महर्षि चरक के जीवन का इतिहास Life History Of Maharishi Charaka in Hindi
महर्षि चरक के जीवन का इतिहास Life History Of Maharishi Charaka in Hindi
चरक एक महर्षि और महान आयुर्वेदाचार्य के रूप में प्रसिद्ध थे। 2000 वर्ष पूर्व भारत में एक ऐसे व्यक्ति ने जन्म लिया जो बड़े होकर एक महान चिकित्सक बने और जिसने आयुर्वेद चिकित्सा के क्षेत्र में शरीर विज्ञान आर शरीर के बिमारियों के निदान का पूरा अध्धयन किया और एक पुस्तक लिखी, जिसका नाम “चरक सहिंता” है।
महर्षि चरक के जीवन का इतिहास Life History Of Maharishi Charaka in Hindi
आज भी इस पुस्तक का बहुत ही सम्मान किया जाता है और आयुर्वेद के छात्रों को इसके बारे में पूरी शिक्षा दी जाती है। इनके द्वारा किये गए इस महान काम के कारण ही इनको आयुर्वेद का जनक भी माना जाता है।
“चरक सहिंता” आयुर्वेद चिकित्सा का सबसे पुराना और प्रमाणित प्रसिद्ध ग्रन्थ है जिसमे रोगनाशक और रोगनिरोधक दवाओं का उल्लेख किया गया है। इसके साथ साथ लोहा, सोना और कई अन्य तत्वों का तथा उनके उपयोग के बारे में भी उल्लेख है।
इस ग्रन्थ के मूल रचनाकार आत्रेय के शिष्य अग्निवेश के द्वारा लिखा गया है। लेकिन महर्षि चरक ने इसमें संसोधन किया और इसमें कुछ नए अध्याय भी जोड़े, जिससे इसकी उपयोगिता और भी बढ़ गई। इस ग्रन्थ को मूल रूप से संस्कृत भाषा में लिखा गया था लेकिन बाद में इसकी उपयोगिता को देखते हुए इसका अनुवाद कई भाषाओँ में किया गया।
महर्षि चरक द्वारा लिखित चरक सहिंता के आठ खंड है-
- सूत्र स्थान
- निदान स्थान
- विमान स्थान
- शरीर स्थान
- इन्द्रिय स्थान
- चिकित्सा स्थान
- कल्प स्थान
- सिद्धि स्थान
आचार्य चरक को औषधि विज्ञान और आयुर्वेद का पिता माना जाता है। इन्होने समस्त रोगों का कारण वात, पित्त और कफ को माना है। जब भी इन तीनो का संतुलन बिगड़ता है तो शरीर में विभिन्न प्रकार की व्याधियां जन्म लेने लगती है।
इनके द्वारा दिए गए इस अवधारणा को आज भी आयुर्वेद मे माना जाता है। चरक ने इसमें शरीर के विभिन्न अंगो का वर्णन किया है। उन्होंने शरीर के 9 छिद्रों (दो आंख, दो नाक, एक मुख, एक गुदा एवं एक मूत्र मार्ग) का वर्णन किया है।
इसके साथ साथ 900 स्नायु शिराओं, 400 पेशियों, 200 धमनियों, 200 संधियों, 107 मर्म और 29,956 शिराओं का वर्णन भी किया है। इन्होने और भी विभिन्न प्रकार के वर्णन जैसे – नीम की पत्ती का, मटर, मूंग, बादाम, अखरोट और भी कई मेवो का वर्णन भी किया है।
महर्षि चरक ने जल का वर्णन किया और सुरा और मद्यपान के गुण और दोष भी बताये है। इनके अनुसार मद्यपान के सेवन से थकावट, डर (भय), शोक सब ख़त्म हो जाते है।
इनके अनुसार उस समय उपचार मंत्रो और यंत्रो दोनों से हुआ करता था। सूक्ष्म प्रकार के कृमियों जो दाढ़ी और मच के बाल में रहते है, गंदे कपड़ो में रहते है उनको निकालने के लिए यन्त्र थे।
चरक ने कई प्रकार के कृमियों का वर्णन भी किया गया है। ह्रदय रोग जैसे – धड़कन का बढ़ना, छाती बहरी होना आदि का वर्णन भी मिलता है। इन्होने मनोविज्ञान का औ उसका इतेमाल से मानसिक रोगों के उपचार के बारे में भी बताया है।
चरक का मानना था कि एक चिकित्सक बनने के लिए बुद्धिमान होना जरुरी नही है बल्कि आवश्यक यह है कि वो दयावान और सदाचारी होना चाहिए। महर्षि चरक ने स्वप्न की महिमा का भी व्याखान किया और स्वप्न की विकृतियों के बारे में भी बताया है।
महामारियों की उत्त्पति और उसके फैलने के कारण और उसके प्रभाव के बारे में भी बताया गया है। दूषित जल, दूषित अन्न , दूषित वायु , टिड्डी, मच्छर , मक्खियों और चूहों के प्रभावों को समझाया गया है।
अतः इससे पता चलता है कि चरक संहिता एक अदभुत ग्रन्थ है, जिसमे उस काल के सभी प्रकार की जानकारी को लिखा गया है। यह मान सकते है कि जो इस ग्रन्थ में नही लिखा वो कभी नही नही है।
प्राचीन काल में जो भी चिकित्सक अपनी पढाई पूरी करता था उसे आचार्य चरक ने नाम की शपथ लेनी पड़ती थी। ऐसे बहुत सी बाते है जो चरक के द्वारा लिखी गई इस ग्रन्थ में है।
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मुझे यह पोस्ट बहुत पसंद है काफी अच्छी जानकारी शेर की आपने