दादी मां की कहानियां हिंदी में Best 3 Dadima Ki Kahaniyan in Hindi
दादी माँ की ज्ञानवर्धक कहानियों में शायद ही ऐसी कोई कहानी होती है जिसमें राजा रानी का जिक्र ना करते हो अपने बच्चों को राजा बेटा और रानी बेटियाँ कहने वाली दादी माँ की कुछ कहानियाँ मै लिखना चाहता हूँ।
दादी मां की कहानियां हिंदी में Best 3 Dadima Ki Kahaniyan in Hindi
चित्रकार और अपंग राजा की कहानी
बहुत समय पहले की बात है किसी राज्य में एक राजा राज करता था जिसके केवल एक टांग और एक आँख थी उस राज्य की प्रजा बहुत ही खुशहाल और धनवान थी। सब लोग एक साथ मिल कर ख़ुशी से जीवन यापन करते थे और अपने राजा का सम्मान करते थे क्योंकि उस राज्य का राजा एक बुद्धिमान और प्रतापी व्यक्ति था।
एक बार राजा के मन में यह विचार आया कि क्यों ना अपनी एक तस्वीर बनवाई जाए जो राजमहल में लगाई जा सके, फिर क्या था राजा ने अपने मंत्री को आदेश दिया कि देश और विदेश से महान चित्रकारों को बुलाया जाए। राजा के आदेश पाकर देश और विदेश से कई महान चित्रकार राजा के दरबार में पहुंचे, राजा ने उन सभी से हाथ जोड़कर आग्रह किया कि उनकी एक बहुत ही सुन्दर तस्वीर बनाई जाए।
राजा के इस आदेश से सारे चित्रकार सोच में पड़ गए कि राजा तो पहले से ही विकलांग है तो इसकी तस्वीर को बहुत सुंदर कैसे बनाया जाए यह तो संभव ही नहीं है और अगर तस्वीर सुंदर नहीं बनी तो राजा गुस्सा होकर दंड देगा यह सोच कर सभी चित्रकारों ने राजा की तस्वीर बनाने से मना कर दिया तभी उन चित्रकारों की भीड़ में से एक हाथ ऊपर उठा और आवाज आई “मैं आपकी बहुत ही सुन्दर तस्वीर बनाऊंगा जो आपको निश्चित ही पसंद आएगी”।
चित्रकार ने राजा की आज्ञा लेकर तस्वीर बनाना शुरू किया काफी देर बाद उसने एक तस्वीर तैयार की। राजा उस तस्वीर को देख कर बहुत प्रसन्न हुआ यह देख कर वहा खड़े सारे चित्रकारों ने अपने दांतो तले उंगली दबा ली उस चित्रकार ने एक ऐसी तस्वीर बनाई थी जिसमें राजा एक टांग को मोड़कर जमीन पर बैठा हुआ था और एक आँख बंद कर अपने शिकार पर निशाना साध रहा था राजा यह देखकर बहुत प्रसन्न हुआ कि चित्रकार ने उसकी कमजोरी को छिपा कर बहुत ही चतुराई से एक सुंदर तस्वीर बनाई राजा ने खुशहोकर उस चित्रकार को बहुत सारा धन दिया।
तो दोस्तों क्यों ना हम भी चित्रकार की तरह दूसरों की कमजोरियों को नजर अंदाज कर उनकी अच्छाइयों पर ही ध्यान दें। जरा सोचिए अगर हम दूसरों की कमियों का पर्दा डालें और बुराइयो को नज़रंदाज़ करे तो एक दिन दुनिया कि सारी बुराईयाँ ही ख़त्म हो जाएगी और सिर्फ अच्छाइयाँ ही रह जाएगी।
नीम के पत्ते
एक बार की बात है जमूरा नामक गाँव से थोड़ी दूर पर एक महात्मा जी की कुटिया थी उस कुटिया में महात्मा जी के साथ उनका एक शिष्य भी रहता था जो दोनों आँखों से अंधा था। महात्मा जी एक महान विद्वान थेे अपने पास आए हुए हर व्यक्ति की समस्याओं का समाधान वो बहुत ही प्रसन्नता के साथ करते थे चाहे वह समस्या कोई भी हो। महात्मा जी गाँव और शहर में काफी चर्चित है उनसे मिलकर अपनी समस्या का समाधान पाने के लिए बहुत दूर-दूर से व्यक्ति आते थे।
एक दिन ऐसा हुआ कि कहीं दूर शहर से दो हट्टे-कट्टे नौजवान महात्मा जी के पास आए वो बहुत ही परेशान लग रहे थे। महात्मा जी ने आदर के साथ उन्हें अन्दर आने को कहा और चारपाई पर बैठा कर उनकी समस्या पूछी।
पहला नौजवान बोला -” महात्मा जी हमने सुना है आपके पास हर समस्या का समाधान है, जो कोई भी आपके पास अपनी समस्या ले कर आता है वह खाली हाथ नही जाता। हम भी आपके पास अपनी समस्या ले कर आये है और उम्मीद करते है आप हमे निराश नही करेंगे।”“तुम निश्चिन होकर मुझे अपनी समस्या बताओ” महात्मा जी बहुत ही विनम्रता से बोले।
दूसरा नौजवान बोला -”महात्मा जी हम लोग इस शहर में नए आये हैं, जहाँ हमारा गाँव हैं वहाँ के हालात बहुत ही खराब है। वहाँ आवारा लोगो का बसेरा हैं उन्ही की दहशत हैं सड़को पर गुजरते हुए लोगो से बदतमीज़ी की जाती हैं, आते जाते लोगो को गालियाँ दी जाती हैं कुछ शराबी लोग सड़क पर खड़े होकर आते जाते लोगों को परेशान करते है कुछ बोलने पर वह हाथापाई पर उतर आते हैंं।
पहला नौजवान बोला -” हम बहुत परेशान हो गए हैं भला ऐसे समाज में कौन रहना चाहेगा, आप ही बताइए। महात्मा जी दोनों नौजवानों की बात सुनकर अपनी कुटिया से बड़बड़ाते हुए बाहर की ओर निकले। दोनों नौजवान भी कुटिया से बाहर आये और देखा महात्मा जी शांत खड़े होकर सामने वाली सड़क को देख रहे थे। अगले ही पल महात्मा जी मुड़े और दोनों जवानों से बोले “बेटा मेरा एक काम करोगे” सड़क की ओर इशारा करते हुए कहा “यह सड़क जहां से मुड़ती है वहीं सामने एक नीम का बड़ा है वहां से मेरे लिए कुछ पत्तियां तोड़ लाओ”।
दोनों नौजवानों ने जैसे ही कदम बढ़ाया तुरंत महात्मा जी ने उन्हें रोकतेे हुए बोले “ठहरो बेटा….. जाने से पहले मैं तुम्हे बता दूं रास्ते मेंं कई आवारा कुत्ते मिलेंगे जो बहुत ही ख़ूँख़ार है तुम्हारी जान भी जा सकती है क्या तुम पत्ते ला पाओगे???” दोनों नौजवानों ने एक दूसरे को देखा उनके चेहरे पर एक डर था परंतु वह जाने के लिए तैयार थे। वह सड़क की तरफ जैसे ही बढ़े उन्होंने देखा रास्ते के दोनों तरफ कई आवारा कुत्ते बैठे हुए हैं।
उन दोनों नौजवानों ने आवारा कुत्तों को पार करने की बहुत कोशिश की परंतु उन्हें पार कर पाना आसान नहीं था। जैसे ही वह कुत्तों के करीब जाते, कुत्ते भौकते हुए उन्हें काटने की कोशिश करते हैं। काफी कोशिश करने के बाद वापस आ गया और महात्मा जी से बोले हमें माफ कर दीजिए यह रास्ता बहुत ही ख़तरनाक हैं रास्ते में बहुत ही खतरनाक कुत्ते हैं हम यह काम नहीं कर पाए।
दूसरा नौजवान बोला-”हम दो-चार कुत्तों को किसी तरह पार कर पाए परंतु आगे जाने पर उन्होंने हम पर हमला कर दिया जैसे तैसे करके हम वहां से जान बचाकर आए हैं” महात्मा जी बिना कुछ बोले कुटिया के अंदर चले गए और फिर अपने शिष्य को साथ लेकर निकले उन्होंने सिर्फ उसे नीम का पत्ता तोड़कर लाने के लिए कहा। शिष्य उसी
रास्ते से गया काफी देर बाद जब वह वापस आया तो उसके हाथ नीम के पत्ते से भरे यह देख कर दोनों नौजवान भौचक्के रह गए। महात्मा जी बोले “बेटा यह मेरा शिष्य है हालांकि यह देख नहीं सकता है परंतु इसे कौन सी चीज कहां है इस बात का पूरा ज्ञान हैं यह रोज मुझे नीम के पत्ते ला कर देता और इसे आवारा कुत्ते इसलिए नहीं काटते हैं क्योंकि यह उनकी तरफ बिल्कुल ध्यान ही नहीं देता है सिर्फ अपने काम से काम रखता है”
महात्मा जी आगे बोले “जीवन में एक बात हमेशा याद रखना बेटा रास्ते में कितनी भी कठिनाइयां क्यों ना हो हमें अपने लक्ष्य को ध्यान में रखना चाहिए और उसी की तरफ आगे बढ़ना चाहिए”
दोस्तों इन नौजवानों की तरह हमें भी अपने जीवन में कई ऐसे अनुभव मिलते हैं हमारे जीवन में कई ऐसे खतरनाक मोड़ आएंगे हमें उन से डरना नहीं चाहिए बल्कि उनका डटकर सामना करना चाहिए और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए।
चालाकी का फल
रामपुर गांव में करीब 90 साल की एक बुढ़िया रहती थी जिसको ज्यादा उम्र होने के कारण ठीक से दिखाई नहीं देता था। उसने मुर्गियां पाल रखी थी और उन्हें चराने के लिए एक लड़की भी रखी थी। एक दिन अचानक वह लड़की नौकरी छोड़कर कहीं भाग गई। बेचारी बढ़िया सुबह मुर्गियों को चराने के लिए खोलती तो सारी की सारी पंख फड़फड़ाते हुए घर की चारदिवारी को नांघ जाती थी और पूरे मोहल्ले में कोको कुरकुर करके शोर मचाती थी।
कभी-कभी तो पड़ोसियों के घर में घुस कर सब्जियां खा जाती थी या फिर कभी पड़ोसी उनकी सब्जी बनाकर खा जाया करते थे। दोनों ही हालातों में बैठ नुकसान बेचारी बुढ़िया का ही होता था जिसकी सब्जियां खाती वो बुढ़िया को आकर भला बुरा कहता था और जिसके घर में मुर्गियां पकती उससे बुढ़िया की हमेशा के लिए दुश्मनी हो जाती हैं
थक हार कर बुढ़िया ने सोचा कि बिना नौकर के इन मुर्गियों को पालना मुझ जैसी कमजोर बुढ़िया के बस की बात नहीं है, कहां तक मैं इन मुर्गियों को हांकती रहूंगी। जरा सा काम करने से ही मेरा दम फूलने लगता है। यह सोचते हुए बूढ़िया डंडा टेकती नौकर की तलाश में निकल पड़ी। पहले तो उन्होंने अपनी पुरानी, मुर्गियां चराने वाली लड़की को ढूंढा परंतु उसका कहीं कुछ पता नहीं चला, उसके मां-बाप को भी अपनी लड़की के बारे में नहीं पता था कि वह कहां गई हैं ।
कुछ देर बाद रास्ते में उसे एक भालू मिला भालू बुढ़िया को नमस्कार करते हुए कहा आज सुबह-सुबह कहां जा रही हैं आप, सुना है आपकी मुर्गियां चलाने वाली लड़की भाग गई है कहिए तो मैं उसकी जगह नौकरी कर लूं खूब देखभाल करूंगा आपकी मुर्गियों की। बुढ़िया बोली अरे हटो! तुम इतने मोटे और बदसूरत हो तुम्हें देख कर ही मेरी मुर्गियां डर जाएंगी, ऊपर से तुम्हारी आवाज भी इतनी बेसुरी है कि उसे सुनकर वो दरबे से बाहर ही नहीं आएंगी, मुर्गियों के कारण मोहल्ले में ऐसे ही मेरी सब से दुश्मनी है और तुम जैसा जंगली जानवर को रख लूंगी तो मेरा जीना मुश्किल हो जाएगा। छोड़ो मेरा रास्ता मैं खुद ही ढूंढ लूंगी अपने लिए नौकर”।
इतना ही कह कर बुढ़िया आगे बढ़ गई। थोड़ी देर बाद बुढ़िया को एक सियार मिला और बोला “राम राम बुढ़िया नानी! किसे ढूंढ रही हो आप?? बुढ़िया बोली मैं अपने लिए एक नौकरानी ढूंढ रही हूं जो मेरे मुर्गियों की देखभाल कर सकें, मेरी पुरानी वाली नौकरानी इतनी दुष्ट निकली कि वह बिना बताए ही कहीं भाग गई अब मैं अपनी मुर्गियों की देखभाल भला कैसे करूं, क्या तुम किसी ऐसी लड़की को जानते हो जिसे सौ तक की गिनती आती हो क्योंकि मेरे पास सौ मुर्गियां हैं जिनको गिनकर दरबे में रख सके।
यह सुनकर सियार बोला” बुढ़िया नानी यह कौन सी बड़ी बात है चलो अभी मैं तुम्हें एक लड़की से मिलाता हूं जो मेरे पड़ोस में ही रहती है वह रोज जंगल के स्कूल में जाती है उसे सौ तक तो गिनती आती ही होगी, आओ मैं तुम्हें उससे मिलाता हूं सियार भाग कर गया और अपने पड़ोस में रहने वाली पूसी बिल्ली को बुलाकर ले आया। बिल्ली को देख कर बुढ़िया बोली “हे भगवान! क्या जानवर भी कभी घर के नौकर हो सकते हैं जो अपना काम ठीक से नहीं कर सकते वह मेरा काम क्या करेंगी लेकिन पूसी बिल्ली बहुत ही चालाक थी आवाज को मीठा बनाकर बोली बुढ़िया नानी आप बिल्कुल परेशान ना हो कोई खाना बनाना पकाने का काम तो है नहीं जो कर ना सकू, मुर्गियों की देखभाल करनी है ना, वह तो मैं बहुत अच्छे से कर लेती हूं। मेरी मां ने भी मुर्गियां पाल रखी है मैं उनकी देखभाल करती हूं और गिनकर दरबे में रखती हूं। बुढ़िया दादी ने उसकी बात सुनकर उसको नौकरी पर रख लिया।
पूसी बिल्ली ने पहले ही दिन मुर्गियों को दरबे से निकाला और खूब भागदौड़ की जिसे देख कर बुढ़िया दादी संतुष्ट हो हुई और सोने के लिए चली गई। पूसी बिल्ली ने मौका देखकर पहले ही दिन 6 मुर्गियाँ मारकर खा गई। बुढ़िया जब शाम को जगी तो उन्हें बिल्ली के इस हरकत के बारे में कुछ पता नहीं था एक तो उन्हें ठीक से दिखाई नहीं देता था और फिर भला इतनी चालाक बिल्ली की शरारत को कहां समझ पाती। पड़ोसियों से अब बुढ़िया की लड़ाई नहीं होती थी क्योकि मुर्गियां उनकी सब्जियां नहीं खाती थी धीरे-धीरे बुढ़िया को पुसी बिल्ली पर इतना भरोसा हो गया कि उसने दरबे की तरफ जाना ही छोड़ दिया।
एक दिन ऐसा आया जब दरबे में सिर्फ 25 मुर्गियां बची उसी समय बुड़िया भी टहलते हुए वहां आ गई इतनी कम मुर्गियों को देख कर बुढ़िया ने तुरंत बिल्ली से पूछा “क्योंरि और मुर्गियों को तुमने कहा चरने के लिए भेजा है” पुसी बिल्ली ने जवाब दिया सब पहाड़ पर चली गई हैं मैं कितना बुलाती हूं पर वह आती ही नहीं बहुत शरारती हो गई है।” अभी जाकर देखती हूँ कि ये इतनी ढीठ कैसे हो गयी हैं? पहाड़ के ऊपर खुले में घूम रही हैं। कहीं कोई शेर या भेड़िया आ ले गया तो बस!” बुढ़िया बड़बड़ाती हुई पहाड़ पर चढ़ गई वहां सिर्फ मुर्गियों की हड्डियां और उनके पंख पड़े हुए थे उसे देखकर बुढ़िया पूसी बिल्ली की सारी करतूत समझ गई, वह तेजी से घर की ओर लौटी।
इधर पूसी बिल्ली ने छोड़ सोचा बुढ़िया को आने में अभी वक्त लगेगा क्यों ना बची हुई मुर्गियों को भी खा लिया जाए। वह उन्हें मारकर खाने जा ही रही थी कि तभी बुढ़िया लौट कर आ गई, यह सब कुछ देख कर बुढ़िया आग बबूला हो गई। उसने पास पड़ी कोयलों की टोकरी उठा कर पूसी के सिर पर दे मारी। पूसी बिल्ली को चोट तो लगी ही, उसका चमकीला सफेद रंग भी काला हो गया। अपनी बदसूरती को देखकर वह रोने लगी।
दोस्तों हमें लालच नहीं करना चाहिए लालच का फल बहुत ही बुरा होता है हमारे पास जितना भी जो कुछ भी है हमें उसी में संतुष्ट रहना चाहिए।
very super story
Very interesting story
Very nice
ap logo ki story mujhe bahut achi legi per inme galatiya bahut thi
Nice
Very nice ❤️
Lajwab
very nice story. My child loved it
bhut hi sundar khaniya he dadi maa ki
i love dadi maa