मॉब-लिनचिंग पर निबंध Essay on Mob Lynching in Hindi
मॉब-लिनचिंग पर निबंध Essay on Mob Lynching in Hindi
पिछले कुछ वर्षों से भारत में मॉब- लिंचिंग की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। भारत में कभी धर्म के नाम पर, तो कभी चोरी का आरोप लगाकर भीड़ कानून को अपने हाथ में लेती है। वह हिंसक रूप धारण कर लेती है। वह कभी भी आरोप की सत्यता जाँचने की कोशिश नही करती है।
भारत में सबसे पहले गौ-हत्या के आरोप लगाकर हिंसा के रूप में मॉब-लिंचिंग की शुरुआत हुई, उसके बात कभी बच्चों के अपहरण या अन्य अपराधों के नाम पर यह समय-समय पर अपने उग्र रूप में सामने आती रही है।
मॉब-लिनचिंग पर निबंध Essay on Mob Lynching in Hindi
मॉब-लिंचिंग क्या है?
लिंचिंग, एक तरह की उग्र हिंसा है, जिसमे बिना किसी प्रकार की कानूनी जाँच प्रक्रिया के, न्याय करने में विश्वास रखा जाता है। इसमें आरोपित व्यक्ति को कोई मानव अधिकार नही दिए जाते।
उसे एक अपराधी के रूप में सज़ा दी जाती है, जो कि अत्यंत कष्टदायी तथा यातना पूर्ण होती है। इसके तहत अपराधी के अंग-भंग कर, उसे विकृत कर दिया जाता है , इसके परिणामस्वरूप अधिकांश मामलों में दर्द के कारण उस व्यक्ति की मृत्यु तक हो जाती है।
लिंच कानून के तहत यह एक स्व-निर्मित अदालत होती है, जिसमे बिना किसी कानूनी कार्यवाही के व्यक्ति को अपराधी मानकर उसे सज़ा दी जाती है। जब कभी यह हिंसा उग्र भीड़ अथवा किसी समुदाय विशेष के लोगों द्वारा की जाती है, तब उसे ‘मॉब-लिंचिंग’ कहा जाता है।
मॉब- लिंचिंग के कारण क्या हैं?
गलत अफवाह
जब भारत सरकार ने 26 मई, 2017 को, प्रिवेंशन ऑफ़ क्रुएल्टी अगेंस्ट एनिमल्स कानून, के तहत देश में मांस के लिए चौपाया जानवरों की खरीद-फ़रोख्त पर रोक लगाई, उसी समय से पूरे देश में गाय- हत्या के प्रति सजगता का माहौल फैल गया।
इसके बाद जुलाई 2017 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस रोक को हटा दिया गया। इससे चमड़ा तथा गाय के मांस के उत्पाद बनाने वाली, करोड़ों रुपये के टर्नओवर प्रतिवर्ष कमाने वाली कंपनियों को राहत मिली।
इससे उलट लोगों में इस फैसले के प्रति रोष बढ़ गया। कई राज्य जहाँ पर मुस्लिम लोग निवास करते तथा गाय-मांस उनके प्रमुख भोजनों में से है, उन लोगो पर अज्ञात भीड़ द्वारा हमले करने के मामले बढ़ गए। ऐसे मॉब-लिंचिंग के मामलों में करीब एक दर्जन मासूम लोगों की हत्या कर दी गई।
राजनीतिक वर्ग की खामोशी
मॉब- लिंचिंग के बढ़ते मामलो के बावजूद, राजनीतिक वर्ग तथा प्रशासक वर्ग मूक दर्शक बने रहे हैं। अधिकांश मानव अधिकार से जुड़े लोगों का मानना है कि भीड़ द्वारा बढ़ते अपराधों के मामले में राजनीतिक वर्ग का ही हाथ है और यही इसकी चुप्पी की वजह भी है।
इसके अलावा उन्होंने हमेशा अल्पसंख्यकों के अधिकारों का दमन करके ही सत्ता हासिल की है। उनके इस व्यवहार से भीड़ स्वयं को स्वामी समझने लगी है तथा स्वयं को किसी भी प्रकार के नियंत्रण से बाहर मानने लगी है।
राजनीतिक वर्ग ऐसी घटनाओं की निंदा करने के अलावा कभी कोई सख्त रवैया नहीं अपनाते हैं, न ही वे कभी किसी पीड़ित अथवा उसके परिवार से मिलने जाते हैं।
बच्चा- चोरी का आरोप
बच्चा- चोरी का आरोप मॉब-लिंचिंग को भड़काने के शुरूआती कारकों में से एक है। इसके कारण कई मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्तियों तथा घरों- अस्पतालों में काम करने वाले मजदूरों तथा नर्सों आदि को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले कुछ समय में 10 राज्यों में, कम से कम 20 लोगों ने बच्चा चोरी के आरोप के कारण भीड़ के हाथों से अपनी जान गँवाई है।
उचित कानून- व्यवस्था का अभाव
बच्चा चोरी के आरोप में लोगों द्वारा किसी व्यक्ति की हत्या, यह साफ़ दर्शाती है कि जनता को न ही कानून में तथा न ही पुलिस पर कोई भरोसा रह गया है। आम जनता का यह मानना है कि बच्चा- चोरी के अधिकांश मामलों में पुलिस लापरवाही करती है।
वह अपराधी को समय पर खोजने में नाकाम रहती है, जिससे कि उस बच्चे के वापस अपने माता-पिता तक आने की सम्भावना न के बराबर रहती है। और यदि पुलिस वह बच्चा ढूंढती भी है, तो उसे देर हो चुकी होती है और अपराधी तब तक अपना काम करके वहां से फरार हो चुका होता है।
इसके अलावा कई बार तो पुलिस केस दर्ज करने से भी मना कर देती है, तथा पीड़ित परिवार को धमकाकर चुप रहने के लिये मजबूर कर देती है। सुबूतों के अभाव में अक्सर अपराधी बरी हो जाते हैं। उपर्युक्त सभी बातें पुलिस की नाकामी को दर्शाती है। अतः मॉब-लिंचिंग को बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार कारणों में यह सबसे प्रमुख है।
निष्कर्ष
विगत वर्षों में हमने देखा कि, कैसे जो टेक्नोलॉजी मानव सभ्यता के लिए वरदान के रूप में मानी गई थी, वही टेक्नोलॉजी कुछ गलत लोगों के हाथों में पड़कर अफवाहों तथा गलत ख़बरों के प्रचार- प्रसार में प्रयोग की जा रही है।
जिसके परिणाम स्वरुप किसी भी मासूम व्यक्ति की हत्या कर दी जाती है। हाल ही के दिनों में, सोशल नेटवर्किंग साइट्स जैसे कि फेसबुक, ट्विटर तथा व्हाट्स एप्प द्वारा फैलाई गई झूठी ख़बरों के कारण की जाने वाली मॉब-लिंचिंग के मामले सामने आये हैं।
यद्यपि इन साइट्स को संचालित करने वाले लोग इसमें फेक- न्यूज़ के प्रभाव को कम करने में प्रयुक्त बदलावों की बात करते हैं, परंतु यह कदम इन अपराधों को रोकने अथवा कम करने में बिलकुल भी प्रभावशाली साबित नही हो पाए हैं।
आज के समय में, इन साइट्स के प्रयोग संबंधी कुछ कड़े प्रावधानों को अपनाने की आवश्यकता है जिससे कि इनके माध्यम से फैलने वाली ख़बरों की सत्यता की परख की जा सके तथा गलत ख़बरों के प्रति लोगों में जागरूकता आ सके।
Mob Lynching पर आपका लेख पढ़ा। कारण व् निवारण पठ्नीय हैं।
Blog लिखने का ये सराहनीय प्रयास उत्तम है।
Very useful topic
nice
Yese hi aur khabar dalate rahiye sir
i just wanna say shandar zabardast zindabad