समुद्रगुप्त का इतिहास Samudragupta The Great King History in Hindi

इस लेख में आप हिंदी में समुद्रगुप्त का इतिहास (History of Samudragupta in Hindi) पढ़ेंगे। समुद्रगुप्त भारतीय इतिहास के सबसे बड़े शासकों में से एक थे।

समुद्रगुप्त का इतिहास Samudragupta The Great King History in Hindi

इस लेख में समुद्रगुप्त कौन था, जन्म व प्रारम्भिक जीवन, विजय, साम्राज्य का विस्तार, उपलब्धियां, नेपोलियन शासक का नाम, मुद्राएं, उनके असवमेध यज्ञ जैसी की जानकारी दी गई है।

समुद्रगुप्त कौन था? Who Was Samudragupta in Hindi?

सदियों से हिंदुस्तान की पवित्र मिट्टी पर कई राजवंशों ने शासन किया है। कभी बाहर से आए राजवंशों ने भारत में अपना अधिपत्य जमाया, तो कई यहां के मूल राजवंशों ने अपना राज्य विस्तार करके समय-समय पर कई परिवर्तन लाए।

सबसे मजबूत राजवंशों में से एक गुप्त वंश के सबसे तेजस्वी राजा समुद्रगुप्त ने हिंदुस्तान में स्वर्ण युग का आगमन किया था। समुद्रगुप्त को भारतीय इतिहास का दूसरा सबसे शक्तिशाली सम्राट कहकर बुलाया जाता है।

सम्राट अशोक के पश्चात समुद्रगुप्त ही एकमात्र ऐसे शासक थे, जिन्होंने अखंड भारत का पुनः निर्माण किया था। समुद्रगुप्त को भारतीय नेपोलियन के रूप में भी जाना जाता है। वी.ए. स्मिथ ने सर्वप्रथम समुद्रगुप्त को नेपोलियन का दर्जा दिया, क्योंकि उन्होंने विशाल साम्राज्य स्थापित किया था।

समुद्रगुप्त को एक अदम्य साहस की प्रतिमूर्ति के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने दूर-दूर तक बिखरे हुए राजवंशों को मिलाकर एक राष्ट्र का निर्माण किया था, जिसे अखंड भारत के नाम से जाना जाता है।

चंद्रगुप्त प्रथम के पुत्र समुद्रगुप्त अपने सभी भाइयों में सबसे तेजस्वी और शक्तिशाली थे, जिसके कारण उन्हें सिंहासन का उत्तराधिकारी चुना गया था। समुद्रगुप्त विशेषतः एक योद्धा के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन आपको बता दें कि वह एक कला प्रेमी भी थे। जिसके साक्ष्य उनके शासनकाल में किए गए विभिन्न कार्यों से प्राप्त होते हैं।

समुद्रगुप्त का जन्म व प्रारंभिक जीवन Samudragupta Birth & Early Life

समुद्रगुप्त के जन्म तारीख को लेकर कई अलग-अलग तथ्य दिए जाते हैं। कई इतिहासकारों का मानना है कि उनका शासनकाल लगभग 335 से लेकर 380 ईसा पूर्व तक चला था।

गुप्त वंश के दूसरे शासक चंद्रगुप्त प्रथम ने लिक्षवी राजकुमारी कुमार देवी से विवाह किया था, जिसके पश्चात उनका एक तेजस्वी पुत्र का जन्म हुआ जो समुद्रगुप्त के नाम से जाना गया।

समुद्रगुप्त की माता लिक्षवी राज्य की राजकुमारी थी, इसीलिए समुद्रगुप्त को भी लिक्षवी दौहित्र कहा गया है। बाल्यकाल से ही उनके अंदर एक प्रतिभावान और दूर दृष्टिता वाले योद्धा की छवि दिखाई पड़ने लगी थी।

वह अपने सभी जेष्ठो से सबसे ज्यादा बुद्धिमान थे, इसी कारण माता पिता के भी बहुत लाडले संतान थे। उनकी प्रतिभा को देखते हुए चंद्रगुप्त प्रथम ने अपने अगले उत्तराधिकारी के रूप में उन्हें चुना।

एक कुशल योद्धा के सारे गुण बाल्यावस्था से ही समुद्रगुप्त के अंदर समाहित थे। युद्धाभ्यास के अलावा वे कला में भी बचपन से रुचि रखते थे।

आगे चलकर जब समुद्रगुप्त को राज सिंहासन पर बैठाया गया था, तब उनका राज्य बहुत छोटे स्तर तक ही फैला था। भूमि के एक टुकड़े से लेकर चारों दिशाओं को जीतने का सपना समुद्रगुप्त तो बचपन से ही देखते थे, जो बाद में सत्य हुआ।

समुद्रगुप्त का विजय और साम्राज्य का विस्तार Conquest of Samudragupta and Empire Expansion

प्राचीन काल में जितने भी राजा महाराज हुए हैं, उन्होंने अपने महत्वपूर्ण फैसलों और युद्ध में प्राप्त किए गए विजयों को शिलालेख, स्तंभलेख, गुफालेख इत्यादि पर दर्शाकर दीर्घकालीन समय के लिए लोगों को इसकी जानकारी दिया करते थे।

समुद्रगुप्त जैसे महान सम्राटों द्वारा किए गए युद्ध और परियोजना इत्यादि के सबूत भी इन्हीं लेखों से प्राप्त होते हैं। समुद्रगुप्त को जब राजगद्दी सौंपी गई, तब इससे बहुत से लोग नाखुश थे, जिनमें मुख्य उनके जेष्ठ भाई थे। चंद्रगुप्त प्रथम द्वारा लिए गए इस निर्णय को लोगों ने पक्षपात के रूप में देखना शुरू कर दिया।

लेकिन जब समुद्रगुप्त सत्ता में आए तो उन्होंने सभी का मुंह बंद कर दिया। पारिवारिक विवादों को भी सुलझा कर उन्होंने शांति कायम की। हालांकि इस गृह कलह को सुलझाने में कई सालों का समय लग गया।

सर्वप्रथम दिग्विजय यात्रा करने के पश्चात समुद्रगुप्त ने आर्यव्रत के तीन शासकों से युद्ध कर उनके राज्य को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया। इसके पश्चात उन्होंने दुसरे राज्यों को अपने अधीन करना प्रारंभ किया।

विशालकाय समुद्र के खतरनाक लहरों की भांति समुद्रगुप्त हवा के तीव्रता से आगे बढ़ रहे थे। उन्होंने अपने राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र को बनाया, जो कि वर्तमान समय में बिहार की राजधानी पटना के नाम से जानी जाती है।

देवराष्ट्र, कौट्टूर, वेंगी, ऐरंडपल्ल, कोशल, महेंद्रगिरि,  कांची, अवमुक्त, पाल्लक, कोस्थलपुर, महाकांतर, इत्यादि जैसे कई शक्तिशाली राज्यों पर अपना आधिपत्य कायम किया।

जब समुद्रगुप्त पश्चिम में विजय यात्रा पर गए थे, उसी दरमियान उत्तर में जीते गए लगभग राज्यों के राजाओं ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित करके विद्रोह कर दिया। इस प्रकार विद्रोह के कारण समुद्रगुप्त ने अपना रौद्र रूप दिखाया और पुनः लौट कर उन राज्यों को पुनः सम्मिलित कर विद्रोही विपक्ष को सजा दी। 

इस घटना के कारण आसपास के सभी राजा महाराजा समुद्रगुप्त के भय से कांप उठे और कभी भी उसके सामने सिर उठाने की जरूरत नहीं की।

आने वाले कुछ सालों में ही समुद्रगुप्त ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना कर दी, जो पश्चिम में गांधार से लेकर पूर्व में असम तक फैला था और उत्तर दिशा में हिमालय के कीर्तिपुर जनपद से दक्षिण के सिंहल तक समुद्रगुप्त ने अपना साम्राज्य स्थापित किया।

समुद्रगुप्त की उपलब्धियां Achievements of Samudragupta

समुद्रगुप्त ने अपने विशालकाय साम्राज्य को बहुत कम समय में ही फैला दिया था। कई साक्ष्य के मुताबिक कहा जाता है कि समुद्रगुप्त ने अपने जीवन काल में लगभग 100 से भी अधिक युद्ध किए थे, जिनमें उन्होंने सदा ही जीत का स्वाद चखा था।

जब एक योद्धा रणभूमि में अपने पूरे जीवन में एक भी हार का सामना ना करें, तो उसकी शक्ति और बुद्धि का अंदाजा लगा पाना सामान्य लोगों के कल्पना से भी परे हो जाता है।

एक योद्धा से अलग समुद्रगुप्त एक सच्चे कला प्रेमी भी थे। भारतीय स्वर्णकाल के सबसे प्रसिद्ध कवियों में से एक हरिषेण जो समुद्रगुप्त के दरबारी कवि थे, उन्होंने ‘प्रयान प्रशस्ति’ नामक अपनी रचना में समुद्रगुप्त का वर्णन किया है। प्रयाग प्रशस्ति में यह बताया गया है कि समुद्रगुप्त युद्ध करने के अलावा वीणा बजाने में भी माहिर थे। 

वे संगीत को गहराई से समझने की कला रखते थे। इस बात के सबूत उनके शासनकाल में बनवाए गए मुद्राओं से मिलती है, जिन पर समुद्रगुप्त वीणा बजाते हुए अंकित किए गए हैं।

समुद्रगुप्त अपनी शरण में आए लोगों के लिए दया भाव रखते थे। उनके शासनकाल में ब्राह्मणों, अनाथों और सभी कुशल कलाकारों को उनके योग्यता के अनुसार दान दक्षिणा और मान सम्मान दिया जाता था।

कई ऐतिहासिक साक्ष्य के अनुसार कहा जाता है कि युद्ध में समुद्रगुप्त के शरीर पर तलवार, भाले, खंजर, धनुष इत्यादि के घाव उनके शरीर की शोभा बढ़ाते थे। यह तमाम घाव जो उनके पूरे शरीर पर लगे थे, वह समुद्रगुप्त के लिए आभूषण का काम करती थी और उनके कुशलता को व्यक्त करती थी।

समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन किसने और क्यों कहा था? Why is samudragupta called napoleon of india?

समुद्रगुप्त ने राज्य विस्तार के लिए लगभग जितने भी प्रयास किए थे, उनमें सब के सब पूरी तरह से सफल हुए। उन्होंने अपने जीवन में एक भी बार युद्ध में हार का सामना नहीं किया। एक ब्रिटिश इतिहासकार वी.ए. स्मिथ ने सर्वप्रथम समुद्रगुप्त को भारतीय नेपोलियन कह कर संबोधित किया था। 

स्मिथ ने कहा था कि समुद्रगुप्त नेपोलियन की भांति ही एक महान योद्धा थे। अपने अद्वितीय रणनीति एवं बाहुबल से जिस प्रकार समुद्रगुप्त ने अपने रास्ते में आने वाले सभी राजाओं को मिट्टी में मिला दिया था और एक अखंड भारत का निर्माण किया था, यह हमें नेपोलियन की याद दिलाता है, जो एक महान सेनापति और योद्धा थे।

समुद्रगुप्त के शासन काल की मुद्रायें Coins of Samudragupta Reign

समुद्रगुप्त के इतिहास की जानकारी अधिकतर ऐतिहासिक शिलालेखों और मुद्राओं के जरिए ही प्राप्त हुई है। समुद्रगुप्त पूरे गुप्त वंश के पहले ऐसे राजा थे, जिन्होंने अपने शासनकाल में सोने के सिक्के बनवाए थे। मुद्रा पर अंकित की गई उनकी चित्र इस बात का साक्ष्य प्रस्तुत करती है।

कुछ इतिहासकारों के मुताबिक़ समुद्रगुप्त मुद्रा निर्माण के लिए कुषाण साम्राज्य के राजा वासुदेव द्वितीय द्वारा बनवाए गए मुद्रा की नकल करके नई सोने की मुद्राएं बनवाई थी।

सर्वप्रथम कुषाण वंश के राजा वासुदेव प्रथम ने अपने शासनकाल में बनाए गए सिक्कों पर अपना चित्र बनवाया था। उसी का प्रमाण लेकर समुद्रगुप्त ने भी सोने के सिक्कों पर अपने चित्र को अंकित करवाया ऐसा कहा जाता है।

समुद्रगुप्त द्वारा बनवाए गए सिक्कों को कई अलग-अलग प्रकार में बांटा गया था, जिनमें बाघ कातिल, अश्वमेघ, तीरंदाज, संगीतकार, मानक और युद्ध कुल्हाड़ी का समावेश होता है।

समुद्रगुप्त का अश्वमेध यज्ञ Samudragupta Ashwamedha Yagya

पहले के समय में बड़े राजा महाराजा किसी महान कार्य अथवा बड़े युद्ध को करने के बाद अपने प्रभुत्व को आसपास के सभी विस्तार में स्थापित करने के लिए अश्वमेध यज्ञ करवाते थे। अश्वमेध यज्ञ यह पुरातन संस्कृति की देन है, जिसे रघुवंशी भगवान श्री रामचंद्र ने भी करवाया था।

समुद्रगुप्त ने जब सभी छोटे बड़े राज्यों को अपने राज्य में मिला लिया, उसके पश्चात उन्होंने अपने साम्राज्य में भी यज्ञ करवाया, तत्पश्चात इसे कई महत्वपूर्ण अभिलेखों में भी अंकित करवाया गया था। 

कहते हैं कि इलाहाबाद अभिलेख में समुद्रगुप्त द्वारा अश्वमेध यज्ञ करवाने के साक्ष्य थे, लेकिन सदियों बीत जाने के पश्चात यह सब धुंधले पड़ने लगे, जिसके कारण अभिलेख से कुछ पंक्तियां मिट चुकी हैं।

समुद्रगुप्त द्वारा उस समय अश्वमेध यज्ञकरवाए जाने के विषय पर इतिहासकारों के अपने-अपने तथ्य है। कुछ लोग मानते हैं कि अश्वमेध यज्ञ करवाया गया था, वहीं दूसरे लोग इस बात से इनकार करते हैं।

7 thoughts on “समुद्रगुप्त का इतिहास Samudragupta The Great King History in Hindi”

  1. बहुत अच्छा इतिहास है क्यो न movis बनाई जाए esse sab जानेंगे हमरे पूर्वज के बारे मे

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