कबीर दास जी के दोहे हिन्दी अर्थ सहित Kabir Das Ke Dohe in Hindi

इस लेख में आप 20+ कबीर दास जी के दोहे (Kabir Das Ke Dohe in Hindi) हिन्दी अर्थ सहित पढ़ सकते हैं।

संत कबीर दास जी भक्ति कालीन युग में हिन्दी साहित्य के ज्ञानाश्रयी- निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। उनकी हिंदी कविताओं नें पुरे विश्वभर में लोगो को सकारात्मक विचारों से जागृत किया है।

  • जन्म – विक्रमी संवत 1398 ई के आसपास वाराणसी
  • मृत्यु – विक्रमी संवत 1518 ई० के आसपास मघर
  • कार्य – भक्त कवि, सूत कातकर कपडा बुनाई
  • राष्ट्रीयता – भारतीय
  • साहित्यिक कार्य – सामाजिक और अध्यात्मिक विषय के साथ साथ भक्ति आन्दोलन

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कबीर दास जी के दोहे Kabir Das Ke Dohe Hindi

Kabir Das Ke Dohe Hindi (Video)

संत कबीर दास जी के 20 बेहेतरीन दोहे जो जीवन में हमें सही राह देते हैं और सकारात्मक विचारों से पूर्ण हैं।

तो आईये पढ़ते हैं इन 20+ कबीर दास जी के दोहे (Kabir Das Ke Dohe Hindi) –

1. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

अर्थ: कबीर जी कहते हैं उच्च ज्ञान पा लेने से कोई भी व्यक्ति विद्वान नहीं बन जाता, अक्षर और शब्दों का ज्ञान होने के पश्चात भी अगर उसके अर्थ के मोल को कोई ना समझ सके, ज्ञान की करुणा को ना समझ सके तो वह अज्ञानी है, परन्तु जिस किसी नें भी प्रेम के ढाई अक्षर को सही रूप से समझ लिया हो वही सच्चा और सही विद्वान है।

2. चाह मिटी, चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह,
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह।

अर्थ: इस दोहे में कबीर जी कहते हैं इस जीवन में जिस किसी भी व्यक्ति के मन में लोभ नहीं, मोह माया नहीं, जिसको कुछ भी खोने का डर नहीं, जिसका मन जीवन के भोग विलास से बेपरवाह हो चूका है वही सही मायने में इस विश्व का राजा महाराजा है।

3. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

अर्थ: इस दोहे में कबीर जी नें एक बहुत ही अच्छी बात लिखी है, वे कहते हैं जब में पुरे संसार में बुराई ढूँढने के लिए निकला मुझे कोई भी, किसी भी प्रकार का बुरा और बुराई नहीं मिला। परन्तु जब मैंने स्वयं को देखा को मुझसे बुरा कोई नहीं मिला। कहने का तात्पर्य यह है कि जो व्यक्ति अन्य लोगों में गलतियाँ ढूँढ़ते हैं वही सबसे ज्यादा गलत और बुराई से भरे हुए होते हैं।

4. माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोये
एक दिन ऐसा आयेगा मैं रौंदूंगी तोय।

अर्थ: मिटटी कुम्हार से कहती है, तू क्या मुझे गुन्देगा मुझे अकार देगा, एक ऐसा दिन आयेगा जब में तुम्हें रौंदूंगी। यह बात बहुत ही जनने और समझने कि बात है इस जीवन में चाहे जितना बड़ा मनुष्य हो राजा हो या गरीब हो आखिर में हर किसी व्यक्ति को मिटटी में मिल जाना है।

5. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।

अर्थ: कबीर दास जी का कहना है हर चीज धीरे धीरे से पूरा होता है इस संसार में, माली सौ बार सींचने पर भी फल तभी आते हैं जब उस फल का ऋतु आता है। जीवन में हर कोई चीज अपने समय में ही पूरी होती है ना कोई समय से पहले ना कोई समय के बाद।

6. दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥

अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं सभी लोग दुःख में भगवान को याद करते हैं, परन्तु सुख के समय कोई भी भगवन को याद नहीं करता। अगर सुख में प्रभु को याद किया जाए तो दुःख हो ही क्यों ?

7. साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।

अर्थ: इस दोहे में कबीर दास जी इस संसार के सभी बुरी चीजों को हटाने और अच्छी चीजों को समेट सकने वाले विद्वान व्यक्तियों के विषय में बता रहे हैं। दुनिया में ऐसे साधुओं और विद्वानों की आवश्यकता है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है, जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे।

8. माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।

अर्थ: कई युगों तक या वर्षों तक हाथ में मोतियों की माला घुमाने और जपने से किसी भी व्यक्ति के मन में सकारात्मक विचार उत्पन्न नहीं होते, उसका मन शांत नहीं होता। ऐसे व्यक्तियों को कबीर दास जी कहते हैं कि माला जपना छोड़ो और अपने मन को अच्छे विचारों की ओर मोड़ो या फेरो।

9. बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।

अर्थ: कबीर जी कहते हैं जो कोई भी व्यक्ति सही बोली बोलना जनता है जो अपने मुख से बोलने या वाणी का मूल्य समझता है, वह व्यक्ति अपने ह्रदय के तराजू में हर एक शब्द को टोल कर ही अपने मुख से निकालते है। बिना सोचे समझे बोलने वाले व्यक्ति मुर्ख होते हैं।

10. गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागु पाए,
बलिहारी गुरु आपनो, गोविन्द दियो मिलाय।

अर्थ: कबीर दास जी इस दोहे के द्वारा यह समझाने कि कोशिश कर रहे हैं कि गुरु का सही महत्व क्या है जीवन में। वह इस बात को भी बताना चाहते हैं कि ईश्वर और गुरु में आपको पहले स्थान पर किसे रखना चाहिए और चुनना चाहिए। इस बात को समझाते हुए कबीर जी कहते हैं गुरु ही वह है जिसने आपको ईश्वर के महत्व को समझाया है और ईश्वर से मिलाया है इसलिए गुरु का दर्ज़ा इस संसार में हमेशा ऊपर होता है।

11. मक्खी गुड में गडी रहे, पंख रहे लिपटाये,
हाथ मले और सिर ढूंढे, लालच बुरी बलाये।

अर्थ: इस दोहे में Kabir Das Ji नें लालच कितनी बुरी बाला है उसके विषय में समझाया है। वे कहते हैं मक्खी गुड खाने के लालच में झट से जा कर गुड में बैठ जाती है परन्तु उसे लालच मन के कारण यह भी याद नहीं रहता की गुड में वह चिपक भी सकती है और बैठते ही वह चिपक जाती है और मर जाती है। उसी प्रकार लालच मनुष्य को भी किस कदर बर्बाद कर सकती है वह सोचना भी मुश्किल है।

12. कबीर संगत साधु की, नित प्रति कीजै जाय,
दुरमति दूर बहावासी, देशी सुमति बताय।

अर्थ: कबीर दास जी इस दोहे में सकारात्मक विचारों के पास रहने से किस प्रकार जीवन में सकारात्मक सोच और विचार हम ला सकते हैं उसको समझया है। प्रतिदिन जाकर संतो विद्वानों की संगत करो, इससे तुम्हारी दुर्बुद्धि, और नकारात्मक सोच दूर हो जाएगी और संतों से अच्छे विचार भी सिखने जानने को मिलेगा।

13. निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।

अर्थ: इस दोहे में कबीर जी ने बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही हैं उन लोगों के लिए जो दिन रात आपकी निंदा करते हैं और आपकी बुराइयाँ बताते हैं। कबीर जी कहते हैं ऐसे लोगों को हमें अपने करीब रखना चाहिए क्योंकि वे तो बिना पानी, बिना साबुन हमें हमारी नकारात्मक आदतों को बताते हैं जिससे हम उन नकारात्मक विचारों को सुधार कर सकारात्मक बना सकते हैं।

14. साईं इतना दीजिये, जा में कुटुम समाय,
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधू ना भूखा जाय।

अर्थ: कबीर दास जी इस दोहे में भगवान से पुरे दुनिया के लोगों की तरफ से प्रार्थना कर रहे हैं और कह रहे हैं – हे प्रभु ! मुझ पर बस इतनी कृपा रखना कि मेरा परिवार सुख शांति से रहे, ना में और मेरा परिवार भूखा रहें और ना ही कोई साधू मेरे घर से या सामने से भूखा लौटे।

15. दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।

अर्थ: कबीर दास जी इस दोहे में मनुष्य की तुलना पेड़ से करते हुए जीवन का मोल समझा रहें हैं और इस संसार में मनुष्य का जन्म मुश्किल से मिलता है, यह मानव शरीर उसी प्रकार बार-बार नहीं मिलता जैसे किसी वृक्ष से पत्ते झड़ जाए तो दोबारा डाल पर नहीं लगते।

16. बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर,
पंथी को छाया नहीं फल लगे अति दूर।

अर्थ: कबीर दास जी इस दोहे में खजूर के पेड़ को मनुष्य का उद्धरण देते हुए कहा है, युहीं बड़ा कद या ऊँचा हो जाने से कोई मनुष्य बड़ा नहीं हो जाता अच्छा कर्म करने वाला व्यक्ति ही हमेशा बड़ा होता है क्योंकि बड़ा और ऊँचा तो खजूर का पेड़ भी होता है परन्तु उसकी छाया रस्ते में जा रहे लोगों को कुछ समय के लिए आराम नहीं दे सकती, और फल इतनी ऊंचाई में लगते हैं की उन्हें तोडना भी बहुत मुश्किल होता है।

17. तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।

अर्थ: इस दोहे में भी कबीर जी अच्छे विचारों और मन में कडवाहट को हटाने का उद्धरण दे रहे हैं। कबीर दास जी कह रहे हैं जीवन में कभी भी निचे पड़े हुए तिनके तक की निंदा भी ना करिए जो पैर के निचे चुभ गया हो क्योंकि अगर वही तिनका अगर आँख में आ गिरा तो बहुत दर्द होगा।

18. माया मरी ना मन मरा, मर-मर गए शरीर,
आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर।

अर्थ: कबीर दास जी समझा रहे हैं, मनुष्य की इच्छा, उसका धन, उसका शारीर, सब कुछ नष्ट हो जाता है फिर भी मनुष्य की आशा और भोग की आस नहीं समाप्त होती।

19. जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

अर्थ: इस दोहे में कबीर दास जी लोगों को जाती-पाती के भेदभाव को छोड़ जहाँ से ज्ञान मिले वहां से ज्ञान बटोरने की बात की है। यह समझाते हुए कह रहे हैं किसी भी विद्वान व्यक्ति की जाती ना पूछ कर उससे ज्ञान सिखना समझना चाहिए, तलवार के मोल को समझो, उसके म्यान का कोई मूल्य नहीं।

20. अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।

अर्थ: कबीर दास जी का कहना है – जिस प्रकार ना तो अधिक वर्षा होना अच्छी बात हैं और ना ही अधिक धुप उसी प्रकार जीवन में ना तो ज्यादा बोलना अच्छा है, ना ही अधिक चुप रहना ठीक है।

21. कनक-कनक तै सौ गुनी मादकता अधिकाय,
वा खाए बौराए जग, या देखे बौराए।

अर्थ: इस दोहे में कबीर दास जी बार-बार कनक शब्द का उचारण कर के उसके दो अर्थ समझा रहे हैं। पहले कनक का अर्थ धतुरा और दुसरे कनक का अर्थ स्वर्ण बताते हुए कबीर दास जी कह रहे हैं जिस प्रकार मनुष्य धतुरा को खाने पर भ्रमित/ पागल सा हो जाता है उसी प्रकार स्वर्ण को देखने पर भी भ्रमित हो जाता है।

निष्कर्ष

कबीर के दोहे (Kabir Das Ji ke Dohe) जीवन में सकारात्मक सोच लाते हैं साथ ही इनसे बहुत कुछ सिखने को मिलता है। कबीर जी के इन दोहे को समझ कर जो अपने जीवन में ढाल ले, सफलता प्राप्त करने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता।

13 thoughts on “कबीर दास जी के दोहे हिन्दी अर्थ सहित Kabir Das Ke Dohe in Hindi”

  1. बहुत अर्थपूर्ण दोहे ||
    संत कबीर को शत शत प्रणाम !!!

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  2. I have learn this in my school , we often forgot the lesson thought in our school but they are our base . if we apply the stories and the moral we get from the story we will get the knowledge of 1000 books

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  3. Kabir is one of the best person to give example of human being ..how to perform and react in real life with all human things

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  4. so these dohe are very helpful to me and due to these dohe i get full marks in my hindi examination . Thank you very much . Bachpan ki yaada taza kar na ka liya.

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