महावीर जयंती पर निबंध Essay on Mahavir Jayanti in Hindi
इस लेख में हिंदी में महावीर जयंती पर निबंध (Essay Mahavir Jayanti in Hindi) को सरल शब्दों में लिखा गया है।
महावीर जयंती पर निबंध Essay on Mahavir Jayanti in Hindi
इसमें महावीर जयंती क्या है, महावीर जयंती का महत्व, कब और कैसे मनाया जाता है तथा भगवान महावीर की कथा के बारे में संक्षिप्त में बताया गया है।
महावीर जयंती क्या है? What is Mahavir Jayanti?
जैन धर्म की दोनों ही शाखाएं- दिगंबर और श्वेतांबर में महावीर जयंती का स्थान महत्वपूर्ण है। यहां तक की पूरे विश्व भर में जितने भी जैन धर्म के अनुयाई हैं, वे भगवान महावीर के जन्मदिन के उपलक्ष में पडने वाले इस खास त्यौहार को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। भगवान महावीर की शिक्षाओं पर चलने वाले लोगों की संख्या बहुत बड़ी है।
यहां तक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी भगवान महावीर के शिक्षा पर चलते थे। गौरतलब है कि जैन धर्म में अहिंसा को सर्वोपरि बताया गया है। महात्मा गांधी जैसे कई महापुरुषों ने अहिंसा को युद्ध में एक हथियार की तरह प्रयोग करके विजय प्राप्त किए थे।
इस प्रकार हर वर्ष इंसानियत का पाठ पढ़ाने वाले भगवान महावीर के जन्मदिन पर महावीर जयंती मनाई जाती है। महावीर जयंती को महावीर जन्म कल्याणक के रूप में भी जाना जाता है।
महावीर जयंती का महत्व Significance of Mahavir Jayanti
- ईसाई, इस्लाम, बौद्ध और हिंदू धर्म के पश्चात जैन धर्म भी दुनिया के कुछ बड़े माने जाने वाले धर्मों में शामिल है। इस पवित्र अवसर पर हर कोई अपने आराध्य द्वारा दिए गए अमृत समान ज्ञान को ग्रहण करके दूसरों तक पहुंचाता है।
- आज की दुनिया में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ अध्यात्म की भी उतनी ही आवश्यकता महसूस पड़ रही है। भगवान महावीर ने धरती पर आकर जिस तरह सभी मानव जाति का कल्याण किया था, वैसा ही मार्गदर्शन और ज्ञान की आवश्यकता आज महसूस हो रही है। महावीर जयंती के पवित्र उपलक्ष पर एक बार फिर से लोगों को धरती पर आए ईश्वर की याद आती है, जिन्होंने उंगली पकड़कर लोगों को जीवन का पाठ पढ़ाया था।
- जिस तरह हिंदू धर्म में दिवाली, होली और दूसरे बड़े धार्मिक त्योहारों का महत्व है। उसी तरह जैन धर्म में भी महावीर जयंती का बहुत ही अधिक महत्व है। इस दिन जैन समाज के सभी लोग एक साथ मिलकर ज्ञान के प्रकाश का आवाहन करते हैं।
- जैन धर्म की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन ब्रह्मांडीय शक्ति में एक बड़ा बदलाव होता है। जैन धर्म में भी ज्योतिष शास्त्र में चैत्र शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को बेहद शुभ और विशेष दिन बताया गया है, क्योंकि यही वह दिन है जब लोगों को अपनी तपस्या का फल बहुत सरलता से प्राप्त हो जाता है और उनके सारे पाप भी कट जाते हैं।
- महावीर जयंती के दिन साधना करने वाले तमाम तपस्वी लोगों को दुनिया की सभी नश्वर चीजों को त्याग कर भगवान महावीर के चरणों में ध्यान लगाने के लिए प्रेरित करते हैं। इसके अलावा महावीर जयंती पूरे जैन संप्रदाय के एकता को बढ़ावा देता है।
महावीर जयंती कब है? When is Mahavir Jayanti?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान महावीर का जन्म बिहार के वैशाली जिले के कुंडलपुर में लगभग 599 ईशा पूर्व में चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की तेरहवीं तिथि को हुआ था।
यह समय हिंदू पंचांग का पहला महीना होता है तथा अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अप्रैल महीना पड़ता है। वर्ष 2022 में यह महत्वपूर्ण तिथि 14 अप्रैल के दिन मनाई गई थी। आने वाले साल 2023 में महावीर जयंती 4 अप्रैल को मनाई जा सकती है।
महावीर जयंती का उत्सव (कैसे मनाया जाता है?) Celebration of Mahavir Jayanti in Hindi
जैन धर्म में सबसे बड़ा त्यौहार होने के कारण महावीर जयंती की तैयारियां कई दिनों पहले ही शुरू कर दी जाती है। धार्मिक स्थलों के आसपास सुगम वातावरण बनना प्रारंभ हो जाता है तथा भगवान महावीर की शिक्षाएं वाली पुस्तकें भी लोगों को भेंट में दी जाने लगती है।
महावीर जयंती मनाने का सबसे मुख्य कारण लोगों में भगवान महावीर के ज्ञान को प्रसारित करना और उनके जीवन में परिवर्तन लाना ही होता है। इस दिन मंदिरों में देखने लायक नजारा होता है, जहां हजारों की भीड़ में लोग इकट्ठे होते हैं।
जैन धर्म के कई वरिष्ठ साधु संत तथा भक्तों भीड़ भगवान महावीर का दर्शन करने के लिए उमड़ती है। कई बार ऐसे धार्मिक कार्यक्रमों में सुरक्षा हेतु पुलिस प्रशासन को तैनात करना पड़ता है, ताकि हजारों की भीड़ में कहीं भी कोई अनहोनी न हो जाए।
महावीर जयंती के दिन भगवान महावीर की सुंदर प्रतिमा के साथ उनकी झांकी निकाली जाती है। धार्मिक रथ यात्रा में भगवान महावीर का नाम तथा उनके भजनों को भी गाया जाता है।
जैन धर्म के अमीर अथवा पैसे वाले लोग महावीर जयंती के दिन मंदिरों और दूसरे स्थलों पर गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता करते हैं, उन्हें भोजन खिलाते हैं और वस्तु भी भेंट करते हैं।
जैन धर्म में शुद्धता का बहुत महत्व है, चाहे वह आत्मा का हो या फिर शरीर का। हालांकि जैन धर्म में अधिकतर लोग प्याज और लहसुन खाने से परहेज करते हैं यहां तक की इस धर्म में मांसाहार का उपभोग करना एक बहुत बड़ा पाप माना जाता है। महावीर जयंती के खास अवसर पर लोग भगवान का व्रत, अनुष्ठान और उपासना करते हैं।
अपने 24 वे तीर्थंकर भगवान श्री महावीर द्वारा दी गई शिक्षाओं के अनुसार 5 मूल्यवान व्रत जिसमें सत्य, ब्रम्हचर्य, अहिंसा, अस्तेय तथा अपरिग्रह का समावेश होता है, उसका पालन करने के लिए कई जैन धर्म के कार्यक्रमों में अध्यात्मिक भाषण और प्रतिज्ञा करवाई जाती है।
महावीर स्वामी का जन्म कब हुआ? When was Mahavir Swami born?
धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म लगभग ढाई हजार साल पूर्व 599 में हुआ था। वैशाली गणराज्य के कुंडलपुर में उनका जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ था।
भगवान महावीर के पिता का नाम सिद्धार्थ तथा उनकी माता का नाम त्रिशला था। परंपरा के अनुसार पार्श्वनाथ जोकी जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर थे, उनके मोक्ष प्राप्ति के लगभग 188 वर्षों बाद भगवान महावीर का जन्म हुआ था।
भगवान महावीर की कथा Story of Lord Mahavir in Hindi
एक समय की बात है, जब वेगवती नदी किनारे एक गांव हुआ करता था, जहां की जमीन बहुत बंजर और वहां बसने वाले लोग बड़े ही डर के माहौल से जीते थे। गांव के बाहर एक पुराना मंदिर आया था।
लोगों का मानना था कि वहां शूलपाणि नामक एक भयानक दैत्य निवास करता है और जो भी उसे मंदिर के पास दिखाई देता है वह उसे मौत के घाट उतार देता है।
एक बार भगवान महावीर साधना करने के लिए निकले थे। वह जगह की तलाश करते हुए उस मंदिर के पास आ पहुंचे। वहां हड्डी और कंकालो का ढेर लगा था। महावीर ने यह विचार किया कि साधना करने के लिए यह जगह सबसे अच्छी है।
इसी वक्त वहां गांव के कुछ लोग गुजर रहे थे, तभी उन्होंने महावीर को देखा और बड़े ही डगमगाते स्वर में उनसे कहा कि हे मुनिराज! क्या आपको इस जगह के विषय में नहीं पता?
आप जीवित रहना चाहते हैं, तो यहां से फौरन किसी दूसरी जगह चले जाइए। इतना कहकर वह लोग बड़े ही तेज रफ्तार से गांव की तरफ निकल पड़े।
भगवान महावीर ने लोगों में इस प्रकार का भय देखकर अब उसी स्थान पर तपस्या करने का निश्चय किया और लोगों के मन से इस डर को निकालने की ठान ली। जैसे-जैसे अंधेरा बढ़ा वह जगह और भी डरावनी हो गई।
सन्नाटे में चलने वाली हवाएं बड़ी ही खौफनाक लग रही हैं। तभी वहां शूलपाणि दैत्य प्रकट हुआ और महावीर को अपने सामने निडर होकर तपस्या करते देख उसके गुस्से का ठिकाना नहीं रहा। उस राक्षस ने भगवान महावीर की तपस्या भंग करके उन्हें डराने का बहुत प्रयास किया, लेकिन महावीर पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ा।
उसने विशालकाय दानव को प्रकट करके महावीर के शरीर को हवा में भी उछाला और नाखून और धारदार तलवारों से उनके शरीर को भी क्षति पहुंचाई, लेकिन वे तब भी अपनी तपस्या से बाहर नहीं आए।
हजारों प्रयास करने के बाद भी जब दैत्य ने देखा कि सामने बैठे एक साधारण से दिखने वाले मुनिराज पर उसके जादूगरी और शक्ति का कोई भी प्रभाव नहीं हुआ, तो वह समझ गया कि वह जरूर कोई दिव्य आत्मा हैं।
अंत में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और वह भगवान महावीर के समक्ष नतमस्तक होकर उनसे क्षमा मांगने लगा। तभी महावीर ने अपनी आंखें खोली और बड़े ही सहज स्वभाव से उन्होंने उसे यह कहा, कि देखो यदि तुम क्रोध और भय का मार्ग अपनाओगे, तो तुम्हें भी इसका एहसास करना ही होगा।
इसलिए यदि तुम पुण्यकाम करते हो, तो तुम्हारे साथ भी भला ही होगा। उस राक्षस ने फिर कभी किसी को भी परेशान नहीं किया।
लेख काफी अच्छा है