लॉर्ड डलहौजी और भारतीय इतिहास Lord Dalhousie and Indian History in Hindi

इस लेख में हम आपको लॉर्ड डलहौजी और भारतीय इतिहास  Lord Dalhousie and Indian History के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।

लॉर्ड डलहौजी और भारतीय इतिहास Lord Dalhousie and Indian History

लॉर्ड डलहौजी 1848 ई० में भारत में गवर्नर जनरल बन कर आया था। 1848 ई० से 1856 ई० तक वह गवर्नर जनरल बना रहा। उसके शासन करने का तरीका साम्राज्यवाद की नीति से प्रेरित था।

उसके शासनकाल में राज्य विस्तार की नीति अपनाई गई और बहुत से राज्यों पर जबरन अंग्रेजी हुकूमत ने कब्जा कर लिया। उसने अंग्रेज सरकार के लिए बहुत से महत्वपूर्ण काम किए। उसने कई सुधार किए। डलहौजी ने भारत की रियासतों को तीन भागों में विभाजित कर दिया।

डलहौजी के संबंध में इतिहासकारों ने लिखा है कि डलहौजी से पूर्व जो गवर्नर भारत में आए उनका सिद्धांत था कि जिस प्रकार भी संभव हो ब्रिटिश राज्य विस्तार ना किया जाए, परंतु डलहौजी का सिद्धांत था कि जिस प्रकार भी संभव हो ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार किया जाए।

डलहौजी की प्रमुख सफलताएं

  1. पंजाब के ब्रिटिश साम्राज्य और सिखों के बीच द्वितीय आंग्ल सिख युद्ध 1849 ई० को हुआ जिसमें डलहौजी को सफलता मिली। 29 मार्च 1849 ई० को डलहौजी ने पंजाब राज्य का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया।
  2. लॉर्ड डलहौजी ने सिक्किम राज्य पर दो अंग्रेज डॉक्टरों के साथ दुर्व्यवहार का आरोप लगाया और उनका अधिकार 1850 ई० में छीन लिया।
  3. डलहौजी ने पीकू और लोअर बर्मा का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया।

लॉर्ड डलहौजी द्वारा भारतीय रियासतों का विभाजन

डलहौजी ने भारतीय रियासतों को तीन भागों में विभाजित किया

प्रथम वर्ग

इस प्रकार की रियासतों में कोई अंग्रेज शासन नहीं था और ना ही वह किसी प्रकार का कर (टैक्स) देती थी। जयपुर और उदयपुर इस प्रकार के राज्य थे जिनका ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया गया।

द्वितीय वर्ग

इस वर्ग में ऐसी रियासते थी जो पहले मुगलों और पेशवाओ के अधीन थी पर वर्तमान में अंग्रेजों के अधीन थी। नागपुर और ग्वालियर इस प्रकार के राज्य थे जिनका विलय ब्रिटिश साम्राज्य में किया गया।

तृतीय वर्ग

इस प्रकार के वर्ग में ऐसी रियासते थी जो अंग्रेजों के सनदो द्वारा स्थापित की गई थी। झांसी और सातारा इस प्रकार के राज्य थे जिनका ब्रिटिश साम्राज्य में विलय किया गया।

डलहौजी की गोद-प्रथा निषेध / हड़प नीति नीति

भारतीय राज्यों को हड़पने के लिए डलहौजी ने गोद प्रथा निषेध की नीति लागू की। इस नीति के अनुसार संतान हीन राजाओं, नरेश जो ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन थे या जिनका अस्तित्व कंपनी के कारण हुआ था या कंपनी पर निर्भर थे वह किसी दूसरे पुत्र को गोद लेकर राजा नहीं बना सकते थे। इस तरह के राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन कर लिया जाता था

झाँसी (1853 ई०)

1843 ई० में झांसी के राजा गंगाधर राव का देहांत हो गया। देहांत से पूर्व उन्होंने दामोदर राव नामक बालक को गोद ले लिया और भावी राजा बना दिया। परंतु 20 फरवरी 1854 ई० को डलहौजी ने यह निर्णय बदल दिया।

उसके अनुसार झांसी का दत्तक पुत्र राज्य का अधिकारी नहीं हो सकता है। झांसी की रानी लक्ष्मी बाई ने डलहौजी को 1817 ई० की संधि याद दिलाई पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। 1853 ई० में झांसी का ब्रिटिश राज्य में विलय कर लिया गया।

सतारा (1848 ई०)

डलहौजी ने गोद-प्रथा निषेध बनाया था। इस सिद्धांत का प्रथम प्रयोग सतारा राज्य के लिए किया गया। सतारा के राजा अप्पा साहेब ने अपनी मृत्यु से पूर्व एक दत्तक पुत्र को राजा बना दिया था। डलहौजी ने इसे कम्पनी आश्रित राज्य घोषित कर 1848 ई० को सतारा राज्य का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया। जोसेफ ह्नूम ने कॉमन सभा में इस विलय को “जिसकी लाठी उसकी भैंस” की संज्ञा दी थी।

संबलपुर और जैतपुर (1849 ई०)

उड़ीसा के संबलपुर राज्य के राजा नारायण सिंह की मृत्यु निःसन्तान हो गई। मरने से पूर्व वह कोई पुत्र गोद नहीं ले सका। इसलिए उसकी विधवा रानी ने शासन अपने हाथों में ले लिया।

परंतु डलहौजी ने सिंहासन पर रानी के अधिकार को अस्वीकृत कर दिया। संबलपुर और जैतपुर राज्य को हड़प लिया। 1849 में इसे ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया गया।

नागपुर (1854 ई०)

नागपुर के राजा राघो जी भोसले बिना किसी संतान के ही मृत्यु को प्राप्त हो गए। उनकी मृत्यु के पूर्व उन्होंने यशवंतराव को गोद लिया। लेकिन डलहौजी ने उसे भी अस्वीकृत कर दिया। 1854 ई० को नागपुर राज्य का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया।

गोद प्रथा निषेध नीति की समीक्षा

इस नीति को हड़प नीति के नाम से भी जाना जाता है। नैतिक मूल्यों पर यह नीति सही नहीं थी। यह न्यायिक और निष्पक्ष नहीं थी। परंतु लॉर्ड डलहौजी ने ब्रिटिश साम्राज्य को मजबूत और बड़ा बनाने के लिए इसका प्रयोग किया।

यह नीति स्वार्थ से भरी हुई थी। इस नीति का यह परिणाम निकला कि 1857 ई० में भारत में क्रांति की शुरुआत हो गई। अंत में अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना पड़ा।

लॉर्ड डलहौजी द्वारा किए गए सुधार कार्य

शिक्षा संबंधी सुधार

लॉर्ड डलहौजी ने 1854 ई० में “वुड डिस्पैच” नीति को लागू किया। प्राथमिक शिक्षा से लेकर विश्वविद्यालय शिक्षा के लिए अच्छी योजना बनाई। कोलकाता, मद्रास और मुंबई जैसी 3 प्रेसिडेंसीयों और प्रमुख नगरों में एंग्लो-वर्नाक्यूलर स्कूल खोले गए और शिक्षा निदेशक नियुक्त किया गया।

भारतीय रेलवे के जनक

लॉर्ड डलहौजी को भारतीय रेलवे का जनक भी माना जाता है। उसने भारत की प्रथम ट्रेन महाराष्ट्र में 1853 ई० में मुंबई से ठाणे के बीच चलाई थी। रेल चलाने के लिए डलहौजी ने व्यक्तिगत रूप से काफी प्रयास किया था।

अंग्रेजों ने रेलवे में काफी पूंजी लगाई थी। इसके साथ ही लॉर्ड डलहौजी को भारत में विद्युत तार की शुरुआत करने का श्रेय भी दिया जाता है। 1852 ई० में विद्युत तार विभाग खोला था।

पोस्ट ऑफिस सम्बंधित सुधार

लॉर्ड डलहौजी ने डाक विभाग में कई सुधार किए। 1854 ई० में नया “पोस्ट ऑफिस एक्ट” पास किया। इस एक्ट के अंतर्गत 3 प्रेसिडेंसीयों में महानिदेशक नियुक्त किया गया। देश में दो पैसे की दर से पत्र भेजने की सुविधा शुरू की गई। डाक टिकटों का प्रचलन डलहौजी ने ही भारत में शुरू किया था।

अन्य सुधार

1854 ई० में लॉर्ड डलहौजी ने भारत में पहली बार सार्वजनिक निर्माण विभाग की स्थापना की। डलहौजी ने ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण पुनः शुरू करवाया। भारत के बंदरगाहों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए खोला। कराची कोलकाता और मुंबई के बंदरगाहों को आधुनिक बनाया।  

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