वहाबी आंदोलन का इतिहास Wahabi movement in India
वहाबी संप्रदाय इस्लाम की एक शाखा है जो अत्यंत कट्टर मानी जाती है। वहाबी संप्रदाय के लोग पुराने इस्लाम धर्म में विश्वास रखते हैं। वह परिवर्तनों और सुधारों का विरोध करते हैं। वहाबी आंदोलन शाह वली उल्लाह ने शुरू किया था।
बाद में रायबरेली के सैयद अहमद बरेलवी ने इस आंदोलन को आगे बढ़ाया। आजादी से पूर्व अंग्रेजों को देश से बाहर भगाने के लिए भी यह आंदोलन जाना जाता है।
यह एक पुनर्जागरण आंदोलन था जो 1828 ई० से 1888 ई० तक चला। इस विद्रोह / आंदोलन की शुरुआत बिहार के पटना शहर में हुई थी। पटना के विलायत अली और इनायत अली इस आन्दोलन के प्रमुख नायक थे। यह आंदोलन एक मुस्लिम सुधारवादी आंदोलन था जो उत्तर पूर्वी और मध्य भारत में फैला था।
वहाबी आंदोलन का इतिहास Wahabi movement in India
सैयद अहमद इस्लाम धर्म में कोई भी परिवर्तन नहीं करना चाहते थे। उनकी इच्छा हजरत मुहम्मद के समय का इस्लाम धर्म स्थापित करने की थी। वह भारत में इस्लाम धर्म को मजबूत बनाना चाहते थे। पंजाब में सिख और बंगाल में अंग्रेज शासकों को हटाकर मुस्लिम शासक बनाना चाहते थे।
उन्होंने अपने अनुयायियों से वहाबी आंदोलन / विद्रोह सशक्त हथियारों से लैस होकर करने की अपील की। बिहार और बंगाल के किसान वर्गों, कारीगरों और दुकानदारों ने वहाबी आंदोलन का समर्थन किया।
पीर अली को फांसी
1857 में वहाबी विद्रोह का नेतृत्व पीर अली के हाथों में चला गया। अंग्रेजों ने उन्हें पकड़कर फांसी दे दी जिससे जनता के बीच दहशत फैले और कोई भी वहाबी विद्रोह में शामिल ना हो। पीर अली को कमिश्नर टेलबू ने वर्तमान एलिफिन्सटन सिनेमा के सामने एक बडे पेड़ पर लटकवाकर फाँसी दिलवा दी, ताकि जनता में दहशत फैले।
इनके साथ ही ग़ुलाम अब्बास, जुम्मन, उंधु, हाजीमान, रमजान, पीर बख्श, वहीद अली, ग़ुलाम अली, मुहम्मद अख्तर, असगर अली, नन्दलाल एवं छोटू यादव को भी फाँसी पर लटका दिया गया।
वहाबी आंदोलन असफल रहा
1857 में यह आंदोलन असफल हो गया क्योंकि इसके अनुयायियों ने प्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजों से सामना नहीं किया बल्कि अंग्रेजों के विरुद्ध लोगों को भड़काने का काम लोगों को भड़काने का काम करते रहे। 1860 में अंग्रेजों ने इस आंदोलन को कुचल दिया। सैयद अहमद की मृत्यु के बाद यह आंदोलन धीमा पड़ गया। विलायत अली और इनायत अली ने इस आंदोलन को जीवित रखा।
धीरे-धीरे अंग्रेज इस आंदोलन से जुड़े सभी लोगों को गिरफ्तार करने लगे। उन पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें काला पानी की सजा दी गई। बहुत से लोगों को जेल में डाल दिया गया। कुछ दिनों बाद पटना के केंद्र को भी नष्ट कर दिया गया।
अंग्रेज हुकूमत के दमनकारी व्यवहार के कारण यह आंदोलन समाप्त हो गया। पर इसने मुसलमानों के बीच एक नई विचारधारा को जन्म दिया। अब मुसलमानों ने धार्मिक कट्टरता के स्थान पर आधुनिकीकरण को अपना लिया। इस आंदोलन ने सर सैयद अहमद खान को लोकप्रिय नेता बना दिया।
Featured Image Source – radhikaranjanmarxist.blogspot.com