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Home » Quotes » आधुनिक भारत का इतिहास Modern History of India in Hindi

आधुनिक भारत का इतिहास Modern History of India in Hindi

Last Modified: November 29, 2022 by बिजय कुमार 13 Comments

आधुनिक भारत का इतिहास Modern History of India in Hindi

आज के इस लेख में हम आपको आधुनिक भारत का इतिहास (Modern History of India in Hindi) बताएँगे। भारतीय इतिहास काफी ज्यादा समृद्ध है और अन्य देशों के मुकाबले भारतीय इतिहास काफी ज्यादा विस्तृत भी है। इस लेख को विद्यार्थी एक निबंध के रूप में भी परीक्षा में लिख सकते हैं।

भारत के इतिहास में बहुत सारे घटनाक्रम मौजूद हैं जो कि यह दर्शाते हैं कि भारतीय इतिहास कितना अधिक महत्वपूर्ण है। यह इतिहास काफी ज्यादा विस्तृत है इस कारण इसे प्रमुख तौर पर तीन खंडों में बांटा गया है। भारत के आधुनिक इतिहास को शुरू करने से पहले हम आपको प्राचीन भारत और मध्यकालीन भारत के विषय में लागु रूप से पहले जान लें।

Table of Content

Toggle
  • प्राचीन भारत (Ancient India)
  • मध्यकालीन भारत (Medieval India)
  • आधुनिक भारत इतिहास (Modern History of India)
    • भारतीय आधुनिक इतिहास की प्रमुख घटनाएं (Main Incidents Of Indian Modern History) 
      • ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना (Arrival of East India Company) 
      • मुगलों का अन्त (End of Mughals)
      • आजादी की पहली लड़ाई (First war of independence) 
      • भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस का निर्माण (Formation of Indian National Congress) 
      • सूरत अधिवेशन (Surat Split) 
      • गांधी का आगमन (Arrival Of Mahatma Gandhi) 
      • मुस्लिम लीग का गठन (Formation of Muslim league) 
      • खिलाफत आंदोलन (Khilafat Movement)
      • असहयोग आंदोलन (Non co-operation Movement)
      • सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) 
      • भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) 
      • भारत का विभाजन (Partition of India) 
      • भारतीय संविधान निर्माण (Indian Constitution) 
      • भारत की आजादी (Independence of India) 
  • निष्कर्ष

प्राचीन भारत (Ancient India)

प्राचीन भारत, भारतीय इतिहास के सभी खंडों में काफी ज्यादा विस्तृत है। भारतीय प्राचीन इतिहास के सभी तथ्य अब तक सामने नहीं आए हैं। भारतीय प्राचीन इतिहास का प्रारंभ पाषाण युग से लेकर, गुप्त साम्राज्य तक है।

पाषाण युग, सिंधु घाटी सभ्यता, वेदिक भारत, महा जनपद, मौर्य काल और गुप्त काल, भारतीय प्राचीन इतिहास का ही हिस्सा हैं। यह खण्ड अन्य सभी खंडों का आधार माना जाता है।

मध्यकालीन भारत (Medieval India)

पढ़ें : मध्यकालीन भारत का इतिहास (पूर्ण)

मध्यकालीन भारत भारतीय इतिहास का सबसे अधिक महत्वपूर्ण खंड है। मध्यकालीन भारतीय इतिहास पाल साम्राज्य से शुरू होकर मुगलों के अंत तक खत्म होता है। यह खण्ड भारतीय इतिहास के महत्पूर्ण पन्नो को समेटे हुए है।

पाल साम्राज्य और राष्ट्र कूट साम्राज्य इसके प्रमुख अंग है। भारत में इस्लाम का आगमन इसी काल के दौरान हुआ था। मुगलों की शुरुआत से लेकर अंत तक इसी काल में हुई थी।

भारत ने इस खण्ड के दौरान कई साम्राज्यों के शासन काल को देखा और उनके द्वारा बनवाए गए किले और स्मारक आज भी भारतीय धरती पर मौजूद हैं और भारतीय इतिहास की समृद्धि को दर्शा रहे हैं।

आधुनिक भारत इतिहास (Modern History of India)

आधुनिक भारतीय इतिहास मुगलों के समापन से लेकर इंदिरा गांधी के शासन काल तक को माना जा सकता है। कई विद्वानों का यह भी मानना है कि आधुनिक भारतीय इतिहास भारत की आजादी पर खत्म हो जाता है।

आधुनिक भारतीय इतिहास के दौरान ही ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत पर कब्जा किया था और इसी दौरान आजादी की लड़ाइयां लड़ी गई थीं। यह खंड भारत के अधीन होने से लेकर भारतीय आजादी तक है।

इसी खण्ड के दौरान भारत पर सबसे अधिक समय तक राज करने वाला साम्राज्य, मुगल साम्राज्य अपने आस्तित्व से बाहर हुआ था। हालांकि सत्ता से तो वह काफी पहले ही निकल चुका था।

भारतीय आधुनिक इतिहास की प्रमुख घटनाएं (Main Incidents Of Indian Modern History) 

ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना (Arrival of East India Company) 

ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना को भारतीय आधुनिक इतिहास का प्रथम चरण कहा जा सकता है। ईस्ट इंडिया कम्पनी की भारत में स्थापना 31 दिसंबर 1600 में हुई थी।

पहले इसे जॉन कम्पनी के नाम से जाना जाता था लेकिन बाद में यह ईस्ट इंडिया कंपनी कहलाई थी। जॉन वाट्स इस कम्पनी के संस्थापक थे और उन्होने ही इस कंपनी के लिए व्यापार करने की इजाजत, ब्रिटेन की महारानी से ली थी। 

ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना द्वारा ही आधुनिक भारतीय इतिहास की नींव रखी गई। आधुनिक भारतीय इतिहास में घटने वाले अन्य सभी घटनाक्रम ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापन पर ही आधारित हैं। 

मुगलों का अन्त (End of Mughals)

भारतीय जमीन पर मुगल साम्राज्य सबसे अधिक समय तक राज करने वाले साम्राज्यों में से एक है। लेकिन हर साम्राज्य की तरह ही मुगलों का पतन भी हुआ। यह भारतीय आधुनिक इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है।

मुगलों के पतन का प्रमुख प्रमुख कारण उनमे उत्तरदायिता के अभाव था। मुगल शासकों में अकबर, जहांगीर और शाहजहां के इतर कोई भी शासक जन मानस तक पहुंचने में नाकामयाब रहा।

मुगलों ने भारत के मध्यकालीन इतिहास खण्ड में सत्ता खो दी थी, लेकिन आखिरी मुगल बादशाह रहे बहादुर शाह जफर की मृत्यु भारतीय आधुनिक इतिहास खण्ड के दौरान हुई। विशाल मुगल साम्राज्य के अंतिम बादशाह का देहांत बर्मा की जेलों में हुआ जहां उन्हे अंग्रेजो द्वारा कैद किया गया था, और उनके उत्तराधिकारीयों को उन्ही की नजरों के सामने मौत के घाट उतार दिया गया था। 

आजादी की पहली लड़ाई (First war of independence) 

आजादी की पहली लड़ाई को “1857 की क्रांति” के नाम से भी जाना जाता है। यह लड़ाई अलग अलग सैन्य दलों और किसान आंदोलन के मोर्चों को मिलाकर बनाई गई थी।

गौरतलब है कि ईस्ट इंडिया कम्पनी के भारत को अधीन करने के उपरान्त सबसे अधिक असंतोष किसानों और सैन्य दलों में ही था। किसानों और सैन्य दलों ने ही इस आंदोलन को खड़ा किया था। हालांकि बाद में कई सारे क्रांतिकारी इस आंदोलन में जुड़ते चले गए। 

1857 की क्रांति की नींव 1853 में रखी गई थी। उस दौरान यह अफवाह फैला दी गई थी राइफल के कारतूस पर सुअर और गायों की चर्बी लगाई जाती है। गौरतलब है कि राइफल और कारतुस को चलाने से पहले उसे मूह से खोलना पड़ता था, जिस कारण यह हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्म के भारतीय सैनिकों को बुरा लगा। 

1857 की क्रांति का यह सैन्य कारण था। वहीं दूसरा कारण जो इस क्रांति से जुड़ा है वह यह कि किसानों पर ब्रिटिश सरकार के लगानों का बोझ काफी ज्यादा बढ़ गया था और वे काफी समय से इस चिंगारी को दबा रहे थे। 

इस क्रांति के प्रमुख चेहरे, मंगल पांडे, नाना साहेब, बेगम हजरत महल, तात्या टोपे, वीर कुंवर सिंह, अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर, रानी लक्ष्मी बाई, लियाकत अली, गजाधर सिंह और खान बहादुर जैसे महत्वपूर्ण और वीर नेता थे। 

यह क्रांति शुरुआती दिनों में तो काफी ज्यादा तेजी से चली और ऐसा लगा कि यह ब्रिटिश सत्ता को पूर्ण रूप से खदेड़ के रख देगी, लेकिन यह क्रांति ऐसा कर पाने में असफल हुई और इस क्रांति को ब्रिटिश सत्ता ने निर्ममता से खदेड़ दिया। 

भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस का निर्माण (Formation of Indian National Congress) 

भारतीय कॉंग्रेस का गठन भारतीय आधुनिक इतिहास के प्रमुख चरणों में से एक है। भारतीय कॉंग्रेस ने आगे जाकर भारत की आजादी में एक महत्वपूर्ण किरदार निभाया, हालांकि यह भारतीय कॉंग्रेस का शुरुआती मकसद नहीं था। 

भारतीय कॉंग्रेस का गठन ए ओ ह्यूम द्वारा किया गया था। उन्होने भारतीय कॉंग्रेस का निर्माण, ब्रिटिश सरकार के साथ मिलकर भारतीय लोगों के लिए बेहतर रणनीति बनाने के लिए किया था। 

एओ ह्यूम ने भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 को की थी। मूल रूप से कॉंग्रेस का निर्माण देश के विद्वान लोगों को एक मंच पर लाने के लिए किया गया था। 

कॉंग्रेस के शुरुआती दौर में कॉंग्रेस के पास केवल 17 सदस्य थे। कॉंग्रेस का पहला अधिवेशन मुंबई में हुआ था जिसकी अध्यक्षता व्योमेश चंद्र बनर्जी द्वारा की गई थी। 

सूरत अधिवेशन (Surat Split) 

यह अधिवेशन कांग्रेस के दृष्टिकोण से काफी ज्यादा महत्वपूर्ण अधिवेशन था। यह घटना कॉंग्रेस के इतिहास की सबसे अधिक दुखद घटनाओं में से एक मानी जाती है। कॉंग्रेस के ही सदस्य रहे एनी बेसेंट ने कहा था कि यह घटना कॉंग्रेस की सबसे अधिक अप्रिय घटनाओं में से एक है। 

गौरतलब है कि 26 सितंबर 1907 को यह अधिवेशन ताप्ती नदी के किनारे पर रखा गया था। हर अधिवेशन की तरह ही इस अधिवेशन के लिए भी अध्यक्ष का चुनाव कराया गया, जहां से इस घटना क्रम की शुरुआत हुई। गौरतलब है कि स्वराज्य को पाने के लिए कराए जा रहे इस अधिवेशन के कारण कॉंग्रेस दो धड़ों में बंट गई। 

कॉंग्रेस में निर्मित ये दो दल, गरम दल और नरम दल के नाम से काफी ज्यादा मशहूर हुए। इन दो दलों की सूरत के अधिवेशन के लिए अध्यक्ष चुनाव के दौरान मार पीट तक हो गई।

दरअसल गरम दल के उग्रवादियों ने सूरत अधिवेशन का अध्यक्ष लोकमान्य तिलक को बनाने की मांग की थी लेकिन इसके उलट उदारवादी दल ने डॉक्टर राम बिहारी घोष ने इस अधिवेशन का अध्यक्ष बना दिया। 

बाद में यह उग्रवादियों और उदारवादीयों की तर्ज पर दो दल हो गए जिन्हे गरम दल एवं नरम दल का नाम दिया गया। गरम दल के नेता लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल थे और नरम दल के नेता गोपाल कृष्ण गोखले थे। बाद में 1916 के लखनऊ के अधिवेशन में इन दोनों दलों का विलय हुआ। 

गांधी का आगमन (Arrival Of Mahatma Gandhi) 

महात्मा गांधी का भारतीय राजनीति में आगमन भारतीय आधुनिक इतिहास के प्रमुख चरणों में से एक है। महात्मा गांधी पहले इंग्लैंड मे थे और उसके बाद वे दक्षिण अफ्रीका गए।

दक्षिण अफ्रीका में उन्होने काफी ज्यादा संघर्ष किया और उस संघर्ष के उपरान्त वे भारत में आए। जब गांधी भारत लौटकर आये तब उनकी उम्र 46 वर्ष थी और साल 1915 था। उस समय महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले थे।

महात्मा गांधी ने भारतीय राजनीति का प्रमुख नेता बनने से पहले एक वर्ष तक भारत का अध्यन किया। महात्मा गांधी जी ने इस दौरान किसी भी प्रकार का आंदोलन नहीं किया न ही वे किसी मंच पर भाषण देने के लिए चढ़े। 

लेकिन 1915 के बाद 1916 में गांधी जी ने साबरमती आश्रम को स्थापित किया और पूरे भारत में भ्रमण करने लगे। उन्होने पहली बार मदन मोहन मालवीय द्वारा स्थापित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के मंच से भाषण दिया जो कि पूरे देश में आग की तरह फैल गया।

महात्मा गांधी का एकमात्र लक्ष्य पूर्ण स्वराज्य था, जो कि आगे चलकर कॉंग्रेस पार्टी का भी लक्ष्य बना और महात्मा गांधी कॉंग्रेस के प्रतीक बन गए।

मुस्लिम लीग का गठन (Formation of Muslim league) 

मुस्लिम लीग की स्थापना 30 दिसंबर, 1906 को ढाका में की गई थी। गौरतलब है की ढाका भी उस समय भारत का ही हिस्सा था। मुस्लिम लीग का शुरुआती नाम आल इंडिया मुस्लिम लीग था जो कि बाद में मुस्लिम लीग हो गया था। मुस्लिम लीग के प्रमुख नेताओं में मोहम्मद अली जिन्ना, ख्वाजा सलीमुल्लाह और आगा खाँ शामिल हैं।

खिलाफत आंदोलन (Khilafat Movement)

पढ़ें : खिलाफत आंदोलन का इतिहास

यह घटना आधुनिक भारतीय इतिहास से काफी ज्यादा जुड़ी हुई नहीं है लेकिन इस घटना का महत्व है क्यूंकि यह एक आंदोलन था जिसका समर्थन महात्मा गांधी जी द्वारा किया जा रहा था।

यह आंदोलन तुर्की के खलीफा को उनकी पदवी दुबारा दिलाने के लिए किया गया था और यह आंदोलन भारत की आजादी के लिए काफी सहयोगी भी साबित हुआ।

महात्मा गांधी का इस आंदोलन को समर्थन देने के पीछे यह तथ्य था कि वे इस आंदोलन में मुस्लिमों की मदद करके भारतीय मुस्लिमों द्वारा आजादी की लड़ाई में सहयोग ले लेंगे। 

यह एक प्रकार का धार्मिक राजनीतिक आंदोलन था जिसने गांधी जी के पूर्ण स्वराज्य के सपने को सीधे तौर पर नहीं लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से काफी सहायता पहुंचाई थी। 

असहयोग आंदोलन (Non co-operation Movement)

पढ़ें: असहयोग आंदोलन पर निबंध

असहयोग आंदोलन गांधी जी द्वारा चलाया गया पहला व्यापक आंदोलन था। यह काफी ज्यादा महत्वपूर्ण था और भारतीय आधुनिक इतिहास में इसका महत्व अत्यधिक है। गौरतलब है कि महात्मा गांधी के द्वारा चलाए गए इस आंदोलन के कारण ही आजादी की नींव रखी गई थी।

इस आंदोलन के जन्म का प्रमुख कारण जलियांवाला बाग हत्याकांड था। जलियांवाला बाग हत्याकांड को इस आंदोलन का मुख्य प्रतीक बनाया गया और लोगों के आक्रोश को इस आंदोलन से जोड़ दिया गया। अन्य कारण जो इस आंदोलन के पीछे था वह, रॉलेट एक्ट था। 

गांधी जी द्वारा चलाए गए इस अभियान की मुख्य कार्यप्रणाली असहयोग थी। असहयोग का सीधा अर्थ था ब्रिटिश सरकार की बिल्कुल भी सहायता नहीं करना। 

यह आंदोलन गांधी जी के कॉंग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद चलाया गया और अध्यक्ष बनने के बाद, 1920 में उन्होंने पूरे देश को इस आंदोलन से जुड़ने के लिए कहा। 

गौरतलब है कि गांधी जी के इस निवेदन पर कई लोग इस आंदोलन से जुड़े। इस आंदोलन के दौरान 396 हड़तालें की गईं जिनमें 30 मार्च 1919 और 6 अप्रैल 1919 की देश व्यापी हड़तालें प्रमुख हैं। 

इस आंदोलन के दौरान होने वाली हड़तालों के दौरान 6 लाख श्रमिकों ने भाग लिया। इस दौरान लगभग 70 लाख से अधिक कार्य दिवसों का भी नुकसान हुआ। यह 1857 की क्रांति के बाद का सबसे अधिक विशाल आंदोलन था। 

सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) 

सविनय अवज्ञा आंदोलन गांधी जी द्वारा किए गए प्रमुख आंदोलनों में से एक है। गांधी जी ने यह आंदोलन 12 मार्च 1930 को किया था। गांधी भारतीय आधुनिक इतिहास के सर्वाधिक महत्पूर्ण व्यक्ति थे और उनके द्वारा किए गए आंदोलन भी काफी ज्यादा महत्वपूर्ण थे।

गांधी जी द्वारा किया गया आंदोलन अंग्रेजों के भारत छोड़ने की घोषणा के बाद किया गया था। गांधी जी को ऐसा लगता था कि अंग्रेज केवल कह रहे हैं अपितु वे भारत को किसी भी सूरत में नहीं छोड़ेंगे।

गांधी जी द्वारा चलाया गया यह आंदोलन इसी घोषणा को सत्य करने के लिए अंग्रेजों पर दबाव डाल रहा था, हालांकि बाद में इस आंदोलन को इर्विन समझौते के कारण वापस ले लिया गया। 

भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) 

भारत छोड़ो आंदोलन गांधी जी द्वारा किया गया आखिरी आंदोलन था। यह अंग्रेजों के खिलाफ भी किया गया आखिरी आंदोलन था क्यूंकि इस आंदोलन के उपरांत अंग्रेजों ने भारत छोड़ दिया था।

इस आंदोलन का एकमात्र उद्देश्‍य स्वतंत्रता प्राप्त करना था, हालांकि ऐसा आंदोलन के दौरान तो नहीं हो पाया क्यूंकि अंग्रेजों ने यह आंदोलन दबा दिया था लेकिन इस आंदोलन के खत्म होने के बाद अंग्रेजों ने भारत छोड़ दिया था। इस आंदोलन का प्रमुख नारा “भारत छोड़ो” 1942 के कॉंग्रेस के बम्बई अधिवेशन के दौरान दिया गया था। 

भारत का विभाजन (Partition of India) 

भारत के विभाजन को अंग्रेजों की देन कहा जा सकता है। अंग्रेजों द्वारा ही “फुट डालो राज करो” की नीति अपनाई जाती थी और उन्होने भारत को छोड़ते समय भी यही किया।

उन्होने भारत को छोड़ दिया लेकिन भारत के टुकड़े भी कर दिए। महात्मा गांधी भारत के टुकड़े नहीं चाहते थे लेकिन उस समय तक भारत परिस्थितियों की समस्या में इस कदर फँस चुका था कि कुछ किया नहीं जा सकता था। 

भारत के विभाजन के समर्थन वाले प्रमुख दलों में मुस्लिम लीग भी थी, जिसका नेतृत्व मोहम्मद अली जिन्ना कर रहे थे।

भारतीय संविधान निर्माण (Indian Constitution) 

भारतीय संविधान निर्माण भारतीय आधुनिक इतिहास की प्रमुख घटनाओं में से एक है। भारतीय संविधान का निर्माण भारत की सुचारू रूप से चलाने के लिए किया गया था। भारतीय संविधान को 2 साल, 11 महीने और 18 दिनों में निर्मित किया गया था। 26 नवंबर को भारतीय संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। 

भारत की आजादी (Independence of India) 

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों की हालत काफी ज्यादा खराब हो चुकी थी और कई प्रकार के आंदोलनों से परेशान होकर भी उन्होने 15 अगस्त 1947 को अधिकारिक तौर पर भारत को छोड़ दिया। 

निष्कर्ष

आधुनिक भारत का इतिहास बहुत ही फैला हुआ है। इस लेख में हमने इसके विषय में आसान शब्दों में समझाने की कोशिश की है। आशा करते हैं आपको इस लेख से मदद मिली होगी।

Filed Under: Quotes Tagged With: भारत के स्वतंत्रता सेनानियों पर निबंध, भारतीय एकता दिवस, भारतीय संस्कृति, भारतीय स्वतंत्रता दिवस का इतिहास, मुस्लिम खिलाफत आंदोलन, स्वतंत्रता दिवस पर जीके प्रश्न

About बिजय कुमार

नमस्कार रीडर्स, मैं बिजय कुमार, 1Hindi का फाउंडर हूँ। मैं एक प्रोफेशनल Blogger हूँ। मैं अपने इस Hindi Website पर Motivational, Self Development और Online Technology, Health से जुड़े अपने Knowledge को Share करता हूँ।

Reader Interactions

Comments

  1. Rukhmani Dheewar says

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  2. Neha Singh says

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    March 17, 2022 at 11:45 pm

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