आज हमने इस आर्टिकल में हिन्दू विवाह की सभी प्रमुख रस्मों (Hindu Wedding Rituals in Hindi) के विषय में बताया है। इन हिन्दू विवाह अनुष्ठानों का शादी में अच्छे से निभाना बहुत ही ज़रूरी माना जाता है। भले ही हिन्दू व्यक्ति आमिर हो या गरीब अपने विवाह के दौरान इन रस्मों या अनुष्ठानों को निभाते हैं।
संभवतया दुनिया में सबसे पुराना धर्म हिन्दू धर्म है, जिसकी अनुमानित ऐतिहासिक धरोहर 3000 ईसा पूर्व है। इसकी बहुत सी परंपराएं युगों युगों तक चली और कुछ छदम समय पर ही नष्ट हो गई। हिन्दू विवाह, विधि-विधान की एक अत्यंत पवित्र विधि है जिसमें कई कालातीत कर्मकांड और रीति-रिवाजों का समावेश है। कहते है शादी वह बंधन है जिसके माध्यम से सिर्फ दो दिलों का मिलन नहीं होता है, बल्कि दो परिवारों का मिलन होता है।
इस रस्म के बाद वर-वधू सहित दोनों के परिवारों का जीवन पूरी तरह बदल जाता है। इसलिए विवाह के संबंध में कई महत्वपूर्ण सावधानियां रखना जरूरी है। विवाह के बाद वर-वधू का जीवन सुखी और खुशियों से भरा हो यही कामना की जाती है। विवाह (संस्कृतः विवाह) को उत्तर भारत में विवाह तथा दक्षिण भारत में कल्याणम् कहा जाता हैं।
प्राचीन काल में इन परंपराओं और अनुष्ठानों का विस्तार कई दिनों तक होता रहा, लेकिन आज के व्यस्त समाज में ऐसी अनुसूची का समायोजन करना कठिन है। इसीलिए आज इनमें से बहुत सी परंपराएं विवाह समारोह के पहले रात के दौरान की जाती हैं। हिन्दू अनुष्ठान केवल वधु पर ही नहीं, बल्कि दो परिवारों के साथ आने का भी अवसर प्रदान करता है। इस विषय को स्पष्ट करने के लिए अनेक रीति-रिवाजों में दोनों परिवारों को शामिल किया गया है।
सगाई:-
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सगाई को न सिर्फ हिन्दू शादियों में, बल्कि अन्य धर्मों में भी विवाह की सबसे महत्त्वपूर्ण रीति-रिवाजों में से एक माना जाता है। यह कार्यक्रम आमतौर पर शादी से कुछ दिन पहले होता है। इस कार्यक्रम के दौरान दोनों ही परिवारों के मुखिया अपने बच्चों के विवाह का घोषणा आमंत्रित अतिथियों से औपचारिक रूप से करते हैं। इसके पश्चात वर-वधू अपने सम्बन्धों को मजबूत करने के लिए रिंग बदलते हैं।
मेंहदी:-
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इस कार्यक्रम में दुल्हन के हाथों और पैरों पर हीना चढाने का कार्य किया जाता है (कुछ राज्यों में यह दूल्हे पर भी लागू किया जाता है)। यह सुंदर घटना अक्सर शाम को परिवार के सदस्यों और मित्रों के नृत्य-संगीत के बीच होती है।
हीना लगाने के बाद दुल्हन को कई घंटों तक बैठना पड़ता है ताकि उसका रंग हाथो पर अच्छे से निखर आए। घर मे उपस्थित महिला अतिथि भी अपने हाथों में मेंहदी लगवाती है। इस आनन्ददायक उत्सव को प्राय: पारंपरिक गीतों को गाकर तथा परंपरागत वाद्यों जैसे ढोलक बजा कर मनाते है।
संगीत:-
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इस कार्यक्रम में परिवार की सभी महिलाएँ इकट्ठा हो कर संगीत एवं नृत्य करती है। यह ध्यान देने योग्य है कि न केवल यह कार्यक्रम मज़ेदार होता है बल्कि विवाह योजनाकारों ने भी कसम खाकर कहा है कि इससे दोनों पक्ष कुछ समय के लिए विवाह के चिंताओं को भूल जाते हैं। इसीलिए यह कार्यक्रम विशेष रूप से चुनें जाते है।
तिलक:-
तिलक के कार्यक्रम को दोनों परिवारों के आपसी संबंध में पहला कदम माना जाता है। यह शुभ कार्य अधिकतर वर के निवास पर होती है, जहां वर के माथे पर कन्या का भाई कुमकुम लगाने आते हैं।
हालांकि राज्य के विभिन्न भागों में तिलक अनुष्ठान के कई रूप देखने को मिलते हैं पर इनमें से एक का उल्लेख सामान्यतया किया गया है। इसके अलावा संगीत और नृत्य भी देश के कई राज्यों में इस कार्यक्रम का प्रमुख भाग है।
हल्दी:-
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इस कार्यक्रम में वधू के शरीर पर विवाह के पहले या उसकी सुबह हल्दी की एक लेप लगाया जाता है। भारत के कुछ राज्यों में यह कार्य मेहंदी अनुष्ठान के बाद आयोजित किया जाता है। हल्दी का कार्य दुल्हन और दूल्हे के शुभ दिन पर उनको सुशोभित करने के लिये किया जाता है।
बारात आगमन:-
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इस कार्यक्रम में विवाह हेतु दूल्हा अपने पिता, सगे-संबंधियों एवं मित्रों के साथ दुल्हन के घर पहुँचता है। दुल्हन के माता-पिता, परिवार और मित्रों अछत के साथ तिलक, आरती और मालायें भेंट करते हैं तथा बारात में आये हुए अतिथतियों का आदर सत्कार करते हैं
द्वार पूजा:-
विवाह हेतु बारात जब द्वार पर आती है, तो सर्वप्रथम ‘वर’ का स्वागत-सत्कार किया जाता है। तत्पश्चात् ‘वर’ और कन्यादाता परस्पर अभिमुख बैठकर षट्कर्म, कलावा, तिलक, कलशपूजन, गुरुवन्दना, गौरी-गणेश पूजन, सर्वदेवनमस्कार, स्वस्तिवाचन करते है। इसके बाद कन्यादाता वर सत्कार के सभी कृत्य आसन, अर्घ्य, पाद्य, आचमन, मधुपर्क आदि सम्पन्न करते है।
जयमाल:-
इस कार्यक्रम में सर्वप्रथम दूल्हा और दूल्हन एक दूसरे को फूलों की माला पहनाते है, उसके पश्चात पहले वर पक्ष फिर वधू पक्ष वर-वधू को आशीर्वाद देते है। जयमाला का अर्थ है कि दोनों ने एक दूजे को पति-पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया है।
कन्यादान:-
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कन्यादान की रस्म लड़की के माता-पिता के लिए एक बेहद ही नाजुक पल होता है। इस दौरान लड़की के माता-पिता अपनी बेटी के हाथ में पवित्र जल डालकर दूल्हे के हाथ में रखते हैं। इस दौरान दुल्हन की साड़ी के साथ दूल्हे के दुपट्टे में गांठ बंधी जाती है। जिसमें सुपारी, तांबे के सिक्के और चावल होते हैं, जिसे एकता, समृद्धि और खुशी का प्रतीक माना जाता है।
यह अनुष्ठान दर्शाता है कि अब दुल्हन के प्रति माता-पिता की जिम्मेदारी खत्म हो गई है और दुल्हन अब केवल अपने पति की जिम्मेदारी है। पिता दूल्हे से वादा करता है कि वह जीवनभर अपनी बेटी की तीन बुनियादी जरूरतों को पूरा करेगा धर्म, अर्थ और काम।
मंगल फेरे:-
मंगल फेरों की रस्म के बिना हर शादी अधूरी है। मंगल फेरों में दूल्हा-दुल्हन अग्नि के चारों ओर चलते हैं। पहले के तीन फेरों में दुल्हन आगे चलती है जो दैवीय ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है। जबकि अंतिम चार फेरों में दूल्हा आगे चलता है, जो संतुलन और पूर्णता को दर्शाता है। दूल्हा-दुल्हन सात फेरों के साथ सात वचन लेते हुए अग्नि को साक्षी मानकर जीवनभर साथ निभाने की कसम खाते हैं।
जूता छुपाई की रस्म:-
जूता छुपाई की रस्म दुल्हन की बहनों यानि दूल्हे के सालियों के लिए होती है। इस रस्म में दुल्हन की बहन दूल्हे के जूते छिपाती हैं और इन्हें देने के बदले दूल्हे से रूपए या उपहार मांगती हैं। दूल्हा अपने अनुसार पैसे या उपहार देता है तब उसे जूते वापस मिलते हैं। जूता छुपाई की यह रस्म एक बहुत ही हंसी-मिजाज वाली रस्म होती है। जूता छुपाई का खेल परिवार के दोनों पक्षों की स्वीकृति और खुले दिल को दिखाने के लिए है।
विदाई:-
विवाह में विदाई की रस्म सबसे भावपूर्ण होती है। इस रस्म के दौरान दूल्हा, दुल्हन की विदाई कर अपने घर ले जाते हैं। इस दौरान अपनी बेटी से जुदा होने का गम लड़की के घरवालों की आंखों में आंसू के रूप में झलक उठते है। घर की चौखट पार करने से पहले, वह अपने घर में तीन मुट्ठी चावल और सिक्के अपने सिर के ऊपर से फेंकती है।