तीन तलाक़ क्या है? मामला पर लेख Teen Talaq in Hindi – Triple Talaq

तीन तलाक़ क्या है? मामला पर लेख Teen Talaq in Hindi – Triple Talaq

तीन तलाक का मुद्दा Teen Talaq Issue

मुस्लिम समाज में बिना निकाह के किसी पुरूष का किसी महिला के साथ अपनी इच्छा से एक दूसरे के साथ जीवन व्यतीत करना बहुत बड़ा अपराध माना गया है। मुस्लिम समाज में कोई भी पुरुष किसी भी महिला के साथ तभी रह सकता है जब वह पुरुष मुस्लिम समाज के सामने अपने वैवाहिक जीवन की जिम्मेदारियों को उठाने की कसम खाता है। साथ ही साथ दोनों परिवारों की आपसी सहमति से तय की गई रकम को मेहर के रूप में, महिला को देकर उससे निकाह अर्थात विवाह करता है।

परन्तु आगे चलकर यदि किसी आपसी वैचारिक मतभेद या फिर किसी भी कारणवश वह पुरुष अपनी पत्नी को किसी भी माध्यम से चाहे वो मोबाइल पर मैसेज भेज कर या फिर स्वयं तीन बार तलाक बोल कर या लिख कर, अपनी पत्नी को और स्वयं को उस वैवाहिक संबंध से किसी भी समय अलग कर सकता है। इसे ही तीन तलाक कहा जाता है। यह तलाक पति पत्नी दोनों को मानना ही पड़ेगा।

तीन तलाक को मुस्लिम समुदाय में ‘तलाक उल विद्दत’ के नाम से भी जाना जाता है। इस तरह के तलाक को इस्लामिक कानून के तहत वैधानिक मान्यता प्राप्त है। इसके बावजूद मुस्लिम वर्ग की सभी महिलाएँ इस इस्लामिक प्रथा या कानून का विरोध करती है। परंतु यदि बाद में ये दोनों तलाक़शुदा पति पत्नी आपस में दोबारा शादी के बंधन में बंधना चाहें तो इसके लिए पत्नी को पहले हलाला जैसे प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।

हलाला एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें तलाकशुदा पत्नी को पहले किसी दूसरे मुस्लिम व्यक्ति से विवाह करके उसके साथ वैवाहिक संबंध स्थापित करना पड़ता है और उसके साथ कुछ समय बिताना पड़ता है। जिसके बाद दोबारा वह महिला अपने दूसरे पति को तलाक देकर ही अपने पहले पति या शौहर से विवाह कर सकती हैं।

विद्वानों का मत Opinion of experts

दुनिया भर के कई मुस्लिम विद्वानों का मानना है कि तीन तलाक एक गैर इस्लामिक प्रक्रिया है। क्योंकि कुरान में तलाक की प्रक्रिया को बहुत ही कठिन बताया गया है। कुरान में कहा गया है कि यदि कोई पति और पत्नी एक दूसरे से अलग होना चाहते हैं  यानी कि एक दूसरे को तलाक देना चाहते हैं तो, इससे पहले पति और पत्नी, दोनों के परिवारों को आपस में बैठकर एक दूसरे से बातचीत कर हर संभव प्रयास करके इन दोनों के वैचारिक मतभेद को दूर करने की कोशिशें करनी चाहिए तथा दोनों को तलाक देने से बचाना चाहिए।

यदि तलाक देना बहुत ही आवश्यक हो तो पति पत्नी को एक न्यायिक प्रक्रिया के तहत ही एक दूसरे को तलाक देना चाहिए। ताकि दोबारा दोनों बिना हलाला की प्रक्रिया के भी एक हो सकते है। हलाला प्रक्रिया तब के लिए अनिवार्य है जब कोई पुरुष लगातार तीन अलग अलग शादी करने के बाद दोबारा अपनी पहली पत्नी से शादी करना चाहता है।

तीन तलाक़ की समस्याए Problems in Triple Talaq

पहले के समय मे महिलाएँ अपने घर के काम में ही हमेशा व्यस्त रहती थी। इसलिये आर्थिक रूप से अपने पति के ऊपर ही निर्भर रहती थी। अगर ऐसी स्थिति में उसका पति उसको तलाक दे देता था तो उन्हें अपना घर चलाने, अपने बच्चों की देखभाल करने तथा अपने जीवन यापन के लिए पैसे अर्जित करने में बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है और अकेले ही अपने जीवन का निर्वाह करना पड़ता था। जिसका इनके जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता था। अकेले बिना किसी सहारे के इतनी कठिनाईयो सामना करने के कारण महिलाएँ भावनात्मक रूप से भी टूट जाया करती थी।

तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के लिए एक अभिशाप है जो उनकी पूरी ज़िन्दगी बर्बाद कर के रख देता है क्योंकि कई बार तो उनकी कोई गलती नही होने पर भी इनका पति इनको तीन बार तलाक बोल देता है या फिर सोशल मीडिया के किसी माध्यम जैसे कि व्हाट्सएप्प, फेसबुक पर लिख कर या फिर किसी वीडियो कॉल ( Video call) के एप्प (App) के माध्यम से उन्हें तलाक बोल देता है। जिसके बाद उन्हें इस अभिशाप को झेलना पड़ता है।

भारत से पहले दुनिया भर के लगभग 22 देशों ने तीन तलाक़ को पूरी तरह प्रतिबन्धित कर रखा है। यहाँ तक कि भारत से ही अलग होकर बने नये देश पाकिस्तान ने भी अपनी स्थापना के महज 10 वर्षो बाद ही 1956 ई0 में तीन तलाक़ को प्रतिबंधित कर दिया था। मिस्र दुनिया का पहला ऐसा देश है जिसने सबसे पहले तीन तलाक़ को प्रतिबन्धित किया था। इसके अलावा संयुक्त अरब अमीरात, कतर, मोरक्को, ईरान, अल्जीरिया, जॉर्डन, साइप्रस जैसे इस्लामिक देशो में भी काफी समय पहले ही तीन तलाक़ को प्रतिबंधित कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला तथा प्रवधान Teen Talaq in Supreme Court

भारत की सर्वोच्च न्यायिक संस्था, उच्चतम न्यायालय ने तीन तलाक की सुनवाई और इसके संवैधानिक वैधता की जांच करने के लिए अपने पाँच जजो की एक बेंच बनाई है। इस केस की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शरीयत कानून में दी गयी एक बार मे तीन तलाक प्रथा को असंवैधानिक घोषित करते हुए इस पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक़ को भारतीय संविधान द्वारा अनुछेद- 14 में नागरिकों को दिए गए विधि के समक्ष समानता के अधिकार का उल्लघंन माना है।

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक’ के अंतर्गत तीन तलाक़ को असंवैधानिक घोषित कर दिया। भारतीय संसद को सुझाव दिया कि इस पर एक कठोर कानून बनाये। जिसके बाद भारत सरकार ने तीन तलाक़ को गैर कानूनी बताते हुए इसको खत्म करने तथा मुस्लिम समुदाय की महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने वाले कानून का एक प्रारूप तैयार करके इस विधेयक को संसद में पेश किया।

भारत सरकार द्वारा संसद में प्रस्तुत इस विधेयक में यह प्रावधान किया गया कि अगर कोई भी व्यक्ति अपनी पत्नी को तीन तलाक बोल कर उससे अपने सम्बन्ध तोड़ता है तो उसे तीन वर्ष की सजा तथा इसके साथ ही उसे अपनी  पत्नी को जीवन यापन करने के लिए गुजरा भत्ता भी देना पड़ेगा। इसके साथ ही अगर कोई पति अपनी पत्नी को मोबाइल या फिर किसी सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी पत्नी को तलाक देता है तो इस तलाक़ को वैध नही माना जायेगा

निष्कर्ष Conclusion

आज 21वीं सदी की महिलाएँ हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कदम से कदम मिला के उनका हाथ बंटा रहीं हैं। यहाँ तक कि सेना में भी महिलायें अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। भारतीय संविधान में पुरुषों के साथ ही साथ महिलओं को भी समानता और पूरे सम्मान के साथ अपने जीवन को व्यतीत करने का अधिकार है। समाज मे मौजूद इस तरह की कुप्रथाओं से महिलाओं के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचती है।

इसके साथ ही साथ संविधान द्वारा दिये गए मौलिक अधिकारों का हनन भी होता है। इसलिये सभी धर्मों को समय के अनुसार आवश्यक बदलाव करते रहना चाहिए। जिससे कि किसी के हितों को क्षति न पँहुचे। इस तरह तीन तलाक़ जैसी कुप्रथाओं को समाज से पूरी तरह समाप्त कर देना चाहिए। भारत सरकार द्वारा तीन तलाक़ के विरुद्ध संसद में प्रस्तुत विधेयक महिलाओं का सशक्तिकरण करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

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