हरियाली अमावस्या व्रत कथा, पूजा विधि, महत्व Hariyali Amavasya vrat katha in Hindi
दोस्तों आज हम बात करेंगे सावन महीने में मनाया जाने वाले, ऐसे पर्व की, जिसका स्वागत बड़ी आतुरता के साथ सभी भक्त द्वारा किया जाता है। वो है हरियाली अमावस्या, इसको हरियाली के आगमन के रूप में मनाया जाता हैं।
इस दिन किसान आने वाले वर्ष में कृषि के विकास का अनुमान लगाते हैं, शगुन करते हैं। सावन की बहार और खुशनुमे पर्यावरण का स्वागत किया जाता है।
हरियाली अमावस्या Hariyali Amavasya
सावन महीने की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हरियाली अमावस्या कहा जाता हैं। इस अमावस्या का संबंध प्रकृति, पितृ और भगवान शंकर से है। तीनों लोक से संबंध होने के कारण इस अमावस्या का अपना विशेष महत्व है।
अतः पर्यावरण को संतुलित और शुद्ध बनाए रखने के उद्देश्य से ही अनेक वर्षों से हरियाली अमावस्या का पर्व खूब धूम-धाम से मनाया जाता है। इसका मुख्य लक्ष्य प्रदूषण को समाप्त कर पेड़ो की संख्या में अधिक से अधिक वृद्धि करना है। यदि इस दिन कोई भी व्यक्ति एक भी पेड़ रोपित करता है, तो उसे पुण्य की प्राप्ति होती है और वह जीवन भर सुखी और समृद्ध बना रहता है।
पेड़ो में देवताओं का वास माना जाता है, इसी कारण से इन्हें लगाने वाले व्यक्ति पर भगवान की असीम कृपा बनी रहती है। हमारे सनातन धर्म में वृक्षों को देवता स्वरूप माना गया है। मनु-स्मृति के अनुसार वृक्ष योनि पूर्व जन्मों के कर्मो के फलस्वरूप मिलती है, ऐसा माना गया है।
पीपल के वृक्ष को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि पीपल के वृक्ष में अनेकों देवताओं का वास माना गया है। इस दिन पीपल के मूल भाग में जल, दूध चढ़ाने से पितृ तृप्त होते है तथा शनि शांति के लिये भी शाम के समय सरसों के तेल का दिया लगाने का विधान है ।
पेड़-पौधों से केवल मनुष्य नही बल्कि प्रकृति में रहने वाले समस्त जीव जंतु का जीवन सुरक्षित होता है।
हरियाली अमावस्या व्रत कथा Hariyali Amavasya Vrat Katha
एक राजा था। उसके एक बेटा बहू थे। बहू ने एक दिन मिठाई चोर करके खा ली और नाम चूहा का ले लिया, यह सुनकर चूहे को गुस्सा आया, और उसने मन मे विचार किया कि चोर को राजा के सामने लेकर आऊंगा। एक दिन राजा के घर में मेहमान आये थे, और वह राजा के कमरे में सोये थे, चूहे ने रानी के कपड़े ले जाकर मेहमान के पास रख दिये। सुबह उठकर सब लोग आपस में बात करने लगे की छोटी रानी के कपड़े मेहमान के कमरे में मिले। यह बात जब राजा ने सुनी तो उस रानी को घर से निकाल दिया। वह रोज शाम को दिया जलाती और ज्वार बोती थी। पूजा करती गुडधानी का प्रसाद बाँटती थी। एक दिन राजा शिकार करके उधर से निकले तो राजा की नजर उस रानी पर पडी। राजा ने घर आकर कहा की आज तो झाड़ के नीचे चमत्कारी चीज हैं, अपने झाड़ के ऊपर जाकर देखा तो दिये आपस में बात कर रहे थे। आज किसने क्या खाया, और कौन क्या है। उस में से एक दिया बोला आपके मेरे जान पहचान के अलावा कोई नही है आपने तो मेरी पूजा भी नही करी और भोग भी नही लगाया बाकी के सब दिये बोले ऐसी क्या बात हुई तब दिया बोला मैं राजा के घर का हूँ उस राजा की एक बहू थी उसने एक बार मिठाई चोरी करके खा ली और चूहे का नाम लें लिया। जब चूहे को गुस्सा आया तो रानी के कपड़े मेहमान के कमरे में रख दिये राजा ने रानी को घर से निकाल दिया, वो रोज मेरी पूजा करती थी भोग लगाती थी। उसने रानी को आशीर्वाद दिया और कहा की सुखी रहे। फिर सब लोग झाड़ पर से उतर कर घर आये और कहा की रानी का कोई दोष नही था। राजा ने रानी को घर बुलाया और सुख से रहने लगे। भूल चूक माफ करना।
पूजा विधि Puja method
महिलाओ को सुबह उठकर पूरे विधि विधान से माता पार्वती एवं भगवान शंकर की पूजा करनी चाहिए तथा सुहागन महिलाओ को सिंदूर सहित माता पार्वती की पूजा करना चाहिए और सुहाग सामग्री बांटना चाहिए। ऐसा मानना है कि हरी चूड़िया, सिंदूर, बिंदी बांटने से सुहाग की आयु लंबी होती है और साथ ही घर में खुशहाली आती है। अच्छे भाग्य के उद्देश्य से लड़के भी चूड़ियां, मिठाई आदि सुहागन स्त्रियों को भेट कर सकते हैं। लेकिन यह कार्य दोपहर से पहले कर लेना चाहिए।
हरियाली अमावस्या के दिन भक्तो को पीपल और तुलसी के पेड़ की पूजा करना चाहिए। इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा एवं फेरे किये जाते है तथा मालपूए का भोग बनाकर चढाये जाने की परंपरा है। धार्मिक ग्रंथों में पर्वत और पेड़-पौधों में भी ईश्वर का वास बताया गया है। पीपल में त्रिदेवों का वास माना गया है। आंवले के पेड़ में स्वयं भगवान श्री लक्ष्मीनारायण का वास माना जाता है।
इस दिन कई लोग उपवास भी रखते हैं। इसके बाद शाम को भोजन ग्रहण कर व्रत तोड़ा जाता है। मान्यता है कि जो लोग श्रावण मास की अमावस्या को व्रत करते हैं, उन्हें धन और वैभव की प्राप्ति होती है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नासन के बाद ब्राह्मणों, ग़रीबों और वंचतों को यथाशक्ति दान-दक्षिणा करनी चाहिए।
इस दिन पीपल, बरगद, केला, निंबू, तुलसी आदि का वृक्षारोपण करना बेहतर ही शुभ माना जाता है।
महत्व Importance
सावन महीने का सीधा संबंध भगवान शंकर और माता पार्वती से है। इस अमावस्या के दिन माता पार्वती के साथ भगवान शंकर की पूजा का विशेष महत्व है। कुंवारी कन्याओं को विवाह में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए भगवान शंकर और माता पार्वती को लाल वस्त्र अर्पण करके उनका फल और मिष्टान से पूजन करना चाहिए।
हरियाली अमावस्या पर महिलाओ द्वारा हरे रंग के कपड़े पहने का विशेष महत्व है, इस दिन महिलाएँ झूले झूलती है, पिकनिक मनाती है, सखियों के साथ अठखेलिय करती है। विभिन्न संस्थाओं द्वारा विशेष आयोजन भी आयोजित किये जाते है, और वृक्षारोपण का कार्य भी भारी मात्रा में किया जाता है। वर्षो पुरानी परंपरा के निर्वाहन के लिए हरियाली अमावस्या के दिन एक नये पौधे लगाना शुभ माना जाता है।
यह पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण से मुक्ति के उद्देश्य से हर साल मनाई जाती है। इस दिन सवेरे किसी पवित्र जलाशय या नदी में स्नान करके नीम, आँवला, तुलसी, पीपल, वटवृक्ष और आम के पेड़ लगाने का विशेष महत्व है।
जैसा की नाम से पता चलता है, हरियाली से संबंधित इसलिए हरियाली अमावस्या मनुष्य को प्रकृति से जोड़ने का पर्व भी कहा जाता है। भक्त को अपनी राशि के अनुसार वृक्षारोपन करना चाहिए, और यदि राशि से संबंधित पौधे ना मिले तो तुलसी, आम या शमी का पेड़ भी लगाया जा सकता है। अत: इस दिन किसी वृक्ष को किसी भी प्रकार का नुकसान नही पहुँचाया जाना चाहिए।
यदि आप राशि के अनुसार पौधे लगाना चाहते हो तो राशि के अनुसार पौधे इस प्रकार है-
- मेष राशि – लाल चंदन या आंवले का पौधा
- वृष राशि – जामुन या सप्तपर्ण का पौधा
- मिथुन राशि – खैर या कटहल का पौधा
- कर्क राशि – पलाश या पीपल का पौधा
- सिंह राशि – बड़गद का पौधा
- कन्या राशि – रीठा का पौधा
- तुला राशि- अर्जुन का पेड़ या पौधा
- वृश्चिक राशि – अमरूद का पौधा
- धनु राशि – साल का पौधा
- मकर और कुंभ राशि – शमी का पौधा
- मीन राशि – आम का का पौधा
इस पर्व के फायदे Benefits of this ritual and festival
मान्यता है कि ऐसा करने से प्रकृति हरे-भरे रहने के साथ फलते –फूलने रहने का आशीर्वाद देती है। इस दिन हर किसी को किसी मंदिर या किसी बाहर कहीं एक नया पौधा ज़रुर लगाना चाहिए।
अतः हरियाली अमावस्या के दिन पेड़-पौधों को रोपित करने और उनकी पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। हरियाली अमावस्या का मुख्य उद्देश्य वर्तमान में बढ़ रहे प्रदूषण और गंदगी की समस्या को हल करना है।
वर्तमान में वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण के बढ़ते प्रभाव के कारण कई बीमारियाँ पनप रही है। जिनसे दिनों-दिन अनेक लोग मौत के घाट उतर रहे हैं।
प्रदूषण को खत्म करने के लिए प्राचीन समय से ही वायु में वरुण देवता और जल में जल देवता का निवास बताया गया है। ताकि लोग वायु और जलाशयों को अपवित्र या गंदा नहीं करें और उनके महत्व को समझें।
हरियाली अमावस्या के दिन कई शहरों में मेलों का भी आयोजन भी किया जाता है। इस कृषि उत्सव को सभी सम्प्रदाओ के लोग आपस में मिलकर मनाते हैं। मेले में गुड़ और धानी का प्रसाद वितरित किया जाता है जो कि कृषि की अच्छी पैदावार का प्रतीक होता है।
इस दिन गेहूँ, मक्का, ज्वार, बाजरा जैसे अनेक अनाज बोए जाते हैं और खेतों में हरियाली की जाती है, ताकि साल भर कोई भूखा न रहे और प्रदूषण से भी काफी हद तक मुक्ति मिल सके। किसानों द्वारा अपने हल और कृषि यंत्रों का पूजन करने का रिवाज भी है।
मथुरा और वृन्दावन में उत्सव Celebration in Mathura and Vrindavan
हरियाली अमावस्या के दिन उत्तर भारत के मथुरा और वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर एंव द्वारकाधिश मंदिर में विशेष पूजा और दर्शन के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। शिव मंदिरों में भी लोग इस दिन दर्शन और पवित्र स्नान करने जाते हैं।
इस दिन पितृ तर्पण भी किया जाता है। इससे पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। इस दिन विशेष तरह का भोजन भी बनाया जाता है, जो कि ब्राम्हणों को खिलाया जाता है।
खास बात यह है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा भी की पूजा की जाती है। हरियाली अमावस्या के दिन भोले शंकर का विशेष रूप से पूजन होता हैं। मान्यता है कि श्रावण अमावस्या के दिन भगवान शंकर की पूजा करने से घर में सुख और शांति के साथ समृद्धि भी आती है।