नेहरू रिपोर्ट का इतिहास और अन्य जानकारी History of Nehru Report 1928 in Hindi

नेहरू रिपोर्ट का इतिहास और अन्य जानकारी History of Nehru Report 1928 in hindi

नेहरू रिपोर्ट को 28 अगस्त 1928 को प्रस्तुत किया गया था। भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए पंडित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में 8 सदस्यों वाली एक समिति बनाई गई थी। इस समिति में आपसी विचार-विमर्श करके स्वतंत्र भारत के संविधान के लिए जो प्रारूप (मसौदा) प्रस्तुत किया था, उसे ही नेहरू रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है।

नेहरू रिपोर्ट की आवश्यकता क्यों पड़ी?

1925 में भारत के सचिव लॉर्ड बर्कन हेड ने कांग्रेस के नेताओं को चुनौती दी कि यदि विभिन्न संप्रदाय की आपसी सहमति से वे संविधान का मसौदा तैयार कर लें तो ब्रिटिश सरकार उस पर सहानुभूति ढंग से विचार कर सकती है। इसके बाद नेहरू रिपोर्ट बनाने के लिए प्रयास शुरू हो गए।

12 फरवरी 1928 में दिल्ली में एक सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें भारत के सभी छोटे बड़े 29 दलों (संगठनों) को बुलाया गया था, परंतु इसमें संविधान का कोई मसौदा ना बन सका, क्योंकि बहुत से बिंदुओं पर मतभेद थे।

19 मई 1928 को दोबारा सर्वदलीय सम्मेलन मुंबई में बुलाया गया। यहां पर पंडित मोतीलाल नेहरू ने 8 सदस्यों की समिति बनाई। इस समिति ने संविधान का प्रारूप मसौदा प्रस्तुत किया। नेहरू रिपोर्ट में भारत के लोगों के लिए मौलिक अधिकारों की बात कही गई थी। इसकी प्रेरणा अमेरिका के अधिकार पत्र से मिली थी।

नेहरू रिपोर्ट के प्रमुख सुझाव (अनुशंसाएं)

नेहरु रिपोर्ट में क्या सुझाव दिए गए थे –

  1. नेहरू रिपोर्ट में मौलिक अधिकारों को संविधान में स्थान देने की सिफारिश की गई थी।
  2. सिंध प्रांत को मुंबई से अलग एक पृथक प्रांत बनाने का सुझाव दिया गया था।
  3. देश के प्रांतों को केंद्र की भांति उत्तरदायी शासन की स्थापना करने का सुझाव दिया गया था।
  4. भारत को औपनिवेशिक स्वतंत्रता दी जाए। भारत का स्थान ब्रिटिश शासन के अंतर्गत अन्य उपनिवेश के समान हो।
  5. भारत की केंद्र व्यवस्थापिका दो सदनों (निम्न सदन और उच्च सदन) वाली हो। निम्न सदन का निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रत्यक्ष रीति से और उच्च सदन का निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर परोक्ष रीति से किया जाये। निम्न सदन में 500 सदस्य और उच्च सदन में 200 सदस्य हो। निम्न सदन का कार्यकाल 5 वर्ष और उच्च सदन का कार्यकाल 7 वर्ष का हो।
  6. केंद्र में पूर्ण उत्तरदायी सरकार की स्थापना की जाए।
  7. भारत के गवर्नर जनरल को लोकप्रिय मंत्रियों के परामर्श पर और संवैधानिक प्रधान के रूप में काम करना चाहिए।
  8. केंद्र और प्रांतों के बीच शक्तियों का उचित वितरण किया जाए। अवशिष्ट शक्तियां केंद्र को प्रदान की जाए।
  9. भारत के उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत को वैधानिक प्रांत घोषित किया जाए।
  10. भारत के प्रांतों / राज्यों के अधिकारों और विशेषाधिकारों की रक्षा की व्यवस्था की जाए। भारतीय संघ में अन्य प्रांतों को तभी सम्मिलित किया जाए जब वे उत्तरदायी शासन की व्यवस्था कर ले।
  11. न्यायपालिका विधायिका से स्वतंत्र होनी चाहिए।
  12. केंद्र सरकार में एक चौथाई मुस्लिम प्रतिनिधित्व होने चाहिए।
  13. बंगाल और पंजाब प्रांत में जनसंख्या समुदायों के लिए किसी सीट का आरक्षण ना हो। लेकिन जिन राज्यों में मुस्लिम जनसंख्या कुल जनसंख्या के 10% से कम है वहां पर मुस्लिमों के लिए सीटों का आरक्षण किया जा सकता है।
  14. भारत में सरकार को संघीय रूप से स्थापित किया जाए। अल्पसंख्यकों के लिए पृथक निर्वाचन प्रणाली को समाप्त किया जाए क्योंकि इससे सांप्रदायिक भावनाएं पैदा होती हैं।
  15. भारत में प्रांतों का गठन भाषाई आधार पर किया जाये।
  16. मुसलमानों को धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से संरक्षण दिया जाए।
  17. धर्मनिरपेक्ष देश की स्थापना की जाए। राजनीति धर्म से अलग रहे।
  18. भारत में उच्चतम न्यायालय, लोक सेवा आयोग और एक प्रतिरक्षा समिति की स्थापना की जाए।
  19. भारत के प्रांतों की व्यवस्थापिका (सरकार) का कार्यकाल 5 वर्ष का हो। प्रांत का प्रमुख गवर्नर जनरल को बनाया जाए जो प्रांतीय कार्यकारिणी परिषद की सलाह पर कार्य करेगा।

नेहरू रिपोर्ट का विरोध

नेहरु रिपोर्ट का विरोध क्यों, कैसे हुआ –

  1. सर्वदलीय सम्मेलन में मुस्लिम नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने नेहरू रिपोर्ट का विरोध किया। वे चाहते थे कि संविधान में मुस्लिमों को अधिक प्रतिनिधित्व दिया जाए। जिन्ना ने अपनी 14 सूत्रीय माँगे रखी।
  2. आगा खां ने इस रिपोर्ट का विरोध किया। वे चाहते थे कि देश के हर प्रांत को आज़ादी दी जाए।
  3. सिखों ने भी इस रिपोर्ट का विरोध किया। उनका कहना था कि पंजाब में सिखों को विशेष प्रतिनिधित्व दिया जाए।
  4. राष्ट्रवादी मुसलमानों का एक दल जिसमें डॉक्टर अंसारी, अली इमाम थे, वे नेहरू रिपोर्ट को स्वीकार करने के पक्ष में थे।
  5. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में भी नेहरू रिपोर्ट को लेकर मतभेद था। कांग्रेस पार्टी का वामपंथी युवा वर्ग जिसमें सुभाष चंद्र बोस और पंडित जवाहरलाल नेहरू थे वह भारत को औपनिवेशिक स्वतंत्रता के विकल्प से संतुष्ट नहीं थे और भारत को पूर्ण स्वतंत्रता दिलवाना चाहते थे।

कांग्रेस पार्टी के वामपंथी युवा वर्ग ने नवंबर 1928 को “इंडिपेंडेंस लीग” की स्थापना की। भारत के नौजवानों के मन में आज़ादी के लिए रुचि उत्पन्न की। युवा वर्ग ने यह निर्णय लिया कि यदि एक वर्ष के अंदर ब्रिटिश सरकार भारत को “डोमिनियन राज्य” का दर्जा प्रदान नहीं करती है तो काँग्रेसी पूर्ण स्वतंत्रता के लिए आंदोलन करेगी और “असहयोग आंदोलन” को फिर से शुरू कर दिया जाएगा।

नेहरू रिपोर्ट असफल और अमान्य रही

यह कहा जा सकता है कि नेहरू रिपोर्ट असफल रही। जिस समय संविधान का प्रारूप बनाया गया था, उस समय गांधी जी सर्वदलीय सम्मेलन में उपस्थित नहीं थे। उन्होंने अपने विचार प्रकट नहीं किए थे।

इसके साथ ही नेहरू रिपोर्ट में कई दोष थे। रिपोर्ट में भारत के नागरिकों के मूल अधिकारों में राजा और जमीदारों के असीम भूमि अधिकार को सुरक्षित रखा गया था, जो कि नये भारत के लिए सही नहीं था। इस कारण देश के नेताओं और आम जनता ने इस रिपोर्ट को अमान्य घोषित कर दिया।

Source –

CAD India

Leave a Comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.