दशावतार व्रत कथा, महत्व, पूजा विधि Lord Vishnu Dashavatara Vrat Katha
दशावतार व्रत कथा, महत्व, पूजा विधि Lord Vishnu Dashavatara Vrat Katha
दोस्तों गीता के चौथे अध्याय के एक श्लोक में भगवान कृष्ण ने कहा है-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
इसका मतलब है, हे भारत, जब-जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म बढ़ने लगता है, तब-तब मैं स्वयं की रचना करता हूं, अर्थात् जन्म लेता हूं। मानव की रक्षा, दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनः स्थापना के लिए मैं अलग-अलग युगों (कालों) में अवतरित होता हूं।
हिंदु धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, धरती पर जब जब पाप बढते है, तब तब भगवान खुद संसार में अवतार लेकर पापों का अंत करते है। शास्त्रों में दशावतार कथा का विशेष महत्व है, इसे करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते है, और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
दशावतार व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष दशमी के दिन किया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सृष्टि के पालन कर्ता भगवान श्री हरि विष्णु के 10 प्रमुख अवतार माने गए हैं। जो हिन्दू धर्म ग्रंथों में भगवान विष्णु के दशावतार के नाम से प्रसिद्ध हैं।
आज हम आपको भगवान विष्णु के दशावतार के बारे में एवं कथा के बारे में बता रहे हैं। 10 प्रमुख अवतारों में से 9 अवतार वे ले चुके हैं, जबकि 10वां प्रमुख अवतार कलयुग में होना बाकी है।
महत्व Importance
जो भी मनुष्य इस दिन पूरी श्रद्धा और भक्ति भाव से भगवान विष्णु का व्रत करता है, वह अवश्य ही जीवन के सभी पापों से मुक्ति पाकर मोक्ष को प्राप्त करता है, तथा उनके जीवन की समस्त कठिनाइयाँ दूर होकर वह आनंदमय जीवन व्यतीत करता है।
भगवान विष्णु के दशावतार Lord Vishnu Dashavatara
1. मत्स्य अवतार (मीन)
मत्स्य यानि मछली अवतार भगवान विष्णु का प्रथम अवतार है, मान्यता के अनुसार ब्रह्मांड में प्रलय के ठीक पहले जब प्रजापति ब्रह्मा के मुँह से वेदों का ज्ञान निकल गया, तब असुर हयग्रीव ने उस ज्ञान को चुरा कर समुद्र की गहराई में छिपा दिया था, तब भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार में आकर वेदों को दोबारा प्राप्त करके उन्हें स्थापित किया था।
2. कच्छप अवतार
कूर्म अवतार को ‘कच्छप अवतार’ (कछुए के रूप में अवतार) भी कहते हैं। इसमें भगवान विष्णु कछुए के रूप में प्रकट हुए थे। इस अवतार में भगवान विष्णु ने क्षीरसागर के समुद्र मंथन के समय मंदार पर्वत को अपने कवच पर संभाला था। मंथन में भगवान विष्णु, मंदर पर्वत और वासुकि नामक सर्प की मदद से देवों एवं असुरों को चौदह रत्नों की प्राप्ति हुयी थी
3. वराह अवतार
धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने अगला अवतार वराह रूप में लिया था। पुरातन समय में दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया। तब ब्रह्मा की नाक से भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए। सभी देवताओं व ऋषि-मुनियों भगवान के इस रूप की स्तुति की।
सबके आग्रह पर भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना प्रारंभ किया। अपनी थूथनी की सहायता से उन्होंने पृथ्वी का पता लगा लिया और समुद्र के अंदर जाकर अपने दाँतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए।
4. नृसिंह भगवान
नरसिंह, नर + सिंह (“मानव-सिंह”) को पुराणों में भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। इस अवतार में विष्णु भगवान जो आधे मानव एवं आधे सिंह के रूप में प्रकट हुए थे।
जिनका सिर एवं धड तो मानव का था। लेकिन चेहरा एवं पंजे सिंह की तरह थे। नरसिंह अवतार में उन्होंने अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए उसके पिता राक्षस हिरणाकश्यप को मारा था।
5. वामन अवतार
वामन विष्णु के पाँचवें तथा त्रेता युग के पहले अवतार थे। इसके साथ ही यह विष्णु के पहले ऐसे अवतार थे, जो मानव रूप में बालक स्वरूप प्रकट हुए। इन्होंने प्रहलाद के पौत्र राजा बलि से दान में तीन पद धरती मांगी थी, और तीन कदम में वामन ने अपने पैर से तीनों लोक नाप कर राजा बलि का घमंड तोड़ा था।
6. परशुराम
भगवान विष्णु का यह 6 वा अवतार था, इस अवतार में परशुराम राजा प्रसेनजित की बेटी रेणुका और भृगुवंशीय जमदग्नि के पुत्र थे। जमदग्नि के पुत्र होने की वजह से इन्हें ‘जामदग्न्य’ भी कहा जाता हैं, वह शिव के परम भक्त थे।
भगवान शंकर ने इनकी भक्ति से प्रसन्न होकर परशु शस्त्र दिया था, इनका नाम राम था और परशु लेने के कारण वह परशुराम कहलाये। इन्होंने क्षत्रियों का विनाश करके क्षत्रियों के अहंकारी विध्वंस से संसार को बचाने के लिए जन्म लिया था।
7. श्री राम
विष्णु के दस अवतारों में से एक मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम हैं। राम, अयोध्या के राजा दशरथ और उनकी पहली रानी कौशल्या के पुत्र थे, महर्षि वाल्मीकि ने राम की कथा संस्कृत महाकाव्य रामायण में लिखी थी। तुलसी दास ने भक्ति काव्य श्री रामचरित मानस की रचना की थी।
8. श्री कृष्ण
यशोदा पुत्र श्री कृष्ण विष्णु के अवतार थे, ग्रंथ में भगवान कृष्ण की लीलाओं की कहानियां है। यह मथुरा में देवकी और वासुदेव के पुत्र के रूप में प्रकट हुए थे, श्री कृष्ण महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथी थे। उनकी बहन सुभद्रा अर्जुन की पत्नी थीं। उन्होंने युद्ध से पहले अर्जुन को गीता उपदेश दिया था।
9. भगवान बुद्ध
बुद्ध भगवान विष्णु के दशावतारों में से एक हैं। इनको गौतम बुद्ध, महात्मा बुद्ध भी कहा जाता है, वह बौद्ध धर्म के संस्थापक माने जाते हैं। इनका जन्म क्षत्रिय कुल के शाक्य नरेश शुद्धोधन के पुत्र के रूप में हुआ था। इनका नाम सिद्धार्थ था। गौतम बुद्ध अपनी शादी के बाद बच्चे राहुल और पत्नी यशोधरा को छोड़कर संसार को मोह-माया और दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग पर निकल गए थे।
10. कल्कि अवतार
कल्कि पुराण के अनुसार विष्णु के इस अवतार का जन्म कलयुग के अंत में होगा। उसके बाद धरती से सभी पापों और बुरे कर्मों का अंत हो जायेगा। यह अवतार कल्कि अवतार भगवान विष्णु का आख़िरी अवतार माना जाता है। इसके बाद दोबारा सत्युग आयेगा।
दशावतार व्रत कथा
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं —हे राजा! सतयुग के प्रारम्भ में भृगु नाम के एक ऋषि हुआ करते थे। उनकी पत्नी दिव्या अत्यंत पतिव्रता स्त्री थीं। वह आश्रम की शोभा थी, और अपने गृह कार्य में लगी रहती थी। वह महर्षि भृगु की आज्ञा का पालन करती थीं। भृगु जी भी उनसे बहुत खुश थे।
किसी समय देवासुर के संग्राम में भगवान विष्णु के कारण असुरों को महान भय उत्पन्न हुआ। वें सभी असुर महर्षि भृगु की शरण लेने उनके पास आये। महर्षि भृगु अपना अग्निहोत्र आदि कार्य अपनी पत्नी को सौंप कर खुद संजीवनी – विद्या को प्राप्त करने के उद्देश्य से हिमालय के उत्तरी भाग में जाकर तपस्या करने लगे।
महर्षि, दैत्यराज बलि को सदा के लिए विजयी करने के लिए, वे भगवान शंकर जी की आराधना करके और संजीवनी – विद्या को पाना चाहते थे। उसी समय गरुड पर सवार होकर भगवान विष्णु जी वहाँ उपस्थित हुए और दैत्यों का वध करने लगे।
पल भर में ही उन्होंने दैत्यों का सर्वनाश कर दिया। यह देख कर भृगु जी की पत्नी दिव्या भगवान को श्राप देने के लिये तैयार हो गई। उनके मुख से श्राप के शब्द निकलने ही वाले थे, कि भगवान विष्णु ने चक्र से उनका सिर काट दिया।
तभी महर्षि भृगु भी संजीवनी – विद्या को पाकर वहाँ आ पहुंचे। तभी उन्होंने देखा की सभी दैत्य मारे जा चुके हैं और मेरी पत्नी भी मार दी गई हैं। क्रोध में अंधे होकर महर्षि भृगु ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि ‘ तुम दस बार मनुष्य लोक में जन्म लोंगे।
भगवान श्री कृष्ण ने कहा —महर्षि भृगु के श्राप के कारण ही इस संसार की रक्षा के लिये मैं बार – बार एक नया अवतार लेता हूँ। जो मनुष्य भी भक्ति पूर्वक मेरी पूजा, अर्चना करते हैं, वे ज़रुर ही इस संसार में प्रसिद्ध होकर स्वर्ग में स्थान प्राप्त करता हैं।
“दस अवतारों को धारण करने वाले सर्वव्यापी, संपूर्ण संसार के स्वामी, हे विष्णु भगवान! मैं आपकी शरण में आया हूँ। हे देव! आप मुझ पर प्रसन्न हो। मैं आपकी भक्ति करता हूँ क्योंकि आप भक्ति द्वारा ही प्रसन्न होते हैं। मैंने खुद को आप को सौंप दिया हैं, मुझे आप अपने धाम में ले चले।
व्रत विधि Puja Vidhi
- प्रात: अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नानादि करके स्वच्छ एवं धुले हुए वस्त्र धारण करें।
- इस दिन दशावतार पूजन के लिए रोली, अक्षत, दीपक, पुष्प, माला, नारियल, नैवेद्य, कपूर, फल, गंगा जल, यज्ञोपवीत, कलश, तुलसी दल, श्वेत चंदन, हल्दी, पीत एवं श्वेत वस्त्र आदि सामग्री इकट्ठी करके पूजा के लिए रखें।
- भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए और विष्णु की मूर्ति के सामने दीपक जलाये।
- पंचामृत बनाकर विष्णु भगवान का पूजन करें। पूजन करके भगवान विष्णु का ध्यान करें।
- इस दिन भगवान विष्णु के मंत्र का जाप, कीर्तन, स्मरण, दर्शन, विष्णु स्तोत्र आदि का पाठ अवश्य करना चाहिए।
- दशावातार की कथा अवश्य ही पढ़नी और सुननी अथवा दूसरों को सुनानी चाहिए।
दोस्तों इस प्रकार जों इस व्रत को करता हैं, वह भगवान के प्रेम से इस संसार में सुख़ भोग कर जन्म मरण से छुटकारा प्राप्त कर लेता हैं, और सदा विष्णु लोक में निवास करता हैं। जीवन में एक बार अवश्य ही यह व्रत करना चाहिए। इसे करने से अत्यंत आनंद प्राप्त होता हैं।
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