मानवाधिकार पर भाषण Speech on Human Rights in Hindi

आज के इस लेख में हमने मानव अधिकार पर भाषण Speech on Human Rights in Hindi प्रस्तुत किया है।

मानवाधिकार पर भाषण Speech on Human Rights in Hindi

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माननीय प्रधानाचार्य, सभी अध्यापक और सभी छात्रगण आप सभी को मेरा नमस्कार,

आज के इस आर्टिकल में हमने मानवाधिकार पर भाषण( Speech on Human Rights ) प्रस्तुत किया है। आज के इस समय में दिन-प्रतिदिन मनुष्यों का शोषण बढ़ता जा रहा है, और इसे देखते हुए मानव अधिकार (Human Rights) का सिद्धांत हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। 

सबसे पहले ये समझना ज़रुरी है कि मानव अधिकार (Human Rights) क्या है ? – कुछ विचारक और टिप्पणी कारों का मानना है कि मानव अधिकार 18वीं शताब्दी के फ़्रांसीसी क्रांति का एक उत्पाद है इसलिए इसका श्रेय फ्रांसीसी क्रांति को दिया जाता है।

अगर मैं मानवाधिकार (Human Rights) को विस्तार में बताऊँ तो मानवाधिकार ऐसे अधिकार है जिनका प्रत्येक व्यक्ति अपने जन्म और राष्ट्रीयता के आधार का हक़दार होता है। किसी भी मानव को उसकी राष्ट्रीयता, जाति, धर्म, भाषा आदि के बावजूद भी ये अधिकार अनिवार्य माने जाते है।

कई सारे ऐसे देश भी है जिनके पास विधायी रूप से समर्थित मानवाधिकारों का एक अपना संग्रह भी है। और वो उन देश के नागरिकों में अधिकार है। लेकिन विषय वही है की प्रत्येक नागरिक को सामान अधिकार प्राप्त है और किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नही होगा। 

पुरानी सभ्यताओं के कानून में भी अधिकारों के बारे में बताने की कोशिश की गई है लेकिन उस समय के समाज में अलग अलग लोगो के अधिकार उनकी जाति और धर्म के अनुसार होता था। हम्मुराबी सबसे पहला व्यक्ति था जिसे व्यक्तियों के अधिकारों के लिए कानून में दर्ज किया गया था।

इसकी बुनियादी अवधारणा यही थी कि सभी नागरिकों बराबर हो, लेकिन इसकी परिभाषा बिलकुल अलग थी। कुछ लोग ऐसे भी है जो नागरिकता की सारी शर्तों को पूरा नही करते है उन्हें मानवाधिकरों के वैधानिक समर्थन प्राप्त नही है।

विभिन्न समाजिक सुधारको और कार्यकर्ताओं ने अलग अलग समय पर लोगो को नागरिकों को मानवाधिकारों के प्रति जागरूक करते थे और लोगो को इस अवधारणा में शामिल करने के लिए कई सारे प्रयास भी किये गये।  

एक सभ्य समाज में अधिकार मानव के समग्र विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण है। हम अपने अधिकारों को व्यक्तिगत रूप से उन स्थितियों में संदर्भित करते है, जिसके तहत व्यक्ति अपने लक्ष्यों को अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर सके। 

19वीं शताब्दी के समय जब अंतर्राष्ट्रीय कानून और सिद्धांत बनने शुरू हुए और उसे परिभाषित करने की कोशिश की गई, जिसमे अधिकार धर्म, जाति और संस्कृति को नजर अंदाज़ करके दिया जाता है।

मानव अधिकारों को बनाने का मुख्य कारण दास्तां को खत्म करने, महिलाओं को बराबर का अधिकार जैसे कई सारे मुद्दे थे जिसके आधार पर मौलिक अधिकार बनाया गया और किसी के साथ भेदभाव न हो और ये सुनिश्चित किया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को मानव के रूप में पैदा होने के आधार पर मानवाधिकारों का हक़दार माना गया है। 

मानव अधिकार से संबंधित मुद्दे अलग-अलग समाज से अनुसार भिन्न-भिन्न होते है। लेकिन लोगो के सामाजिक, आर्थिक और नागरिकों के राजनीतिक अधिकार एक देश से दूसरे देश के अधिकारों को नियंत्रित करने वाले कानून भिन्न भिन्न होते है।

जैसे – सयुंक्त राष्ट्र ने महिलाओं के अधिकारों विपरीत होने वाले भेदभाव पर बहुत काम किया है क्योंकि उनको इसमें ज्यादा रूचि है। इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका में बहुत से अश्वेत लोग रहते है। इनके प्रति श्वेत लोगो द्वारा भेदभाव एक चिंता का कारण है।

सभी देश के सरकारों द्वारा श्वेत और अश्वेत लोगो के बीच भेदभाव ख़त्म करने के लिए लोगो को फ़िल्मो के द्वारा इसके साथ और भी कई तरीके से लोगो मे जागरूकता फैलाई जा रही है। ताकि कोई भी अश्वेत लोगो (काले लोगो) के साथ भेदभाव ना करे। इस भेदभाव को खत्म रोकने के लिए सयुंक्त राष्ट्र ने नस्लवाद का अभ्यास समाप्त कर दिया और इसके सम्बन्ध में एक प्रस्ताव भी पारित किया है। 

ऐसे ही कई सारे मुद्दों को देखते हुए ऐसे कानून को बनाने और ऐसी स्थितियों को खत्म करना हर देश का सर्वोच्च कर्तव्य है, जहाँ लोगो को मानवाधिकारों से संरक्षित किया जा सके। हमारा महान देश भारत जोकि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था वाला देश है, जहाँ लोगो को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अलावा भी कई सारे बुनियादी अधिकार है जो भारत के नागरिकों के लिए बहुत ही लाभदायक है। इन सभी अधिकारों को मौलिक अधिकार(Fundamental Rights) के नाम से जाना जाता है। 

हमारे भारतीय संविधान में पहले सात मौलिक अधिकारों को रखा गया था लेकिन कुछ समय बाद सम्पत्ति के अधिकार को क़ानूनी अधिकार बना दिया गया।

वर्तमान समय में केवल छह मौलिक अधिकारों को संविधान में रखा गया है। जो इस प्रकार है – 

• स्वतंत्रता का अधिकार

• समानता का अधिकार

• धर्म चुनने का अधिकार

• शोषण के खिलाफ अधिकार

• संवैधानिक उपायों का अधिकार

• सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार

इसके अलावा भी कुछ सामाजिक और आर्थिक अधिकार है जो हमारे लिए महत्वपूर्ण है- 

• शिक्षा का अधिकार

• काम करने का अधिकार

• अच्छे जीवन स्तर का अधिकार

• समान काम समान वेतन का अधिकार

• अवकाश और आराम का अधिकार 

इन सभी अधिकारों में नैतिक आधार है जिसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों ही स्तर पर कानून में जगह मिली है। इन मौलिक अधिकारों के सरकार ने प्राथमिक रूप से पालन और प्रवर्तन के लिए संबोधित किया जाता है। मानवाधिकार दर्शन में प्रकृति, सामग्री, अस्तित्व, सार्वभौमिकता जैसे प्रश्नों को मानवाधिकारों के सत्यापन के रूप में शामिल करते है। 

इन मानव अधिकारों के संग्रह के बावजूद भी पूरे दुनिया में विभिन्न स्थानों पर मानवाधिकारों का लगातार उलंघन किया जा रहा है। मेरा मानना है कि इस स्थिति में किसी भी देश के समृद्धि सतत स्थिति प्रबल नही हो सकती है, जहाँ उस देश के मूल निवासियों को उनके अधिकारों का आनंद नही ले सकते है जो उनके अस्तित्व के लिए अभिन्न है।

दोस्तों आज के इस समय में जहाँ लोगो के मानवाधिकारों का उलंघन करके उनका शोषण किया जा रहा है, ये देखते हुए हमें मानवाधिकार के महत्व को समझने की जरुरत है। इसको समझने की पहली वजह स्वयं हमारे लिए है क्योंकि इस राष्ट्र के नागरिक होने के नाते ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपने अधिकारों के बारे में जाने। हम अपने अधिकारों के प्रयोग करके शोषण के खिलाफ लड़ सके। 

मैं अपने अन्य साथी, छात्रों से और मंच पर उपस्थित सभी लोगो से अनुरोध करता हूँ कि आप सभी लोग अपने आस पास जो लोग अपने मौलिक अधिकारों के बारे में नही जानते है। आप सभी लोग उन्हें जागरूक करे ताकि किसी का भी शोषण न हो सके। 

मैं अपना भाषण इसके के साथ समाप्त करने की अनुमति चाहता हूँ। धन्यवाद!

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