पल्लव वंश का इतिहास History of Pallava Dynasty in Hindi
आज के इस लेख में हमने पल्लव वंश का इतिहास (History of Pallava Dynasty in Hindi), साथ ही उनके शासकों के विषय में भी संक्षिप्त जानकारी दिया है।
यह दक्षिण भारत का प्रमुख वंश है जिसे हम पल्लव वंश के नाम से जानते है इसकी राजधानी कांचीपुरम को बनाया गया। इसे हम कांजी भी कहते है, अगर भारत के नक़्शे में इसे हम देखे तो आज का तमिलनाडु और थोड़ा आंध्रप्रदेश का भाग है वहां पर पल्लवों का राज्य हुआ करता था। उत्तरी तमिलनाडु और दक्षिणी आंध्रप्रदेश के भाग में पल्लव राज्य करते थे।
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पल्लव वंश की शुरुआत :
पल्लव वंश की शुरुआत सिंह वर्मन से होती है यह पल्लव वंश के संस्थापक कहलाते थे, पर इनसे पहले भी कई राजा आये पर वे सभी स्वतंत्र नहीं थे वे किसी न किसी पर आश्रित थे। जब मौर्य वंश के बाद सातबाहन आया था उनके भी ये सामंत रह चुके थे इनके पहले उनके पूर्वजों ने अपना कोई स्वतंत्र क्षेत्र नहीं बनाया था।
कई किताबों में तो यही लिखा हुआ है कि सिंह वर्मन के पुत्र सिंह विष्णु ही पल्लव वंश के सही संस्थापक है । जब सिंह वर्मन के पुत्र आये तो ये पूरी तरीके से स्वतंत्र हो गये और इन्होंने चोल साम्राज्य, चेर साम्राज्य को भी हराया था।
पल्लव वंश दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध राजवंश कहलाता था। पल्लव वंश के बारे कहा गया है कि ये इस वंश के लोग स्थानीय कबीले थे। पल्लव का अर्थ लता होता है और यह तमिल भाषा के एक शब्द “टोंडाई” को रुपांतरण करके बनाया है और इसका अर्थ भी लता होता है। इसलिए पल्लव वंश को हम लताओं के प्रदेश के निवासी भी कहते है।
चौथी शताब्दी में पल्लव वंश ने सबसे पहले कांचीपुरम से अपना राज्य स्थापित किया और करीब 600 वर्षों तक तेलुगू और तमिल क्षेत्र में राज्य करते रहे। बोधिधर्म भी इसी वंश के थे, उन्होंने ही ध्यान योग को पूरे चीन में फैलाया। पल्लवों का प्राचीन इतिहास की के बारे में कुछ सही से स्पष्ट नहीं है।
यह माना गया है कि पल्लव राजवंश के राजा अपने आप को क्षत्रिय कहते थे। पल्लवों के राजाओं का उदय सात वाहनों के पश्चात हुआ था। ये दक्षिणी आध्र और उत्तरी तमिलनाडु पर राज्य करते थे। सिंह वर्मन के दो पुत्र थे सिंह विष्णु और भीम वर्मन
भीम वर्मन का भी वंश चला पर वह राजा बहुत बाद में बने जब नंदी वर्मन 2 आये तब इनका साम्राज्य लोगो के सामने आया
सिंह विष्णु का समय (575-600) :
सिंह विष्णु को प्रथम प्रमुख राजा थे, सिंह विष्णु का समय में महेंद्र वर्मन -1, नरसिंह वर्मन -1, महेंद्र वर्मन-2 परमेश्वर वर्मन-1, नरसिंह वर्मन -2, परमेश्वर वर्मन-2 तक ही इनका साम्राज्य चला उसके बाद उनका वंश भी खत्म हो गया ।
इसके अलावा विष्णु सिंह को अवनिसिंह मतलब पृथ्वी का सिंह की उपाधि दी गयी । वह भगवान विष्णु के भक्त थे, उन्होंने चोल, पाण्डेय और चेर शासकों को भी हराया था। माम्ल्लपूरम में वाराहमंदिर का निर्माण कराया इनका नाम महावली पूरम था यह तमिलनाडु में स्थित है।
महेंद्र वर्मन-1 (600-630 ई.) :
महेंद्र वर्मन-1 सिंह विष्णु के पुत्र थे महेंद्र वर्मन ने कई उपाधियाँ धारण की थी जैसे – मतविलास, विचित्रचित, गुणभर, शत्रुमल्ल आदि । ये पहले जैन धर्म के उपासक थे पर अप्पार के प्रभाव में आकर इन्होंने शैव धर्म अपनाया ।
महेंद्र वर्मन-1 ने ही पत्थर को काटकर पत्थर की कला का प्रचार किया इनके समय से ही पत्थर को काटकर कई मंदिर बनाये गये।
महेंद्र वर्मन ने प्रसिद्ध संगीतज्ञरुद्रोचर्य से शिक्षा प्राप्त की थी । इन्होंने मतविलासप्रहसन नामक एक ग्रन्थ की स्थापना की थी जो कि हास्य ग्रन्थ था। भारवि नामक ग्रन्थ की रचना भी महेंद्र वर्मन-1में की गयी थी पर भारवि महेंद्र वर्मन-1 के पिता के दरबार में रहते थे।
नरसिंह वर्मन-1 (630-668 ई.) :
नरसिंह वर्मन-1 का काल पल्लव वंश में सबसे महत्त्वपूर्ण काल कहलाता है। पुलिकेशन-2 की हत्या भी, नरसिंह वर्मन-1 ने ही की थी इन्होंने पुलिकेशन को तीन बार युद्ध में हराया था, पुलिकेशन चालुक्य वंश से संबंधित है पुलिकेशन महेंद्र वर्मन-1 जो कि नरसिंह वर्मन-1 के पिता थे उनको हरा चुका था। देखा जाये तो पल्लव और चालुक्य वंश का संघर्ष महेंद्र वर्मन-1 से ही चला आ रहा था।
नरसिंह वर्मन-1 ने पुलिकेशन को हराकर वातापी पर कब्ज़ा कर लिया था और इसतरह उन्हें वातापी कोड की उपाधि मिली। उन्हें वातापी का विजेता कहा गया। नरसिंह वर्मन-1 ने ही महामल्लपुरम नामक शहर को बसाया था।
वैसे तो चीनी यात्री हेन्सांग हर्षवर्धन के समय भारत आया था, पर यह घूमता हुआ कांची आ गया था उस समय नरसिंह वर्मन-1 का समय चल रहा था। चीनी यात्री हेन्सांग की रचना में सी यू की में भी नरसिंह वर्मन-1 के शासनकाल के बारे में बताया गया है और चीनी यात्री हेन्सांग ने अपनी रचना में उनके शासन काल को हीरे की उपमा दी गयी है। नरसिंह वर्मन-1 ने रथों का मंदिर का निर्माण करवाया था जो कि एक रथ की भांति खाई देता था
महेंद्र वर्मन-2 (668 – 70 ई.):
नरसिंह वर्मन-1 के पुत्र महेंद्र वर्मन-2 थे। इनका शासनकाल केवल दो साल ही चला क्यों कि पुलिकेशन-2 के पुत्र विक्रमादित्य- 1ने महेंद्र वर्मन-2 की हत्या कर दी थी।
परमेश्वर वर्मन-1(670-695 ई.) :
यह शैव धर्म के अनुयायी थे इन्होंने एकमल्ल, गुणाभाजन, रणजय, उग्र्दंड, आदि उपाधियाँ धारण की थी। मामल्लपुरम का गणेश मंदिर भी उनके काल में ही बनवाया गया था।
नरसिंह वर्मन-2 : (695-720 ई.)
नरसिंह वर्मन-2 कांची का कैलाशनाथ मंदिर तथा महाबलीपुरम का शोर का मंदिर का निर्माण भी इनके शासनकाल में ही हुआ था। नरसिंह वर्मन-2 ने ही पल्लव वंश में पहली बार अपना राजदूत चीन भेजा था इनका शासनकाल लगभग शांतिपूर्ण था इन्होंने अपने आप को राज सिंह और शंकर भक्त की उपाधि दी थी ।
परमेश्वर वर्मन-2 : (720-731 ई.)
कहा जाता है गंग वंश के शासक ने इनकी हत्या कर दी थी । इस तरह परमेश्वर वर्मन-2 के बाद इनके वंश का कोई भी नहीं बचता है तो यहाँ से फिर मजबूरन भीम वर्मन के नंदी वर्मन को राजा बनाया जाता है।
भीम वर्मन का वंश :
नंदी वर्मन-2 (731- 795):
राजधानी तथा जनता की सहमति से पल्लव राजवंश की एक दूसरी शाखा से हरिन्य वर्मन के पुत्र राजा चुना गया जिनका नाम नंदी वर्मन था । जब दंती दुर्ग से नंदी वर्मन-2 का युद्ध हुआ तो इस युद्ध में नंदी वर्मन की हार हो जाती है परन्तु बाद में इनदोनों में एक संधि होती है जिसमे डंडी दुर्ग की पुत्री रेवा की शादी नंदी वर्मन-2 से कर दी जाती है और इसतरह इनका साम्राज्य बना रहता है नंदी वर्मन वैष्णव धर्म के अनुयाई थे। उन्होने कांची का मुक्तेश्वर मंदिर बनवाया था। इसतरह पल्लव वंश और भी आगे चलता गया।
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