दादाभाई नौरोजी का जीवन परिचय Biography of Dadabhai Naoroji in Hindi
दादा भाई नौरोजी एक महान स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, लेखक, शिक्षक, कपास के व्यापारी, सामाजिक नेता थे। वे पारसी संप्रदाय से संबंध रखते थे। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। वह ‘भारत का वयोवृद्ध पुरुष’ (Grand Old Man of India) के नाम से भी प्रसिद्ध हैं।
उनको भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का रचयिता कहा जाता है। दादा भाई नौरोजी ने ए ओ ह्यूम और दिन्शाव ऐदुल्जी के साथ मिलकर कांग्रेस पार्टी बनाई थी। दादाभाई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तीन बार अध्यक्ष चुने गए थे। वे पहले भारतीय थे जो किसी कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में नियुक्त हुए थे।
1892 से 1895 तक दादा भाई यूनाइटेड किंगडम के “हाउस ऑफ कॉमंस” के सदस्य बने थे। 1906 में पहली बार कांग्रेस पार्टी ने ब्रिटिश सरकार से स्वराज की मांग की थी। यह विचार दादा भाई नौरोजी ने सबके सामने प्रस्तुत किया था।
दादाभाई नौरोजी का जीवन परिचय Biography of Dadabhai Naoroji in Hindi
जन्म और शिक्षा
दादा भाई नौरोजी का जन्म 4 सितंबर 1825 को मुंबई में एक गरीब पारसी परिवार में हुआ था। जब वह 4 साल के थे तब उनके पिता नौरोजी पलंजी दोर्दी का देहांत हो गया था। उनकी माता का नाम माणिकबाई था। पिता की मृत्यु के बाद दादा भाई के परिवार को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा।
इनकी माता जी अनपढ़ थी लेकिन उन्होंने अपने बेटे को अंग्रेजी शिक्षा प्रदान की। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा “नेटिव एजुकेशन सोसाइटी स्कूल” से प्राप्त की। दादा भाई अंग्रेजी और गणित विषय में बहुत तेज थे। 15 वर्ष की आयु में उनको क्लेयरस स्कॉलरशिप मिली थी।
उसके बाद “एलफिंस्टन इंस्टीट्यूट मुंबई” से पढ़ाई उच्च शिक्षा प्राप्त की और यहीं पर उन्हें गणित और फिलासफी का प्रोफेसर बना दिया गया। किसी कॉलेज में प्रोफेसर बनने वाले वे पहले भारतीय थे।
विवाह
दादा भाई की शादी 11 वर्ष की उम्र में गुलबाई से हो गई थी जिनकी उम्र 7 साल थी। इस समय भारत में बाल विवाह हुआ करता था। दादा भाई की तीन संताने थी।
कपास का व्यवसाय स्थापित किया
1855 में उन्होंने “कामा एंड कंपनी” में सहयोगी बनने के लिए लंदन की यात्रा की। वहां भारतीय कंपनी स्थापित की। लेकिन 3 साल बाद दादा भाई ने इस्तीफा दे दिया। 1859 में उन्होंने स्वयं की “दादा भाई नौरोजी एंड कंपनी” के नाम से कपास कंपनी स्थापित की।
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान
दादा भाई नौरोजी भारत को अंग्रेजों से आजाद करवाना चाहते थे। जब वे इंग्लैंड में रह रहे थे उन्होंने भारत की बुरी स्थिति दर्शाने के लिए अनेक भाषण दिए, बहुत सारे लेख लिखें। 1 दिसंबर 1866 को “इंडियन एसोसिएशन” की स्थापना की। इस संघ में भारत के उच्च अधिकारी और ब्रिटिश सांसद शामिल थे।
1892 में दादा भाई ने लंदन के आम चुनाव के दौरान लिबरल पार्टी के उम्मीदवार चुने गए। वह पहले ब्रिटिश भारतीय एम पी भी बने। भारत और इंग्लैंड मे ICS परीक्षाओं के लिए ब्रिटिश संसद में एक बिल भी पारित कराया था। भारत और इंग्लैंड के बीच प्रशासनिक और सैन्य खर्च के वितरण के लिए “विले आयोग” और “रॉयल कमीशन” बनाया था।
उन्होंने ब्रिटिश सरकार के सामने “ड्रेन थ्योरी” प्रस्तुत की जिसमें उन्होंने बताया कि अंग्रेजों का शासन धीरे धीरे भारत को गरीब बना रहा है। शोषण भरी नीति के कारण भारत धीरे धीरे निर्धन और गरीब बनता जा रहा है। उनका यह मानना था कि भारतवासी बहुत ही अज्ञान है। बाहरी चीजों पर ध्यान नहीं देते।
यही वजह है कि अंग्रेज यहां पर आकर हमें गुलाम बना सके। दादा भाई नौरोजी ने वयस्कों को शिक्षित करने के लिए “ज्ञान प्रसारक मंडली” की स्थापना की थी। उन्होंने राज्यपालों और वायसराय को अनेक याचिकाएं लिखी थी। इंग्लैंड में भारत के समर्थन में आवाज उठाई थी। दादा भाई ने रहनुमाई सभा की स्थापना की थी। उन्होंने “रास्त गफ्तार” नामक समाचार पत्र का संपादन और संचालन भी किया था।
दादा भाई नौरोजी का योगदान
- 1875 में मुंबई महानगरपालिका के सदस्य बने
- 1885 में मुंबई प्रांतीय कायदे मंडल के सदस्य बने
दादा भाई नौरोजी के अन्य नाम
भारत के पितामह, भारतीय अर्थशास्त्र के जनक, आर्थिक राष्ट्रवाद के जनक
मृत्यु
दादा भाई नौरोजी का देहांत 30 जून 1917 को हुआ था।
सम्मान
दादा भाई नौरोजी की याद में “दादा भाई नौरोजी रोड” बनाई गई है। उन्हें भारत के “ग्रैंड ओल्ड मैन” के रूप में भी जाना जाता है।
आशा करते हैं आपको दादाभाई नौरोजी की जीवनी पढ़ कर अच्छा लगा होगा।
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