर्स चुरा लेगा” मेरे पापा ने मुझसे कहा। मेले में चोरियां भी बहुत होती हैं, इसलिए उन्होंने ऐसा कहा था। आगे बढ़ने पर हमें बहुत सी दुकानें देखने को मिली।
निशानेबाजी वाली दुकान पर जाकर हम सभी रुक गये। उस दुकान में एक दीवार पर बहुत से गुब्बारे लगे हुए थे और बंदूक से निशाना लगाकर उनको फोड़ना था। जो अधिक से अधिक गुब्बारों को फोड़ता उसे पुरस्कार में सामान मिलता।
यह दुकान देख कर पापा भी बहुत खुश हो गए। वह निशानेबाजी करना चाहते थे। उन्होंने दुकानदार को 10 रूपये दिए और दुकानदार ने उन्हें बंदूक पकड़ा दी। पापा गुब्बारों पर निशाना लगाने लगे। पर 10 बार शूट करके वो सिर्फ दो ही गुब्बारे फोड़ पाये। इसलिए उन्हें इनाम में कुछ नहीं मिला।
मेले में महिलाओं के लिए भी कपड़े बिक रहे थे, एक दुकान पर महिलाओं के लिए साड़ियां, सलवार सूट, कार्डिगन, लेगी, स्वेटर, जैकेट जैसे बहुत से कपड़े मिल रहे थे। मेरी मम्मी को एक स्वेटर खरीदना था।
उनको एक गुलाबी रंग का स्वेटर पसंद आया जो कि 500 का था। मोलभाव करने पर दुकानदार ने 400 रूपये का दे दिया। स्वेटर पाकर मम्मी भी बहुत खुश थी। उसके बाद हम सभी को भूख लग आई।
मम्मी पापा, सुरेश और मैं एक चाट वाले ठेले पर गये जहां पर हम सभी ने पानी के बताशे खाए। उसके बाद सभी ने चाट खाई जो कि बहुत स्वादिष्ट और जायकेदार थी। मेला बहुत बड़ा था जो कि अभी देखना बाकी था। अभी तो हम सिर्फ आधा मेला ही देख पाए थे। कुछ दूर आगे बढ़े तो वहां पर बहुत सारे झूले देखने को मिले। विभिन्न प्रकार के झूले उस मेले में थे।
मोटर से चलने वाली ट्रेन मुझे बहुत अच्छी लगी। उस ट्रेन में बच्चे बैठ जाते थे और वह ट्रेन गोल-गोल घूमती थी। हम पैदल पैदल आगे बढ़ते जा रहे थे। उसके बाद हमें बहुत से झूले देखने को मिले। सबसे बड़ा झूला तो बहुत विशाल था।
वह कम से कम 50-60 फुट ऊंचा होगा। वह झूला बहुत दूर से दिखाई दे रहा था। उसमें चारों तरफ ट्यूब लाइट जल रही थी जो कि बहुत सुंदर लग रही थी। उस झूले में सभी बच्चे अपने मम्मी पापा के साथ बैठे हुए थे। जैसे ही झूला ऊपर जाता था बच्चे जोर से चिल्लाते थे। उनको डर भी लगता था पर उनको मजा भी बहुत आता था।
“राम बोलो! तुम्हें कौन से झूला पर बैठना है?” पापा बोले। “पापा! मुझे इस बड़े वाले झूले पर बैठना है” मैंने कहा। उसके बाद पापा ने सभी के लिए टिकट खरीदा। एक टिकट का मूल्य 30 रूपये था। हम सभी झूले में बैठ गए। जैसे ही झूले की सभी सीटें फुल हो गई झूले वाले ने उसे चलाना शुरु किया, वह बिजली से चलने वाला झूला था।
पहले तो वह धीरे-धीरे ऊपर गया। हम सभी को मजा आ रहा था, पर डर भी बहुत लग रहा था। कुछ दिन बाद झूले की रफ्तार तेज हो गई और सभी लोग डर से कांपने लगे। झूला बड़ी जल्दी जल्दी ऊपर नीचे हो रहा था। ऐसा लगता था कि हम सभी कहीं टूट कर गिर ना पड़े। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
5 मिनट तक झूला चलता रहा और हम लोग के रोंगटे खड़े हो गये। सभी लोग खूब चिल्लाये। कुछ बच्चे तो उल्टी करने लगे। इस तरह हम सभी ने गांव के शिवरात्रि मेले का भरपूर आनंद उठाया। रात 9:00 बजे तक मैं अपने परिवार के साथ घर लौट आया। वह झूले का दिन मुझे आज भी याद आता है।
Nice essay