कथकली नृत्य इतिहास, महत्व Kathakali Dance in Hindi
कथकली नृत्य केरल के दक्षिण – पश्चिम राज्य का एक प्रसिद्ध नृत्य है। यह भारत का अद्वितीय नृत्य है। कथकली का मतलब “नृत्य नाटिका” से है। जिसका अर्थ यह है कि कहानी को प्रस्तुत करते हुए अभिनय करना। इसमें हिन्दू धर्म के ग्रंथों, पुराणों के आधार पर अभिनय किया जाता है।
इस नृत्य के लिए अलग तरीके के परिधान को धारण किया जाता है। इसके लिए होने वाली रूप सज्जा अत्यंत कठिन होती है। नर्तक को विभिन्न तरह के आभूषणों से तैयार किया जाता है। इसकी वेशभूषा और नृत्य लोगों को अत्यंत आकर्षित करता है।
कथकली नृत्य इतिहास, महत्व Kathakali Dance in Hindi
कथक का इतिहास History of Kathak Dance
ऐसा माना जाता है कि इस नृत्य की उत्पत्ति लगभग 1500 साल पहले हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि आर्यन और द्रविड़ सभ्यता के साथ ही इस नृत्य का उदय हुआ। कथकली बहुत पुराना नृत्य है। कथकली से प्रभावित होने वाले नृत्य जैसे – कृष्णाअट्टम, रामाअट्टम, विवाह इत्यादि मौकों पर होने वाले नृत्य जैसे – सस्त्राकली‘ और ‘इजामट्क्कली, धार्मिक नृत्य जो भगवती पंथ से सम्बंधित हैं जैसे – मुडियाअट्टू, थियाट्टम और थेयाम, प्रारंभिक नृत्य जैसे – चकइरकोथू‘ और ‘कोडियाट्टम आदि हैं।
मुख्य बातें और अंश Importance and Its Parts
कथकली नृत्य तीन कलाओं से मिलकर बना है – अभिनय, नृत्य और संगीत। इन तीनों के समायोजन से ही यह नृत्य पूर्ण होता है। इस नृत्य को मूकाभिनय भी कहा जाता है क्योंकि इसमें नृत्य करने वाला कुछ गाता या बोलता नहीं है। नर्तक अपने चेहरे के भाव, हाथों की मुद्राओं से नृत्य का अभिनय करता है। यह एक अलग ही तरह का नृत्य है।
जिसमें नृत्य, भाव और अभिनय का मिश्रण है। इस नृत्य में चेहरे के हाव – भाव को दिखाना बहुत कठिन कार्य है। चेहरे की मांसपेशियों के द्वारा हाव – भाव को दर्शाया जाता है। इन्ही भावों पर पूरा नृत्य निर्भर करता है। कलात्मक तरीके से नर्तक इस अभिनय को प्रस्तुत करता है। चेहरे से आने वाले भाव संगीत की लय को दर्शाते हैं।
चेंगला नामक यंत्र के साथ गाने की तयारी की जाती है। झांझ और मंजीरा यंत्र के माध्यम से इलाथम की रचना की जाती है। इस नृत्य में कई अन्य यंत्र भी शामिल होते हैं जैसे – चेन्दा और मदालम, चेन्दा एक ढोल होता है जिसका आकार बेलनाकार होता है। इसकी आवाज़ तेज़ होती है। मदालम यंत्र मृदंग की तरह ही होता है।
परम्पराओं के आधार पर कहा गया है कि कथकली नृत्य में लगभग 101 शास्त्रीय कथकली कहानियां हैं। कुछ प्रसिद्ध कहानियां नलचरितम (महाभारत से ली गयी कहानी ), दुर्योधन वध (महाभारत में युद्ध के दौरान का चित्रण ), कल्याण सौगन्धिकम (यह भीम की कहानी है जिसमें भीम अपनी पत्नी पांचाली के लिए पुष्प लेने जाता है ), कीचकवधम (भीम और पांचाली की अन्य कहानी), कीरतम (महाभारत में अर्जुन और भगवान शिव का युद्ध ), कामशपथम (महाभारत की कहानी ) आदि हैं।
यह नृत्य रात में प्रस्तुत किया जाता है जो सूर्य उगने से पहले तक चलता है। इस नृत्य को प्रदर्शित करने के लिए नर्तक को एकाग्रता, कुशलता और शारीरिक सहन शक्ति की बहुत जरुरत होती है। यह नृत्य केरल की प्राचीन मार्शल आर्ट कलरिपयट्टु पर आधारित है।
यह नृत्य सीखने के लिए नर्तक को बहुत मेहनत करनी पड़ती है और आँखों के द्वारा हाव -भाव कैसे प्रदर्शित करना है, इसके लिए विशेष अभ्यास की जरुरत पड़ती है। इसमें 24 मुद्राओं को प्रदर्शित किया जाता है। विशेष रूप से नवरस को चेहरे के हाव – भाव से दिखाया जाता है जो कि अत्यंत कठिन कार्य है।
इस नृत्य को संगीतमय बनाने के लिए दो संगीतकार होते हैं। जिसे पोनानी और दूसरे को सिनकिडी कहा जाता है। दोनों की अलग – अलग भूमिका है। इस नृत्य के लिए अधिकतर पुरुष ही महिला की भूमिका प्रस्तुत करते हैं। लेकिन अब महिला भी शामिल होने लगी हैं। इस नृत्य के गानों के लिए मणिप्रवालम भाषा का उपयोग किया जाता है। यह भाषा संस्कृत और तमिल का मिश्रण है।
नृत्य की वेशभूषा बिलकुल अलग है। जो नृत्य की कलात्मकता को दर्शाता है। परिधान उभरा हुआ होता है। चेहरे की सज्जा के लिए बहुत समय लगता है। कथकली की वेशभूषा को पांच भागों में विभक्त किया गया है – पच्चा (हरा), कत्ति (छुरि), करि (काला), दाढी और मिनुक्कु (मुलायम, मृदुल या शोभायुक्त)। नर्तक का मुकुट अत्यंत आकर्षक होता है।
इसमें प्रयुक्त आभूषण कुछ अलग ही होते हैं। आँखों का मेकअप बहुत की आकर्षक और अद्वितीय होता है। नर्तक का श्रृंगार करने के लिए अनुभवी कलाकार होते हैं। परिधान के रूप में सफ़ेद रंग की स्कर्ट होती है। जिसे पहनाने के लिए कम से कम 2 – 3 लोगों की आवश्यकता पड़ती है। चेहरे को हरे रंग से रंगा जाता है क्योंकि यह प्रभावशाली रंग होता है और सात्विक होने का गुण दर्शाता है और सफ़ेद रंग से बहार की तरफ फैली हुई आकृति बनाई जाती है।
होंठों को लाल रंग से आकार दिया जाता है। माथे पर तिलक के लिए पीले व लाल रंग की आकृतियां बनाई जाती हैं। अठारहवीं शताब्दी में कप्पलिंगट्टु नम्पूतिरि ने कथकली को नए तरीके से परिचय कराया। इस बीच कई सारे बदलाव भी आये।
इस नृत्य के प्रसिद्ध कलाकार टी चंदू पणिक्कर, गुरु गोपीनाथ, टी रामननी नायर, चेंगन्नुर रमन पिल्लै, वी कुंछु नायर, कलामंडल कृष्णन नायर, एम विष्णु नम्बूदरी हैं। इसके अतिरिक्त कलामंडल गोपी, कलामंडल पद्मनाभम नायर, के चातुन्नी, पणिक्कर और रमणकुट्टी समकालीन कलाकारों में से एक हैं। वास्तव में यह नृत्य अद्भुत होते हुए एक अलग कला से परिचय कराता है।
कथकली के बारे में आपने बहुत ही अच्छी जानकारी दी, बहुत बहुत आभार
Nice information