सोलह सोमवार व्रत कथा एवं पूजा महत्व के विषय में जानें। Solah Somvar Vrat Katha and Its importance in Hindi
सोलह सोमवार व्रत कथा एवं इसका महत्व
दोस्तों प्राचीन काल से ही देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए, भक्त कई प्रकार के पूजा, अर्चना एवं व्रत करते आ रहे है, और ऐसा करके देवी देवता प्रसन्न होते है, और उन्हें उनका मन चाहा फल प्रदान करते है, इसी प्रकार भगवान शंकर, जिन्हें भोले भंडारी के नाम से जाना जाता है, अपने भक्तो से प्रसन्न होकर, उन्हें मन चाहा फल देते है।
भगवान शंकर शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले देव हैं, यही कारण है कि इन्हे प्रसन्न करने के लिए भक्त विभिन्न रूपों में इनकी आराधना करते है। भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए भक्त पूजा अर्चना के साथ साथ व्रत भी करते है, इन व्रत में कुछ व्रत सरल होते है, जबकि कुछ बहुत ही कठिन होते है, इन्ही व्रतों में से एक 16 सोमवार का व्रत भी है, जो बहुत ही कठिन माना जाता है, परन्तु इस व्रत को करने से भगवान शंकर शीघ्र ही प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करते है।
वैसे तो यह व्रत कोई भी कर सकता है, फिर भी कुंवारी कन्याएं विशेष रूप से इस व्रत को विधि-विधान से करके मन चाहा वर पा सकती हैं, परन्तु इस व्रत को पूर्ण विधि-विधान से करना बहुत जरूरी होता है। इस व्रत को 16 सोमवार तक श्रद्धा पूर्वक करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
इस व्रत की शुरुआत श्रावण, चैत्र, वैशाख, कार्तिक और मार्ग शीर्ष मास में करनी चाहिए। उपयुक्त मास में व्रत आरम्भ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
व्रत-विधि एवं नियम
व्रत विधि
इस विधि से व्रत करें –
- भक्त को सुबह सूर्योदय से पहले उठ कर, पानी में गंगा जल या काली तिल डाल कर नहाना चाहिए।
- व्रत का पूजन निर्धारित समय यानि की दिन के तीसरे पहर (सायं 4 के आसपास) में किया जाना निश्चित होता है।
- भगवान शंकर का अभिषेक दूध, दही, घी, शहद, काली तिल आदि से करना चाहिए।
- इसके बाद ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र के द्वारा श्वेत फूल, सफेद चंदन, चावल, पंचामृत, सुपारी, फल और गंगा जल या स्वच्छ पानी से भगवान शिव और पार्वती का पूजन करना चाहिए। इस दिन सूर्य को हल्दी मिश्रित जल अवश्य चढ़ाएं।
- जिस प्रसाद का उपयोग पहले दिन किया जाता है, उसी तरह के प्रसाद का उपयोग बाकी के दिनों में किया जाता है, अन्यथा व्रत खंडित माना जाता है।
- गेहू के आटे में घी एवं शक्कर मिलाकर और उसको हलकी आंच पर सेक कर प्रसाद तैयार किया जाता है, जिसे कई जगह पंजीरी के नाम से भी जाना जाता है, इसको तीन भागों में बांट कर तीसरा भाग भोजन के रूप में खुद ग्रहण करना चाहिए। इसके साथ एक फल का भी उपयोग कर सकते है।
- शिव-पार्वती की पूजा के बाद सोमवार की व्रत कथा करना आवश्यक है।
नियम
इन नियमों का पालन करना बहुत ज़रूरी है –
- पूजा से पहले निर्जल एवं निराहार रहना होता है।
- भोजन के रूप में तीसरा हिस्सा ही खाना होता है।
- नमक का उपयोग नही किया जाता।
- दोबारा पानी नही पीना चाहिए।
- व्रत के दौरान शंकर जी के कोई भी मंत्र का जाप करें।
- 16 सोमवार के दौरान किसी के घर का अन्न नही ग्रहण करना चाहिए।
- प्रति सोमवार एक विवाहित जोड़े को उपहार दें। (फल, वस्त्र या मिठाई)
सोलह सोमवार व्रत कथा:
एक बार शंकर जी माता पार्वती के साथ भूलोक घूमते हुए अमरावती नगर पहुंचे, वहां के राजा ने शिवजी के मंदिर की स्थापना की थी, रहने के लिए स्थान होने के कारण शंकर भगवान् माता पार्वती के साथ वहीँ रहने लगे| एक दिन माता पार्वती ने भगवान शंकर से चौसर खेलने की इच्छा जाहिर की, दोनों खेलने लगे, इतने में मंदिर का पुजारी पूजा करने मंदिर आया।
माता पार्वती ने पुजारी से पूछा “इस खेल में कौन जीतेगा?” पुजारी जी ने उत्तर दिया भगवन “शंकर” लेकिन जीत माता पार्वती की हुई। इस पर रुष्ट होकर माता पार्वती ने पुजारी जी को श्राप दे दिया, क्योंकि माता के अनुसार पुजारी जी की भविष्यवाणी गलत साबित हुई, जिससे पुजारी जी कोढ़ी हो गये। समय गुजरता गया, कुछ समय बाद उसी मंदिर में अप्सराएं पूजा-अर्चना करने के लिए स्वर्ग से आईं और पुजारी को ऐसा देखकर उनसे, कोढ़ी होने का कारण पूछा।
पुजारी जी ने अपनी आप बीती उन अप्सराओं को बता दी| कारण जानकर अप्सराओ ने उन्हें सोलह सोमवार के व्रत करने की सलाह दी, और महादेव से अपने कष्ट हरने के लिए प्रार्थना करने को कहा। पुजारी जी ने उन अप्सराओ से व्रत करने की विधि पूछी।
अप्सराओ ने बताया – सोमवार को बिना अन्न व जल ग्रहण किए व्रत करें, और शाम को पूजा करने के बाद आधा सेर गेहूं के आटे का चूरमा तथा मिट्टी की तीन मूर्ति बनाएं और चंदन, चावल, घी, गुड़, दीप, बेलपत्र आदि से भगवान शंकर की उपासना करें, एवं गेहू के आटे का चूरमा बनाकर भगवान शंकर को चढ़ाएं और फिर इस प्रसाद को 3 हिस्सों में बांटकर एक हिस्सा लोगों में बांटकर, दूसरा गाए को खिलाकर और तीसरा हिस्सा स्वयं खाकर पानी पीने को कहा।
इस विधि को हर सोलह सोमवार को दोहरा कर और सत्रहवें सोमवार को पांच सेर गेहूं के आटे की बाटी का चूरमा बनाकर भोग लगाकर बांटने को कहा। फिर परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण करें। ऐसा करने से शंकर जी तुम्हारे मनोरथ पूर्ण करेंगे। यह बताकर अप्सराये स्वर्ग को चली गईं।
पुजारी जी ने बताई विधि के अनुसार व्रत करके पूजन किया और रोग मुक्त हुए। कुछ दिन बाद भगवान शंकर एवं माता पार्वती दोबारा उस मंदिर में आए, पुजारी जी को कोढ़ मुक्त देखकर माता पार्वती ने उनसे रोग मुक्त होने का राज पूछा, तब पुजारी ने उन्हें सोलह सोमवार व्रत की महिमा के बारे में बताया। व्रत की महिमा जानकर माता पार्वती ने भी यह व्रत किया जिसके प्रभाव से कार्तिकेय जी अपनी मां के आज्ञाकारी हुए।
इस पर कार्तिकेय जी ने भी मां पार्वती से पूछा कि “मै आपका आज्ञाकारी कैसे हुआ?” माता पार्वती ने उन्हें व्रत के बारे में बताया, तब कार्तिकेय ने भी व्रत किया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें अपना बिछड़ा हुआ ब्राह्मण मित्र मिला। मित्र ने भी कार्तिकेय से अचानक मिलने का कारण पूछा और फिर व्रत की विधि जानकर उसने भी विवाह की इच्छा से सोलह सोमवार का व्रत किया।
विदेश में राजा की कन्या का स्वयंवर था। वह भी स्वयंवर देखने के लिए वहां जाकर बैठ गया। राजा ने शर्त राखी थी की हथिनी जिसके गले में माला डालेगी उसी के साथ उसकी पुत्री का विवाह होगा, भाग्यवश हथिनी ने उस ब्राह्मण के गले में माला डाल दी और शर्त पूरी होने के कारण उसका विवाह उस राजकुमारी के साथ कर दिया गया और दोनों सुख से रहने लगे।
एक दिन उस ब्राह्मण की पत्नी ने ब्राह्मण से पूछा की ऐसा क्या कारण था कि सभी राजकुमारों को छोड़ कर हथिनी ने आपके गले में माला डाली? इस पर ब्राह्मण ने सोलह सोमवार के व्रत के बारे में विधिवत बताया। व्रत की महिमा जानकर उसकी पत्नी ने भी संतान प्राप्ति के लिए व्रत रखने का संकल्प लिया, एवं कुछ समय पश्च्यात उसको भी पुत्र सुख की प्राप्ति हुई|
बड़े होने पर ब्राह्मण पुत्र ने पूछा- माता जी! किस पुण्य के कारण आपको मेरी प्राप्ति हुई? ब्राह्मण पत्नी ने भी अपने पुत्र को शंकरजी के 16 सोमवार व्रत की सविस्तार जानकारी दी, ब्राह्मण पुत्र ने राजपाट की इच्छा से 16 सोमवार के व्रत किये, जिसके प्रभाव के फलस्वरूप वहां के राजा ने अपनी इकलोती पुत्री का विवाह उसके साथ कर दिया, कुछ समय पश्च्यात राजा की मृत्यु होने के कारण उसे सारा राजपाट मिल गया। फिर भी वह इस व्रत को करता रहा। एक दिन उस राजा ने अपनी पत्नी को 17वे सोमवार को पूजन सामग्री लेकर शिव मंदिर आने के लिए कहा लेकिन उसने पूजन सामग्री को दासी द्वारा भिजवा दिया।
पूजन समाप्त होने पर आकाशवाणी हुई कि वह अपनी पत्नी को अपने से दूर रखे, नहीं तो वह उसका सर्वनाश कर देगी। यह सुनकर उसको बहुत आश्चर्य हुआ, फिर भी ईश्वर का आदेश मान कर उसने रानी को महल से निकाल दिया।
रानी रोती हुई एवम भाग्य को कोसती हुई, किसी नगर में एक बुढ़िया के पास गई। वह बुढिया धागा बेचने बाज़ार जा रही थी, उसने उस रानी की मदद करने के उद्देश से उसके सिर पर सूत की पोटली रख बाजार चलने को कहा, रास्ते में आंधी आई, और पोटली उड़ गई। बूढी औरत बहुत दुखी हुई एवं उसने उससे चले जाने को कहा।
वहां से वह रानी तेली के यहां पहुंची तो वहां पर उसके सभी बर्तन चटक गए और उनसे तेल बहने लगा, उसने भी उसे मनहूस मानकर निकाल दिया। आगे वह एक सुन्दर तालाब के पास पहुंची, उसके स्पर्श से जल में कीड़े पड़ गये, भाग्य की विडम्बना देखते हुए उसने अपनी प्यास उसी पानी से बुझाई, और पेड़ के नीचे विश्राम करने के उद्देश से जैसे ही पेड़ के नीचे सोई, उस पेड़ की सारी पत्तियां झड गयी।
अब वह जहाँ जाती, वहां पेड़ की पत्ती झड जाती एवं पानी में कीड़े पड जाते, ऐसा देखकर स्थानीय लोग उसे मंदिर के पुजारी के पास ले गये, सारी आप वीती जानकर उस पुजारी ने उससे अपने परिवार के साथ रहने के लिए कहा, रानी आश्रम में रहने लगी, परंतु वह जिस चीज पर हाथ लगाती उसमे में कीड़े पड़ जाते। ऐसा देखा कर पुजारी जी ने पूछा “बेटी किस अपराध के कारण तेरी यह दशा हुई है”? रानी ने शिव मन्दिर में ना जाने की कहानी बतायी।
तब पुजारी ने रानी को शंकर भगवान के 16 सोमवार व्रत करने के लिए कहा। रानी ने कहे अनुसार सोलह सोमवार का व्रत पूर्ण किया। इसके प्रभाव से राजा को उसकी याद आई और अपने दूतों को भेज कर उसकी खोज करने को कहा। आश्रम में रानी को देखकर दूतों ने राज को रानी के बारे में बताया। राजा ने पुजारी के पास पहुँचकर ईश्वर के आदेश के बारे में उन्हें सारी बात बता दी और पुजारी जी की आज्ञा पाकर राजा रानी को अपने महल ले गया।
शंकर जी की कृपा से दोनों आनंद से रहने लगा और अंत में शिवलोक को प्राप्त हुए। इस तरह जो व्यक्ति भक्ति से सोलह सोमवार व्रत करता है और कथा सुनता है। उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और अंत में वह शिवलोक को प्राप्त होता है।
उध्यापन विधि
इस व्रत का उद्यापन 17 वे दिन सोमवार को, पुजारी जी द्वारा कराया जाना चाहिए। पूजा अर्चना निर्धारित समय यानि कि तीसरे पहर ही करना चाहिए।
सवा किलो प्रसाद को तीन भागो (पहला भाग भोग के रूप में शंकर जी को, दूसरा भाग गाय के लिए एवं तीसरा खुद के लिए) में बाँट कर तीसरा भाग स्वयं लेना चाहिए।
16 सोमवार व्रत का महत्व
- व्रत करने वालो को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
- कुँवारी कन्याओ को मन चाहा वर की प्राप्ति होती है।
- धन दौलत की प्राप्ति होती है।
- विवाहितों को संतान सुख की प्राप्ति होती है।
- जन्म कुंडली में अशुभ ग्रह की दशा चल रही है, तो अशुभता में कमी हो जाती है।
- घर में अकारण होने वाले पति-पत्नी के मध्य क्लेश में कमी हो जाती है या ख़त्म ही हो जाता है।
- कालो के काल महाकाल शंकर जी अपने भक्तों को सभी रोगों से मुक्त करते है।
यह थी, सोलह सोमवार के व्रत की विधि कथा एवं महत्व जिसको करके भक्त अपने जीवन से समस्याओं का खत्म करके, सुखी रह सकता है।