भारत में जल संसाधन Water resources in India Hindi
जल एक अमूल्य प्राकृतिक संसाधन है, जो संपूर्ण परिस्थितिक तंत्र के लिए महत्वपूर्ण है। भारत देश की महत्वपूर्ण सम्पदा में जल संसाधन एक प्रमुख घटक है। देश के सतही जल एवं भू-जल संसाधन कृषि, जल विद्युत उत्पादन, मत्स्यपालन, नौकायान इत्यादि के क्षेत्र में मुख्य भूमिका निभाते हैं।
भारत में जल संसाधन Water resources in India Hindi
जैसा कि भारत एक कृषि प्रधान देश है, यहाँ कि काफी जनसंख्या कृषि पर निर्भर है और भारतीय किसान ज्यादातर वर्षा जल अथवा नदी के जल पर निर्भर है। भारत में जनसंख्या में वृद्धि एवं रहन सहन के स्तर में सुधार के कारण हमारे जल संसाधन पर दबाव बढ़ता जा रहा है।
इससे प्रति व्यक्ति जल संसाधनों की उपलब्धता में दिन प्रतिदिन कमी आ रही है। 2008 में किये गये एक अध्ययन के मुताबिक देश में कुल जल उपलब्धता 654 बिलियन क्यूबिक मीटर थी और तत्कालीन कुल माँग 634 बिलियन क्यूबिक मीटर है।
(सरकारी आँकड़े जल की उपलब्धता को 1123 बिलियन क्यूबिक मीटर दर्शाते है लेकिन यह ओवर एस्टिमेटेड है)। साथ ही कई अध्ययनों में यह भी स्पष्ट किया गया है कि निकट भविष्य में माँग और पूर्ति के बीच अंतर चिंताजनक रूप ले सकता है। भारत में जल संसाधनों का स्रोत मुख्य रूप से वर्षा जल ही है, फिर भी जल संसाधन को निम्न दो भागों में बाँटा जा सकता है।
- सतही जल संसाधन (नदियाँ, तालाब, नाले)
- भूमिगत जल संसाधन
जल संसाधन के प्रकार व भाग
सतही जल
सतही जल पूर्णतया वर्षा पर निर्भर होता है। भारत में वर्षा जल की उपलब्धता काफी है और यहाँ के सामान्य जीवन का अंग भी है। भारत में एक वर्ष में औसतन 1160 मिलीमीटर वर्षा होती है। अधिकांश वर्षा मानसून के मौसम (जून-सितम्बर) में होती है।
वर्षा से तालाबों, झीलों और नदियों इत्यादि में इकठ्ठा हुए जल को भारतीय वर्ष भर उपयोग में लाते हैं। किसी भी वर्ष के भीतर भारत में बाढ़ एवं सूखा दोनों होना संभव है क्योंकि भारत में होने वाली वर्षा स्थानिक एवं कालिक आधार पर बृहद रूप से परिवर्तनीय है।
जहाँ देश में एक ओर चेरापूँजी के निकट मासिनराम में विश्व की सर्वाधिक वर्षा होती है, वहीं दूसरी ओर लगभग प्रत्येक वर्ष शुष्क ऋतुओं में कई स्थानों पर जल की कमी का सामना करना पड़ता है।
भारत के पर्वतों पर जमा हिम गर्मियों के दिनों में पिघल कर नदियों में प्रवाहित होता है। नदियों का भौगोलिक क्षेत्र लगभग 329 मिलियन हेक्टेयर है। जिसमें कई छोटी बड़ी नदियाँ बहती हैं। कुछ नदियाँ विश्व में महान नदियों के रूप में प्रसिद्ध है।
जिसमें सिन्धु, गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, मेघना इत्यादि है। भारत की जनसंख्या का अधिकांश भाग ग्रामीण क्षेत्र का है। जो पूर्ण रूप से कृषि पर आधारित है। जिसके लिए नदियाँ ही एकमात्र सिंचाई का स्रोत है। नदियाँ भारतीय जीवन का हृदय एवं आत्मा है यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
भूमिगत जल
भूजल वह पानी होता है जो चट्टानों और मिट्टीओं से रिसता है और जमीन के नीचे जमा होता है। चट्टाने जिनमें भूजल को संग्रहित किया जाता है, उसे जलभृत कहा जाता है। इसे कुओं, ट्यूब-वैल अथवा हैंडपम्पों द्वारा खुदाई करके प्राप्त किया जाता है।
भूमिगत जल अधिकतर स्वच्छ होता है और इसका प्रयोग सीधे किया जा सकता है। भारत विश्व का सबसे बड़ा भुगर्मिक जल का उपयोग करने वाला देश है। हालांकि भारत में भी भूजल का वितरण सर्वत्र समान नहीं है।
भारत के पठारी भाग हमेशा से भूजल के मामले में कमजोर रहे हैं। यहाँ भूजल भुगर्मिक संरचनाओं में पाया जाता है जैसे भ्रंश घाटियों और दरारों के सहारे। उत्तरी भारत के जलोढ़ मैदान हमेशा से भूजल में संपन्न रहे हैं, लेकिन अब उत्तरी पश्चिमी भागों में सिंचाई हेतु तेजी से दोहन के कारण इनमें अभूतपूर्व कमी दर्ज की गई है।
भारत में जलभरों और भूजल की स्थिति पर चिंता जाहिर की जा रही है। जिस तरह भारत में भूजल का दोहन हो रहा है भविष्य में स्थितियाँ काफी खतरनाक हो सकती हैं। ज्ञातव्य है कि भारत में 60% सिंचाई हेतु जल और लगभग 85% पेय जल का स्रोत भूजल ही है, ऐसे में भूजल का तेजी से गिरता स्तर एक बहुत बड़ी चुनौती के रूप में उभर रहा है।
जल जीवन का आधार है और यदि हमें जीवन को बचाना है तो जल संरक्षण और संचय के उपाय करने ही होंगे। जल की उपलब्धता घट रही है और मारामारी बढ़ रही है। ऐसे में संकट का सही समाधान खोजना प्रत्येक मनुष्य का दायित्व बनता है।
यही हमारी राष्ट्रीय जिम्मेदारी भी बनती है और हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी ऐसी ही जिम्मेदारी की अपेक्षा करते हैं। जल के स्रोत सीमित हैं, नये स्रोत हैं नहीं। ऐसे में जलस्रोतों को संरक्षित रखकर एवं जल का संचय कर हम जल संकट का मुकाबला कर सकते हैं।
इसके लिये हमें अपनी भोगवादी प्रवित्तियों पर अंकुश लगाना पड़ेगा और जल के उपयोग में मितव्ययी बनना पड़ेगा। जलीय कुप्रबंधन को दूर कर ही हम इस समस्या से निपट सकते हैं। यदि वर्षाजल का समुचित संग्रह हो सके और जल के प्रत्येक बूँद को अनमोल मानकर उसका संरक्षण किया जाये तो कोई कारण नहीं है कि वैश्विक जल संकट का समाधान न प्राप्त किया जा सके।