रथ सप्तमी, महत्व, कथाएं, पूजा विधि Ratha Saptami Importance, Katha in Hindi

रथ सप्तमी, महत्व, कथाएं, पूजा विधि Ratha Saptami Importance, Katha in Hindi

दोस्तों हिन्दू धर्म में लगभग सभी देवी देवताओं के पूजा पाठ का विधान है, चाहे मां लक्ष्मी हो, मां सरस्वती, मां काली, भगवान शंकर, हनुमान जी, राम जी, सारे नक्षत्र – तारे, चंद्रमा आदि। उसी प्रकार सूर्य भगवान की भी पूजा अर्चना करने का हिंदू धर्म में विधान है।

आज हम बात करने वाले है, भगवान सूर्य की पूजा अर्चना के बारे में, और जानेंगे कि सूर्य भगवान की पूजा कैसे करें, और साथ ही रथ सप्तमी के बारे में जो हिन्दू समाज द्वारा बड़ी ही धूमधाम से सूर्य देवता की पूजा के लिए मनाई जाती है।

रथ सप्तमी पूजा Ratha Saptami Festival

रथ सप्तमी का व्रत भगवान सूर्य को समर्पित है, रथ सप्तमी सूर्य के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। यह व्रत माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रखा जाता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि, यदि यह सप्तमी रविवार के दिन पड़ती है, तो इसे अचला भानू सप्तमी के नाम से जाना जाता है और इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है।

इसे सूर्य सप्तमी, अचला सप्तमी और आरोग्‍य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार भगवान सूर्य ने इसी दिन पूरे विश्व को अपने प्रकाश से प्रकाशित किया था और मान्यता यह भी है कि इस दिन भगवान सूर्य अरुण सारथी के रूप में अपने रथ को सात घोड़ों से खींचते है।

रथ और सात घोड़े इंद्रधनुष के सात रंगों का प्रतिनिधित्व करते है। साथ ही, सात घोड़े सप्ताह के सात दिनों का भी प्रतिनिधित्व करते है। सूर्य को समर्पित यह त्यौहार सभी हिंदुओं द्वारा अपने घरों में और मंदिरों में मनाया जाता है।

रथ सप्तमी का महत्व Importance of Ratha Saptami

लोगों की मान्यता के अनुसार इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने से शरीर के सभी रोगों से छुटकारा मिलता है, इस दिन जो भी श्रद्धालु भगवान सूर्य की आराधना पूरे विधि विधान से करते हैं, उन्हें पुत्र और धन की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में सूर्य को आरोग्यदायक कहा गया है।

इस व्रत के प्रभाव से शरीर से संबंधित किसी भी प्रकार की कमज़ोरी से छुटकारा मिलता है, जैसे हड्डियों की कमज़ोरी, जोड़ों का दर्द आदि। भगवान सूर्य की ओर अपना मुंह करके सूर्य स्तुति करने से चर्मरोग जैसे गंभीर समस्या से भी आराम मिलता है।

मान्यता

इस दिन स्वयं सूर्य भगवान दूध से बनी खीर का भोग स्वीकार करते है, और भक्तों की मनोकामना स्वीकार करते है, इसीलिए इस दिन कई घरों में महिलाएं सूर्य देवता के स्वागत के लिये उनका उनके रथ के साथ चित्र बनाती है और वे अपने घरों के सामने सुंदर रंगोली बनाती हैं।

आंगन में मिट्टी के बर्तनों में दूध डालकर सूर्य की गर्मी से उसे उबाला जाता है, जिससे खीर बन जाती है और बाद में इसका इस्तेमाल सूर्य भगवान को भोग में अर्पण करने के लिए किया जाता है।

पौराणिक कथाएं Mythological stories

सूर्य भगवान की पूजा हिंदू धर्म के वेदों में भी बताई गयी है और इसकी प्राचीनता कई पौराणिक कथाओं में निहित है। रथ सप्तमी के सम्बंधित कई कथाए प्रचलित है, जिनके बारे में नीचे बताया गया है-  

कथा 1

पौराणिक कथा के अनुसार द्वापर युग में भगवान कृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल और शक्ति पर बहुत ही अभिमान था। शाम्ब ने एक बार ऋषि दुर्वासा को इसी अभिमान के कारण अपमानित कर दिया, और इस अपमान से क्रोधित होकर ऋषि दुर्वासा ने शाम्ब को कुष्ठ रोग से पीड़ित होने का श्राप दे दिया।

श्राप का प्रभाव धीरे-धीरे शाम्ब पर दिखने लगा, और वो पूर्ण रूप से कुष्ठ हो गये। उनका प्राकृतिक उपचार किया गया, लेकिन उनको कोई फायदा नही हुआ। इस बात का जब भगवान कृष्ण को पता चला, तो उन्होंने अपने पुत्र शाम्ब को सूर्य की आराधना करने का सुझाव दिया। पिता की आज्ञा मानकर शाम्ब ने सूर्य की पूरे विधि विधान से पूजा, आराधना की।

सूर्य देव शाम्ब की आराधना से खुश हुए जिसके फलस्वरूप उसे सूर्य भगवान ने आशीर्वाद दिया और उन्होंने उसे कुष्ठ रोग से मुक्त कर दिया। इसी कारण से सप्तमी के दिन श्रद्धालु सूर्य की आराधना विधिवत करते हैं, और सूर्य को प्रसन्न करके आरोग्य, पुत्र, धन और सुख की प्राप्ति करते हैं।

प्राचीन काल में हर्षवर्धन के कवि मयूर भट्ट कुष्ठरोग से ग्रसित हो गये, उन्होंने भी सूर्य देव की उपासना करके इस रोग से मुक्ति पायी थी। उन्होंने ही रवि ग्रन्थ की रचना की है। इस दिन सूर्य देव की उपासना की जाती है।     

कथा 2

एक समय एक राजा था, जिसके पास एक विशाल साम्राज्य था, लेकिन उसके पास कोई उत्तराधिकारी नही था, लेकिन काफी समय के बाद भगवान से की गयी प्रार्थना के फलस्वरूप उसे एक पुत्र प्राप्त हुआ। लेकिन उसका पुत्र मानसिक रूप से स्वस्थ नही था।

एक बार राजा के यहाँ एक संत आया और उसने राजा को बताया कि पुत्र के पिछले जन्म के पापों के कारण वह स्वस्थ नहीं है, और उसे सलाह दी, कि उनके पुत्र को अपने पिछले पापों से छुटकारा पाने के लिए श्रद्धा के साथ रथ सप्तमी की पूजा करनी चाहिए। राजा के पुत्र ने यह रथ सप्तमी का व्रत रखा और इसके प्रभाव से उसका स्वास्थ्य ठीक हो गया और बाद में उसने अपने राज्य पर कुशलता पूर्वक शासन किया।

कथा 3

एक गणिका ने अपने संपूर्ण जीवन में किसी भी प्रकार का दान पुण्य नही किया था, जब उसका अंतिम समय आया तो वह विशिष्ट मुनि के पास गयी, और सारी बात बताई और पूछा की उसको मोक्ष कैसे मिल सकता है, जबकि उसने अपने संपूर्ण जीवन में किसी भी प्रकार का दान नही किया है।

उसकी बात सुनकर मुनि बोले आज रथ सप्तमी है, इस दिन सूर्य भगवान की पूजा पाठ करने के लिए स्नान आदि से निवृत होकर सूर्य भगवान का ध्यान रखते हुए व्रत रखना चाहिए। जिसको करके मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर स्वर्ग लोक की और प्रस्थान करता है। गणिका ने मुनि द्वारा बताये गये मार्ग को चुना और उसे मृत्यु होने के पश्च्यात इंद्र की अप्सराओ में शामिल होने का मौका मिला।

पूजा विधि Puja Vidhi

  1. व्रत के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर, बहते पानी में नहा-धोकर सूर्य मंत्र का जाप करते हुए अर्घ्य देना चाहिए।
  2. नमस्कार मुद्रा में सूर्य को अर्घ्य दें, साथ ही सिर पर आक के 7 पत्ते भी रखें।
  3. शुद्ध घी का दीपक जला कर कपूर, लाल फूल आदि से सूर्य का पूजन करें।
  4. इस दिन सूर्य स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
  5. इस व्रत को करने से संपूर्ण माघ मास के स्नान का पुण्य प्राप्त होता है।
  6. अपनी श्रद्धा के अनुसार दान अवश्य करे, क्योंकि इस दिन किए गए स्नान, दान, पूजा आदि कार्य हजार गुना अधिक फल देते हैं।
  7. शाम को पूजा करने के बाद फलाहार करें।
  8. इस दिन सूर्य भगवान अच्छे स्वास्थ्य दीर्घायु और सफलता के वरदान देते है।
  9. इस दिन तेल और नमक का अवश्य त्याग करना चाहिए।
  10. इस व्रत के प्रभाव से ग्रह दोष दूर हो जाते हैं।
  11. इसके प्रभाव से घर में सुख शांति आती है, और मनवांछित वरदान की प्राप्ति होती है।
  12. ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। साथ ही इस दिन अगर संभव हो तो भगवान सूर्य की रथयात्रा करानी चाहिए।

इस दिन, भगवान मलयप्पा स्वामी के प्रमुख देवता श्री-देवी और भू-देवी के साथ उनके इष्ट देवता को एक जुलूस में ले जाया जाता है। जिसमे हजारों लोग शामिल होते है। इस तरह से रथ सप्तमी का व्रत एवं त्यौहार मनाया जाता है। यदि आपको भी किसी प्रकार का शारीरिक रूप से कोई रोग है तो आपको भी सूर्य देवता की कृपा पाने के लिए इस व्रत को करना चाहिए।

दोस्तों यह थी रथ सप्तमी के बारे में जानकारी, देखा जाये तो यह वसंत के मौसम के परिवर्तन की शुरुआत का भी प्रतीक माना गया है। अधिकांश भारतीय किसानों के लिए, यह नए साल की शुरुआत भी है। पूरे देश में यह व्रत किया जाता है, मुख्य रूप से इस दिन तिरुमला में एक दिवसीय ब्रह्मोत्सव का आयोजन किया जाता है।

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