टैक्स या कर चोरी पर निबंध Essay on Tax Evasion in Hindi
टैक्स या कर चोरी पर निबंध Essay on Tax Evasion in Hindi
टैक्स को छुपाना या टैक्स चोरी क्या होता है? इससे तात्पर्य किसी व्यक्ति, संस्था अथवा ट्रस्ट द्वारा गैरकानूनी तरीकों का प्रयोग करके सरकार को कर देने से बचना अथवा उसे अनिश्चित समय के लिए टालना है। अक्सर करदाताओं द्वारा जान- बूझकर कर- अधिकारियों के सामने अपनी वास्तविक स्थिति न दिखाकर अपना कर- भार कम करने की कोशिश करते रहते हैं।
इसके लिए वे अक्सर झूठी कर- रिपोर्टों, वास्तविक से कम आय, लाभ- प्राप्ति को छुपाना तथा अधिक कटौतियों को दिखाना इत्यादि का सहारा लेकर स्वयं को अधिक कर- भार से मुक्त करने के लिए प्रयासरत रहते हैं।
टैक्स या कर चोरी पर निबंध Essay on Tax Evasion in Hindi
कर- चोरी एक गतिविधि है, जो प्रमुख रूप से अनौपचारिक अर्थव्यवस्था से सम्बन्ध रखती है। कर चोरी को मापने का एक तरीका यह है कि जितना कर आयकर- अधिकारियों को दिया जाना चाहिए तथा कर जो आयकर- अधिकारियों को वास्तव में दिया गया, के मध्य अंतर निकालकर कर- चोरी अर्थात कर- अंतराल की गणना की जा सकती है।
वास्तव में, कर- चोरी किसी व्यक्ति के कर- भार को कम करने के लिए चतुराई से वैध आयकर नियमों के प्रयोग का सहारा लेना है। कर देने से बचना तथा कर की चोरी करना, ये दोनों ही देश के आयकर नियमों के गैर- अनुपालन के अंतर्गत आते हैं क्योंकि इनमें वे गतिविधियां शामिल होती हैं, जो एक राज्य की कर व्यवस्था को भंग करने का कार्य करते हैं। यद्यपि कर देने से बचने को विवाद- रहित कहा जा सकता है, क्योंकि यह स्व- निर्मित प्रणाली के कानूनी नियमों के दायरे में आता है।
वर्ष 1968 में, नोबल पुरस्कार प्राप्त अर्थशास्त्री गैरी बेकर द्वारा पहली बार अर्थव्यवस्था के अपराधों के बारे में लिखा गया। इसी की सहायता से वर्ष 1972 में, एम. जी. एलिंघम तथा ए. सैंडमो ने, अर्थव्यवस्था में कर- चोरी के प्रारूप को प्रतिपादित किया। इस प्रारूप के अंतर्गत विकसित राष्ट्रों के प्रमुख स्रोत के रूप में, कर- चोरी का वर्णन किया गया है।
इनके मुताबिक, कर चोरी का स्तर, उसके जाँच की सम्भावना तथा कानून के द्वारा सुनिश्चित किये गए दंड पर निर्भर करता है। आयकर चोरी को प्रभावित करने वाले कारक आयकर की दर, बेरोजगारी दर, वेतन के स्तर तथा सरकारी नियमों से असंतुष्टि इत्यादि हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका के 1986 के कर सुधार अधिनियम द्वारा अमेरिका में कर- चोरी की संख्या में काफी हद तक कमी आई थी। 2017 की एक शोध के अनुसार, जैसे जैसे व्यक्ति के धन में बढ़ोतरी होती है, उसके कर चोरी के मामलों में संलिप्त होने की संभावनाएं भी बढ़ती जाती हैं। तथा साथ ही साथ मध्यम वर्गीय लोगों की तुलना में अमीर वर्ग के लोग 10 गुना अधिक कर चोरी के प्रयास में जुटे रहते हैं।
सीमा- शुल्क की चोरी ( Evasion of Custom-made Duty):
विकासशील देशों में राजस्व का बड़ा स्रोत सीमा- शुल्क होते हैं। आयातक किसी भी तरह से सीमा- शुल्क अदा करने से बचने के अलग- अलग तरीकों के प्रयास में लगे रहते हैं। जिनमे से निम्नलिखित प्रमुख हैं:
- चालान- प्रक्रिया के दौरान,
- उत्पाद की मात्रा तथा विवरण के बारे में गलत जानकारी देकर।
जब सीमा- शुल्क उत्पाद के मूल्य के अनुसार लगाया जाता है, तब चालान प्रक्रिया के दौरान ये कर देने से बच निकलते हैं। जब शुल्क निश्चित होता है, तब ये उत्पाद के बारे में गलत विवरण प्रदान करके कर- चोरी करते हैं। उत्पाद के विवरण को एक निश्चित एच. एस. कोड के बराबर लाया जाता है, जिसके कारण उत्पादों पर सीमा- शुल्क दर कम लगती है।
तस्करी (Smuggling)
विदेशी उत्पादों के गैर- कानूनी आयात तथा निर्यात को तस्करी कहा जाता है। तस्करी की सहायता से ही निषिद्ध व्यापार को संचालित किया जाता है। यह व्यापार पूरी तरह कर मुक्त होता है, अर्थात इसमें कर की पूर्ण रूप से चोरी शामिल होती है।
एक तस्कर को किसी की प्रकार का सीमा- शुल्क नही देना पड़ता है, क्योंकि वह उत्पादों की अदला- बदली कस्टम विभाग द्वारा सुनिश्चित किये गए मार्ग तथा बंदरगाह से न करके, किसी अन्य ही गुप्त मार्ग के रास्ते से करता है।
इसी कारण से वह सीमा- शुल्क को देने से स्वयं को पूरी तरह से बचा लेता है। उसे उत्पाद की वैधता तथा मात्रा का विवरण भी नही देना पड़ता, जिसके कारण वह अधिक से अधिक लाभ कमा लेता है।
मूल्य वर्धित कर( Value Added Tax) तथा बिक्री कर( Sales Tax) से सम्बंधित कर- चोरी:
20वीं शताब्दी के दूसरे भाग में, वैट( Value Added Tax) अर्थात मूल्य वर्धित कर समस्त विश्व में (सिवाय संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के) उपभोक्ता कर के नए स्वरुप के रूप में उभरा। जो उत्पादक उपभोक्ताओं से कर वसूल करते हैं, वे वस्तुओं की बिक्री में गिरावट बताकर कर-चोरी करते हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका में संघीय स्तर पर कोई उपभोक्ता कर नही वसूला जाता है, और न ही किसी राज्य द्वारा मूल्य वर्धित कर अर्थात वैल्यू एडेड टैक्स वसूल किया जाता है। वहां पर अधिकांश राज्यों द्वारा मूल्य वर्धित कर की बजाय बिक्री कर( Sales Tax) जमा कराया जाता है।
कनाडा देश में संघीय स्तर पर मूल्य वर्धित कर( अथवा वस्तु एवं सेवा कर) तथा प्रांतीय स्तर पर बिक्री कर (Sales Tax) जमा कराया जाता है, वहीं कुछ प्रांतों में एक ही कर में संयुक्त रूप से मूल्य वर्धित कर( Value Added Tax) तथा बिक्री कर( Sales Tax) वसूल किया जाता है।
सरकार की प्रतिक्रिया: (Response by Government):
कर-चोरी के स्तर को कुछ कारक जैसे कि किसी व्यक्ति अथवा संस्था के पास कितना धन है, इत्यादि के आधार पर मापा जा सकता है। जब भी कहीं पे प्रयुक्त धन की कमी होती है, तो वहाँ पर कर- चोरी के प्रयासों में भी अत्यधिक कमी पाई जाती है।
कर- चोरी के स्तर तथा प्रयासों की अधिकता, आयकर विभाग की कार्यकुशलता पर भी सवाल खड़ा करती हैं। आयकर अधिकारियों की भ्रष्टाचार में संलिप्तता के कारण कर-चोरी के मामलों को और भी अधिक बढ़ावा मिलता है।
कर-अधिकारी अलग-अलग माध्यमों से कर- चोरी को रोककर आयकर नियमों का कड़ाई से पालन जैसे कि करारोपण का निजीकरण अथवा टैक्स फार्मिंग इत्यादि करने के लिए प्रतिबद्ध होने चाहिए।
कर- अधिकारियों की भ्रष्टाचार में संलिप्तता( Corruption among Tax- Officials):
भ्रष्टाचारी आयकर अधिकारी उन लोगों की सहायता करके उन्हें सफलतापूर्वक कर- चोरी करने में सहयोग देते हैं। जब भी उनके संज्ञान में कोई कर- चोरी का मामला आता है, तो वह उस व्यक्ति अथवा संस्था से मन मुताबिक रिश्वत मांगकर उस मामले को वहीँ रफा- दफा कर देते हैं तथा उसे उच्च अधिकारियों के पास रिपोर्ट नही करते हैं। अनेकों विकासशील देशों में आयकर अधिकारियों का भ्रष्टाचार मामलों में संलिप्त होना एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में उभरकर सामने आ रहा है।
कर- चोरी का स्तर तथा दंड प्रावधान( Level of Tax- Evasion and Punishment):
लगभग सभी विकसित देशों में कर- चोरी एक अपराध की श्रेणी में आता है, तथा दोषी साबित होने पर उचित दंड, जुर्माना तथा जेल का भी प्रावधान है। अधिकतर देशों में यह देखा गया है, कि कर- चोरी के मामलों की संख्या, वहां के कर- चोरी में संलिप्तता के कानून की कठोरता पर निर्भर करती है।
कर- प्रवर्तन का निजीकरण (Privatization of Tax- Enforcement):
सर्वप्रथम, प्रोफेसर क्रिस्टोफर हुड द्वारा कर- चोरी के मामलों को किसी भी सरकार के मुकाबले अधिक तेज़ गति से पकड़ने तथा निपटाने के लिए ‘कर- प्रवर्तन के निजीकरण’ पर ज़ोर दिया गया। इसी कारण से, कई देशों ने इसे स्वीकार भी किया है। बांग्लादेश में, वर्ष 1991 में, कस्टम प्रशासन को आंशिक रूप से निजी किया गया था।